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1971 Indo-Pak war, जिसने 'नियाजी' को पाकिस्तान में बना दिया गाली!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 17 दिसम्बर, 2021 12:05 PM
  • 17 दिसम्बर, 2021 11:53 AM
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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) का भी पूरा नाम इमरान नियाजी खान है. लेकिन, उन्होंने हंसी का पात्र बनने से बचने के लिए अपने नाम से नियाजी (Niazi) हटा लिया.

क्या आपको पता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय भारतीय सेना के चीफ कौन थे? क्या चीन के साथ युद्ध हारने के बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को हंसी का पात्र बनाने के लिए उनके नाम के साथ किसी तरह का कोई 'विशेषण' जोड़ा गया? जवाब बहुत आसान है कि नहीं. भारत में जवाहर लाल नेहरू की चीन के साथ संबंध बनाने की नीतियों की आलोचना जरूर की जाती है. क्योंकि, इसकी वजह से चीन ने भारत की संप्रभुता पर एक बड़ा हमला किया था. जो आज भी देश के लिए नासूर बना हुआ है. लेकिन, जवाहर लाल नेहरू या भारतीय सेना के अध्यक्ष को 1962 की लड़ाई में हार के बाद भारत ने हंसी का पात्र नहीं बनाया. वहीं, 1971 के भारत और पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश की आजादी के लिए हुए युद्ध के बाद पाक में 'नियाजी' एक गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा. भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण करने वाले जनरल नियाजी के नाम को पाकिस्तान में हंसी का पात्र बना दिया गया. अफगानिस्तान से सटे सीमांत इलाकों में रहने वाला एक पश्तो कबीला है नियाजी. लेकिन, अब हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान में इस कबीले के लोगों ने अपने नाम से नियाजी उपनाम हटा लिया है. इमरान खान भी उन्हीं में से हैं. आइए जानते हैं पाकिस्तान में 'नियाजी' को क्यों बना दिया गया गाली?

कांपते हाथों से जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण के कागजों पर दस्तखत किए और रोने लगे.

भारतीय सेना के आगे जनरल नियाजी का आत्मसमर्पण

बांग्लादेश की आजादी के लिए 6 सूत्रीय कार्यक्रम रखने वाले शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में लोगों ने आंदोलन करना शुरू कर दिया था. पाकिस्तान ने इन अलगाववादी नेताओं की बगावत को दबाने के लिए इन पर मुकदमा चलाया. लेकिन, पाकिस्तान का ये दांव उलटा पड़ गया. इसकी वजह से शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश यानी पूर्वी पाकिस्तान में हीरो...

क्या आपको पता है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय भारतीय सेना के चीफ कौन थे? क्या चीन के साथ युद्ध हारने के बाद भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को हंसी का पात्र बनाने के लिए उनके नाम के साथ किसी तरह का कोई 'विशेषण' जोड़ा गया? जवाब बहुत आसान है कि नहीं. भारत में जवाहर लाल नेहरू की चीन के साथ संबंध बनाने की नीतियों की आलोचना जरूर की जाती है. क्योंकि, इसकी वजह से चीन ने भारत की संप्रभुता पर एक बड़ा हमला किया था. जो आज भी देश के लिए नासूर बना हुआ है. लेकिन, जवाहर लाल नेहरू या भारतीय सेना के अध्यक्ष को 1962 की लड़ाई में हार के बाद भारत ने हंसी का पात्र नहीं बनाया. वहीं, 1971 के भारत और पाकिस्तान के बीच बांग्लादेश की आजादी के लिए हुए युद्ध के बाद पाक में 'नियाजी' एक गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा. भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण करने वाले जनरल नियाजी के नाम को पाकिस्तान में हंसी का पात्र बना दिया गया. अफगानिस्तान से सटे सीमांत इलाकों में रहने वाला एक पश्तो कबीला है नियाजी. लेकिन, अब हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान में इस कबीले के लोगों ने अपने नाम से नियाजी उपनाम हटा लिया है. इमरान खान भी उन्हीं में से हैं. आइए जानते हैं पाकिस्तान में 'नियाजी' को क्यों बना दिया गया गाली?

