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माकन के इस्‍तीफे से बेपरवाह राहुल को केजरीवाल का साथ पसंद है!

    • आईचौक
    • Updated: 04 जनवरी, 2019 08:46 PM
  • 04 जनवरी, 2019 08:46 PM
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आप के साथ कांग्रेस के चुनावी गठबंधन अजय माकन को मंजूर न था. माकन के साथ एचएस फूलका भी ऐसे गठबंधन के विरोधी रहे हैं. फूलका ने भी आप को अलविदा कह दिया है - फिर तो गठबंधन फाइनल समझें?

अरविंद केजरीवाल ने जब अन्ना हजारे के नेतृत्व में रामलीला आंदोलन शुरू किया तो केंद्र में यूपीए की सरकार थी - और दिल्ली में कांग्रेस की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री रहीं. ये उन दिनों की बात है जब टीम अन्ना को संघ और बीजेपी की बी टीम भी कांग्रेस नेता बताया करते रहे.

विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने ललकारते हुए न सिर्फ शीला दीक्षित को उनके इलाके में घुस कर शिकस्त दी, बल्कि कांग्रेस का भी बोरिया बिस्तर समेट दिया. सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी बीजेपी ने जब सरकार बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखायी तो कांग्रेस की मदद से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने - और 49 दिन कुर्सी पर बैठने के बाद भाग खड़े हुए.

2014 के आम चुनाव के बाद अजय माकन को दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंपी गयी और उसके बाद से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की तकरार बढ़ती गयी. अजय माकन की अगुवाई में कांग्रेस विधानसभा चुनावों में जीरो पर आउट हुई - और एमसीडी चुनाव में भी बीजेपी ने बाजी मार ली. थक हार कर सितंबर, 2018 में अजय माकन ने खराब स्वास्थ्य के चलते इस्तीफा दे दिया था. वही इस्तीफा अब मंजूर हो गया है.

अजय माकन के साथ ही एक और इस्तीफा हुआ है - आप नेता एचएस फूलका का. अगर ये इस्तीफे महज संयोग नहीं हैं तो क्या है इनके पीछे की राजनीति?

कांग्रेस और आप का गठबंधन

पंजाब में अरविंद केजरीवाल सरकार तो नहीं बना पाये, लेकिन आप ने इतनी सीटें जरूर जीत ली कि विपक्ष का नेता पद तो मिल ही गया. मार्च, 2017 में अरविंद केजरीवाल ने एचएस फूलका को विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया. अक्टूबर, 2018 में एचएस फूलका ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. तब उनका कहना रहा कि वो 1984 के सिख दंगों के केस पर फोकस करना चाहते हैं. अब जाकर एसएस फूलका ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया है.

अजय माकन और एचएस फूलका में एक ही कॉमन बात है - दोनों कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन के कट्टर विरोधी हैं. अजय माकन दिल्ली की राजनीति में वर्चस्व के चलते आप नेताओं को पसंद नहीं...

अरविंद केजरीवाल ने जब अन्ना हजारे के नेतृत्व में रामलीला आंदोलन शुरू किया तो केंद्र में यूपीए की सरकार थी - और दिल्ली में कांग्रेस की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री रहीं. ये उन दिनों की बात है जब टीम अन्ना को संघ और बीजेपी की बी टीम भी कांग्रेस नेता बताया करते रहे.

विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने ललकारते हुए न सिर्फ शीला दीक्षित को उनके इलाके में घुस कर शिकस्त दी, बल्कि कांग्रेस का भी बोरिया बिस्तर समेट दिया. सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी बीजेपी ने जब सरकार बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखायी तो कांग्रेस की मदद से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने - और 49 दिन कुर्सी पर बैठने के बाद भाग खड़े हुए.

2014 के आम चुनाव के बाद अजय माकन को दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंपी गयी और उसके बाद से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की तकरार बढ़ती गयी. अजय माकन की अगुवाई में कांग्रेस विधानसभा चुनावों में जीरो पर आउट हुई - और एमसीडी चुनाव में भी बीजेपी ने बाजी मार ली. थक हार कर सितंबर, 2018 में अजय माकन ने खराब स्वास्थ्य के चलते इस्तीफा दे दिया था. वही इस्तीफा अब मंजूर हो गया है.

अजय माकन के साथ ही एक और इस्तीफा हुआ है - आप नेता एचएस फूलका का. अगर ये इस्तीफे महज संयोग नहीं हैं तो क्या है इनके पीछे की राजनीति?

कांग्रेस और आप का गठबंधन

पंजाब में अरविंद केजरीवाल सरकार तो नहीं बना पाये, लेकिन आप ने इतनी सीटें जरूर जीत ली कि विपक्ष का नेता पद तो मिल ही गया. मार्च, 2017 में अरविंद केजरीवाल ने एचएस फूलका को विधानसभा में विपक्ष का नेता बना दिया. अक्टूबर, 2018 में एचएस फूलका ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. तब उनका कहना रहा कि वो 1984 के सिख दंगों के केस पर फोकस करना चाहते हैं. अब जाकर एसएस फूलका ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया है.

अजय माकन और एचएस फूलका में एक ही कॉमन बात है - दोनों कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन के कट्टर विरोधी हैं. अजय माकन दिल्ली की राजनीति में वर्चस्व के चलते आप नेताओं को पसंद नहीं करते. एसएस फूलका दिल्ली के सिख विरोधी दंगों के चलते कांग्रेस को फूंटी आंख नहीं देखना चाहते. एचएस फूलका तीन दशक तक सिख दंगे के पीड़ितों का केस भी लड़ चुके हैं. 34 साल बाद अभी अभी सिख दंगों के लिए कांग्रेस नेता सज्जन कुमार उम्रकैद की सजा मिली है और जेल जाना पड़ा है.

