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इमरान खान 'नया पाकिस्तान' भूल जाएं, मुल्क को बचाने का ये है आखिरी मौका

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 19 फरवरी, 2019 07:30 PM
  • 19 फरवरी, 2019 07:30 PM
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पुलवामा हमले के बाद इमरान खान के बयान ने साफ कर दिया कि उनकी मुश्किलें बढ़ने वाली हैं. आतंकवाद को बढ़ावा देने को लेकर अगर पाकिस्तान दुनिया में अलग थलग हुआ तो, इमरान को फौज की भी नाराजगी झेलनी पड़ेगी - फिर तो कुर्सी पर भी खतरा हो सकता है.

पाकिस्तान के आम चुनावों के दौरान इमरान खान भी बाकी नेताओं की तरह बड़ी बड़ी बातें किये थे. चुनाव जीतने के बाद भी इमरान खान ने सारे वादे दोहराये जिनमें सबसे ऊपर था - 'नया पाकिस्तान' बनाएंगे. लेकिन पुलवामा हमले पर इमरान खान का बयान सुनकर यही लगता है कि वे पाकिस्तानी फौज की स्क्रिप्ट पढ़ रहे हों, जिसका ड्राफ्ट निश्चित तौर पर खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ही तैयार किया होगा. इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बने अब छह महीने होने जा रहे हैं. 18 अगस्त, 2018 को इमरान खान प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे.

पुलवामा हमले के बाद भारत तो गुस्से में है ही, पूरी दुनिया पाकिस्तान के खिलाफ नजर आ रही है. हां, चीन अब भी पाकिस्तान के साथ है. कब तक रहेगा, कहना मुश्किल है.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट नये पाकिस्तान की कौन कहे, पूरा मुल्क डेंजर जोन में पहुंच चुका है. एक बात तो तय है इमरान खान पुलवामा हमले की गलती की सजा से पाकिस्तान को तो नहीं बचा सकते, लेकिन चाहें तो मुल्क को बचाने का एक आखिरी मौका जरूर मिल सकता है.

पाक फौज के लिए जैसे नवाज वैसे इमरान

आम चुनाव में इमरान खान को अपने ख्वाबों को हकीकत में बदलने का आखिरी मौका दिखा था - और उसके लिए भी उनके पास आखिरी रास्ता ही बचा भी था. क्रिकेट छोड़ने के बाद से इमरान खान ने हर तरकीब अपना कर देख लिया था, पाकिस्तान का पीएम बनने का कोई चांस नजर नहीं आ रहा था.

आखिरी ऑप्शन के तौर पर इमरान खान को पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई से समझौते के अलावा कोई चारा न दिखा. फौज के सामने हथियार डाल देने के बाद इमरान खान को इनाम में प्रधानमंत्री की कुर्सी भी मिल गयी.

सत्ता की गद्दी तो वैसे भी गुलाबों की सेज नहीं होती. उसे कांटों का ही ताज कहा जाता है. मगर, इमरान खान जिस ताज पर बैठे हैं वो तो जहरीले और सबसे खतरनाक कांटों का ताज है, जिसका रिमोट पाक फौज के हाथों में है.

असल बात तो ये है कि पाकिस्तानी फौज को एक कठपुतली की जरूरत होती है. पाक फौज प्रधानमंत्री की...

पाकिस्तान के आम चुनावों के दौरान इमरान खान भी बाकी नेताओं की तरह बड़ी बड़ी बातें किये थे. चुनाव जीतने के बाद भी इमरान खान ने सारे वादे दोहराये जिनमें सबसे ऊपर था - 'नया पाकिस्तान' बनाएंगे. लेकिन पुलवामा हमले पर इमरान खान का बयान सुनकर यही लगता है कि वे पाकिस्तानी फौज की स्क्रिप्ट पढ़ रहे हों, जिसका ड्राफ्ट निश्चित तौर पर खुफिया एजेंसी आईएसआई ने ही तैयार किया होगा. इमरान खान को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बने अब छह महीने होने जा रहे हैं. 18 अगस्त, 2018 को इमरान खान प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे.

