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Rahul Gandhi का कांग्रेस के भीतर समय खत्म!

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 28 फरवरी, 2020 03:42 PM
  • 28 फरवरी, 2020 03:42 PM
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क्या खुद कांग्रेस (Congress) के तमाम बड़े नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की 'निष्क्रिय', 'अंशकालिक' और 'गुरिल्ला' राजनीति से निराश हो रहे हैं? क्या सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के ही हाथ में रहेगी पार्टी की कमान ? क्या मिल पाएगा कांग्रेस को कोई नया अध्यक्ष? सवाल तमाम हैं जिनके जवाब सिर्फ और सिर्फ वक़्त देगा.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) में अंतर है. कांग्रेस के सभी नेता और ज्यादातर विपक्ष इस बात से सहमत है. सोनिया गांधी द्वारा की गई टिप्पणियों का सत्तारूढ़ दल के नेतृत्व पर अधिक प्रभाव पड़ता है. ये हमें बुधवार को भी देखने को मिला. सोनिया गांधी के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के बाद जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की चुप्पी पर चुप्पी पर दुःख व्यक्त किया, उन्होंने दो ट्वीट किये और राजधानी के लोगों से शांति और सद्भाव बनाने की अपील की. उसी दिन बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) जिनकी सोनिया गांधी ने दंगा प्रभावित (Delhi Riots) क्षेत्रों में दौरा न करने के लिए आलोचना की थी, उत्तर पूर्वी दिल्ली में उन इलाकों के लोगों से मिले जिन्होंने सांप्रदायिक हिंसा (Communal Violence) का सामना किया था. भाजपा नेतृत्व या आम आदमी पार्टी के नेतृत्व की ओर से सोनिया गांधी की कही गई बातों को खारिज करने का कोई प्रयास नहीं किया गया. यह राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों या टिप्पणी से काफी अलग अंदाज है.

लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद राहुल गांधी ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया था

इस पर विचार करते हुए हम राहुल गांधी के उस रवैये को देख सकते हैं जिसमें उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट से पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट भेजे गए जस्टिस एस मुरलीधर के ट्रांसफर का मुद्दा उठाया था. राहुल ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला करते हुए सीबीआई न्यायाधीश जस्टिस बीएच लोयाका मुद्दा उठाया और कहा कि उनका तो ट्रांसफर भी नहीं किया गया. जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे जिस समय उनकी मौत हुई. अमित शाह जो देश के वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री हैं, मामले में मुख्य आरोपी थे इन्हें सभी आरोपों से...

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) में अंतर है. कांग्रेस के सभी नेता और ज्यादातर विपक्ष इस बात से सहमत है. सोनिया गांधी द्वारा की गई टिप्पणियों का सत्तारूढ़ दल के नेतृत्व पर अधिक प्रभाव पड़ता है. ये हमें बुधवार को भी देखने को मिला. सोनिया गांधी के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के बाद जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की चुप्पी पर चुप्पी पर दुःख व्यक्त किया, उन्होंने दो ट्वीट किये और राजधानी के लोगों से शांति और सद्भाव बनाने की अपील की. उसी दिन बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) जिनकी सोनिया गांधी ने दंगा प्रभावित (Delhi Riots) क्षेत्रों में दौरा न करने के लिए आलोचना की थी, उत्तर पूर्वी दिल्ली में उन इलाकों के लोगों से मिले जिन्होंने सांप्रदायिक हिंसा (Communal Violence) का सामना किया था. भाजपा नेतृत्व या आम आदमी पार्टी के नेतृत्व की ओर से सोनिया गांधी की कही गई बातों को खारिज करने का कोई प्रयास नहीं किया गया. यह राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों या टिप्पणी से काफी अलग अंदाज है.

लोकसभा चुनावों में मिली हार के बाद राहुल गांधी ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया था

इस पर विचार करते हुए हम राहुल गांधी के उस रवैये को देख सकते हैं जिसमें उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट से पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट भेजे गए जस्टिस एस मुरलीधर के ट्रांसफर का मुद्दा उठाया था. राहुल ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला करते हुए सीबीआई न्यायाधीश जस्टिस बीएच लोयाका मुद्दा उठाया और कहा कि उनका तो ट्रांसफर भी नहीं किया गया. जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे थे जिस समय उनकी मौत हुई. अमित शाह जो देश के वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री हैं, मामले में मुख्य आरोपी थे इन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया गया.

राहुल गांधी के ट्वीट के बाद, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि जस्टिस मुरलीधर को ट्रांसफर इसलिए किया गया ताकि दिल्ली सांप्रदायिक दंगों के मद्देनजर भाजपा नेताओं को बचाया जा सके. बीते दिन हुई सुनवाई में जब अदालत ने पुलिस और सरकारी काउंसल को भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए अभद्र भाषण वाले वीडियो क्लिप दिखाए उसके बाद जस्टिस मुरलीधर दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार पर खासे सख्त नजर आए थे.

राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए, केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह आरोप लगाया कि कांग्रेस के पास 'न्यायपालिका के लिए सम्मानजनक संबंध' है और राहुल गांधी से पूछा कि क्या वह 'खुद को उच्चतम न्यायालय से भी ऊपर' मानते हैं. यह राहुल गांधी के बयान को हल्का बनाने की कोशिश थी. जाहिर तौर पर विरोधी भी सोनिया गांधी को ज्यादा गंभीरता से लेते हैं.

