• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

Akhilesh Yadav को BJP से नाराज वोट भले मिल जाए, 'हिंदू' वोट कभी नहीं मिलेगा!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 25 मई, 2022 02:09 PM
  • 25 मई, 2022 02:09 PM
offline
'हमारे हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो, एक लाल झंडा रख दो पीपल के पेड़ के नीचे और मंदिर बन गया.' सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग को लेकर दिया गया ये बयान भाजपा (BJP) के लिए वक्त आने पर एक बड़ा सियासी हथियार साबित होगा.

यूपी विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान समाजवादी पार्टी के विधायकों ने महंगाई, कानून व्यवस्था, आवारा पशु जैसे मुद्दों को लेकर जमकर हंगामा किया. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इन मुद्दों को जनहित का बताते हुए खुद को मजबूत विपक्ष के तौर पर पेश करने के हरसंभव कोशिश की. दरअसल, यूपी विधानसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद अखिलेश यादव का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव पर लग चुका है. लेकिन, अखिलेश यादव के लिए 2024 की राह इतनी आसान नहीं होने वाली है. और, इसकी वजह उनके बयान ही बनेंगे.

बीते दिनों अखिलेश यादव ने ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग पर ही सवाल खड़े कर दिए. इतना ही नहीं, सपा नेता ने हिंदू संस्कृति और धर्म पर विवादित बयान देते हुए इन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया. दरअसल, अखिलेश यादव ने अयोध्या में बयान दिया था कि 'हमारे हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो, एक लाल झंडा रख दो पीपल के पेड़ के नीचे और मंदिर बन गया.' अखिलेश के इस बयान को भाजपा वक्त आने पर एक बड़े सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेगी. लेकिन, एक बात तय है कि इस बयान से अखिलेश यादव को BJP से नाराज वोट मिल जाए, लेकिन हिंदू वोट कभी नहीं मिलेगा.

चुनावी रणनीति हो या राजनीतिक बयान, अखिलेश यादव इन सभी मामलों में 'टीपू' ही नजर आते हैं.

'टीपू' को दुविधा में न माया मिलेगी, न राम

चुनावी रणनीति हो या राजनीतिक बयान, अखिलेश यादव इन सभी मामलों में 'टीपू' ही नजर आते हैं. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि महंगाई, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे लोगों के लिए अहम होते हैं. लेकिन, अखिलेश यादव ये भूल जाते हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान इसी जनता ने उन्हें मंदिर-मंदिर दौड़ते हुए भी देखा था. और, कद्दावर...

यूपी विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान समाजवादी पार्टी के विधायकों ने महंगाई, कानून व्यवस्था, आवारा पशु जैसे मुद्दों को लेकर जमकर हंगामा किया. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इन मुद्दों को जनहित का बताते हुए खुद को मजबूत विपक्ष के तौर पर पेश करने के हरसंभव कोशिश की. दरअसल, यूपी विधानसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद अखिलेश यादव का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव पर लग चुका है. लेकिन, अखिलेश यादव के लिए 2024 की राह इतनी आसान नहीं होने वाली है. और, इसकी वजह उनके बयान ही बनेंगे.

बीते दिनों अखिलेश यादव ने ज्ञानवापी मस्जिद में मिले शिवलिंग पर ही सवाल खड़े कर दिए. इतना ही नहीं, सपा नेता ने हिंदू संस्कृति और धर्म पर विवादित बयान देते हुए इन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया. दरअसल, अखिलेश यादव ने अयोध्या में बयान दिया था कि 'हमारे हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो, एक लाल झंडा रख दो पीपल के पेड़ के नीचे और मंदिर बन गया.' अखिलेश के इस बयान को भाजपा वक्त आने पर एक बड़े सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करेगी. लेकिन, एक बात तय है कि इस बयान से अखिलेश यादव को BJP से नाराज वोट मिल जाए, लेकिन हिंदू वोट कभी नहीं मिलेगा.

चुनावी रणनीति हो या राजनीतिक बयान, अखिलेश यादव इन सभी मामलों में 'टीपू' ही नजर आते हैं.