पुलवामा हमले के बाद भारत तो गुस्से में है ही, पूरी दुनिया पाकिस्तान के खिलाफ नजर आ रही है. हां, चीन अब भी पाकिस्तान के साथ है. कब तक रहेगा, कहना मुश्किल है.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट नये पाकिस्तान की कौन कहे, पूरा मुल्क डेंजर जोन में पहुंच चुका है. एक बात तो तय है इमरान खान पुलवामा हमले की गलती की सजा से पाकिस्तान को तो नहीं बचा सकते, लेकिन चाहें तो मुल्क को बचाने का एक आखिरी मौका जरूर मिल सकता है.

पाक फौज के लिए जैसे नवाज वैसे इमरान

आम चुनाव में इमरान खान को अपने ख्वाबों को हकीकत में बदलने का आखिरी मौका दिखा था - और उसके लिए भी उनके पास आखिरी रास्ता ही बचा भी था. क्रिकेट छोड़ने के बाद से इमरान खान ने हर तरकीब अपना कर देख लिया था, पाकिस्तान का पीएम बनने का कोई चांस नजर नहीं आ रहा था.

आखिरी ऑप्शन के तौर पर इमरान खान को पाकिस्तानी फौज और खुफिया एजेंसी आईएसआई से समझौते के अलावा कोई चारा न दिखा. फौज के सामने हथियार डाल देने के बाद इमरान खान को इनाम में प्रधानमंत्री की कुर्सी भी मिल गयी.

सत्ता की गद्दी तो वैसे भी गुलाबों की सेज नहीं होती. उसे कांटों का ही ताज कहा जाता है. मगर, इमरान खान जिस ताज पर बैठे हैं वो तो जहरीले और सबसे खतरनाक कांटों का ताज है, जिसका रिमोट पाक फौज के हाथों में है.

असल बात तो ये है कि पाकिस्तानी फौज को एक कठपुतली की जरूरत होती है. पाक फौज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर ऐसे कठपुतली को बिठाना चाहती है जो राजनीति नहीं, उसके एजेंड को अमल में लाये. दुनिया को दिखाने के लिए एक मुखौटे की भूमिका में रहे ताकि तकनीकि तौर पर कोई फौजी हुकूमत न कह सके. जनरल परेवज मुशर्रफ ने भी नवाज शरीफ के तख्तापलट के बाद ऐसी ही छवि पेश करने की कोशिश की थी.

पाकिस्तानी फौज के लिए इमरान खान भी नवाज शरीफ या परवेज मुशर्रफ जैसे ही हैं

वक्त का तकाजा तो देखिये परवेज मुशर्रफ तमाम तिकड़म के बावजूद टिक नहीं पाये. नौबत ये आ गयी कि पाकिस्तान में रहना दुश्वार हो गया. दरअसल, परवेज मुशर्रफ भी राष्ट्रपति बनने के बाद फौज के लिए बाकियों जैसे ही हो गये. दुनिया भर में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार्यता के लिए परवेज मुशर्रफ अपने को स्थापित करने में जुट गये. जब फौज को लगा कि मुशर्रफ भी किसी काम के नहीं बचे तो उनका भी वही हाल होने लगा जो उन्होंने नवाज शरीफ का किया था.

नवाज शरीफ को सजा कैसे हुई है और कैसे चुनावों तक उन्हें और उनकी बेटी मरियम शरीफ को जेल से न निकलने देने की कोशिशें हुईं, दुनिया को पता है. इमरान खान के कुर्सी पर रहते पाकिस्तान दुनिया में अलग थलग पड़ने लगा. तमाम पाबंदियां लागू हो गयीं तो ऐसे नेता का क्या फायदा. फौज को तो ऐसा नेता चाहिये जो उसकी योजनाओं को उसी के बताये तरीके से लागू करे.

