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गोरखपुर, फूलपुर के बाद सपा-बसपा की नज़र कैराना पर, दोनों चाहे सीट की दावेदारी

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 24 मार्च, 2018 12:16 PM
  • 24 मार्च, 2018 12:16 PM
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2019 के लोक सभा चुनाव बहुत कांटे के होने वाले हैं, जिसमें प्रत्येक सीट पर एक-एक वोट महत्वपूर्ण होगा. बड़े युद्ध में विजय के लिए जो भी दल छोटी लड़ाई हारने के लिए तैयार होगा वही 2019 में सिकंदर कहलाएगा.

गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा की जीत के बाद अब सपा और बसपा इस प्रयोग को कैराना उपचुनाव में दोहराना चाहेंगे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना सीट सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद खाली हो गई थी. 2014 के लोक सभा चुनाव के समय उत्तर प्रदेश में मोदी लहर पूरे शबाब पर थी. हुकुम सिंह ने 2014 आम चुनाव में 36.95% प्रतिशत वोट हासिल कर भाजपा का परचम लहराया था. उस समय सपा के नाहिद हसन को 21.48% और बसपा के कंवर हसन को 10.47% प्रतिशत वोट मिले थे. यदि 2014 लोक सभा चुनाव के वोट प्रतिशत को सीधे-सीधे जोड़ दिया जाए तो सपा और बसपा को मोदी लहर के बावजूद 31.95% प्रतिशत मिल रहे थे.

वर्तमान में देश में या उत्तर प्रदेश में मोदी लहर नज़र नहीं आ रही है. इस स्थिति में पिछले आंकड़ों को देखते हुए सपा-बसपा का गठजोड़ भाजपा के मुक़ाबले मज़बूत मालूम होता है. अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल भी सपा-बसपा के बनते गठजोड़ में अपनी पार्टी को शामिल करने में प्रयासरत है.

कैराना में सपा बसपा के साथ राष्ट्रीय लोकदल भी भाजपा के खिलाफ कमर कस चुकी है.बसपा वैसे तो उपचुनावों में कभी अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करती है. परंतु गोरखपुर और फूलपुर की जीत ने बसपा को भी ललचा दिया है. फूलपुर और गोरखपुर में समर्थन के बदले बसपा, सपा के साथ सौदेबाज़ी करना चाहती है. सपा और राष्ट्रीय लोक दल भी संयुक्त उम्मीदवार की बात कर रहे हैं, लेकिन कैराना पर अपनी दावेदारी भी ठोक रहे हैं. यह दोनों-तीनों दल भाजपा के विरोध में संयुक्त चुनौती की बात तो कर रहे हैं पर एक-दूसरे के लिए त्याग करने को तैयार नहीं हैं.

गोरखपुर और फूलपुर में सपा की जीत बसपा के त्याग के कारण संभव हुई थी. यदि 2019 के आम चुनावों में भाजपा को हराने के बड़े लक्ष्य को साधना है तो थोड़ा निजी नुकसान तो सहना होगा.

भाजपा तो ऐसे ही किसी...

गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा की जीत के बाद अब सपा और बसपा इस प्रयोग को कैराना उपचुनाव में दोहराना चाहेंगे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना सीट सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद खाली हो गई थी. 2014 के लोक सभा चुनाव के समय उत्तर प्रदेश में मोदी लहर पूरे शबाब पर थी. हुकुम सिंह ने 2014 आम चुनाव में 36.95% प्रतिशत वोट हासिल कर भाजपा का परचम लहराया था. उस समय सपा के नाहिद हसन को 21.48% और बसपा के कंवर हसन को 10.47% प्रतिशत वोट मिले थे. यदि 2014 लोक सभा चुनाव के वोट प्रतिशत को सीधे-सीधे जोड़ दिया जाए तो सपा और बसपा को मोदी लहर के बावजूद 31.95% प्रतिशत मिल रहे थे.

वर्तमान में देश में या उत्तर प्रदेश में मोदी लहर नज़र नहीं आ रही है. इस स्थिति में पिछले आंकड़ों को देखते हुए सपा-बसपा का गठजोड़ भाजपा के मुक़ाबले मज़बूत मालूम होता है. अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल भी सपा-बसपा के बनते गठजोड़ में अपनी पार्टी को शामिल करने में प्रयासरत है.

कैराना में सपा बसपा के साथ राष्ट्रीय लोकदल भी भाजपा के खिलाफ कमर कस चुकी है.बसपा वैसे तो उपचुनावों में कभी अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करती है. परंतु गोरखपुर और फूलपुर की जीत ने बसपा को भी ललचा दिया है. फूलपुर और गोरखपुर में समर्थन के बदले बसपा, सपा के साथ सौदेबाज़ी करना चाहती है. सपा और राष्ट्रीय लोक दल भी संयुक्त उम्मीदवार की बात कर रहे हैं, लेकिन कैराना पर अपनी दावेदारी भी ठोक रहे हैं. यह दोनों-तीनों दल भाजपा के विरोध में संयुक्त चुनौती की बात तो कर रहे हैं पर एक-दूसरे के लिए त्याग करने को तैयार नहीं हैं.

गोरखपुर और फूलपुर में सपा की जीत बसपा के त्याग के कारण संभव हुई थी. यदि 2019 के आम चुनावों में भाजपा को हराने के बड़े लक्ष्य को साधना है तो थोड़ा निजी नुकसान तो सहना होगा.

भाजपा तो ऐसे ही किसी अवसर की प्रतीक्षा करेगी जब सपा-बसपा के विरोधाभास सामने उजागर हो सकें. वर्तमान में राष्ट्रीय लोकदल, सपा-बसपा के साथ जाना चाहता है, परंतु इस संभावना को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, जिसमें भाजपा राष्ट्रीय लोकदल को किसी तरह का लालच देकर इस गठजोड़ से बाहर रखे.

2019 के लोक सभा चुनाव बहुत कांटे के होने वाले हैं, जिसमें प्रत्येक सीट पर एक-एक वोट महत्वपूर्ण होगा. बड़े युद्ध में विजय के लिए जो भी दल छोटी लड़ाई हारने के लिए तैयार होगा वही 2019 में सिकंदर कहलाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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