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2018 के 7 चुनाव जिनका असर 2019 में भी दिखेगा

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 26 दिसम्बर, 2018 09:52 PM
  • 26 दिसम्बर, 2018 09:51 PM
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2018 में पंचायत से लेकर कई विधानसभाओं के चुनाव हुए. कर्नाटक से लेकर कैराना तक कुछ चुनाव ऐसे जरूर रहे जिनका 2019 के आम चुनाव में प्रभाव साफ दौर पर देखा जा सकता है.

आम चुनाव से पहले का साल होने के कारण पूरा 2018 चुनावी मोड में नजर आया. देश को साल भर चुनावी मोड में रखने का क्रेडिट तो बीजेपी को मिलेगा, लेकिन नॉर्थ ईस्ट को छोड़ दें तो कांग्रेस भी हर जगह अपने तरीके से लगी जरूर रही.

बीजेपी ने त्रिपुरा में लाल झंडे को उतार कर भगवा लहराया, तो कांग्रेस ने साल बीतते बीतते एक ही झटके में तीन राज्यों से बीजेपी को बेदखल कर डाला. 2018 में पंचायत से लेकर कई विधानसभाओं के चुनाव हुए, जिनमें कुछ ऐसे भी रहे जिनका 2019 के आम चुनाव में असर निश्चित तौर पर देखने को मिल सकता है.

त्रिपुरा में बरसों बाद ढहा लेफ्ट का किला

त्रिपुरा में लेफ्ट के ढाई दशक में गहरे हो चुके लाल रंग पर भगवा चढ़ा देना बेहद मुश्किल काम था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व और आक्रामक चुनाव प्रचार. अमित शाह के चुनावी इंतजाम और अमलीजामा पहनाने के लिए डेरा डाले संघ और बीजेपी नेताओं का टीम वर्क. ऐन वक्त पर ट्रंप कार्ड के रूप में योगी आदित्यनाथ का इस्तेमाल बीजेपी ने त्रिपुरा में सरकार बना कर ही दम लिया.त्रिपुरा में माणिक सरकार के मुख्यमंत्री बनने के पहले से ही 1993 से लेफ्ट फ्रंट का शासन रहा. धीरे धीरे ऐसा लगने लगा था कि पश्चिम बंगाल और केरल की तरह त्रिपुरा भी लेफ्ट का किला बन चुका है. जिस तरह ममता बनर्जी ने बंगाल से लेफ्ट की विदाई के बाद ही सांस ली, बीजेपी ने भी त्रिपुरा में वैसा ही कर दिखाया.

जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा - 'जब सूरज डूबता है तो लाल और जब उगता है तो भगवा होता है.' अफसोस की बात ये रही कि आगे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. हां, त्रिपुरा के साथ साथ बीजेपी ने मेघालय और नगालैंड की सत्ता में हिस्सेदारी के इंतजाम जरूर कर लिये. मेघालय में बीजेपी 2 विधायकों के साथ सरकार में शामिल हो गयी, तो नगालैंड में एनडीपीपी के साथ गठबंधन कर सरकार बना लिया.

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में वोटिंग से ज्यादा हिंसा

बीजेपी ने त्रिपुरा में तो भगवा फहरा लिया लेकिन अमित शाह को अफसोस इस बात का है कि पश्चिम बंगाल...

आम चुनाव से पहले का साल होने के कारण पूरा 2018 चुनावी मोड में नजर आया. देश को साल भर चुनावी मोड में रखने का क्रेडिट तो बीजेपी को मिलेगा, लेकिन नॉर्थ ईस्ट को छोड़ दें तो कांग्रेस भी हर जगह अपने तरीके से लगी जरूर रही.

बीजेपी ने त्रिपुरा में लाल झंडे को उतार कर भगवा लहराया, तो कांग्रेस ने साल बीतते बीतते एक ही झटके में तीन राज्यों से बीजेपी को बेदखल कर डाला. 2018 में पंचायत से लेकर कई विधानसभाओं के चुनाव हुए, जिनमें कुछ ऐसे भी रहे जिनका 2019 के आम चुनाव में असर निश्चित तौर पर देखने को मिल सकता है.

