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Mob Lynching पर 49 सेलेब्रिटीज का पीएम को पत्र खुद चींख कर कह रहा है 'सब गोलमाल है!'

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 जुलाई, 2019 09:40 PM
  • 24 जुलाई, 2019 09:40 PM
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49 प्रमुख शख्सियतों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है और जैसा उस चिट्ठी का कंटेंट है साफ है कि इसमें गहरा विरोधाभास है ऐसा इसलिए क्योंकि पत्र को एक सेट नेरेटिव के तहत लिखा गया है.

सोशल मीडिया के इस दौर में आए रोज ट्विटर या फेसबुक पर कोई न कोई ऐसा वीडियो आ ही जाता है, जिसमें भीड़ किसी व्यक्ति को मारते हुई दिखाई देती है. चंद घंटों बाद खबर आती है कि फलां जगह पर भीड़ ने ली व्यक्ति की जान. इसके बाद शुरू होती है हिंदू मुस्लिम की राजनीति. तमाम प्रयास किये जाते है कि कैसे घटना को धार्मिक रंग दे दिया जाए? कैसे उसे धर्म के चश्मे से ही देखा जाए. क्योंकि एक प्रथा शुरू हो गई है हर चीज के लिए प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी तय कर देने की तो ऐसी घटनाएं भी देश के प्रधानमंत्री के सिर मढ़ दी जाती हैं. बात समझने के लिए हम उस चिट्ठी का रुख कर सकते हैं जिसे तकरीबन 49 लोगों द्वारा लिखा गया है और जिसमें लिंचिंग, मुसलमानों और जय श्री राम के नारे के अलावा अर्बन नक्सल जैसे टाइटल का जिक्र है. मीडिया की सुर्ख़ियों और इंटरनेट पर खूब वायरल हो रही इस चिट्ठी का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि ये चिट्ठी एक 'विशेष सोच' को ध्यान में रखकर लिखी गई है और इस चिट्ठी का कंटेंट ऐसा है जो तमाम तरह के विरोधाभासों को जन्म दे रहा है.

49 खास हस्तियों द्वारा लिखी चिट्ठी चर्चा का विषय बनी हुई है जिसने एक नए वाद को जन्म दे दिया है

बंगालियों ने अपनी परेशानी को देश की परेशानी बता दिया

कौशिक सेन, कोंकना सेनशर्मा, परमब्रता चट्टोपाध्याय, पर्था चटर्जी, रिद्धि सेन, रुपषा दासगुप्ता, सक्ती रॉय चौधरी, सामिक बनर्जी, शिवाजी बसु,  श्याम बेनेगल, सौमित्र चटर्जी, सुमन घोष, सुमित सरकार, तनिका सरकार, तपस रॉय चौधरी, अदिती बसु, अंजन दत्त, अनुपम रॉय, अपर्णा सेन, बैसाखी घोष, बिनायक सेन, बोलन गंगोपाध्याय, चित्रा सिरकार, देबल सेन, गौतम घोष, जोवा मित्रा ये वो नाम है जिन्होंने पीएम को लिखी चिट्ठी में अपना योगदान दिया है और बंगाली हैं. मामले में इनका बंगाली...

सोशल मीडिया के इस दौर में आए रोज ट्विटर या फेसबुक पर कोई न कोई ऐसा वीडियो आ ही जाता है, जिसमें भीड़ किसी व्यक्ति को मारते हुई दिखाई देती है. चंद घंटों बाद खबर आती है कि फलां जगह पर भीड़ ने ली व्यक्ति की जान. इसके बाद शुरू होती है हिंदू मुस्लिम की राजनीति. तमाम प्रयास किये जाते है कि कैसे घटना को धार्मिक रंग दे दिया जाए? कैसे उसे धर्म के चश्मे से ही देखा जाए. क्योंकि एक प्रथा शुरू हो गई है हर चीज के लिए प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी तय कर देने की तो ऐसी घटनाएं भी देश के प्रधानमंत्री के सिर मढ़ दी जाती हैं. बात समझने के लिए हम उस चिट्ठी का रुख कर सकते हैं जिसे तकरीबन 49 लोगों द्वारा लिखा गया है और जिसमें लिंचिंग, मुसलमानों और जय श्री राम के नारे के अलावा अर्बन नक्सल जैसे टाइटल का जिक्र है. मीडिया की सुर्ख़ियों और इंटरनेट पर खूब वायरल हो रही इस चिट्ठी का यदि अवलोकन किया जाए तो मिलता है कि ये चिट्ठी एक 'विशेष सोच' को ध्यान में रखकर लिखी गई है और इस चिट्ठी का कंटेंट ऐसा है जो तमाम तरह के विरोधाभासों को जन्म दे रहा है.

