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इंदिरा गांधी की 9 अनकही बातें

    • कावेरी बामज़ई
    • Updated: 17 जुलाई, 2017 08:48 PM
  • 17 जुलाई, 2017 08:48 PM
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1977 में हार के बाद सोनिया गांधी ही किचन संभाला करती थीं. एक सुबह संजय गांधी ने डाइनिंग टेबल से प्लेट उठाकर नीचे फेंक दिया क्योंकि सोनिया गांधी ने ब्रेकफास्ट के लिए अंडे वैसे नहीं उबाले जैसा वो चाहते थे.

देश में दो दशक तक राज करने वाली भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर एक नई किताब लिखी गई है. सागरिका घोष की किताब, इंदिरा, में उनके बारे में कई बातें की गई हैं. किताब को लिखने के पहले खुद सागरिका ने इंदिरा गांधी के बारे में मौजूद 80 के लगभग किताबों, आर्टिकल और इंटरव्यू का अध्ययन कर चुकीं हैं.

इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने के बारे में अभी तक कैथरीन फ्रैंक का नाम ही जाना जाता है जिन्होंने इंदिरा गांधी की सबसे अंतरंग बायोग्राफी लिखी थी. लेकिन सागरिका की ये किताब अब उन्हें टक्कर दे रही है. किताब में सागरिका ने इंदिरा के आनंद भवन में बीते बचपन के बारे में कई खुलासे किए. इसमें बताया गया है कि कैसे बचपन में इंदिरा गांधी एक टॉमब्वाय की तरह रहा करतीं थीं.

घोष बताती हैं: 'वो स्की, घुड़सवारी, तैरना, पहाड़ो पर चढ़ना सब कर सकती थीं, उन्हें कुत्तों से भी बेहद प्यार था. उनके पास हमेशा एक से अधिक कुत्ते रहा करते थे और पक्षियों पर नजर रखने वाली एक संस्था का नेतृत्व भी करती थी.'

इसमें से ज्यादातर काम वो इसलिए करती थी ताकि अपने पिता को गौरवान्वित करना चाहती थी. किताब के परिचय में लिखा है की वो इंदिरा को एक आशंकित बेटी, धोखा खाई हुई पत्नी, राष्ट्रीय नायिका और एक कठिन तानाशाह के रूप में देखती है. और ये किताब अपने वादों पर खरी भी उतरती है.

वो युवती जिसने 21 साल की उम्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी की अपनी पढ़ाई को छोड़ने का फैसला कर लिया था. इस वक्त तक इंदिरा गांधी की दोस्ती मोहन कुमारमंगलम और परमेश्वर नारायण हक्सर जैसे उग्र सुधारवादियों से हो गई थी. और इसके बाद वो एक दुर्जेय शासक बन गयी.

इस किताब में कई ऐसी चीजें हैं जो नई हैं. नटवर सिंह की बातें और विशेष रुप से मेनका गांधी से बातचीत. मेनका, 1977 की चुनावी हार के बाद परिवार के माहौल के बारे में बताती हैं. वो कहती हैं कि: '77 की हार के बाद परिवार के लोग और करीब आ गए. वो बैडमिंटन खेलती थीं. घूमने के लिए दूर-दूर तक...

देश में दो दशक तक राज करने वाली भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर एक नई किताब लिखी गई है. सागरिका घोष की किताब, इंदिरा, में उनके बारे में कई बातें की गई हैं. किताब को लिखने के पहले खुद सागरिका ने इंदिरा गांधी के बारे में मौजूद 80 के लगभग किताबों, आर्टिकल और इंटरव्यू का अध्ययन कर चुकीं हैं.

इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने के बारे में अभी तक कैथरीन फ्रैंक का नाम ही जाना जाता है जिन्होंने इंदिरा गांधी की सबसे अंतरंग बायोग्राफी लिखी थी. लेकिन सागरिका की ये किताब अब उन्हें टक्कर दे रही है. किताब में सागरिका ने इंदिरा के आनंद भवन में बीते बचपन के बारे में कई खुलासे किए. इसमें बताया गया है कि कैसे बचपन में इंदिरा गांधी एक टॉमब्वाय की तरह रहा करतीं थीं.

घोष बताती हैं: 'वो स्की, घुड़सवारी, तैरना, पहाड़ो पर चढ़ना सब कर सकती थीं, उन्हें कुत्तों से भी बेहद प्यार था. उनके पास हमेशा एक से अधिक कुत्ते रहा करते थे और पक्षियों पर नजर रखने वाली एक संस्था का नेतृत्व भी करती थी.'

