• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

MCD Elections: नतीजों के बाद कपिल मिश्रा को BJP प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग यूं ही नहीं हो रही

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 07 दिसम्बर, 2022 10:40 PM
  • 07 दिसम्बर, 2022 10:40 PM
offline
दिल्ली में भाजपा बार-बार फेल क्यों हो रही है? दिल्ली भाजपा अध्यक्ष पर पिछले 10 साल से जारी प्रयोग खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. ऐसा लगता है कि देश में चुनावी मशीन के नाम से मशहूर भाजपा दिल्ली में आकर अपनी सारी होशियारी खो देती है. दिल्ली में न उसे नेतृत्व की फिक्र होती है, न मतदाताओं की, और न मुद्दों की.

एमसीडी चुनाव नतीजों में आम आदमी पार्टी के बहुमत मिलने के बाद भाजपा ने हार को लेकर मंथन जरूर शुरू कर दिया होगा. लेकिन, आम आदमी पार्टी के उभार के बाद से ये चौथा चुनाव (तीन विधानसभा और एक एमसीडी) है, जिसमें भाजपा को हार का स्वाद चखना पड़ा है. इस बीच सोशल मीडिया पर भाजपा नेता कपिल मिश्रा को दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है. कपिल मिश्रा के समर्थन में दावा किया जा रहा है कि उन्होंने एमसीडी चुनाव के मद्देनजर 51 जनसभाएं की थीं. जिनमें से 40 वार्ड में भाजपा को जीत हासिल हुई है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि एमसीडी नतीजों के बाद कपिल मिश्रा को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग क्यों हो रही है?

आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से ही दिल्ली में भाजपा का नेतृत्व कभी स्थिर नहीं रह सका.

दिल्ली में भाजपा का निष्प्रभावी नेतृत्व

आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से ही दिल्ली में भाजपा का नेतृत्व कभी स्थिर नहीं रह सका. इतना ही नहीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद को लेकर गुटबाजी भी अपने चरम पर रही. भाजपा नेता विजय गोयल ने अपनी ताजपोशी के लिए खूब दबाव बनाया. वहीं, डॉक्टर हर्षवर्धन के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर उनकी टांग खींचने वाले भी कई रहे. इसके बाद सतीश उपाध्याय को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. सतीश उपाध्याय एबीवीपी से आते थे. इसके इतर उनका अपने ही क्षेत्र में कोई प्रभाव नहीं था. मनोज तिवारी ने जरूर भाजपा को मजबूत किया. और, 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा की ये मजबूती दिल्ली में दिखी.

लेकिन, आदेश कुमार गुप्ता को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद भाजपा में राज्य स्तर पर गुटबाजी बढ़ गई. एमसीडी चुनाव के हालिया परिणामों में आदेश गुप्ता के इलाके की सीटें ही भाजपा नहीं जीत सकी....

एमसीडी चुनाव नतीजों में आम आदमी पार्टी के बहुमत मिलने के बाद भाजपा ने हार को लेकर मंथन जरूर शुरू कर दिया होगा. लेकिन, आम आदमी पार्टी के उभार के बाद से ये चौथा चुनाव (तीन विधानसभा और एक एमसीडी) है, जिसमें भाजपा को हार का स्वाद चखना पड़ा है. इस बीच सोशल मीडिया पर भाजपा नेता कपिल मिश्रा को दिल्ली का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है. कपिल मिश्रा के समर्थन में दावा किया जा रहा है कि उन्होंने एमसीडी चुनाव के मद्देनजर 51 जनसभाएं की थीं. जिनमें से 40 वार्ड में भाजपा को जीत हासिल हुई है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि एमसीडी नतीजों के बाद कपिल मिश्रा को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाने की मांग क्यों हो रही है?

आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से ही दिल्ली में भाजपा का नेतृत्व कभी स्थिर नहीं रह सका.

दिल्ली में भाजपा का निष्प्रभावी नेतृत्व

आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने के बाद से ही दिल्ली में भाजपा का नेतृत्व कभी स्थिर नहीं रह सका. इतना ही नहीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के पद को लेकर गुटबाजी भी अपने चरम पर रही. भाजपा नेता विजय गोयल ने अपनी ताजपोशी के लिए खूब दबाव बनाया. वहीं, डॉक्टर हर्षवर्धन के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर उनकी टांग खींचने वाले भी कई रहे. इसके बाद सतीश उपाध्याय को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया. सतीश उपाध्याय एबीवीपी से आते थे. इसके इतर उनका अपने ही क्षेत्र में कोई प्रभाव नहीं था. मनोज तिवारी ने जरूर भाजपा को मजबूत किया. और, 2019 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा की ये मजबूती दिल्ली में दिखी.