त्रिपुरा में बरसों बाद ढहा लेफ्ट का किला

त्रिपुरा में लेफ्ट के ढाई दशक में गहरे हो चुके लाल रंग पर भगवा चढ़ा देना बेहद मुश्किल काम था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व और आक्रामक चुनाव प्रचार. अमित शाह के चुनावी इंतजाम और अमलीजामा पहनाने के लिए डेरा डाले संघ और बीजेपी नेताओं का टीम वर्क. ऐन वक्त पर ट्रंप कार्ड के रूप में योगी आदित्यनाथ का इस्तेमाल बीजेपी ने त्रिपुरा में सरकार बना कर ही दम लिया.त्रिपुरा में माणिक सरकार के मुख्यमंत्री बनने के पहले से ही 1993 से लेफ्ट फ्रंट का शासन रहा. धीरे धीरे ऐसा लगने लगा था कि पश्चिम बंगाल और केरल की तरह त्रिपुरा भी लेफ्ट का किला बन चुका है. जिस तरह ममता बनर्जी ने बंगाल से लेफ्ट की विदाई के बाद ही सांस ली, बीजेपी ने भी त्रिपुरा में वैसा ही कर दिखाया.

जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा - 'जब सूरज डूबता है तो लाल और जब उगता है तो भगवा होता है.' अफसोस की बात ये रही कि आगे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. हां, त्रिपुरा के साथ साथ बीजेपी ने मेघालय और नगालैंड की सत्ता में हिस्सेदारी के इंतजाम जरूर कर लिये. मेघालय में बीजेपी 2 विधायकों के साथ सरकार में शामिल हो गयी, तो नगालैंड में एनडीपीपी के साथ गठबंधन कर सरकार बना लिया.

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में वोटिंग से ज्यादा हिंसा

बीजेपी ने त्रिपुरा में तो भगवा फहरा लिया लेकिन अमित शाह को अफसोस इस बात का है कि पश्चिम बंगाल में पार्टी अब तक पांव नहीं जमा सकी है. लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के सहारे दिल्ली की सत्ता पर कब्जा जमाने वाली बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष इस बार खुद इतिहास दोहराना चाहते हैं. मगर, पश्चिम बंगाल में रथयात्रा पर अब भी तस्वीर साफ नहीं हो पायी है.

भारी हिंसा के बीच हुए पश्चिम बगाल पंचायत चुनाव

जब भी मौका मिलता है अमित शाह पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनावों में हुई हिंसा और उसके शिकार बीजेपी कार्यकर्ताओं को याद जरूर करते हैं. मई में हुए पंचायत चुनाव के दौरान हुई हिंसा में 12 लोगों की मौत हो गयी थी - और 50 से ज्यादा जख्मी हुए थे.

ग्राम पंचायत, जिला परिषद और पंचायत समिति की 58692 सीटों के लिये हुए चुनाव में सबसे बड़ी हैरानी की बात ये रही कि 20,159 सीटों पर चुनाव कराने की नौबत ही नहीं आयी.

बीजेपी और लेफ्ट दलों का इल्जाम रहा कि उनके उम्मीदवारों को नॉमिनेशन तक नहीं फाइल करने दिया गया. आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता नेताओं को तरह तरह से धमकाते रहे - नतीजा ये हुआ कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के 34 प्रतिशत प्रत्याशी निर्विरोध चुन लिये गये.

जम्मू कश्मीर में तो जैसे जम्हूरियत का मजाक ही उड़ा

पश्चिम बंगाल से भी बुरा हाल तो जम्मू-कश्मीर के निकाय चुनावों का रहा. जम्मू-कश्मीर में 13 साल बाद जब निकायों चुनाव होने को आये तो धारा 35A के नाम पर पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने पहले ही बहिष्कार कर दिया. महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और अब्दुल्ला परिवार की नेशनल कांफ्रेंस के बहिष्कार के बाद चुनाव मैदान में सिर्फ दो पार्टियां बची थीं - बीजेपी और कांग्रेस.

जम्मू-कश्मीर में तो चुनाव की रस्मअदायी हुई

आतंकवादियों की धमकी के बीच चार चरणों में हुए निकाय चुनाव के पहले दिन 8 अक्तूबर को कुल 84,000 मतदाताओं में से सिर्फ 8.2 फीसदी ही बूथों तक पहुंच पाये. दूसरे चरण में 3.3 फीसदी, तीसरे चरण में 3.49 फीसदी और चौथे चरण में 4 फीसदी वोट डाले गये. 200 से ज्यादा वार्डों में वोटिंग की नौबत ही नहीं आ पायी क्योंकि वहां सिर्फ एक-एक उम्मीदवार ने ही पर्चा भरा था - और वो निर्विरोध चुन लिया गया. जम्मू-कश्मीर के ही एक नेता ने तो इन चुनावों को जम्हूरियत का मजाक तक बताया था.

