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अखिलेश यादव का मुख्तार को और बीजेपी का अजय मिश्रा को समर्थन एक जैसा ही है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 18 फरवरी, 2022 01:39 PM
  • 18 फरवरी, 2022 01:39 PM
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अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने मऊ सीट पर मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) परिवार से ही उम्मीदवारी सुनिश्चित करने के लिए जो रास्ता अख्तियार किया है - वो राह तो लखीमपुर खीरी में बीजेपी (BJP) ने ही दिखायी है!

हम्माम में नहाने वाले एक जैसे बताये जाते हैं. राजनीति में तो हम्माम ही एक जैसे लगते हैं. मास्क का दौर शुरू होने के काफी पहले इसी मुल्क में भ्रष्टाचार के हम्माम में रेनकोट पहन कर नहाने का नमूना भी पेश किया जा चुका है - और ये टिप्पणी एक प्रधानमंत्री ने ही अपने पुराने समकक्ष के लिए की है.

चुनावी राजनीति के हम्माम भी करीब करीब वैसे ही होते हैं जैसे आम दिनों वाले. अब वही रेनकोट चुनावों में सभी राजनीतिक दल अपने अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं - मतलब, ये कि जिस दलील के साथ बीजेपी नेतृत्व ने मोदी कैबिनेट से अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा नहीं लिया, अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) उसी तर्क के साथ अंसारी बंधुओं के परिवार के लिए टिकट मंजूर कर रहे हैं - और अन्य मामलों में भी वही थ्योरी आधार बन रही है.

...और बीजेपी (BJP) के रेड अलर्ट के बावजूद उसी के स्टैंड से प्रेरणा लेते हुए अखिलेश यादव ने मऊ सीट पर पीले गमछे वाले अपने छोटे पार्टनर ओम प्रकाश राजभर को हरी झंडी दिखायी है - तभी तो माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) की जगह उसके बेटे अब्बास अंसारी को गठबंधन का उम्मीदवार बनाने का रास्ता साफ हो सका है.

मुख्तार ने विरासत सौंपी, मैदान छोड़ा

2017 के चुनावी गठबंधन में भी मऊ विधानसभा सीट ओमप्रकाश राजभर के ही हिस्से में मिली थी और - सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के उम्मीदवार महेंद्र राजभर के लिए रैली करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे, चुनाव मुख्तार अंसारी ने ही जीता था. वोटों का अंतर दस हजार से भी कम रहा - 8, 698.

लेकिन कटप्पा हार गया: पिछले चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मऊ में रैली करने पहुंचे थे तो गठबंधन साथी ओमप्रकाश राजभर के उम्मीदवार महेंद्र राजभर अपनी पार्टी का चुनाव निशान छड़ी लिये मंच पर खड़े थे -...

हम्माम में नहाने वाले एक जैसे बताये जाते हैं. राजनीति में तो हम्माम ही एक जैसे लगते हैं. मास्क का दौर शुरू होने के काफी पहले इसी मुल्क में भ्रष्टाचार के हम्माम में रेनकोट पहन कर नहाने का नमूना भी पेश किया जा चुका है - और ये टिप्पणी एक प्रधानमंत्री ने ही अपने पुराने समकक्ष के लिए की है.

चुनावी राजनीति के हम्माम भी करीब करीब वैसे ही होते हैं जैसे आम दिनों वाले. अब वही रेनकोट चुनावों में सभी राजनीतिक दल अपने अपने तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं - मतलब, ये कि जिस दलील के साथ बीजेपी नेतृत्व ने मोदी कैबिनेट से अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा नहीं लिया, अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) उसी तर्क के साथ अंसारी बंधुओं के परिवार के लिए टिकट मंजूर कर रहे हैं - और अन्य मामलों में भी वही थ्योरी आधार बन रही है.

...और बीजेपी (BJP) के रेड अलर्ट के बावजूद उसी के स्टैंड से प्रेरणा लेते हुए अखिलेश यादव ने मऊ सीट पर पीले गमछे वाले अपने छोटे पार्टनर ओम प्रकाश राजभर को हरी झंडी दिखायी है - तभी तो माफिया डॉन मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) की जगह उसके बेटे अब्बास अंसारी को गठबंधन का उम्मीदवार बनाने का रास्ता साफ हो सका है.