इसमें से ज्यादातर काम वो इसलिए करती थी ताकि अपने पिता को गौरवान्वित करना चाहती थी. किताब के परिचय में लिखा है की वो इंदिरा को एक आशंकित बेटी, धोखा खाई हुई पत्नी, राष्ट्रीय नायिका और एक कठिन तानाशाह के रूप में देखती है. और ये किताब अपने वादों पर खरी भी उतरती है.

वो युवती जिसने 21 साल की उम्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के लिए ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी की अपनी पढ़ाई को छोड़ने का फैसला कर लिया था. इस वक्त तक इंदिरा गांधी की दोस्ती मोहन कुमारमंगलम और परमेश्वर नारायण हक्सर जैसे उग्र सुधारवादियों से हो गई थी. और इसके बाद वो एक दुर्जेय शासक बन गयी.

इस किताब में कई ऐसी चीजें हैं जो नई हैं. नटवर सिंह की बातें और विशेष रुप से मेनका गांधी से बातचीत. मेनका, 1977 की चुनावी हार के बाद परिवार के माहौल के बारे में बताती हैं. वो कहती हैं कि: '77 की हार के बाद परिवार के लोग और करीब आ गए. वो बैडमिंटन खेलती थीं. घूमने के लिए दूर-दूर तक जाती थीं. पूरा गांधी परिवार एकजुट हो गया क्योंकि पूरी कांग्रेस पार्टी ही गायब हो गयी थी. घर में पैसे बहुत कम थे. यहां तक की हमारे पास एक बावर्ची भी नहीं था.'

इंदिरा गांधी और कई अनसुनी बातें

यही नहीं इनके अलावा भी कई ऐसी बातें हैं जिसके बारे में बहुत से जानकार लोगों को भी जानकारी नहीं है. इस लिस्ट को देखें:

1) जब फिरोज और इंदिरा लंदन में थे और भारतीय खाना खाने के मूड में होते तो नारायण हक्सर उनके लिए खाना पकाया करते. वो बताते हैं कि इंदिरा बिल्कुल दुबली-पतली और पीली हो गई थीं लेकिन फिरोज के आते ही उनके चेहरे पर रौनक आ जाती थी. लेकिन इसके बाद फिरोज ने इंदिरा से भारत का प्रधानमंत्री और संजय गांधी की मां में से एक का चुनाव करने के लिए कहा.

2) आरएसएस से अपने विरोध को इंदिरा ने किसी से छुपा नहीं रखा था. यहां तक की उन्होंने कई अवसरों पर अपने हिंदू समर्थित कदमों के जरिए आरएसएस को मटियामेट करने की कोशिश की. ये कोशिश शायद तब शुरु हुई जब वो लखनऊ में थीं और फिरोज की पत्नी के रुप में रह रहीं थीं. अपने पिता को लिखे एक खत में उन्होंने लखनऊ की बेकार और थकी हुई जिंदगी का जिक्र किया था. 1946 में इंदिरा ने अपने खत में नेहरू जी को लिखा था- इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि यहां के लोग आरएसएस के ढोंगी फासीवाद के चक्कर में लोग फंस जाते हैं. वे लोग हजारों, लाखों लोगों को अपने साथ जोड़ रहे हैं. जर्मन मॉडल को फॉलो करके आरएसएस अपनी पकड़ लगातार मजबूत कर रहा है.

3) शुरुआत में इंदिरा गांधी सार्वजनिक मंचों से बोलने में हिचकती थीं. यहां तक की कई बार अपने भाषण के पहले उन्हें पेट खराब होने की दिक्कत भी हो जाती थी. जीवन भर इंदिरा गांधी के डॉक्टर रहे डॉक्टर माथुर बताते हैं कि 1969 में जब उनको बजट पेश करना था तो वो इतना डर गई थीं कि उनकी आवाज ही नहीं निकल रही थी. घोष कहती हैं कि- 'हो सकता है कि यही कारण हो जिसके कारण इंदिरा गांधी को अपने पिता और पति से उलट कभी भी संसदीय बहस पसंद नहीं आया.'

4) अक्सर वो दोस्तों को कविताएं लिखकर भेजा करती थीं.

5) अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने एक बार इंदिरा गांधी को ओल्ड बिच कहा था. ये बात तो सभी को पता है लेकिन ये किसी को नहीं पता कि आखिर इंदिरा गांधी उनके बारे में क्या सोचती हैं. घोष ने लिखा- एक राजकीय भोज में इंदिरा गांधी पूरे समय आंखें बंद करके बैठी रहीं. कारण बताया कि सरदर्द हो रहा है. लेकिन असल में ऐसा कुछ था नहीं. ये सिर्फ इंदिरा गांधी का एक लोगों से डील करने का तरीका था. ठीक वैसे ही जैसे कोई प्रोफेसर क्लास के नालायक बच्चे से व्यवहार करते हैं.