49 खास हस्तियों द्वारा लिखी चिट्ठी चर्चा का विषय बनी हुई है जिसने एक नए वाद को जन्म दे दिया है

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कौशिक सेन, कोंकना सेनशर्मा, परमब्रता चट्टोपाध्याय, पर्था चटर्जी, रिद्धि सेन, रुपषा दासगुप्ता, सक्ती रॉय चौधरी, सामिक बनर्जी, शिवाजी बसु,  श्याम बेनेगल, सौमित्र चटर्जी, सुमन घोष, सुमित सरकार, तनिका सरकार, तपस रॉय चौधरी, अदिती बसु, अंजन दत्त, अनुपम रॉय, अपर्णा सेन, बैसाखी घोष, बिनायक सेन, बोलन गंगोपाध्याय, चित्रा सिरकार, देबल सेन, गौतम घोष, जोवा मित्रा ये वो नाम है जिन्होंने पीएम को लिखी चिट्ठी में अपना योगदान दिया है और बंगाली हैं. मामले में इनका बंगाली होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि चिट्ठी में 'जय श्री राम' का जिक्र बड़ी ही प्रमुखता से किया गया है. बात वर्तमान परिदृश्य में बंगाल की राजनीति की हो तो इस नारे में वहां की राजनीति में जबरदस्त सियासी घमासान मचाया हुआ है और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसके खिलाफ हैं. कह सकते हैं कि उपरोक्त सभी लोग राज्य की मुखिया की छत्र छाया में रहना चाहते थे इसलिए भी इनके द्वारा इस मुद्दे को लाना और इसे उठाना जरूरी था. हमें ध्यान ये भी देना होगा कि अपने निजी स्वार्थ और राजनीतिक संरक्षण के लिए बंगाल के मुद्दे को देश पर थोपा गया है.

डिअर सेलेब्रिटीज लिंचिंग की जिम्मेदारी मोदी की नहीं राज्य की है

चिट्ठी को यदि ध्यान से देखा जाए तो मिलता है कि इसमें मुसलमानों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हुई लिंचिंग का जिक्र करते हुए NCRB के एक डाटा का हवाला दिया गया है. चिट्ठी में बताया गया है कि साल 2016 में दलितों के साथ 840 मामले हुए साथ ही इसमें 1 जनवरी 2009 से 29 अक्टूबर 2018 में हुए उन 254 मामलों का भी जिक्र है जो धार्मिक आधार पर हुए. चिट्ठी में कहा गया है कि इस बीच 91 लोगों को मारा गया जबकि 579 लोगों को घायल किया गया और इनमें से 90 प्रतिशत मामले 2014 में पीएम मोदी की सरकार आने के बाद हुए.

दिलचस्प बात ये है कि आरोप लगाने के चिट्ठी में तमाम आंकड़ों और ख़बरों का भी हवाला दिया गया है. चिट्टी में देश के प्रधानमंत्री से सवाल पूछा गया है कि उन्होंने लिंचिंग की इन वारदातों के लिए क्या किया ? ऐसे कौन से कठोर कदम थे जो इस दिशा के लिए उठाए गए ? पीएम को लिखे अपने पत्र में 49 लोगों ने कहा है कि पीएम ने लिंचिंग को लेकर संसद में सख्ती दिखाई थी और दोषियों को सजा देने की बात की थी. पत्र लिखने वाले लोगों ने इस विषय पर चिंता जाहिर की है कि लिंचिंग करने वाले लोगों पर सख्त एक्शन लिया जाये और इनकी जमानत न हो.