'टीपू' को दुविधा में न माया मिलेगी, न राम

चुनावी रणनीति हो या राजनीतिक बयान, अखिलेश यादव इन सभी मामलों में 'टीपू' ही नजर आते हैं. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि महंगाई, स्वास्थ्य, कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे लोगों के लिए अहम होते हैं. लेकिन, अखिलेश यादव ये भूल जाते हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के दौरान इसी जनता ने उन्हें मंदिर-मंदिर दौड़ते हुए भी देखा था. और, कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खान से दूरी की चर्चाएं भी यूपी चुनाव के दौरान खूब रही थीं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो समाजवादी पार्टी पर लगने वाले मुस्लिम परस्त पार्टी के ठप्पे को मिटाने के लिए अखिलेश ने भरपूर कोशिशें की थीं. सपा नेता अपनी मुस्लिम समर्थक छवि को खत्म करने के लिए ही अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बाद सपरिवार दर्शन करने आने का वादा कर रहे थे.

लेकिन, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष को लगता है कि हिंदुओं को अपने बयानों से मंदिर के नाम पर 'प्रगतिवादी' साबित कर वह आसानी से हिंदू समुदाय को अपने खेमे में ला सकते हैं. लेकिन, अखिलेश यादव ये समझना नहीं चाहते कि मंदिरों को लेकर ऐसे बचकाने बयान देकर वह हिंदू समुदाय को समाजवादी पार्टी से बिदकने के लिए मजबूर कर रहे हैं. अयोध्या में भव्य राम मंदिर का रास्ता सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ही खुल सका था. लेकिन, अखिलेश यादव का इस मामले में कहना है कि 'एक समय ऐसा था कि रात के अंधेरे में मूर्तियां रख दी गई थी. भाजपा कुछ भी कर सकती है. भाजपा कुछ भी करा सकती है.' एक तरफ अखिलेश यादव ज्ञानवापी मस्जिद के मामले को कोर्ट का मामला बताते हैं. वहीं, दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ही सवालिया निशान लगाने में जुट जाते हैं.

दरअसल, उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सरकार की सत्ता में दोबारा वापसी ने अखिलेश यादव को दुविधा में डाल दिया है. मुस्लिम सपा नेता आजम खान से दूरी बनाने की वजह से मुस्लिम वोट उनसे छिटकने के हालात बनते नजर आ रहे हैं. अखिलेश यादव मुस्लिम समुदाय को अपने साथ बनाए रखने की कोशिश जैसे-तैसे कर रहे हैं. लेकिन, इस कोशिश में वह हिंदू धर्म के लिए ही विवादित बयान दे डाल रहे हैं. ऐसे बयानों से समाजवादी पार्टी को भाजपा से नाराज मतदाताओं का साथ जरूर मिल जाए. लेकिन, हिंदू समुदाय का वोट नहीं मिल पाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अखिलेश यादव के लिए 'दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम' का मुहावरा सबसे सटीक नजर आता है.

पहले से ही मुश्किलों से घिरे हैं अखिलेश

बीते कुछ दिनों से अखिलेश यादव अपने गठबंधन में अलग-थलग नजर आ रहे हैं. चाचा शिवपाल यादव और कद्दावर मुस्लिम नेता आजम खान की नाराजगी किसी से छिपी नहीं है. वहीं, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के नेता ओमप्रकाश राजभर भी अखिलेश यादव को 'एसी से निकल कर क्षेत्र में जाने' का तंज मार चुके हैं. इतना ही नहीं, विधानसभा के बजट सत्र में जब समाजवादी पार्टी के सारे विधायक हंगामा कर रहे थे. तो, आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान, एसबीएसपी नेता ओमप्रकाश राजभर और चाचा शिवपाल सिंह यादव ने इस हंगामे से दूरी ही बनाए रखी. वहीं, ओमप्रकाश राजभर ने तो इसे 'गलत परंपरा' बताकर अखिलेश यादव के सशक्त, सक्रिय और सार्थक प्रतिपक्ष के दावे पर ही सवालिया निशान लगा दिया.

वैसे, समाजवादी पार्टी के गठबंधन में उठ रहे बगावती सुरों को देखते हुए कहा जा सकता है कि जल्द ही होने वाले राज्यसभा चुनावों में भी अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि राज्यसभा की सीटों के लिए समाजवादी पार्टी की ओर से भेजे जाने वाले नामों पर सहयोगी दल एकमत नही हैं. और, वह राज्यसभा सीटों में भी अपनी हिस्सेदारी मांग रहे हैं. आजम खान, शिवपाल यादव और जयंत चौधरी की बढ़ रही नजदीकियां काफी हद तक इसी ओर इशारा कर रही हैं. और, ओमप्रकाश राजभर भी अब इन्हीं लोगों के सुर में सुर मिलाते नजर आने लगे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