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पत्रकारों को पक्षपातपूर्ण खबरों के लिए ऑफर देना अखिलेश यादव की कौन सी राजनीति है?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 22 जनवरी, 2019 05:58 PM
  • 22 जनवरी, 2019 05:58 PM
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अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और उनकी अपनी प्रतिष्ठा है. 19 के चुनाव के मद्देनजर वो जिस तरह से भाजपा को नीचा दिखाने के लिए बयान दे रहे हैं ये उनके व्यक्तित्व को शोभा नहीं देता.

'पत्रकार अगर समाजवादी पार्टी के लिए अच्छी स्टोरी करेंगे, तो वह सत्ता में वापस आने पर उन्हें 'यश भारती' से सम्मानित करेंगे, साथ ही 50 हजार रुपये भी मिलेंगे.' अखिलेश यादव (पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश)

लोकसभा चुनाव आने में वक़्त है. राजनीतिक दल अभी से एक दूसरे के ऊपर कीचड़ उछालने में लग गए हैं. साफ है कि 2019 के इस लोकसभा चुनाव में हम कई ऐसे मंजर देखेंगे जो बेहद घिनौने होंगे. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस मामले में बाक़ी दलों और नेताओं से दो हाथ आगे हैं. उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी है. अखिलेश, मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने भाजपा पर चौतरफा हमला बोला. अपनी प्रेस कांग्रेस  में अखिलेश ने न सिर्फ भाजपा को झूठ बोलने वाली पार्टी बताया. बल्कि उन पत्रकारों और लेखकों को भी कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया जिन्हें यशभारती से सम्मानित किया गया था. मजाकिया लहजे में अखिलेश ने पत्रकारों को 'अच्छी स्टोरी' के एवज में 50 हजार रुपए देने और यश भारती सम्मान से सम्मानित करने की बात कही.

अखिलेश यादव ने अपनी बातों से साफ कर दिया है कि 19 के चुनाव में सत्ता सुख पाने के लिए सारे पैतरे आजमाए जाएंगे

इसके अलावा अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा साधुओं को दी जाने वाली पेंशन पर भी वर्तमान सरकार की चुटकी ली. अखिलेश ने कहा कि, 'मैं तो चाहता हूं कि साधुओं को 20,000 रुपये की पेंशन मिलनी चाहिए. इसके साथ ही समाजवादी पेंशन भी दोबारा शुरू होनी चाहिए.' अखिलेश का मानना है कि जो लोग रामायण का पाठ करते हैं, राम बनते हैं उन्हें भी सरकार की ओर से पेंशन मिलनी चाहिए. इतना ही नहीं अगर कुछ पैसा बच जाए तो रावण का किरदार करने वाले को भी सरकारी पेंशन मिलनी चाहिए. बात अगर वर्तमान की हो तो...

'पत्रकार अगर समाजवादी पार्टी के लिए अच्छी स्टोरी करेंगे, तो वह सत्ता में वापस आने पर उन्हें 'यश भारती' से सम्मानित करेंगे, साथ ही 50 हजार रुपये भी मिलेंगे.' अखिलेश यादव (पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश)

लोकसभा चुनाव आने में वक़्त है. राजनीतिक दल अभी से एक दूसरे के ऊपर कीचड़ उछालने में लग गए हैं. साफ है कि 2019 के इस लोकसभा चुनाव में हम कई ऐसे मंजर देखेंगे जो बेहद घिनौने होंगे. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस मामले में बाक़ी दलों और नेताओं से दो हाथ आगे हैं. उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी है. अखिलेश, मीडिया से मुखातिब हुए और उन्होंने भाजपा पर चौतरफा हमला बोला. अपनी प्रेस कांग्रेस  में अखिलेश ने न सिर्फ भाजपा को झूठ बोलने वाली पार्टी बताया. बल्कि उन पत्रकारों और लेखकों को भी कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया जिन्हें यशभारती से सम्मानित किया गया था. मजाकिया लहजे में अखिलेश ने पत्रकारों को 'अच्छी स्टोरी' के एवज में 50 हजार रुपए देने और यश भारती सम्मान से सम्मानित करने की बात कही.