अगर इमरान खान ऐसा करने में नाकाम रहे तो वो उनके साथ भी वैसा ही सलूक करेगी जैसा नवाज शरीफ के साथ हो रहा है. इमरान खान फौज के पैमानों पर खरा नहीं उतर पाये तो वो दिन दूर नहीं जब वो भी नवाज शरीफ की तरह जेल में या परवेज मुशर्रफ की तरह विदेशों में शरण लिये होंगे. जब फौज मुशर्रफ की नहीं हुई तो इमरान खान कौन बड़े तुर्रम खां हैं. बतौर खिलाड़ी इमरान के फैंस की तादाद चाहे जितनी रही हो. पूरी दुनिया में और भारत में भले ही उनके नवजोत सिंह सिद्धू और महबूबा मुफ्ती जैसे प्रशंसक हों, लेकिन प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने में तो उन्हें बरसों लग ही गये. अब जब तक फौज की कृपा बनी रहेगी, वरना इतिहास गवाह है, खुद को दोहराएगा ही.

क्या हुआ इमरान के नये पाकिस्तान का?

इमरान खान के स्लोगन 'नया पाकिस्तान' के तहत पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आवास को अब एक यूनिवर्सिटी बना दिया गया है. आलीशान PM हाउस में अब एक नेशनल यूनिवर्सिटी स्थापित हो चुकी है. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक ऐलान के मौके पर इमरान खान ने कहा था, 'पीएम हाउस में यूनिवर्सिटी की स्थापना का मकसद ये मैसेज देना है कि मुल्क के तौर पर तरक्‍की करने के लिए पाकिस्तान को शिक्षा और मानव संसाधन पर ध्यान देने की जरूरत है.'

इमरान खान का इल्जाम है कि पुराने पाकिस्तानी शासकों ने निजी फायदों के लिए देश को धोखा दिया और उसी के चलते मुल्क की ये हालत हो गयी. नये पाकिस्तान में इन सब बातों की कोई जगह नहीं होनी चाहिये.

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की छवि उदार बनाने के लिए इमरान खान ने हाल ही में विदेश विभाग और दुनिया भर में तैनात राजदूतों को सक्रिय आर्थिक कूटनीतिक प्रयास करने की हिदायत दी है.

पाकिस्तान को बचाने का इमरान के पास आखिरी मौका है

बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी के मुताबिक भारत-पाक समस्या का एकमात्र समाधाना है पड़ोसी मुल्क को चार हिस्सों में बांट देना - सिंध, बलूचिस्तान, पख्तून और पश्चिमी पाकिस्तान.

पुलवामा अटैक के बाद भारत की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक कोशिशें तेज हो गयी हैं. चीन को छोड़ कर अमेरिका सहित दुनिया कई मुल्कों ने भारत का खुल कर सपोर्ट किया है. अमेरिका ने तो अपने नागरिकों को पाकिस्तान की यात्रा को लेकर पुर्विचार करने की सलाह दी है. अमेरिका की ये एडवाइजरी आतंकवादी गतिविधियों के मद्देनजर है.

पेरिस में 17 से 22 फरवरी के बीच FATF यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की बैठक होने वाली है. जून 2018 में पाकिस्तान को ग्रे-लिस्ट में डाल दिया गया था. साथ ही पाकिस्तान को नोटिस भी जारी किया गया है कि अगर अक्टूबर, 2019 तक उसने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद को आर्थिक मदद करना बंद नहीं किया तो उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा.

अब भारत की कोशिश होगी कि आतंकवाद को बढ़ावा देने को लेकर पाकिस्तान को काली सूची में डालने का फैसला हो और इसमें पूरी दुनिया पाकिस्तान के खिलाफ भारत का सपोर्ट करे.

जनवरी में इमरान खान तुर्की के दौरे पर गये थे और भारत से जुड़े एक सवाल पर टीवी इंटरव्यू में कहा था ‘दो परमाणु सम्पन्न देशों को जंग के बारे में सोचना तक नहीं चाहिए. यहां तक कि शीत युद्ध के बारे में भी नहीं - क्योंकि स्थिति किसी भी समय खराब हो सकती है.'

