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करीब 47 बसंत देख चुके राहुल गांधी के आखिरकार अच्छे दिन आ ही गए

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 27 अक्टूबर, 2017 09:19 PM
  • 27 अक्टूबर, 2017 09:19 PM
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आजकल जिसे देखो वही राहुल गांधी के विषय में बात कर रहा है. आम लोगों से इतर राजनेताओं के बीच राहुल की लोकप्रियता बता रही है कि अब उनका सिर कढ़ाई में और अंगुलियां घी में हैं.

राजनीति बड़ी दिलचस्प चीज है. यहां रोने के लिए, कब, कौन किसका दामन थाम ले, कुछ कहा नहीं जा सकता. बात जब भारत की राजनीति पर हो तो मामला और दिलचस्प हो जाता है. यहां दोस्त दुश्मन बन जाते हैं और दुश्मन दोस्त. सुना हम सब ने है. साथ ही ये राजनीति में एक बेहद कॉमन सी बात भी है कि यहां दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है.

हमें नहीं लगता कि सोशल मीडिया के कमोड पर बैठे डिजिटल इंडिया को आज ये बताने की ज़रूरत है कि भारतीय राजनीति में कौन दोस्त है और कौन दुश्मन. अगर अब भी लोग विचलित हैं तो उनकी नादानी को क्षमा करके बस ये कहा जा सकता है कि जिस तरह से आज नरेंद्र मोदी आम जनमानस के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं वो राजनीति में कइयों के दुश्मन बन गए हैं और उनके दुश्मन राहुल गांधी, उनके दुश्मनों के दोस्त.

ये शायद राहुल गांधी की मेहनत ही है जिसके चलते उनके विरोधी भी अब उन्हें पसंद करने लग गए हैं

अपनी ज़िन्दगी में कोई 47 बसंत देख चुके राहुल गांधी के सितारे इन दिनों बुलंद हैं. देखा जा रहा है कि, आजकल उस-उस खेमे से इनके बारे में तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं जो कभी इनके घोर निंदक थे. जो आज इनकी तारीफ कर रहे हैं वही कल इन्हें पप्पू, आउल जैसे संज्ञाओं और विशेषणों से नवाजते थे. राहुल गांधी की ताजा स्थिति देखकर ये कहने से गुरेज नहीं किया जा सकता है कि भले ही इस देश के अच्छे दिन न आए हों मगर राहुल गांधी के अच्छे दिन आ गए हैं. अलग-अलग राजनीतिक दलों की नजरों में जो कल तलक लूजर था वही आज का हीरो है.

बहरहाल, राहुल की तारीफ राज ठाकरे भी कर रहे हैं और शिव सेना भी. 17 नवम्बर 2012 को हुई बाल ठाकरे की मौत के बाद ऐसा बहुत कम ही देखने को मिला कि शिव सेना और कभी शिव सेना का हिस्सा रहे राज ठाकरे किसी चीज पर एक मत हुए हों. इस बार भी दोनों के एक मत होने की वजह राहुल...

राजनीति बड़ी दिलचस्प चीज है. यहां रोने के लिए, कब, कौन किसका दामन थाम ले, कुछ कहा नहीं जा सकता. बात जब भारत की राजनीति पर हो तो मामला और दिलचस्प हो जाता है. यहां दोस्त दुश्मन बन जाते हैं और दुश्मन दोस्त. सुना हम सब ने है. साथ ही ये राजनीति में एक बेहद कॉमन सी बात भी है कि यहां दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है.

हमें नहीं लगता कि सोशल मीडिया के कमोड पर बैठे डिजिटल इंडिया को आज ये बताने की ज़रूरत है कि भारतीय राजनीति में कौन दोस्त है और कौन दुश्मन. अगर अब भी लोग विचलित हैं तो उनकी नादानी को क्षमा करके बस ये कहा जा सकता है कि जिस तरह से आज नरेंद्र मोदी आम जनमानस के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं वो राजनीति में कइयों के दुश्मन बन गए हैं और उनके दुश्मन राहुल गांधी, उनके दुश्मनों के दोस्त.

ये शायद राहुल गांधी की मेहनत ही है जिसके चलते उनके विरोधी भी अब उन्हें पसंद करने लग गए हैं

अपनी ज़िन्दगी में कोई 47 बसंत देख चुके राहुल गांधी के सितारे इन दिनों बुलंद हैं. देखा जा रहा है कि, आजकल उस-उस खेमे से इनके बारे में तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं जो कभी इनके घोर निंदक थे. जो आज इनकी तारीफ कर रहे हैं वही कल इन्हें पप्पू, आउल जैसे संज्ञाओं और विशेषणों से नवाजते थे. राहुल गांधी की ताजा स्थिति देखकर ये कहने से गुरेज नहीं किया जा सकता है कि भले ही इस देश के अच्छे दिन न आए हों मगर राहुल गांधी के अच्छे दिन आ गए हैं. अलग-अलग राजनीतिक दलों की नजरों में जो कल तलक लूजर था वही आज का हीरो है.

