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चुनावी नतीजे 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले की दस्तक हैं!

    • सरिता निर्झरा
    • Updated: 11 मार्च, 2022 12:22 PM
  • 11 मार्च, 2022 12:22 PM
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Election Results: ये समय भारत में बदलाव का है. बदलाव कई स्तरों पर हो रहा है. अब इस बदलाव का असर देश पर क्या कितना और कब दृश्य होगा ये नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये बदलाव् भी सालों साल का नतीजा होता है.अच्छा या बुरा ये आने वाला समय बताएगा.

Election Results: महीनों की उठा पटक के बाद आखिर आ ही गया है रिज़ल्ट का दिन. शुरूआती रुझानों के साथ ही एग्जिट पोल भी कई हद तक सही साबित होता नज़र आया. चुनाव मात्र किसी पार्टी के विचारों की जीत नहीं होती बल्कि चुनाव एक देश के नागरिकों की सोच की झलक होती है. इसी सोच को अपने हक में लाने लुभाने बहलाने का काम होता है चुनाव से पहले होने वाली रैलियों, उद्घाटनों और योजनाओं की घोषणा में.

तो तमाशा भरपूर हुआ

रैली की भीड़ से ले कर घर घर जा कर कन्वेसिंग, योजना की घोषणा से ले कर उद्घाटन सब हुआ. अब परिणाम भी आ गया. परिणाम वही है जिसका अंदेशा था - चाहे आपने चाहा हो या न.

भाजपा की प्रचंड जीत के बाद जश्न मनाते कार्यकर्ता

बीजेपी वापस आई उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में. जोर शोर से उनकी वापसी आगे आने वाले लोकसभा चुनाव की झलक दे रही है और पंजाब में आये 'आप' कांग्रेस पूरी तरह से मिटने की स्थिति में है और उत्तरप्रदेश में सपा भी सिमटी हुई नज़र आई.

ये समय भारत में बदलाव का है. बदलाव कई स्तरों पर हो रहा है. अब इस बदलाव का असर देश पर क्या कितना और कब दृश्य होगा ये नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये बदलाव् भी सालों साल का नतीजा होता है. अच्छा या बुरा ये आने वाला समय बताएगा.

चुनाव से हुई कुछ बातें साफ़

यूं तो इस चुनाव के परिणाम की झलक महीनो पहले से नज़र आ रही थी. देखने वाली नज़रों को बहुत कुछ दिख रहा था. कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी होने से शुरू हुई और आज किसी क्षेत्रीय पार्टी से भी बुरी स्तिथि में है. ज़ाहिर बात है शीर्ष पर बैठे नेता न देश की नब्ज़ समझ पा रहे है न ही समस्याएं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के अनुभव को हटा कर 'गुरु घंटाल' को ले कर आना पिछले महीनो की सबसे बड़ी भूल और इसका खामियाज़ा साफ नज़र आया....

Election Results: महीनों की उठा पटक के बाद आखिर आ ही गया है रिज़ल्ट का दिन. शुरूआती रुझानों के साथ ही एग्जिट पोल भी कई हद तक सही साबित होता नज़र आया. चुनाव मात्र किसी पार्टी के विचारों की जीत नहीं होती बल्कि चुनाव एक देश के नागरिकों की सोच की झलक होती है. इसी सोच को अपने हक में लाने लुभाने बहलाने का काम होता है चुनाव से पहले होने वाली रैलियों, उद्घाटनों और योजनाओं की घोषणा में.

तो तमाशा भरपूर हुआ

रैली की भीड़ से ले कर घर घर जा कर कन्वेसिंग, योजना की घोषणा से ले कर उद्घाटन सब हुआ. अब परिणाम भी आ गया. परिणाम वही है जिसका अंदेशा था - चाहे आपने चाहा हो या न.

भाजपा की प्रचंड जीत के बाद जश्न मनाते कार्यकर्ता

बीजेपी वापस आई उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में. जोर शोर से उनकी वापसी आगे आने वाले लोकसभा चुनाव की झलक दे रही है और पंजाब में आये 'आप' कांग्रेस पूरी तरह से मिटने की स्थिति में है और उत्तरप्रदेश में सपा भी सिमटी हुई नज़र आई.

ये समय भारत में बदलाव का है. बदलाव कई स्तरों पर हो रहा है. अब इस बदलाव का असर देश पर क्या कितना और कब दृश्य होगा ये नहीं कहा जा सकता क्योंकि ये बदलाव् भी सालों साल का नतीजा होता है. अच्छा या बुरा ये आने वाला समय बताएगा.

चुनाव से हुई कुछ बातें साफ़

यूं तो इस चुनाव के परिणाम की झलक महीनो पहले से नज़र आ रही थी. देखने वाली नज़रों को बहुत कुछ दिख रहा था. कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी होने से शुरू हुई और आज किसी क्षेत्रीय पार्टी से भी बुरी स्तिथि में है. ज़ाहिर बात है शीर्ष पर बैठे नेता न देश की नब्ज़ समझ पा रहे है न ही समस्याएं.

