समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का समय फिलहाल बहुत खराब चल रहा है. आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली हार का गम अखिलेश यादव अभी भी भुला भी नहीं पाए हैं. और, अब सपा प्रमुख एक नये विवाद में घिरते दिखाई दे रहे हैं. दरअसल, पैंगबर मोहम्मद पर कथित विवादित बयान देने वाली नुपुर शर्मा को लेकर अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में कहा था कि 'सिर्फ मुख को नहीं शरीर को भी माफी मांगनी चाहिए और देश में अशांति और सौहार्द बिगाड़ने की सजा भी मिलनी चाहिए.' और, अखिलेश के इस बयान पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने कार्रवाई की मांग की है. खैर, इस मामले में क्या होगा और क्या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन, एक बात तय है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया के ऐसे बयानों से एमवाई समीकरण से 'Y' गायब हो जाए, तो चौंकने वाली बात नहीं होगी. आइए जानते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है?
सपा को संगठन में 'फेरबदल' की जरूरत क्यों पड़ी?
कुछ ही दिनों पहले अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के सभी संगठनों को भंग कर दिया है. माना जा रहा है कि इसी साल हुए यूपी विधानसभा चुनाव और रामपुर व आजमगढ़ उपचुनाव के नतीजों के बाद नये सिरे से संगठन को तैयार किया जाएगा. लिखी सी बात है कि अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी में संगठनात्मक बदलाव को 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ही किया होगा. और, ऐसा करने के फायदे भी हैं. समाजवादी पार्टी को जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत करने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, चाचा शिवपाल यादव के अघोषित करीबियों को भी संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा. लेकिन, अहम सवाल ये है कि समाजवादी पार्टी को संगठन में फेरबदल की जरूरत क्यों पड़ी?
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का समय फिलहाल बहुत खराब चल रहा है. आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को मिली हार का गम अखिलेश यादव अभी भी भुला भी नहीं पाए हैं. और, अब सपा प्रमुख एक नये विवाद में घिरते दिखाई दे रहे हैं. दरअसल, पैंगबर मोहम्मद पर कथित विवादित बयान देने वाली नुपुर शर्मा को लेकर अखिलेश यादव ने एक ट्वीट में कहा था कि 'सिर्फ मुख को नहीं शरीर को भी माफी मांगनी चाहिए और देश में अशांति और सौहार्द बिगाड़ने की सजा भी मिलनी चाहिए.' और, अखिलेश के इस बयान पर राष्ट्रीय महिला आयोग ने कार्रवाई की मांग की है. खैर, इस मामले में क्या होगा और क्या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन, एक बात तय है कि समाजवादी पार्टी के मुखिया के ऐसे बयानों से एमवाई समीकरण से 'Y' गायब हो जाए, तो चौंकने वाली बात नहीं होगी. आइए जानते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है?
सपा को संगठन में 'फेरबदल' की जरूरत क्यों पड़ी?
कुछ ही दिनों पहले अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के सभी संगठनों को भंग कर दिया है. माना जा रहा है कि इसी साल हुए यूपी विधानसभा चुनाव और रामपुर व आजमगढ़ उपचुनाव के नतीजों के बाद नये सिरे से संगठन को तैयार किया जाएगा. लिखी सी बात है कि अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी में संगठनात्मक बदलाव को 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ही किया होगा. और, ऐसा करने के फायदे भी हैं. समाजवादी पार्टी को जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत करने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं, चाचा शिवपाल यादव के अघोषित करीबियों को भी संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा. लेकिन, अहम सवाल ये है कि समाजवादी पार्टी को संगठन में फेरबदल की जरूरत क्यों पड़ी?
इसका जवाब बहुत सीधा सा है. और, नुपुर शर्मा के मामले से भी जुड़ा हुआ है. दरअसल, बीते दिनों बागपत जिले में समाजवादी पार्टी की छात्र सभा के जिलाध्यक्ष अंकुर यादव पर नुपुर शर्मा के समर्थन में फेसबुक पोस्ट करने की वजह से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. अंकुर यादव ने लिखा था कि 'पार्टी का विरोध-समर्थन अलग बात है. हर हिंदू नुपुर शर्मा के साथ खड़ा है. अपने घर की महिलाओं को मुसीबत के समय अकेला छोड़ देना कोई धर्म या शास्त्र नहीं सिखाता है.' समाजवादी पार्टी में रहते हुए पार्टी लाइन से अलग हटकर इस तरह की बात करने पर अंकुर यादव को सपा से निकालने का हुक्मनामा जारी कर दिया गया था. ये इकलौता मामला नहीं है. ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के दावे पर अलीगढ़ की मुस्लिम सपा नेता रुबीना खानम को टिप्पणी करना भी महंगा पड़ चुका है.