अखिलेश यादव ने अपनी बातों से साफ कर दिया है कि 19 के चुनाव में सत्ता सुख पाने के लिए सारे पैतरे आजमाए जाएंगे

इसके अलावा अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा साधुओं को दी जाने वाली पेंशन पर भी वर्तमान सरकार की चुटकी ली. अखिलेश ने कहा कि, 'मैं तो चाहता हूं कि साधुओं को 20,000 रुपये की पेंशन मिलनी चाहिए. इसके साथ ही समाजवादी पेंशन भी दोबारा शुरू होनी चाहिए.' अखिलेश का मानना है कि जो लोग रामायण का पाठ करते हैं, राम बनते हैं उन्हें भी सरकार की ओर से पेंशन मिलनी चाहिए. इतना ही नहीं अगर कुछ पैसा बच जाए तो रावण का किरदार करने वाले को भी सरकारी पेंशन मिलनी चाहिए. बात अगर वर्तमान की हो तो फिलहाल  उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा के नीचे रह रहे वृद्धों को सरकार की तरफ से 500 रुपए दिए जाते हैं.

गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उत्तर प्रदेश के साधु-संतों का मन मोहने के लिए योगी सरकार बड़ा दांव चलने जा रही है. योगी सरकार पेंशन योजनाओं में साधु-संतों को शामिल करने का प्रयास करती नजर आ रही है. वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत सूबे के सभी जिलों में प्रदेश सरकार शिविर लगाकर साधु-संतों को प्रोत्साहित करके इस योजना के दायरे में शामिल कर उन्हें लाभ देगी.

ध्यान रहे कि, प्रदेश में अभी तक चल रही पेंशन योजना में साधु-संतों को इसलिए शामिल नहीं किया जाता था, क्योंकि उनके पास मूलभूत कागजात और दस्तावेज नहीं होते थे. सरकार ने विशेष रूप से अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वो इस बात का खास ख्याल रखें कि आने वाले समय में साधु-संत भी इस सुविधा का लाभ ले सकें.

इस ताजे बयान पर हो रही आलोचना पर समर्थकों द्वारा कहा जा रहा है कि अखिलेश ने ये बातें हंसी मजाक के मूड में कही हैं. ऐसे में हमारे लिए ये जरूरी हो जाता है कि हम अखिलेश को इस बात का एहसास दिलाएं कि वो गली मुहल्ले के नेता नहीं हैं. वो उत्तर प्रदेश जैसे विशाल सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके हैं उनकी कही हर बात अपने आप में वजनदार है. अगर उन्हें कुछ बोलना ही है या फिर आरोप ही लगाना है तो उन्हें तोल मोलकर और सोच समझकर बोलना चाहिए.

बहरहाल, भाजपा को आड़े हाथों लेने के चक्कर में जिस तरफ अखिलेश ने पत्रकारों और यश भारती सम्मान पाए सैकड़ों लोगों की भावना के साथ मजाक किया है. वो ये साफ कर देता है कि राजनीति अक्सर ही लोगों को संवेदनहीन बना देती है. अब तक ये बातें केवल हमने सुनी थीं मगर अखिलेश को देखकर और उनकी बातें सुनकर साफ हो गया है कि जब बात राजनीति की होती है तो व्यक्ति प्रायः स्तर गिराकर उस जगह आ जाता है जहां से उसका पतन शुरू हो जाता है.

अखिलेश और मायावती का गठबंधन अखिलेश यादव के लिए कितना फायदेमंद होगा इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है. मगर जिस तरह वो भाजपा पर हमले कर रहे हैं साफ हो जाता है कि क्या भाजपा क्या सपा और बसपा लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए सबी दल जी जान लगा देंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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