फूलपुर-गोरखपुर में बीजेपी को बड़ा झटका

2014 में पूर्ण बहुमत के साथ दिल्ली की गद्दी हासिल करने वाली बीजेपी ने 2017 में 14 साल के वनवास के बाद भारी बहुमत के साथ यूपी में सरकार बना ली. बीजेपी इस खुशी को लेकर ज्यादा दिन जश्न नहीं मना पायी.

योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से गोरखपुर और केशव मौर्या के डिप्टी सीएम बनने से फूलपुर में उपचुनाव कराये गये. इस चुनाव के लिए अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बीएसपी ने हाथ मिला लिया - और बीजेपी को दोनों ही सीटों से हाथ धोना पड़ा. बीएसपी के सपोर्ट से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों ने दोनों सीटों पर जीत हासिल की.

बीजेपी से कहीं ज्यादा ये यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए निजी तौर पर बड़ी हार रही - जिसकी वजह से सवाल खड़े होने लगे.

कर्नाटक में न कांग्रेस न बीजेपी

2017 में गुजरात बचाने और कांग्रेस के हाथ से हिमाचल प्रदेश हथियाने के बाद से ही बीजेपी की नजर कर्नाटक चुनावों पर थी. त्रिपुरा की जीत के जोश से लबालब बीजेपी नेता कर्नाटक पहुंचे और पूरी कोशिश की. बावजूद इसके बीजेपी बहुमत से दूर रही. बीजेपी ने सरकार बनाने की कोशिश तो की लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जुगाड़ ज्यादा देर तक नहीं टिक सका.

कर्नाटक में जेडीएस ने बनायी सरकार

कर्नाटक में जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी को समर्थन देकर कांग्रेस ने सत्ता में हिस्सेदारी बनाये रखा है. बड़ी बात ये नहीं, बल्कि कुमारस्वामी का शपथग्रहण समारोह विपक्ष के एकजुट होने का बेहतरीन मौका साबित हुआ - जिसका नमूना यूपी के कैराना उपचुनाव में भी देखने को मिला.

विपक्षी एकजुटता का नमूना बना कैराना

कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की सरकार बनवाने में मायावती का भी अहम रोल माना जाता है. मायावती की पहल पर ही पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और सोनिया गांधी की बातचीत हुई और गठबंधन तक बात पहुंची.

कैराना में विपक्ष ने कई तरह के प्रयोग किये. बीजेपी के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का एक ही उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरा. उम्मीदवार का चयन भी काफी दिलचस्प रहा. समाजवादी पार्टी की नेता को अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी ने टिकट दिया - और अखिलेश यादव के साथ साथ मायावती भी पीछे से डटी रहीं. कैराना में बीजेपी को लोक सभा सीटों पर हार की हैट्रिक के लिए मजबूर होना पड़ा.

साल के आखिर में कांग्रेस ने बीजेपी को दी शिकस्त

जाते जाते साल 2018 ने सबसे ज्यादा दर्द बीजेपी को ही दिये. पांच राज्यों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को तीन राज्यों में तो सत्ता ही गंवानी पड़ी. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने सरकार बना कर 2019 के लिए सारे समीकरण गड़बड़ कर दिया है.

राहुल गांधी की जोरदार दस्तक

तीन राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी ने गुजरात में जसदण उपचुनाव जीत कर राहत जरूर महसूस की होगी. लड़ाई में जी जान से तो कांग्रेस भी जुटी थी, लेकिन कांग्रेस के दांव से बीजेपी ने जीत अपनी झोली में डाल ली.

जसदण में ज्यादा अहम ये बात नहीं रही कि बीजेपी ने कांग्रेस से पहले नेता और उसके बाद विधानसभा सीट भी झटक ली. तीन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के कर्जमाफी के वादे की तरह बीजेपी ने जसदण में बिजली बिल माफ कर चुनावी प्रयोग किया - और नतीजे उसके पक्ष में रहे. बीजेपी ने बिजली बिल माफी की घोषणा भी वोटिंग के मजह दो दिन पहले की थी जिसके लिए उसे चुनाव आयोग का नोटिस भी मिला.

24 घंटे के अंतर पर उसी दौरान असम की बीजेपी सरकार ने किसानों के लिए कर्जमाफी की घोषणा की थी. और कुछ हो न हो, राफेल पर मची शोर के बीच चुनावी राजनीति में प्रमुख मुद्दा बनते किसानों ने इतना तो कर ही दिया है जिसका 2019 के आम चुनाव में असर होना ही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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