इमरान का कहना रहा कि दो न्यूक्लियर मुल्कों के बीच जंग दोनों ही के लिए खुदकुशी की तरह है. इसके साथ ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया था कि भारत शांति प्रस्ताव पर जवाब नहीं दे रहा है. लगता नहीं कि इमरान खान को अब भारत से जवाब के लिए ज्यादा इंतजार करने की जरूरत पड़ेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साफ कर चुके हैं कि पुलवामा में पाकिस्तान ने जो हरकत की है उसका माकूल जवाब जल्द दिया जाएगा.

फिलहाल इमरान खान की मुश्किल ये है कि जिस काम के लिए पाकिस्तानी फौज ने उन्हें कुर्सी पर बिठा रखा है उसमें चुनौतियां बढ़ने वाली हैं. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने पाकिस्तान के कारनामे सामने आ चुके हैं. आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए इमरान खान कर्ज बटोरने में जुटे हैं - नये हालात में उसमें भी रोड़े आ सकते हैं. सबसे बड़ी मदद अमेरिका देता है, लेकिन वो पैसा भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए दे पाएगा, संभव नहीं लगता. फर्ज कीजिए पाकिस्तानी फौज भारत के खिलाफ कश्मीर एजेंडे पर कायम रहती है - और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पोल खुलते ही पाकिस्तान पर पाबंदियां लगनी शुरू हो जाती हैं - फिर क्या करेंगे इमरान खान? और इमरान खान के साथ क्या सलूक करेगी पाकिस्तानी फौज? समझाना बहुत मुश्किल नहीं है.

क्या नया पाकिस्तान बनाने का इमरान खान का सपना चूर चूर हो जाएगा? पक्के तौर पर तो ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन आशंकाएं ऐसी जरूर हैं.

तो क्या इमरान खान के पास कोई रास्ता नहीं बचा है?

सवाल का जवाब ये है कि अगर इमरान खान हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो पाकिस्तानी फौज और आईएसआई इमरान खान की जगह किसी और को लाएगी. फिर तो इमरान खान के उत्तराधिकारी हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकवादी भी हो सकते हैं. आखिर फौज ने इमरान से पहले हाफिज को नेता बनाने के इंतजाम तो कर ही दिये थे. नवाज शरीफ को जेल भेजने के लिए पाकिस्तानी ज्यूडिशियरी में वैसे जज लाये गये तो फौज के मन मुताबिक फैसले सुनायें. वो हुआ भी. हाफिज सईद ने राजनीतिक पार्टी भी बना ही ली है. उसके उम्मीदवारों ने चुनाव भी लड़े, ये बात अलग है कि जनता ने नकार दिया. नकार इसलिए दिया क्योंकि नये पाकिस्तान के नारे के साथ इमरान खान के रूप में उनके सामने विकल्प मौजूद था. आगे क्या होगा ये समझना भी कोई कठिन सवाल नहीं है.

फिर इमरान खान के पास क्या विकल्प हो सकते हैं?

इमरान खान के सामने सिर्फ एक ऑप्शन है. इमरान खान फौजी नेतृत्व या आईएसआई की नहीं जनता की सुनें. पाकिस्तानी अवाम ने कनेक्ट रहें. अवाम को समझायें कि नये पाकिस्तान के उनके आइडिया में क्या मुश्किलें आ रही हैं - और उन मुश्किलों से कैसे निजात पायी जा सकती है.

इमरान खान सबसे पहले अपने मुल्क में आतंकवादियों के ठिकाने, उनका नेटवर्क और उनको आर्थिक मदद पहुंचाने वाले रास्तों को बंद करें. इमरान खान लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए पाकिस्तानी अवाम के नुमाइंदे हैं - और जब तक जनता नहीं चाहे कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता. वैसे ये सब इतना आसान भी नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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