कांपते हाथों से जनरल नियाजी ने आत्मसमर्पण के कागजों पर दस्तखत किए और रोने लगे.

भारतीय सेना के आगे जनरल नियाजी का आत्मसमर्पण

बांग्लादेश की आजादी के लिए 6 सूत्रीय कार्यक्रम रखने वाले शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में लोगों ने आंदोलन करना शुरू कर दिया था. पाकिस्तान ने इन अलगाववादी नेताओं की बगावत को दबाने के लिए इन पर मुकदमा चलाया. लेकिन, पाकिस्तान का ये दांव उलटा पड़ गया. इसकी वजह से शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश यानी पूर्वी पाकिस्तान में हीरो बन गए. स्थिति को संभालने के लिए शेख मुजीबुर रहमान और अन्य नेताओं के ऊपर से मुकदमा वापस ले लिया गया. लेकिन, 1970 में हुए चुनाव में शेख मुजीबुर रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान की 169 में 167 सीटें जीतकर पाकिस्तानी संसद में सरकार बनाने की ताकत हासिल कर ली. जो पाकिस्तान को पसंद नहीं आई. इससे पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह छिड़ गया. जिसे कुचलने के लिए पाकिस्तान ने जनरल आमिर अब्दुल खान नियाजी के हाथ में पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश की कमान सौंप दी. पाकिस्तानी सेना ने बांग्लादेश के लोगों पर जुल्मों की बारिश कर दी. इतना ही नहीं, जनरल आमिर अब्दुल खान नियाजी यानी जनरल नियाजी ने अति उत्साह में भारत को भी ललकारना शुरू कर दिया था.

1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा था, तो उससे पहले कराची से एक अमेरिकी महिला पत्रकार ने जनरल नियाजी के बारे में लिखा था कि 'जब टाइगर नियाजी के टैंक गरजेंगे, तो भारतीय अपनी जान बचाने के लिए भागते फिरेंगे.' दरअसल, जनरल नियाजी को पाकिस्तान की ओर से आश्वास्त किया गया था कि अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई देश उनके साथ हैं. आत्मसमर्पण करने से पहले तक जनरल नियाजी को भरोसा था कि गोरे दोस्त यानी अमेरिकी और पीले दोस्त यानी चीनी सैनिक पाकिस्तानी सेना की मदद को आएंगे. लेकिन, भारत ने उकसावे की कार्रवाई का बदला लेते हुए पाकिस्तान के ही दो टुकड़े कर डाले थे. हालात ऐसे बन गए थे कि 13 दिनों के अंदर ही जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के आगे आत्मसमर्पण कर दिया. कांपते हाथों से आत्मसमर्पण के दस्तावेज पर दस्तखत करने के बाद अपनी गन सरेंडर करते ही जनरल नियाजी फफक-फफककर रोने लगे थे. जनरल नियाजी के आत्मसमर्पण करने के बाद पाकिस्तान में नियाजी को एक गाली के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा.

इमरान खान भी हैं 'नियाजी', लेकिन नाम में नहीं लिखते

2019 में जब भारत ने कश्‍मीर से आर्टिकल 370 हटाई थी, तब पहली बार यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेंबली (NGA) में इमरान खान को उनके असली नाम इमरान नियाजी खान कहकर पुकारा गया था. हालांकि, 1971 के बाद से ही पाकिस्तान में लोगों ने नियाजी शब्द को अपने नाम से हटा लिया था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी जनरल नियाजी के ही खानदान से आते हैं. लेकिन, 1971 के युद्ध के बाद नियाजी को एक गाली के तौर पर इस्तेमाल किए जाने से लोगों को इसे अपने नाम से हटाने के लिए मजबूर होना पड़ा. पाकिस्तान के क्रिकेटर मिसबाह-उल-हक भी नियाजी हैं. आज भी पाकिस्तान के विपक्षी नेताओं द्वारा इमरान खान को चिढ़ाने के लिए उनके असली नाम नियाजी के नाम से संबोधित किया जाता है.

