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अब दलीय सरकारों से देश की जनता का उत्थान नहीं होगा, होना होता तो अब तक हो जाता

    • कौशलेंद्र प्रताप सिंह
    • Updated: 17 नवम्बर, 2022 06:40 PM
  • 17 नवम्बर, 2022 06:40 PM
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हिंदुस्तान का हर नौजवान किसी न किसी विचारधारा के रोग से ग्रसित है. क्या उस विचारधारा से गांव के गरीब के जीवन में अमूल-चूल परिवर्तन हुआ? बेटियों से बलात्कार तब भी होता था और आज ज्यादा हो रहा है? भ्रष्टाचार तब छुप छुपा के था आज खुल्लम खुल्ला हो रहा है, पुलिस तब भी कहर बरपाती थी, आज फ़र्ज़ी मुकदमों में फ़साती है, तब जातिवाद न के बराबर था और आज जाति ही सबकुछ है.

अब दलीय सरकारों से देश की जनता का उत्थान नहीं होगा, होना होता तो अब तक हो जाता. उत्थान के अभिप्राय में भिन्नता हो सकती है, पर जब-जब अंतरात्मा की आवाज़ से विमर्श करिएगा तो सरकार से ज्यादा भरोसा स्वयं पर करना होगा.

सरकारें तो सन 52 से ही हमारा भरोसा तोड़ रही हैं. समाधान से ज्यादा समस्या पैदा कर गयीं. सबसे बड़ी समस्या बढ़ती जनसंख्या है, जिसपर सब चुप हैं. उससे बड़ी समस्या रोजी-रोजगार की है, जिसपर सभी बोलते है, पर बेरोजगारी दिन-प्रतिदिन बढ़ती गयी. वे कहते है कि सब बदल देंगे, बदलने की आड़ में स्वयं को बदल दिए और हम ज़िंदाबाद करते रहे.

गांधी, लोहिया, दीनदयाल और जयप्रकाश को सब पढ़ते हैं, ठीक उनके विपरीत आचरण करने के लिए उतने ही प्रतिबद्ध है, जितना हम सभी अपने-अपने भविष्य के लिए उनके भरोसे का...

सरकारें तो सन 52 से ही हमारा भरोसा तोड़ रही हैं, समाधान से ज्यादा समस्या पैदा कर गयीं

हिंदुस्तान का हर नौजवान किसी न किसी विचारधारा के रोग से ग्रसित है. क्या उस विचारधारा से गांव के गरीब के जीवन में अमूल-चूल परिवर्तन हुआ? बेटियों से बलात्कार तब भी होता था और आज ज्यादा हो रहा है? भ्रष्टाचार तब छुप छुपा के था आज खुल्लम खुल्ला हो रहा है, पुलिस तब भी कहर बरपाती थी, आज फ़र्ज़ी मुकदमों में फ़साती है, तब जातिवाद न के बराबर था और आज जाति ही सबकुछ है. सन 52 में चुनावी राजनीति में वंसवाद 9% था और आज 98% है, तब लोग सड़क पर झूठ बोलते थे और संसद में सत्य, आज सड़क और संसद दोनो जगह असत्य का बोल-बाला है, गरीबों की बात करते करते कब अमीर बन गए, यह अगला चुनाव बताता है.

कोर्ट ने कहा कि सब सरकारी कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढेंगे, पर वे कहते हैं कि उनके बच्चे वहां नही पढेंगे क्योंकि वहां मेज़ कुर्सी की जगह टाट है, जिसपर बैठ कर "क से कौवा" पढ़ाया जाता है. हम तो "a for apple" में पढ़ायेंगे.

लोगों ने लोकतंत्र से खूब खिलवाड़ किया, तमाशबीन जनता बनी रही, क्योंकि उसे जाति चाहिए, शराब चाहिए, साड़ी चाहिए, सनद रहे इसी शराब और साड़ी से खेलता भी है.

लोकलुभावन नारे से सब लुटता रहा और हम खामोश रहे, कबतक खामोश रहोगे, क्यो खामोश हो?

पूछो उस बच्चे से जिसे आज भी पीने का शुद्ध पानी मुअस्सर नहीं, पढ़ने के लिए स्कूल तो है पर कोई पढ़ाता नहीं, पूछो उस वेवा से जिसे पेंशन के लिए घूस में पैसा देना पड़ता है, पूछो उस बहन/बेटी से जिसके साथ भारत मे दरिंदो ने बलात्कार किया, पूछो उस मां से जिसकी कोख को आतंकवादियों ने सुना कर दिया, पूछो उस बाप से की तुम्हारा बेटा बेरोजगार क्यों है?

आप पूछ सकते है कि समाधान क्या है? समाधान है. बस हिम्मत और हौसला पैदा करिये.

1) दो बच्चों से ज्यादा पैदा करने वालो को सरकारी सुविधाओं के साथ-साथ सँगठित गिरोह चुनाव में टिकट न दे.

2) हर संस्था व राजनैतिक दल अपनी आय का स्रोत बताए.

3) 2 बार चुनाव जीतने के बाद 50%लोगो का टिकट काटा जाय ताकि प्रतिभाओं को मौका मिले.

4) चुनाव निःशुल्क हो, उसी का नामांकन वैध माना जाय जो स्थानीय स्तर पर श्मशान जाने के लिए प्रेरित किया हो.

5) समग्र एकता के लिए आपसी भेदभाव को छोड़कर सामूहिक रूप से रोटी का रिश्ता कायम करने के लिए संकल्पित हो.

6) राजनैतिक जीवन मे ब्यक्तिगत पूंजी शून्य हो.

7) धर्म में ब्याप्त आडम्बर/बुराई का खिलाफत करने वाला हो.

8) सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने वाला हो.

9) सहायता के रूप में समाज से आवश्यकता भर लेने वाला हो साथ ही बलभर समाज को देने वाला हो.

10) अंतरजातीय विवाह का पक्षधर हो.

11) दलीय सीमा को तोड़कर, गलत को गलत और सही को सही कहने वाला हो.

12) अंतिम आदमी का मत लेने से पहले, अंतिम आदमी जैसा जीवन जिया हो, उसके कष्ट को जानता हो, उसके साथ छल-कपट न करने वाला हो.

13) बेटा-बेटी और वृक्ष सबको बराबर का दर्जा देने वाला हो.

14) पूंजी संग्रह को एक आवश्यक बीमारी मानने वाला हो.

15) एक देश एक कानून का मानने वाला हो.

16) जाति के अंत मे जातिसूचक शब्द लिखने का विरोधी हो.

17) मृत्यु भोज (तेरही भोज) का विरोधी हो, उसकी जगह शोकसभा आयोजित कर उनके गुणों व अवगुनो पर चर्चा करने वाला हो.

18) हिदू-मुस्लिम छोड़कर भारतीय बनने व बनाने का कवायत करने वाला हो.

19) जाति तोड़ो समाज जोड़ो का सच्चा सिपाही हो.

20) या तो सबको पेंशन या तो किसी को नहीं कहने वाला हो.

बीज बनकर सड़ना होगा, क्योंकि आप स्वयं में एक वृक्ष हो जिसमें छाया है, फल है, लकड़ी है, ऑक्सीजन है जो विपरीत परिस्थितियों में भी हमारी और आपकी सेवा के लिए ततपर रहता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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