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गांधी जी की नजर में नोटबंदी !

    • डीपी पुंज
    • Updated: 09 दिसम्बर, 2016 06:48 PM
  • 09 दिसम्बर, 2016 06:48 PM
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क्या होता अगर गांधी आज होते तो? देश के हालात देखकर अगर गांधी वापस भारत में आ जाएं तो क्या होगा. कुछ ऐसा ही हुआ लेखक के साथ जब गांधी ने नोटबंदी पर उनसे बात की.

रात को खाने के बाद सैर को निकला था. मैं रोड पर चल रहा था और दिमाग में देश के हालात चल रहे थे. सोचा था बाहर शुद्ध हवा खाऊंगा पर देश के दूषित हवा में सांस अटक रही थी.

देश की आबोहवा इतनी पहले कभी खराब नहीं हुई थी. अविश्वास द्वेष और घृणा से देश की सेहत खराब होती जा रही है. इस वेदना को महसूस करते हुए मैं आबादी के क्षेत्र से आगे निकल आया था सुनसान इलाके में. मैं अंदर से बहुत दुखी और व्यथित था. मैं एक टीले पर जा बैठा और आसमान की ओर देखने लगा. बहुत देर तक आसमान को निहारता रहा. फिर मुझे मंगल ग्रह और मंगलयान याद आ गए. सोचने लगा कि आज अगर मंगलयान की सफलता देश को मौजूदा हलात में मिली होती तो इस पर भी न जाने कितने राजनीति होती. इसमें कुछ लोगों को घोटाले नजर आने लगते तो किसी को मंगलयान में फालतू के निवेश नजर आने लगते, तो कुछ लोग संसद नहीं चलने देते. ना जाने क्या-क्या होता.

 नरेंद्र मोदी- फाइल फोटो

मैं इतना सोच कर दुखी हो ही रहा था कि मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा. देखा तो एक बुजुर्ग व्यक्ति सफ़ेद धोती में मेरे ठीक बगल में बैठे थे. अंधेरे में उनका चेहरा ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन उनके आत्मीयता भरे स्पर्श से अहसास हुआ की ये गांधी जी हैं.

ये भी पढ़ें- महान संत श्री श्री विजय माल्यम !

मैंने उनसे पूछा कि क्या बोलकर आपका अभिनंदन करूं. गाँधी जी ने कहा तुम कुछ भी बोल दो, चलेगा_ देश में तो सब कुछ चल रहा है मैं कंफ्यूज था, क्या कह के उनका आदर करूं. गांधी जी ने मेरे कंधे पर दुबारा हाथ...

रात को खाने के बाद सैर को निकला था. मैं रोड पर चल रहा था और दिमाग में देश के हालात चल रहे थे. सोचा था बाहर शुद्ध हवा खाऊंगा पर देश के दूषित हवा में सांस अटक रही थी.

देश की आबोहवा इतनी पहले कभी खराब नहीं हुई थी. अविश्वास द्वेष और घृणा से देश की सेहत खराब होती जा रही है. इस वेदना को महसूस करते हुए मैं आबादी के क्षेत्र से आगे निकल आया था सुनसान इलाके में. मैं अंदर से बहुत दुखी और व्यथित था. मैं एक टीले पर जा बैठा और आसमान की ओर देखने लगा. बहुत देर तक आसमान को निहारता रहा. फिर मुझे मंगल ग्रह और मंगलयान याद आ गए. सोचने लगा कि आज अगर मंगलयान की सफलता देश को मौजूदा हलात में मिली होती तो इस पर भी न जाने कितने राजनीति होती. इसमें कुछ लोगों को घोटाले नजर आने लगते तो किसी को मंगलयान में फालतू के निवेश नजर आने लगते, तो कुछ लोग संसद नहीं चलने देते. ना जाने क्या-क्या होता.

 नरेंद्र मोदी- फाइल फोटो

मैं इतना सोच कर दुखी हो ही रहा था कि मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा. देखा तो एक बुजुर्ग व्यक्ति सफ़ेद धोती में मेरे ठीक बगल में बैठे थे. अंधेरे में उनका चेहरा ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन उनके आत्मीयता भरे स्पर्श से अहसास हुआ की ये गांधी जी हैं.

ये भी पढ़ें- महान संत श्री श्री विजय माल्यम !

