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यूपी के नए नए दीवाने बने ओवैसी-केजरीवाल का चुनावी इश्क!

    • नवेद शिकोह
    • Updated: 19 दिसम्बर, 2020 05:33 PM
  • 19 दिसम्बर, 2020 05:09 PM
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उत्तर प्रदेश का आने वाला विधानसभा चुनाव कई मायनों में दिलचस्प होगा. सूबे के तमाम सियासी दल तो अपनी तैयारी में जुटे ही थे इधर एआईएमआईएम (AIMIM) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के यूपी आगमन से सियासी हलचलें तेज हो गयी हैं.

उत्तर प्रदेश के चुनावी वर्ष का घमासान बड़ा दिलचस्प होने वाला है. यूपी में भाजपा से मुकाबले के लिए भले ही सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों ने अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं लेकिन यहां की सियासी बिसात पर कुछ नई-नई गोटें बिछनी शुरू हो गईं हैं. बिना किसी मजबूत संगठन के चुनाव में उतरने की घोषणा करने वाले एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी (AIMIM chief Asaduddin Owaisi) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) सुप्रीमों अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर तरह-तरह के तंज़ कसे जा रहे हैं. इन दोनों पार्टियो़ की यूपी चुनाव में दस्तक को 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला बेगाने' कहा जा रहा है.

कहने वाले इन नेताओं पर वोट कटवा या भाजपा की बी टीम जैसे आरोप भी लगा रहे हैं. मालूम हो कि बीते दिनों ही एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से मुलाकात के लिए हैदराबाद से लखनऊ आये. ओवेसी ने राजभर द्वारा गठित 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के साथ रहने का ऐलान किया.

ओवैसी केजरीवाल के यूपी आने से सियासी रण दिलचस्प हो गया है

गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटों में जीत के बाद एआईएमआईएम ने पश्चिम बंगाल और फिर यूपी में भी आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. लेकिन ओवेसी शायद इस बात पर गौर नहीं कर रहे हैं कि बिहार में उनका जमा-जमाया संगठन था और एआईएमआईएम की बिहार यूनिट कई वर्षों से वहां काम कर रही थी. जबकि यूपी में उनकी पार्टी का ना तो मजबूत संगठन है और ना ही जनाधार.

हां ये ज़रूर है कि यूपी में ओवेसी की एंट्री से ध्रुवीकरण बढ़ेगा, मुस्लिम वोट कटेगा और और भाजपा को खूब फायदा होगा.

इसी तरह दिल्ली केंद्रित आम आदमी पार्टी का भी उत्तर प्रदेश में ना कोई जनाधार है और ना ही मजबूत संगठन. हांलाकि...

उत्तर प्रदेश के चुनावी वर्ष का घमासान बड़ा दिलचस्प होने वाला है. यूपी में भाजपा से मुकाबले के लिए भले ही सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों ने अपने पत्ते अभी नहीं खोले हैं लेकिन यहां की सियासी बिसात पर कुछ नई-नई गोटें बिछनी शुरू हो गईं हैं. बिना किसी मजबूत संगठन के चुनाव में उतरने की घोषणा करने वाले एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी (AIMIM chief Asaduddin Owaisi) और आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) सुप्रीमों अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर तरह-तरह के तंज़ कसे जा रहे हैं. इन दोनों पार्टियो़ की यूपी चुनाव में दस्तक को 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला बेगाने' कहा जा रहा है.

कहने वाले इन नेताओं पर वोट कटवा या भाजपा की बी टीम जैसे आरोप भी लगा रहे हैं. मालूम हो कि बीते दिनों ही एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से मुलाकात के लिए हैदराबाद से लखनऊ आये. ओवेसी ने राजभर द्वारा गठित 'भागीदारी संकल्प मोर्चा' के साथ रहने का ऐलान किया.

ओवैसी केजरीवाल के यूपी आने से सियासी रण दिलचस्प हो गया है

गौरतलब है कि बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटों में जीत के बाद एआईएमआईएम ने पश्चिम बंगाल और फिर यूपी में भी आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया. लेकिन ओवेसी शायद इस बात पर गौर नहीं कर रहे हैं कि बिहार में उनका जमा-जमाया संगठन था और एआईएमआईएम की बिहार यूनिट कई वर्षों से वहां काम कर रही थी. जबकि यूपी में उनकी पार्टी का ना तो मजबूत संगठन है और ना ही जनाधार.

हां ये ज़रूर है कि यूपी में ओवेसी की एंट्री से ध्रुवीकरण बढ़ेगा, मुस्लिम वोट कटेगा और और भाजपा को खूब फायदा होगा.

इसी तरह दिल्ली केंद्रित आम आदमी पार्टी का भी उत्तर प्रदेश में ना कोई जनाधार है और ना ही मजबूत संगठन. हांलाकि उच्च पदस्थ सूत्रों की माने तो समाजवादी पार्टी आप के लिए कुछ सीटें छोड़ने पर विचार कर रही है.

सपा-और आप का गठबंधन नहीं हुआ तो आप का यूपी में चुनाव लड़ना बेगानी शादी में अब्दुल्ला बेगाने जैसा मुहावरा जैसा होगा. यूपी के चुनाव से करीब एक वर्ष पूर्व की विपक्षी हलचलें फिलहाल भाजपा को शिकस्त देने की तैयारी के बजाय भाजपा को ताकत देने जैसी लग रही हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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