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बकरीद मनाते 3 अहमदी 'मुसलमान' गिरफ्तार, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की आस्था की ऐसी की तैसी...

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 13 जुलाई, 2022 07:46 PM
  • 13 जुलाई, 2022 06:28 PM
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पाकिस्तान (Pakistan) एक इस्लामिक देश है. तो, वहां किसी मुसलमान (Muslim) को बकरीद (Bakrid) मनाने के लिए क्यों गिरफ्तार किया जाएगा? तो, इस सवाल का एक ही जवाब है कि जिस तरह इस्लाम में मुस्लिमों के अलावा सभी धर्म के मानने वालों को 'काफिर' माना जाता है. अहमदिया मुसलमान (Ahmadi Muslim) भी काफिरों की लिस्ट में ही आते हैं.

पाकिस्तान में बकरीद पर तीन अहमदिया मुसलमानों को पशुओं की कुर्बानी देना महंगा पड़ गया. अब बेचारे जेल की हवा खा रहे हैं. शायद बकरीद मना रहे अहमदिया मुसलमान ये भूल गए थे कि वो किसी लोकतांत्रिक देश नहीं, बल्कि एक इस्लामिक देश में हैं. लेकिन, असल सवाल तो ये है कि मुस्लिम होकर भी अहमदिया मुसलमानों को ईशनिंदा का आरोपी कैसे बना दिया गया?

पाकिस्तानी संविधान के हिसाब से अहमदिया मुसलमानों की देश में हालत 'बकरों' की तरह ही है.

काफिरों की लिस्ट में है अहमदिया मुसलमान

पाकिस्तान में केवल अल्पसंख्यक हिंदुओं, ईसाईयों और सिखों पर ही अत्याचार नहीं किया जाता है. इस्लाम के आधार पर होने वाले धार्मिक तिरस्कार का जहर अहमदिया मुसलमानों को भी पीना पड़ता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अहमदिया समुदाय के लोग मुसलमान होने बावजूद भी 'काफिर' कहलाते हैं. क्योंकि, 1973 में पाकिस्तानी संविधान में अहमदिया मुसलमानों को 'गैर-मुस्लिम' घोषित कर दिया गया था. इस कानून के तहत ना अहमदिया मुसलमान खुद को मुस्लिम नहीं कह सकते हैं. और, ना ही मुस्लिमों के किसी त्योहार को मना सकते हैं. यहां तक कि अहमदिया मुसलमानों के हज करने पर भी रोक है.

मुसलमान होकर भी मुस्लिम नहीं अहमदिया

इस्लाम को मानने वाले भले ही मुसलमान कहलाए. लेकिन, इस्लाम को मानने वाले सभी लोग मुस्लिम होते नही हैं. और, इनमें से ही एक हैं अहमदिया मुसलमान. अहमदिया समुदाय की स्थापना पंजाब में मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी. और, अहमदिया मुसलमान मिर्जा गुलाम अहमद को भी पैगंबर का अवतार मानते हैं. जबकि, सुन्नी मुसलमानों का पूरा धड़ा यही मानता है कि पैगंबर मोहम्मद ही आखिरी नबी थे. वैसे, शिया मुस्लिमों से भी सुन्नी मुसलमानों के मतभेद की वजह 'हुसैन' हैं. खैर,...

पाकिस्तान में बकरीद पर तीन अहमदिया मुसलमानों को पशुओं की कुर्बानी देना महंगा पड़ गया. अब बेचारे जेल की हवा खा रहे हैं. शायद बकरीद मना रहे अहमदिया मुसलमान ये भूल गए थे कि वो किसी लोकतांत्रिक देश नहीं, बल्कि एक इस्लामिक देश में हैं. लेकिन, असल सवाल तो ये है कि मुस्लिम होकर भी अहमदिया मुसलमानों को ईशनिंदा का आरोपी कैसे बना दिया गया?

पाकिस्तानी संविधान के हिसाब से अहमदिया मुसलमानों की देश में हालत 'बकरों' की तरह ही है.

काफिरों की लिस्ट में है अहमदिया मुसलमान

पाकिस्तान में केवल अल्पसंख्यक हिंदुओं, ईसाईयों और सिखों पर ही अत्याचार नहीं किया जाता है. इस्लाम के आधार पर होने वाले धार्मिक तिरस्कार का जहर अहमदिया मुसलमानों को भी पीना पड़ता है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अहमदिया समुदाय के लोग मुसलमान होने बावजूद भी 'काफिर' कहलाते हैं. क्योंकि, 1973 में पाकिस्तानी संविधान में अहमदिया मुसलमानों को 'गैर-मुस्लिम' घोषित कर दिया गया था. इस कानून के तहत ना अहमदिया मुसलमान खुद को मुस्लिम नहीं कह सकते हैं. और, ना ही मुस्लिमों के किसी त्योहार को मना सकते हैं. यहां तक कि अहमदिया मुसलमानों के हज करने पर भी रोक है.

मुसलमान होकर भी मुस्लिम नहीं अहमदिया

इस्लाम को मानने वाले भले ही मुसलमान कहलाए. लेकिन, इस्लाम को मानने वाले सभी लोग मुस्लिम होते नही हैं. और, इनमें से ही एक हैं अहमदिया मुसलमान. अहमदिया समुदाय की स्थापना पंजाब में मिर्जा गुलाम अहमद ने की थी. और, अहमदिया मुसलमान मिर्जा गुलाम अहमद को भी पैगंबर का अवतार मानते हैं. जबकि, सुन्नी मुसलमानों का पूरा धड़ा यही मानता है कि पैगंबर मोहम्मद ही आखिरी नबी थे. वैसे, शिया मुस्लिमों से भी सुन्नी मुसलमानों के मतभेद की वजह 'हुसैन' हैं. खैर, पाकिस्तान में हर साल अहमदिया मुसलमानों के खिलाफ ईशनिंदा के सैकड़ों मामले दर्ज किए जाते हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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