पत्र लिखने वाले लोगों की मांग सही है मगर उन्हें हम ये जरूर बताना चाहेंगे कि ये केंद्र का काम नहीं है और ये जिम्मेदारी राज्यों की है और क्योंकि इस चिट्ठी में राज्यों का जिक्र नहीं है तो साफ है कि इस पत्र के कंटेंट में तमाम तरह के विरोधाभास हैं.

बाक़ी बात राज्यों कि चल रही है तो हमारे लिए ये बताना भी बेहद जरूरी है कि अभी बीते दिनों ही उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने बताया था कि जय श्री राम के नारे के अंतर्गत जो मामले दर्ज कराए गए थे वो झूठे थे. जिन लोगों के साथ भी वारदात को अंजाम दिया गया उनके ऊपर हुए हमले का कारण जय श्री राम का नारा नहीं बल्कि आपसी रंजिशें थीं.

जय श्री राम के नारे का जिक्र

इस चिट्ठी में जय श्री राम के नारे का जिक्र किया गया है और पहले ही पॉइंट में हम इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि इसका इस्तेमाल क्यों हुआ. साफ है इस नारे को बदनाम करके लोग न सिर्फ अपने अपने राजनीति हित साध रहे हैं बल्कि अपने आपको अलग करने का प्रयत्न भी कर रहे हैं. पत्र लिखने वाले लोग जानते हैं कि जय श्री राम का नारा इन दिनों ट्रेंड में है और यदि वो अपने पत्र में इसे डालते हैं तो लाइमलाइट और चर्चा इन्हें दोगुनी गति से मिलेगी और ये लोग टीवी और सोशल मीडिया पर छाए रहेंगे.

बोलने की आजादी का मतलब कुछ भी बोल देना नहीं है.

देश के प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाले इन 49 लोगों को सोचना होगा कि आर्टिकल 19 का इस्तेमाल करते हुए  बोलने की आजादी का मतलब कुछ भी बिल देना नहीं है. बात सही है. एक स्वस्थ लोकतंत्र वही है जहां हम खुलकर अपनी बात कह सकें. मगर जैसा आज का माहौल है एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसने सारी हदें पार कर दी हैं. सरकार की आलोचना के नाम पर ये लोग ऐसा बहुत कुछ कह रहे हैं जो पूरी दुनिया में भारत की जग हंसाई का कारण बन रहा है.

पत्र लिखने वाले लोगों को ये भी ध्यान रखना होगा कि एंटी नेशनल या अर्बन नक्सल उन्हें किसी विरोध में नहीं कहा जा रहा मगर जो उनका चीजों के प्रति रुख है वो ये साफ कर दे रहा है कि खोट उनकी विचारधारा में है.

प्रधानमंत्री को भेजी गई इस चिट्ठी में खास बात ये भी है इस पत्र में जिस तरह का नेरेटिव सेट किया गया है उसपर ये लोग अड़े हुए हैं. यदि ये 49 लोग जय श्री राम के नारे को हिंसा का कारण मानते हैं तो इन्हें अल्लाह हू अकबर के उस नारे को भी ध्यान में रखना होगा जिसका इस्तेमाल करते हुए वर्ग लगातार हिंसक गतिविधियों का अंजाम दे रहा है. यदि ये 49 लोग जय श्री राम की जगह अपनी चिट्ठी में 'धार्मिक नारों' का इस्तेमाल करते तो इनकी मुहीम सही मानी जाती मगर जैसे इन्होंने अपने स्वार्थ के लिए तमाम तरह की बेबुनियाद बातें कहीं हैं उन्होंने नफरत की आग में केवल और केवल खर डालने का काम किया है.

अंत में बस इतना ही कि पीएम को लिखा इन 49 लोगों का ये पत्र तमाम खामियों से भरा है और इसने एक ऐसे वाद को जन्म दे दिया है जो साफ तौर पर देश की अखंडता, एकता और भाईचारे को प्रभावित करता नजर आ रहा है. कह सकते हैं कि पत्र के बाद इन लोगों को घर बैठे लाइमलाइट हासिल हो चुकी है मगर इनके लिखे पत्र ने पूरी तरह देश के माहौल और उसकी शांति को प्रभावित कर रंग में भंग डालने का मकाम किया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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