मुख्तार ने विरासत सौंपी, मैदान छोड़ा

2017 के चुनावी गठबंधन में भी मऊ विधानसभा सीट ओमप्रकाश राजभर के ही हिस्से में मिली थी और - सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के उम्मीदवार महेंद्र राजभर के लिए रैली करने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे थे, चुनाव मुख्तार अंसारी ने ही जीता था. वोटों का अंतर दस हजार से भी कम रहा - 8, 698.

लेकिन कटप्पा हार गया: पिछले चुनाव में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मऊ में रैली करने पहुंचे थे तो गठबंधन साथी ओमप्रकाश राजभर के उम्मीदवार महेंद्र राजभर अपनी पार्टी का चुनाव निशान छड़ी लिये मंच पर खड़े थे - तब प्रधानमंत्री मोदी ने महेंद्र राजभर को कटप्पा, उनकी छड़ी को कानून का डंडा और मुख्तार अंसारी को बाहुबली कह कर संबोधित किया था.

मुख्तार अंसारी की मदद के लिए अखिलेश यादव ने घुमा कर नाक पकड़ी है

महेंद्र राजभर की तरफ इशारा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी बोले, 'चलचित्र आया था बाहुबली... बाहुबली फिल्म में कटप्पा पात्र था... बाहुबली का सब कुछ तबाह कर दिया था उसने... इस छड़ी वाले में वो दम है... ये छड़ी नहीं, ये कानून का डंडा है - 11 मार्च को इसकी ताकत दिखाई देगी... लोकतंत्र को गुंडागर्दी के जरिये दबोचा नहीं जाएगा और यूपी में भाजपा ऐसी सरकार बनाएगी जो सुरक्षा की गारंटी देगी.' 2017 में चुनाव नतीजे 11 मार्च को आये थे, इस बार चुनाव आयोग ने 10 मार्च की तारीख मुकर्रर की है.

यूपी में बीजेपी को तो बहुमत मिला लेकिन मुख्तार अंसारी की जीत का सिलसिला नहीं टूट सका. पांच साल बाद ओमप्रकाश राजभर पाला बदल कर राजनीतिक विरोधी की जगह मुख्तार अंसारी के सबसे बड़े हमदर्द बन गये हैं.

पांच साल बाद दुश्मन का दोस्त बन जाना: मायावती के मंच पर पैर छूकर मुख्तार अंसारी ने बीएसपी का संरक्षण हासिल किया और फिर मऊ से 1996 में विधानसभा भी पहु्ंच गया - और तब से लेकर ये पहला मौका है जब वो चुनाव नहीं लड़ रहा है. बीएसपी से निकाले जाने के बाद पहले वो निर्दल और फिर अंसारी बंधुओं की पार्टी कौमी एकता दल के टिकट पर विधानसभा पहुंचा.

2017 में मायावती ने सुधरने के नाम पर मुख्तार को फिर से बीएसपी का टिकट दिया, लेकिन 2022 को लेकर पहले ही ऐलान कर दिया था कि बीएसपी साफ सुथरी छवि के उम्मीदवारों को ही टिकट देगी, लिहाजा मुख्तार अंसारी बाहर हो गया.

अब मुख्तार अंसारी के लिए कोई जगह नहीं बच रही थी. मुख्तार का एक भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से लोक सभा सांसद है और मायावती ने वो मामला छेड़ना ठीक नहीं समझा होगा. अंसारी बंधुओं के सबसे बड़े भाई सिग्बतुल्ला ने पहले ही समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली थी, लेकिन मुख्तार के नाम अखिलेश यादव कोई स्टैंड नहीं ले पा रहे थे.

मुख्तार के सपोर्ट में पहली बार ओमप्रकाश राजभर ही खुल कर सामने आये. अपना दोस्त बताया और साथ देने का वादा भी किया. बोले भी थे कि वो अपने कोटे से मुख्तार अंसारी को टिकट देंगे.