रुबीना खानम ने हिंदुओं के समर्थन की बात करते हुए कहा था कि 'अगर ये साबित हो जाता है कि ज्ञानवापी मस्जिद को काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़कर बनाया गया है, तो मुस्लिमों को वो जमीन हिंदुओं को सौंप देनी चाहिए.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो समाजवादी पार्टी में रहते हुए हिंदुओं के समर्थन की बात करना अखिलेश यादव को नागवार ही गुजरता है. और, ऐसा संदेश उन्होंने अपनी कार्रवाईयों के सहारे ही दिया है. कहना गलत नहीं होगा कि समाजवादी पार्टी के संगठन में कई ऐसे नेता होंगे. जो पार्टी की विचारधारा से इतर खुद को अंकुर यादव की तरह हिंदू मानते होंगे. या फिर रुबीना खानम की तरह खुद को प्रगतिवादी मुस्लिम समझते होंगे. लेकिन, इन दोनों ही नेताओं पर की गई कार्रवाईयों से समाजवादी पार्टी ने इतना तो जाहिर ही कर दिया है कि अखिलेश यादव को पार्टी में ऐसे लोग किसी भी हाल में मंजूर नही हैं.
अब अखिलेश के नुपुर शर्मा पर बयान की बात
नुपुर शर्मा के सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका पर जजों की ओर से की गई कठोर टिप्पणी को आधार बनाते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने एक ट्वीट किया था. लेकिन, इस ट्वीट में उनके बोल कुछ बिगड़ गए थे. जिसको राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने रीट्वीट करते हुए लिखा था कि 'इस शख्स को देखिए जो खुद को एक पार्टी का नेता कहता है. वह लोगों को नुपुर शर्मा पर हमला करने के लिए उकसा रहा है. यूपी पुलिस और डीजीपी को पत्र लिखकर इनके खिलाफ कार्रवाई की मांग करती हूं. सुप्रीम कोर्ट से भी अनुरोध है कि स्वत: संज्ञान लें.'
लिखी सी बात है कि अखिलेश यादव की मंशा किसी भी हाल में नुपुर शर्मा पर लोगों को हमला करने के लिए उकसाने की नहीं होगी. लेकिन, कुछ ही दिनों पहले नुपुर शर्मा की कथित विवादित टिप्पणी पर उत्तर प्रदेश में हुए सांप्रदायिक बवालों में अखिलेश यादव ने हिंसा करने वालों को 'शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारी' बता दिया था. इस बात में कोई दो राय नही है कि आने वाले समय में भाजपा अखिलेश के इन बयानों को उनकी हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक छवि के तौर पर पेश करने में कोई कमी नहीं रखेगी. और, इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को उठाना ही पड़ेगा.
वैसे, सपा का मजबूत किला कहे जाने वाले आजमगढ़ में हुए उपचुनाव के नतीजे की बात करें, तो मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी से छिटके हुए नजर आए. वहीं, यादव मतदाताओं का साथ भी अखिलेश यादव को खुलकर नहीं मिला. तो, कहना गलत नहीं होगा कि समाजवादी पार्टी का एमवाई समीकरण का मुस्लिम-यादव वोटबैंक दोनों ही पार्टी के हाथ से सरक रहा है. मुस्लिम जहां अपने मुद्दों पर अखिलेश यादव की चुप्पी से नाराज है. वहीं, यादव मतदाताओं के बीच हिंदुत्व एक अहम मुद्दा नजर आ रहा है. क्योंकि, भाजपा ने यादव समुदाय के पूज्य भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि को लेकर भी माहौल बनाना शुरू कर दिया है.
जबकि, अखिलेश यादव अपनी कार्रवाईयों और बयानों से हिंदुत्व के विरोध में ही खड़े नजर आते हैं. वैसे, अखिलेश यादव मुस्लिम वोटबैंक को अपने साथ बनाए रखने के लिए बयानबाजी करते ही रहेंगे. लेकिन, हिंदुत्व को लेकर उनका सॉफ्ट नजरिया समाजवादी पार्टी के लिए घातक साबित हो सकता है. वैसे भी अंकुर यादव और रुबीना खानम जैसे नेताओं पर कार्रवाई कर अखिलेश यादव ने अपनी मंशा जाहिर ही कर दी है. क्योंकि, सवाल तो उठेंगे ही कि अंकुर यादव और रुबीना खानम का अपराध क्या था? और, इसके चलते भविष्य में अखिलेश यादव के एमवाई समीकरण से 'Y' गायब हो जाए, तो चौंकने वाली बात नहीं होगी.
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