हाल के दिनों में कांग्रेस और आप के बीच आम चुनाव में गठबंधन की चर्चा जोर पकड़ी है. संभावित गठबंधन की गंभीरता ऐसे भी समझी जा सकती है कि जब दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सामने ये सवाल उठा तो जवाब में उन्होंने मुस्कुरा भर दिया था. ज्यादा कुरेदने पर भी इंकार नहीं किया, बल्कि ये कहा कि आलाकमान जो फैसला करेंगे वो उन्हें मंजूर होगा.

माकन के इस्तीफे के पीछे गठबंधन का कितना रोल?

तो क्या अजय माकन और एचएस फूलका के इस्तीफे की टाइमिंग कोई खास इशारा करती है? देखा जाये तो दोनों पार्टियों में आपसी गठबंधन के विरोधी अब जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं. अजय माकन तो कांग्रेस में बने हुए हैं, लेकिन फूलका ने तो पार्टी भी छोड़ दी है.

गठबंधन की राह में सबसे बड़ी बाधा तब खड़ी नजर आने लगी थी जब राजीव गांधी के नाम पर आप विधायक अलका लांबा ने बगावत कर दी, लेकिन फिर जल्दी ही सुलह भी हो गयी. दिल्ली विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया था. अलका लांबा का दावा था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लेने का प्रस्ताव पास हुआ है जिसका उन्होंने बहिष्कार कर दिया था. आप नेताओं की ओर से इस बात से साफ इंकार किया गया - डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को तो बाकायदा मीडिया के सामने आकर सफाई भी देनी पड़ी. वैसे आप के बागी कपिल मिश्रा और बीजेपी विधायक भी अलका लांबा के दावों को ही सही बता रहे थे. बाद में सुलह हो जाने पर अलका लांबा ने ट्वीट भी डिलीट कर दिये.

क्या आप और कांग्रेस की नजदीकियों के चलते फूलका ने पार्टी छोड़ी?

अजय माकन और एचएस फूलका के इस्तीफे के बाद माना जा रहा है कि गठबंधन के रास्ते की बाधा खत्म हो चुकी है. जाहिर है ये सब दोनों दलों के नेतृत्व के बीच बनी सहमति से ही संभव हो रहा होगा.

केजरीवाल स्टाइल पॉलिटिक्स करने लगे हैं राहुल गांधी

थोड़ा गौर करें तो लगता है कि राहुल गांधी को इन दिनों अरविंद केजरीवाल स्टाइल की पॉलिटिक्स कुछ ज्यादा ही भा रही है. जिस तरह रामलीला आंदोलन के दिनों में अरविंद केजरीवाल संसद में बैठे लोगों को डकैत, हत्यारे और बलात्कारी बताया करते थे, हाल फिलहाल राहुल गांधी ने भी वही तरीका अपना रखा है - 'चौकीदार चोर है.'

आप की राजनीति के शुरुआती दिनों में कांग्रेस के सीनियर नेताओं ने दावा भी किया था कि जो तरीके अरविंद केजरीवाल अपना रहे हैं वैसी सोच राहुल गांधी पहले से रखते हैं. खुद राहुल गांधी भी पहले कहा करते थे कि वो पहले सिस्टम को दुरूस्त करना चाहते हैं. राहुल गांधी ने संगठन के चुनाव और खुद भी अध्यक्ष बनने से पहले लोकतांत्रिक तरीकों का पूरा पालन भी किया.

राहुल गांधी की सभाओं में तो पहले भी गुस्से का इजहार देखने को मिलता रहा. अक्सर वो कमीज की आस्तीन चढ़ाते और विरोधियों को ललकारते नजर आते थे. बाद में सुधार के नाम पर राहुल गांधी ने सलाहकारों के कहने पर तौर तरीके बदले भी लेकिन नाकामियों से पीछा छूट ही नहीं रहा था. थक हार कर राहुल गांधी को पुराने अंदाज में ही लौटना पड़ा है.

जैसे रामलीला मैदान के आंदोलन के दिनों में अरविंद केजरीवाल जिसे टारगेट पर लेते थे उसके खिलाफ कुछ कागज बतौर सबूत मीडिया को बांटते भी थे. राहुल गांधी भी वैसे ही टेप लेकर संसद पहुंच जा रहे हैं. बाद में फंसने पर केजरीवाल ने नितिन गडकरी से लेकर अरुण जेटली तक से माफी मांग कर पीछा छुड़ा लिया था. राहुल गांधी ऐसी नौबत भी नहीं आने देते - पहले ही पीछे हट जाते हैं. गोवा वाले ऑडियो टेप में भरी संसद में जो हुआ उसे तो सबने देखा ही. जब राहुल गांधी ने संसद में ऑडियो क्लिप सुनाने की परमिशन मांगी तो स्पीकर ने लिखित में सही होने की गारंटी मांग लिया और राहुल गांधी पीछे हट गये.

जिस तरीके से राफेल डील को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ राहुल गांधी आक्रामक रवैया अपनाये हुए हैं, कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन का रास्ता साफ लगने लगा है. बिहार के शेल्टर हाउस में लड़कियों के शोषण के खिलाफ तेजस्वी यादव ने जब राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल दोनों को बुलाया था तो उन्हें टाइमिंग मैनज करनी पड़ी थी - लेकिन किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान तो दोनों मंच पर काफी करीब नजर आये. फिर तो मान कर चलना चाहिये कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को आप नेता अरविंद केजरीवाल का साथ पंसद आने लगा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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