कैप्टन अमरिंदर सिंह के अनुभव को हटा कर 'गुरु घंटाल' को ले कर आना पिछले महीनो की सबसे बड़ी भूल और इसका खामियाज़ा साफ नज़र आया. थाली के बैगनों का भरता बन गया ये भी देख लिया हमने. स्वामी प्रसाद मौर्य ,बृजेश प्रजापति ऐसे नाम खामखां हुए बदनाम !

कछुए की चाल से चल रहे हैं अरविन्द केजरीवाल लेकिन स्लो न स्टेडी विन्स द रेस ये कहानी चरित्राथ हुई. ;हालांकि सरकार हटाना आसान है लेकिन सरकार को बरकरार रखना मुश्किल. और इसे कर दिखाया - नन अदर दैन द जोड़ी नंबर वन !

किसान बिल के हंगामे का असर पंजाब में बीजेपी के परिणाम पर ज़रूर नज़र आया. हालाँकि किसान क्या केवल पंजाब में है इस पर चर्चा और बहस फिर होगी. वही 'आप', ने दिल्ली में विकास मॉडल को पिच किया जिसे लोगों ने हाथों हाथ ले लिया ! शिक्षा और स्वस्थ के इस मॉडल को समझना ज़रूरी है और आज की ज़रूरत भी.

परिवारवाद के नाम पर वोट मिलने की उम्मीद भी टूटी है. बादल परिवार हो या यादव परिवार - सभी नकारे गए है. सभी जिन्होंने केवल परिवार के सरनेम को अपना तमगा बनाया उन्हें आड़े हाथो लिया गया. अपराधियों का नकार देना यकीनन नागरिको की जीत है. खासतौर पर मुकदमे के साथ जेल से या डंके की चोट पर खुद को बाहुबली कहने वाले पीछे रहे ये एक अच्छा संकेत है.

महिलाओं के वोट का बड़ा हाथ रहा है इसे नकारा नहीं जा सकता. चुनाव के समय केवल परिवार की 'बहू' बड़ी या छोटी केवल इतने में में ही महिलाएं सिमटना नहीं चाहती न ही इस पर अपना वोट डालने को तैयार है. कहीं न कहीं सुरक्षा का मुद्दा अहम रहा. हालांकि निचली सतह पर काम बाकि है लेकिन कुछ शुरुआत हुई है और इसका स्वागत भी हुआ है. लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा अच्छा था लेकिन देर से आया. अगले पांच साल लग कर काम करें तो शायद

राम मंदिर और धर्म का मुद्दा सबसे ऊपर और इसका असर सबसे गहरा रहा इसे नाकारा नहीं जा सकता. राममंदिर को अयोध्या के विकास से जोड़ना और सड़कों और शहर की नई प्लानिंग उसे मंदिर के साथ रिलिजियस टूरिज़्म के तौर पर स्थापित कर रही है. ये युवाओं को भी लुभाएगा.

वहीं योगी की बुलडोज़र निति का दमखम बखूबी नज़र आया. फ़िल्मी कहानी की तरह बाहुबलियों के घर को ज़मींदोज़ देखना लोगो को अच्छा लग रहा है. डबल इंजन की सरकार का नारा लोगो को दोहरी उम्मीद दे रही थी. एंटी इंकम्बेंसी की हवा ज़रूर थी लेकिन इसको सोशल मिडिया के ज़रिये काफी हद तक लीपने की कोशिश की गई.

गाने बजाने एड इंटरव्यू सब पैंतरे. द आई टी एंड टेक सेल हैज़ डन वंडरफुल. कुल मिलकर स्तिथि साफ़ है. फ़िलहाल भारत उस दौर में है जहां आपके पास कोई विकल्प नहीं है. आप चाहे तो यही और न चाहे तो यही ! हालांकि ये स्तिथि डेमोक्रेसी के लिए अच्छी नहीं पर अब तो चुनाव हो गए हैं और धुआंधार जीत के जश्न की शुरूआत हो चुकी है.

एन्ड नॉट टू फॉरगेट व्हाट्सप्प, फेसबुक डिजिटल रैली- इन टूल्स का योगदान एंड लास्टली द गॉडली (गोद ली) मिडिया - हर पॉपुलर चैनल (हिन्दी खासतौर पर) चुनावी खबरे नहीं बल्कि शुरूआत से ही 'बाबा की पार्टी' की वापसी की खबर दे रही थी.

'बाबा की पार्टी'! ये क्या लिख डाले !

कहीं ये 2024 की दस्तक तो नहीं !!

खैर होईहें वही जो राम रची राखा !

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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