1971 का युद्ध और बांग्लादेश बनने की कहानी

1971 में पाकिस्तान को भारत ने वो जख्म दिया था, जो आज तक हरा है. पूर्वी पाकिस्तान के तौर पर जाना जाने वाला बांग्लादेश इसी साल एक स्वतंत्र देश बना था. और, इसके लिए पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश को भारत की ओर से हर तरीके से समर्थन दिय गया था. 3 दिसंबर, 1971 को भारत और पाकिस्तान की सेना के बीच शुरू हुई ये जंग केवल 13 दिनों में ही खत्म हो गई थी. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस युद्ध में अपने फैसलों से पाकिस्तान का साथ दे रहे अमेरिका और ब्रिटेन को घुटनों पर ला दिया था. दरअसल, पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे शेख मुजीबुर रहमान पाकिस्तान के लिए आंख की किरकिरी बन चुके थे. पाकिस्तान ने इन नेताओं पर अलगाववादी आंदोलन चलाने के लिए मुकदमा किया. लेकिन, इससे शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश में लोगों के बीच हीरो बन गए. पाकिस्तान ने चाल उलटी पड़ती देख शेख मुजीबुर रहमान और अन्य नेताओं के ऊपर से मुकदमा वापस ले लिया. वहीं, 1970 में हुए चुनाव में शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी ने शानदार जीत हासिल करते हुए पूर्वी पाकिस्तान की 169 से 167 सीटों पर कब्जा कर लिया.

167 सीटों के सहारे 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीबुर रहमान सरकार बनाने की स्थिति में आ गए थे. लेकिन, पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं और सैन्य शासन को यह किसी भी हाल में मंजूर नहीं था. इसी के चलते पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह की आग भड़क गई. पाकिस्तान ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए सेना को 'फ्री हैंड' दे दिया. पाकिस्तानी सेना ने आंदोलन कर रहे लोगों पर अत्याचार की हदों को पार कर दिया. मार्च, 1971 में इन अत्याचारों को हत्या और बलात्कार जैसी नई ऊंचाईयों तक पहुंचा दिया गया. मुजीबुर रहमान की गिरफ्तारी के बाद बड़ी संख्या लोग पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत आने लगे. आंकड़ों की मानें, तो भारत में कुछ ही महीनों में बांग्लादेश से करीब 1 करोड़ शरणार्थी भागकर आ गए थे. मानवाधिकार पर अपने पड़ोसी मुल्क द्वारा की जा गई सबसे बड़ी चोट पर भारत की ओर से कार्रवाई होना तय हो गया था. कहा जाता है कि भारत की खुफिया एजेंसी रॉ ने सरकार के आदेश पर बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ रही मुक्तिवाहिनी (पूर्वी पाकिस्तान की सेना और नागरिक) की मदद की.

इस दौरान अक्टूबर-नवंबर, 1971 में इंदिरा गांधी ने दुनियाभर के समकक्षों से पूर्वी पाकिस्तान की समस्या को लेकर मुलाकात की. यहां तक कि इंदिरा गांधी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को ये भी इशारा कर दिया था कि अगर पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ उकसावे की कार्रवाई की, तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा. बताना जरूरी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन पश्चिमी पाकिस्तान को समय दिए जाने की मांग कर रहे थे. और, आखिरकार 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी की सेना ने भारत पर हवाई हमला किया. जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ. जिसके 13 दिनों के भीतर ही भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को घुटनों पर ला दिया. 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया. इस दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के करीब 93000 सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था. हालांकि, शिमला समझौता होने पर उन्हें छोड़ दिया गया.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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