राजभर के पास बीजेपी के हमलों के काउंटर में वैक्सीन भी पहले से ही तैयार थी. ओमप्रकाश राजभर ने दलील दी कि बीजेपी बृजेश सिंह को एमएलसी बना सकती है तो वो मुख्तार का साथ क्यों नहीं दे सकते? माना जाता है कि दोनों ही माफिया डॉन एक दूसरे के जानी दुश्मन हैं - और चर्चित एलएमजी तक की खरीदारी का मामला भी उसी का हिस्सा है, जिसके लिए शैलेंद्र सिंह को पुलिस के डिप्टी एसपी के पोस्ट से इस्तीफा तक देना पड़ा था. पुलिसवाले ही बताते हैं कि मुख्तार एलएमजी लेने की कोशिश इसलिए कर रहा था ताकि दुश्मन की बुलेट प्रूफ गाड़ी को उड़ाया जा सके.

चुनाव मैदान में बाहुबलियों की नयी पीढ़ी: अखिलेश यादव तो पहले से ही साफ सुथरी छवि वाली मानद उपाधि में खासा यकीन रखते हैं, लिहाजा वो मुख्तार अंसारी को लेकर दूरी बना कर चल रहे थे. बीच में ओमप्रकाश राजभर मऊ सीट से मुख्तार अंसारी और उसके बेटे अब्बास अंसारी दोनों के नामांकन दाखिल करने की बात कर रहे थे - और ये भी बताये कि चुनाव कौन लड़ेगा इसका फैसला मुख्तार की तरफ से लिया जाएगा.

बहरहाल, फाइनल ये हुआ है कि मुख्तार अंसारी की सीट से उसका बेटा अब्बास ही चुनाव लड़ेगा. सपा गठबंधन उम्मीदवार के तौर पर अब्बास अंसारी का मऊ विधानसभा सीट से नामांकन भी दाखिल हो चुका है.

अब खबर ये आ रही है कि मोहम्मदाबाद सीट पर भी अखिलेश यादव ने सिग्बतुल्लाह अंसारी नहीं बल्कि उनके बेटे मन्नू अंसारी को समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार बनाया है. ऐसे और भी कई उम्मीदवार हैं जो अपनी खानदानी विरासत को नये कलेवर में आगे बढ़ाने के लिए मैदान में उतर चुके हैं - और बात पते की ये है कि सिर्फ अखिलेश यादव ही नहीं बीजेपी और मायावती को भी ऐसी चीजों से परहेज नहीं दिखती.

1. समाजवादी पार्टी ने फतेहाबाद सीट से रुपाली दीक्षित को उम्मीदवार बनाया है. लंदन में पढ़ी लिखी रुपाली दीक्षित आगरा और आसपास के इलाके में दबंग छवि बना चुके और फिलहाल जेल में बंद अशोक दीक्षित की बेटी हैं.

2. पूर्वांचल के गोरखपुर इलाके में ठाकुर बनाम ब्राह्मणों की राजनीति में बाहुबली माने जाने वाले हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी को भी समाजवादी पार्टी का टिकट मिला है - वो गोरखपुर की चिल्लूपार सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

3. चित्रकूट की मऊ मानिकपुर सीट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार वीर सिंह पटेल का बीता कल उनका पीछा नहीं छोड़ रहा है. वीर पटेल ने राजनीति में कदम रखते ही लोगों से हाथ जोड़ कर कहना शुरू कर दिया था - ‘मुझे ददुआ का लड़का मत कहिए। मैं आप ही के बीच का हूं.’ अपने जमाने में कुख्यात डकैत ददुआ का आतंक रहा है - जिसे 2007 में एक पुलिस एनकाउंटर में ढेर कर दिया गया था.

4. : बीएसपी के टिकट पर गोरखपुर की नौतनवा सीट से चुनाव लड़ रहे अमनमणि त्रिपाठी, मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं - और गौर करने वाली बात है कि उन पर भी अपनी पत्नी की हत्या का आरोप है.

5. गोंडा विधानसभा सीट से प्रतीक भूषण सिंह बीजेपी के टिकट पर फिर से चुनाव मैदान में हैं - वो बाहुबली नेता बृजभूषण शरण सिंह के बेटे हैं.

अखिलेश की मऊ एक्सप्रेस वाया लखीमपुर खीरी!

लखीमपुर खीरी हिंसा के मामले में धरना और रैली की जो राजनीति कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने शुरू की थी - वो मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा के सवा सौ दिन जेल में बिता कर आने के बाद ट्विटर तक सिमट कर रह गयी है.