बहरहाल, राहुल की तारीफ राज ठाकरे भी कर रहे हैं और शिव सेना भी. 17 नवम्बर 2012 को हुई बाल ठाकरे की मौत के बाद ऐसा बहुत कम ही देखने को मिला कि शिव सेना और कभी शिव सेना का हिस्सा रहे राज ठाकरे किसी चीज पर एक मत हुए हों. इस बार भी दोनों के एक मत होने की वजह राहुल गांधी और उनका 'उत्तेजक भाषण' नहीं है. वजह है मोदी विरोध. मानिए या न मानिए मगर वर्तमान भारतीय राजनीति का एक बड़ा सच ये भी है कि जो मोदी विरोध करेगा राजनीति उसे या तो हीरो बना देगी या जीरो कह देगी.

शिव सेना बिना वजह के कुछ नहीं करती, निश्चित तौर पर राहुल को पसंद करने के पीछे भी कई वजहें हैं

राहुल, जीरो से माइनस और माइनस से जीरो का सफर समय-समय पर करते रहते हैं. उनके पास खोने को ज्यादा कुछ बचा नहीं था. उन्होंने अपने को अपग्रेड किया और नतीजा ये कि शिवसेना सांसद संजय राउत ने कह डाला कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी देश का नेतृत्व करने में सक्षम हैं. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. आजतक के एक प्रोग्राम ' मुंबई एजेंडा' में शिरकत करते हुए राउत ने कहा है कि गुजरात में राहुल गांधी को सुनने के लिए भारी भीड़ उमड़ रही है. जनता किसी को भी पप्पू बना सकती है, राहुल गांधी अब पप्पू नहीं हैं. राहुल गांधी क्या बोलता है, क्या करता है. किससे मिलता है. उसमें इस देश की जनता रूचि लेने लगी है. इसका मतलब है कि राहुल गांधी भी इस देश को लीडरशिप दे सकते हैं.

राउत के साथ ही महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने भी राहुल गांधी की तारीफ में कसीदे पढ़े. राहुल गांधी को लेकर राज ठाकरे का मत कुछ यूं है कि जिस व्यक्ति को बीजेपी पप्पू-पप्पू कहती रही, आज वो गुजरात में झप्पू बन गया है. उनकी रैली में जितने लोग आ रहे हैं. उससे डरकर प्रधानमंत्री आठ-आठ बार नौ-नौ बार गुजरात जा रहे हैं. ठाकरे ने कहा कि आप इतने सालों तक राहुल गांधी को अपमानित करते रहे और अब वही आदमी गुजरात जा रहा है, तो आपको डर क्यों लग रहा है. उसी आदमी के पीछे हजारों-लाखों लोग खड़े हो रहे हैं, तो डर क्यों लग रहा है. बीजेपी के इतने मुख्यमंत्री आखिर गुजरात क्यों जा रहे हैं.

कहीं ऐसा तो नहीं राज ठाकरे चाह रहे हों कि अब राहुल अब उनके डूबते तिनके को सहारा दें

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में यह पहली बार था, जब एक ही मंच से शिवसेना और राज ठाकरे ने कांग्रेस उपाध्यक्ष की खुलकर इतनी तारीफ की है. महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ शिवसेना के रिश्ते कैसे हैं ये बात किसी से छुपी नहीं हैं. राहुल गांधी की तारीफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की कार्यप्रणाली की बुराई जैसे विषयों पर सियासी पंडितों का मत है कि ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है कि महाराष्ट्र में भाजपा को कमजोर कर दिया जाए. और वहां शिवसेना या फिर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना दोबारा अपना प्रभुत्व स्थापित कर सके. देखा जाए तो राउत और राज ठाकरे दोनों का ये बयान इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये राज्य की सियासत में हो रही एक बड़ी हलचल की निशानदेही कर रहा है.

ज्ञात हो कि 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी के पास 122 सीटें और शिवसेना के पास 63 सीटें हैं. दूसरी ओर कांग्रेस के पास 42 और एनसीपी के पास 41 सीटें हैं. ऐसे में यदि कोई भी किसी को समर्थन कर देता है तो निश्चित तौर पर ये भाजपा के लिए मुसीबत का एक बड़ा सबब बन सकता है.

अंत में बस इतना ही कि राजनीति में जो जैसा दिखता है वो वैसा होता नहीं है. जरूरी नहीं कि जो तारीफें आज राहुल गांधी को मिल रही हैं वो निष्काम भावना से हैं. कहा जा सकता है कि अगर आज राहुल ने ये तारीफ ली है तो भविष्य में किसी न किसी मोड़ पर शिवसेना और राज ठाकरे दोनों अपना उधार चुकता कर ही लेंगे और तब शायद ऐसा न दिखे जो हमें आज दिख रहा है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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