लेकिन, आदेश कुमार गुप्ता को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद भाजपा में राज्य स्तर पर गुटबाजी बढ़ गई. एमसीडी चुनाव के हालिया परिणामों में आदेश गुप्ता के इलाके की सीटें ही भाजपा नहीं जीत सकी. भाजपा नेतृत्व के दिल्ली में प्रभाव को समझने के लिए इससे बेहतर उदाहरण अन्य नहीं हो सकता है. यही कारण है कि दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष पद पर कपिल मिश्रा को बैठाने की बात हो रही है. क्योंकि, आदेश गुप्ता सरीखे प्रदेश अध्यक्ष की तुलना में कपिल मिश्रा काफी हद तक प्रभावी नजर आते हैं. अगर वो ज्यादा कुछ नहीं, तो कम से कम हिंदू मतदाताओं को तो एकजुट करने की क्षमता रखते ही हैं.

निचले तबके के मतदाताओं से बेपरवाह भाजपा

आम आदमी पार्टी को एमसीडी चुनाव में वोट देने वालों में रेहड़ी-पटरी वालों से लेकर मध्यम वर्गीय परिवार तक के लोग हैं. झुग्गी-झोपड़ी यानी स्लम एरिया में रहने वाले लोगों ने आम आदमी पार्टी को छप्परफाड़ वोट दिया. लेकिन, भाजपा इन मतदाताओं के बीच पैंठ बनाने में कामयाब ही नहीं हो सकी. जबकि, भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर 'पार्टी के शहरी पार्टी' होने के मिथक को भी तोड़ दिया है. इसके बावजूद दिल्ली में भाजपा का कमाल नहीं चल पाया. हालांकि, भाजपा ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव से पहले अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण जैसे सियासी दांव भी खेले. लेकिन, ये सब विफल ही रहे.

केंद्र शासित राज्य होने के तौर पर भाजपा के पास मौका था कि वो दिल्ली के स्लम और कॉलोनियों के इलाकों में पानी की व्यवस्था दुरुस्त कर निचले तबके के मतदाताओं को लुभा सकती थी. क्योंकि, दिल्ली के एक बड़े हिस्से में आज भी पीने के पानी की समस्या जस की तस है. और, इस मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल भी बैकफुट पर ही रहते हैं. लेकिन, एमसीडी चुनाव में इस मुद्दे को गंभीरता से उठाने की जगह भाजपा सत्येंद्र जैन के वीडियो से खेलती रही. हालांकि, इसका फायदा मिला. लेकिन, ये फायदा इतना भी नहीं था कि एमसीडी की सत्ता से भाजपा को बाहर होने से रोक सके.

केजरीवाल उसी रेवड़ी के दम पर जीते, जिसका विरोध करने की भाजपा ने चुनावी गलती की

दिल्ली में सरकार बनाने के साथ ही अरविंद केजरीवाल ने फ्री बिजली-पानी जैसी सुविधाएं के नाम पर रेवड़ी कल्चर की शुरुआत की. दिल्ली का एक बड़ा तबका इस रेवड़ी कल्चर की वजह से ही आम आदमी पार्टी को वोट करता चला आ रहा है. इस एमसीडी चुनाव में भी अरविंद केजरीवाल ने कुछ ऐसे ही वादे किए थे. और, जीत हासिल कर ली. लेकिन, भाजपा ने इस रेवड़ी कल्चर का विरोध करने की चुनावी गलती कर दी. ये अरविंद केजरीवाल के रेवड़ी कल्चर का ही दम था कि उन्हें हर समुदाय, हर वर्ग और हर विचारधारा के मतदाताओं ने वोट दिए. भले ही कुछ मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को फ्री बिजली-पानी और शिक्षा की वजह से वोट दिया हो. लेकिन, ऐसे मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी और भाजपा को बराबर वोट दिए थे. आसान शब्दों में कहें, तो भाजपा झुग्गी-झोपड़ी के मतदाताओं को रेवड़ी कल्चर के नुकसान समझाने में कामयाब नहीं हो सकी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