लखीमपुर में यूपी चुनाव के चौथे दौर में 23 फरवरी को वोटिंग होनी है. आशीष मिश्रा तो जेल से जमानत पर रिहा होकर बाहर आ ही चुका है, उसके पिता अजय मिश्रा टेनी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री भी बने हुए हैं - ये बात अलग है कि इलाके में बीजेपी के प्रति नाराजगी कम नहीं हुई है. किसानों के साथ साथ इलाके के सिखों की भी बीजेपी से नाराजगी बनी हुई है.

जीप से कुचल कर मारे गये किसान नछत्तर सिंह के बेटे जगदीप सिंह का कहना है कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ने ही उनको धौरहरा विधानसभा सीट से टिकट ऑफर किया था, लेकिन वो ठुकरा दिये. जगदीप सिंह का कहना है कि अगर राजनीति करनी होगी और चुनाव लड़ने का फैसला करेंगे तो 2024 में वो सीधे अजय मिश्रा टेनी को ही चैलेंज करेंगे.

बताते हैं कि अखिलेश यादव अब अपने गठबंधन साथी जयंत चौधरी के साथ लखीमपुर खीरी पहुंच कर बीजेपी को घेरने की रणनीति बना रहे हैं. जयंत चौधरी के किसानों में प्रभाव को देखते हुए अखिलेश यादव लखीमपुर खीरी के बाद पुर्वांचल में भी साथ साथ प्रचार करने पर विचार कर रहे हैं.

बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ भले ही समाजवादी पार्टी को यूपी चुनाव में 'तमंचावादी पार्टी' कह कर बुलाने लगे हों, लेकिन अखिलेश यादव ने लखीमपुर खीरी मामले में बीजेपी के स्टैंड को ही स्टैंडर्ड गाइडलाइन मान कर इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.

केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के इस्तीफे पर विपक्ष तो अड़ा रहा, लेकिन बीजेपी ने स्टैंड लिया कि बेटे के अपराध के लिए पिता को सजा देने का कोई मतलब नहीं है. ये ठीक है कि बीजेपी अजय मिश्रा को खुलेआम नहीं घुमा रही है, लेकिन परदे के पीछे सरकार और संगठन का काम तो वो लगातार कर ही रहे हैं.

मऊ और मोहम्मदाबाद सीटों के अलावा जहां कहीं भी अखिलेश यादव ने बाहुबली नेताओं के बेटों को टिकट दिया है, दलील देने का मौका तो बीजेपी ने ही दे डाला है - अगर बेटे के अपराध की सजा बाप को नहीं दी जा सकती, तो भला पिता की आपराधिक छवि की आंच बेटे पर कैसे महसूस की जा सकती है.

जाहिर है अखिलेश यादव मऊ से मुख्तार अंसारी को ओमप्रकाश राजभर कोटे से भी चुनाव लड़ने देते तो सीधे बीजेपी के टारगेट पर आ जाते. अब अब्बास अंसारी के नाम पर बीजेपी के लिए सीधे सीधे हमला बोलना मुख्तार अंसारी की उम्मीदवारी की तुलना में मुश्किल होगा.

लखीमपुर खीरी में मऊ से पहले चुनाव हो रहा है, लिहाजा अखिलेश यादव पहले पहुंच कर बीजेपी के स्टैंड पर सवाल खड़े करना चाहते हैं, ताकि मऊ पहुंच कर बीजेपी की तरफ से फिर से बाहुबली और कटप्पा की लड़ाई बनाने की कोशिश हो तो वो लखीमपुर खीरी कांड की याद दिला कर काउंटर कर सकें.

मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद जैसे माफिया तत्वों के खिलाफ योगी आदित्यनाथ सरकार के एक्शन को लेकर अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो वो भी बीजेपी वालों की इमारतों पर बुलडोजर चलवाएंगे. यूपी में चुनाव कैंपेन के तहत औरेया पहुंचे अखिलेश यादव ने बीजेपी को फिर से याद दिलाने की कोशिश की, 'गर्मी निकालने वालों के लिए कह कर जा रहे हैं कि इस बार उनका भाप निकल जाएगा और जब वोट पड़ेगा तो उनका धुआं निकल जाएगा.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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