6) संजय गांधी के बुरे व्यवहार के कई उदाहरण रहे हैं. 1977 में हार के बाद सोनिया गांधी ही किचन संभाला करती थीं. एक सुबह संजय गांधी ने डाइनिंग टेबल से प्लेट उठाकर नीचे फेंक दिया क्योंकि सोनिया गांधी ने ब्रेकफास्ट के लिए अंडे वैसे नहीं उबाले जैसा वो चाहते थे.

7) वो बहुत ही धार्मिक और अंधविश्वासी महिला थीं, विशेष रूप से संजय की मौत के बाद तो धर्म के प्रति उनकी आस्था और बढ़ गई थी. लेकिन इसे स्वीकार करने में उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है. घर में उनके पूजा का कमरा सारे धर्मों का मिश्रण था. वहां यीशु मसीह, रामकृष्ण परमहंस, बुद्ध, एक शंख, दीये की थाली सब रखी होती थी. उनकी माँ ने रामकृष्ण मिशन में एक स्वामीजी से दीक्षा ले रखी थी और फिरोज की मृत्यु के बाद उन्होंने भी उनसे दीक्षा ले ली.

8) मिंक कोट और रेशम की साड़ी वाले अपने लुक में उन्होंने अपनी पूरब और पश्चिम के व्यक्तिगत पसंद को मिला दिया. एक तरफ जहां वो वोग मैगजिन में छपी अच्छी फोटो की तारीफ करती थीं तो वहीं दूसरी तरफ तड़क-भड़क वाले फोटो को नापसंद भी करती थीं. फैशन की तरह खाने में भी इंदिरा गांधी को पूरब और पश्चिम का मिश्रण बहुत पसंद था. अपनी एक बहू मेनका भीकू मानेकशॉ से कॉर्डन ब्लू बनाना सीखने के लिए भेजा तो वहीं दूसरी बहू सोनिया गांधी को हिंदुस्तानी सीखने के लिए भेजा. ये उनका सौंदर्यबोध ही था कि एक तरफ उन्हें राग-दरबारी भी भाता था तो दूसरी तरफ फिफ्थ सिंफनी भी पसंद था. बेथोवन उनका मन मोहते थे तो टैगोर दूसरी ही दुनिया में ले जाते थे. बर्फ पर स्कींग भी करती थीं तो आजमगढ़ में तारों की छांव में सोना भी खुब भाता था.   

9) उन्हें खत लिखना बहुत पसंद था. गिफ्ट के साथ नोट लिखना या फिर दोस्तों को लंबी-लंबी चिट्ठियां लिखना ये उनके शौक थे.

घोष पूरी किताब में इंदिरा गांधी को चिट्ठी लिख रही हैं, ताकि उन्हें अच्छे से समझ पाएं. उनके बारे में अभी भी कुछ है जो छूट रहा हैं? घोष सवाल करती हैं- वो सबसे करीब किसके थी? अपनी माँ? फिरोज? संजय? वास्तव में किसके साथ उन्होंने सबसे अच्छा महसूस किया? अभी भी नहीं पता है. वो एक विरोधाभासों से भरी महिला थीं. इसलिए ही मैंने उन्हें चिट्ठियां लिखीं क्योंकि उनके बारे में कई चीजें थी जिन्होंने मुझे हैरान किया. उदाहरण के लिए आखिर कैसे उनके जैसी चतुर महिला को ये नहीं दिखा कि वो जिस तरीके से संजय को बड़ा कर रही हैं उसका क्या प्रभाव पड़ेगा? या फिर भिंडरावाले जैसे कट्टरपंथ को बनाना और बाद में पूजा के स्थान में सेना भेजना? क्या वो इसका प्रभाव नहीं देख पा रहीं थीं? उन्हें जरुर पता होगा.

उनका विरोधाभासी व्यक्तित्व अभी भी मुझे हैरान करता है. कैसे एक मिनट पहले मीठा बोलने और गर्मजोशी से मिलने वाली महिला कैसे अगले ही मिनट एक अजनबी की तरह व्यवहार करने लगती है. किताब के जरिए मेरा उनसे एक लव-हेट वाला रिश्ता बन गया. कई बार मुझे लगा कि मैं उनसे बात कर रही हूं और सवाल पूछ रही हूं, जैसे कोई भूतों से बात कर रहा हो वैसे!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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