मैंने उनसे पूछा कि क्या बोलकर आपका अभिनंदन करूं. गाँधी जी ने कहा तुम कुछ भी बोल दो, चलेगा_ देश में तो सब कुछ चल रहा है मैं कंफ्यूज था, क्या कह के उनका आदर करूं. गांधी जी ने मेरे कंधे पर दुबारा हाथ रखते हुए कहा कि तुम राम-राम ही बोल दो. मैं तुमको किसी पार्टी विशेष का नहीं मानूँगा और ना ही किसी का एजेंट मानूंगा. मैंने लगभग रोते हुए गांधी जी को कहा अब देश में ऐसे हालात नहीं है. अगर आप किसी वेद-पुराण या कोई ग्रन्थ से कोई श्लोक उठा कर किसी सन्दर्भ में बात कर दें तो आज आपको कट्टरपंथी मान लिया जाएगा या आपको किसी खास पार्टी का चमचा कह दिया जाएगा.

गाँधी जी ने दुख जताते हुए कहा कि बेटा जब हमने देश आज़ाद कराया था तो तनिक भी आभास नहीं था कि देश फिर से गुलाम हो जाएगा. आज स्थिति ज्यादा खराब है उस वक़्त देश के लिए लड़ने वालो की प्रतिशत आज के मुकाबले ज्यादा थी लोग तब भी अपने नफा नुकसान देखते थे पर हर देशवासी के दिल में देशप्रेम के साथ साथ देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाहत थी.

क्या बोले नोटबंदी पर गाँधी-

मैंने गाँधी जी से नोटबंदी पर पूछा तो वो कुछ देर तक मौन रहे. फिर बोलते ही चले गए. गाँधी जी ने एक लंबी सांस लेकर कहना शुरू किया. देखो जब हम देश को आज़ाद कराने के लिए लड़ रहे थे तो हमे अंग्रेज़ों से पंगा लेना पड़ता था उसके बाद अंग्रेज हमारे लोगों को परेशान करते थे हमारे कुछ लोग आलोचना करते थे कि आपके कदम की वजह से इतने लोगों को व्यापार में नुकसान हुआ, इतने लोगों की जाने गई. ये सब आरोप हमें भी झेलने पड़ते थे पर मेरा लक्ष्य बड़ा था दूरगामी फल देने वाला था बेशक़ कुछ लोगों को मेरे आज़ादी के आंदोलन से कष्ट हुए थे पर हम सबके बेहतर जीवन के लिए लड़ रहे थे. ज्यादातर लोग साथ थे कुछ साथ नहीं थे पर हमने लड़ाई बीच में छोड़ी नहीं थी. इसलिए आखिर में जीत हमारी हुई. अगर लड़ने वाला आलोचकों से डर जाए, रास्ता छोड़ दे तो फिर कौन लड़ेगा.

 सांकेतिक फोटो

उन्होंने आगे कहा कि जब अब देश दोबारा से गुलाम हुआ है तो फिर से आज़ादी की लड़ाई तो लड़नी ही पड़ेगी. मैंने पूछा देश तो आज़ाद है आप इसको गुलाम कैसे कह रहे है. तो उनका जवाब था आज देश भ्रष्टाचार से, व्यभिचार से, अनाचार से गुलाम है इस गुलामी के खिलाफ भी देश की जनता को लड़ना होगा और इस लड़ाई में अपने सुख चैन की क़ुरबानी भी देनी होगी. मैंने तपाक से पूछ लिया कि जो लोग कुछ दिन के लिए एटीएम की लाइन में नहीं लग सकते वो कैसे लड़ेंगे. गाँधी जी ने कहा मैं पूरा देश भ्रमण कर रहा हूँ ज्यादातर लोग पक्ष में हैं जो नहीं हैं वो अंदर से देश का भला ही चाहते हैं सिर्फ ऊपर से आलोचना कर रहे हैं. लोगों को दिक्कतें आ रही हैं इसलिए कुछ लोग घबरा गए हैं जब वो जान जाएंगे कि निर्माण में दिक्कतें झेलने से विनाश को रोका जा सकता है तब उनको ये छोटी दिक्कते परेशान नहीं करेंगी.

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इतना बोल कर गाँधी जी जाने के लिए उठ खड़े हुए. मैंने उनको आग्रह किया थोड़े देर और रुक जाइए. आप से मेरे दुखी मन को बड़ा बल मिला है. तो गाँधी जी ने अंतिम बार मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा. मुझे जाना पड़ेगा किसी और दुखी मन को बल देने के लिए. इतना कह कर वो दूर अंधेरे में चले गए किसी अंधेरे मन में उजाला फ़ैलाने के लिए कि "देश को विनाश से रोकना है तो इसके निर्माण में जो दिक्कते आ रही हैं उनको सहन करना पड़ेगा."

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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