अब, कांग्रेस नेताओं में एक भावना उभर रही है कि राहुल गांधी भाजपा और अन्य प्रतिद्वंद्वियों पर वांछित प्रभाव नहीं डाल रहे हैं. उनमें से अभी हाल के दिनों में सबसे ज्यादा मुखर शशि थरूर हैं, जिन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई को हाल ही में एक इंटरव्यू दिया और इस मुश्किल वक़्त में पार्टी में इनकी वापसी पर तमाम तरह की गंभीर बातें कहीं. बता दें कि पार्टी में अब भी धरना बनी हुई है कि राहुल गांधी वापसी करेंगे.

थरूर ने मांग की कि पार्टी को एक एक्टिव और फुल टाइम पार्टी अध्यक्ष मिले. बता दें कि जिस वक़्त राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष थे, तमाम मौके ऐसे आए जब उन्होंने यही संकेत दिया कि वो 'नॉन एक्टिव' हैं. सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष की भूमिका में "स्टॉप-गैप व्यवस्था" के रूप में लौटीं, ध्यान रहे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद राहुल गांधी ने जिम्मेदारी ली थी और अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देते हुए पार्टी को बीच मझधार में छोड़ दिया था.

पार्टी के कुछ अन्य शीर्ष नेता जैसे अभिषेक मनु सिंघवी और संदीप दीक्षित ने भी अलग अलग मौकों पर कहीं न कहीं थरूर की बातों पर सहमती जताई. हाल फिलहाल में इस टोली में मनीष तिवारी भी शामिल हुए हैं.

अपने एक इंटरव्यू में मनीष तिवारी ने इस बात पर बल दिया कि इस मुश्किल वक़्त में वो केवल सोनिया गांधी ही हैं जो पार्टी को संभल सकती हैं. पत्रकार करण थापर को दिए एक इंटरव्यू में तिवारी ने कहा कि कांग्रेस में एक सर्वसम्मति है कि उज्जवल भविष्य के लिए हमें बतौर अध्यक्ष सोनिया गांधी की ही दरकार है.

यह दावा ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस के एक खेमे को पार्टी प्रमुख के रूप में राहुल गांधी की वापसी के लिए पार्टी के भीतर लॉबिंग करने के लिए कहा गया है. अपने साक्षात्कार में तिवारी ने यह भी कहा कि कांग्रेस में "एक मूक बहुमत" सोनिया गांधी को जारी रखना चाहता है.

हाल ही में, दिल्ली से दो बार के कांग्रेस सांसद संदीप दीक्षित ने कहा कि वरिष्ठ नेता नए पार्टी अध्यक्ष के लिए चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रतिद्वंद्वी खेमे से कोई अन्य दावेदार इस पद के लिए सामने आ जाएगा.

थरूर और सिंघवी दोनों ही कांग्रेस अध्यक्ष के पद के लिए नए सिरे से चुनाव का दबाव बना रहे हैं. अगर राहुल गांधी चुनाव नहीं लड़ते हैं, तो इसका मतलब ये है कि जल्द ही कांग्रेस को अपना नया अध्यक्ष मिलेगा. कुछ लोगों के अनुसार ये व्यक्ति प्रियंका गांधी वाड्रा भी हो सकता है. इसका मतलब फिर से कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के भीतर एक ही परिवार का दबदबा रहेगा और भाजपा को फिर एक बार कांग्रेस पर हमला करने का मौका मिल जाएगा.

ऐसी संभावनाओं को खारिज करने के लिए, कांग्रेस नेताओं का एक समूह जैसे सलमान खुर्शीद अन्य विकल्पों के मुकाबले राहुल गांधी की वापसी के पक्ष में हैं. पर इनके अलावा कांग्रेस में और लोग भी हैं जो मुखर होकर पार्टी के अध्यक्ष के लिए सोनिया गांधी की वकालत करते हुए नजर आ रहे हैं या फिर नए सिरे से चुनाव हो और राहुल गांधी वापस लौटें.

फिर लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी हैं, जिन्होंने कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व के साथ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों को डी लिंक करने की कोशिश की. मीडिया रिपोर्ट्स में चौधरी ये कहते पाए गए हैं कि, 'राहुल गांधी नहीं होते, तो क्या कांग्रेस का अस्तित्व नहीं था? तब पार्टी कहां गई? कांग्रेस कभी नहीं मिटेगी.

क्या यह कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी की अस्वीकृति नहीं है? क्या कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की 'निष्क्रिय', 'अंशकालिक' और "गुरिल्ला" राजनीति की शैली से निराश हो रहे हैं, ध्यान रहे कि आज पार्टी को भाजपा और क्षेत्रीय दलों से तमाम तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. आज कांग्रेस हर रोज अपना किला बचा रही है? और इसलिए वे बढ़ती उम्र के बावजूद सोनिया गांधी को पसनद कर रहे हैं या फिर कोई नया चेहरा पार्टी को बतौर अध्यक्ष मिलता है? इन तमाम सवालों के जवाब जानना दिलचस्प रहने वाला है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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