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महान संत श्री श्री विजय माल्यम !

    • अबयज़ खान
    • Updated: 13 सितम्बर, 2018 11:11 AM
  • 05 दिसम्बर, 2016 02:10 PM
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स्कूल में एक लड़के से किसी महान संत पर निबंध लिखने को कहा गया. देखिए लड़के ने विजय मालया की जिंदगी पर क्या लिख डाला...

स्कूल में एक लड़के से किसी महान संत पर निबंध लिखने को कहा गया. देखिए लड़के ने क्या लिख डाला...

भारत भूमि सदा से ही ऋषियों मुनियों और सूफी संतों की भूमि रही है. इसी देश के सुदूर कलकत्ता अब कोलकाता में 18 नवंबर 1955 को एक उदयीमान बालक का जन्म हुआ. जिसका नाम विजय रखा गया. विजय बचपन से कुशाग्र और मेधावी होने के साथ ही बड़ा कारोबारी भी था. अपनी जवानी के दिनों से वो 'माल' और मालामाल का बहुत शौक़ीन था, जिसकी वजह से ये बालक आगे चलकर विजय माल्या कहलाया.

 फाइल फोटो- विजय मालया

बालक की शिक्षा दीक्षा तो बंगाल में ही हुई, लेकिन उसने अपना 'कार' ओ 'बार' कर्णाटक राज्य में शुरू किया. बालक के हाथ की रेखाएं बहुत बलवान थीं इसलिए तेज़ी से तरक्की करते हुए वो एक बड़ा 'कारोबारी' बन गया. अपनी जवानी के दिनों में बालक ने बहुत सफलता से कारोबार चलाया, ज़मीन से लेकर हवा तक बालक विजय माल्या का साम्राज्य चलने लगा. बालक के कारोबार करने की ये स्थिति थी कि 2008 में ही इसकी गिनती दुनिया के बड़े अमीरों में होने लगी थी. शरू से ही खेलने-खाने और खिलाने के शौक़ीन रहे इस बालक की दूर-दूर तक तूती बोलने लगी. चर्चा सत्ता के गलियारों तक होने लगी और ये बालक राजनीति में भी आ गया.

ये भी पढ़ें- इन 10 मौकों पर भी अनिवार्य हो राष्ट्रगान

लेकिन एक दिन अचानक बालक का दुनियादारी से मोहभंग हो गया. उसने धीरे-धीरे अपना 'कारोबार' समेटना शरू कर दिया. आध्यात्म की तरफ बढ़ चले इस बालक ने अपनी...

स्कूल में एक लड़के से किसी महान संत पर निबंध लिखने को कहा गया. देखिए लड़के ने क्या लिख डाला...

भारत भूमि सदा से ही ऋषियों मुनियों और सूफी संतों की भूमि रही है. इसी देश के सुदूर कलकत्ता अब कोलकाता में 18 नवंबर 1955 को एक उदयीमान बालक का जन्म हुआ. जिसका नाम विजय रखा गया. विजय बचपन से कुशाग्र और मेधावी होने के साथ ही बड़ा कारोबारी भी था. अपनी जवानी के दिनों से वो 'माल' और मालामाल का बहुत शौक़ीन था, जिसकी वजह से ये बालक आगे चलकर विजय माल्या कहलाया.

 फाइल फोटो- विजय मालया

बालक की शिक्षा दीक्षा तो बंगाल में ही हुई, लेकिन उसने अपना 'कार' ओ 'बार' कर्णाटक राज्य में शुरू किया. बालक के हाथ की रेखाएं बहुत बलवान थीं इसलिए तेज़ी से तरक्की करते हुए वो एक बड़ा 'कारोबारी' बन गया. अपनी जवानी के दिनों में बालक ने बहुत सफलता से कारोबार चलाया, ज़मीन से लेकर हवा तक बालक विजय माल्या का साम्राज्य चलने लगा. बालक के कारोबार करने की ये स्थिति थी कि 2008 में ही इसकी गिनती दुनिया के बड़े अमीरों में होने लगी थी. शरू से ही खेलने-खाने और खिलाने के शौक़ीन रहे इस बालक की दूर-दूर तक तूती बोलने लगी. चर्चा सत्ता के गलियारों तक होने लगी और ये बालक राजनीति में भी आ गया.

ये भी पढ़ें- इन 10 मौकों पर भी अनिवार्य हो राष्ट्रगान

लेकिन एक दिन अचानक बालक का दुनियादारी से मोहभंग हो गया. उसने धीरे-धीरे अपना 'कारोबार' समेटना शरू कर दिया. आध्यात्म की तरफ बढ़ चले इस बालक ने अपनी कुल जमा पूंजी में से मात्र साढ़े 9 हज़ार करोड़ लेकर देश छोड़ दिया. संत की शिक्षा-दीक्षा बालक को कहाँ से मिली ये किसी को ज्ञात नहीं है, लेकिन विदेश में वनवास के दौरान बालक का नाम विजय माल्या से संत श्री विजय माल्यम पढ़ गया.

 फाइल फोटो- विजय मालया

महान संत श्री विजय माल्यम जी की सादगी का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि वो न खुद कपड़े पहनते थे और न स्त्रियों को कपड़े पहनने देते थे. हमेशा समंदर और बीच के आसपास गोपियों के संग सूर्य स्नान करते हुए पाए जाते थे. संत श्री माल्यम जी धरती का इतना सम्मान करते थे कि हमेशा हवाई जहाज़ से ही चलते थे. उनके राज में जनता बहुत ही मस्त थी. विजय माल्यम जी संत के साथ ही एक बेहतरीन किंग भी थे, उनके राज में उम्दा शराब की नदियां बहती थीं, लेकिन जब से वो विदेश गए हैं यहाँ के लोगों को देसी ठर्रे और थर्ड क्लास अंग्रेजी से काम चलना पड़ता है. इसका एक नुकसान ये हुआ कि अब अंग्रेजी सीखने वालों की संख्या में पहले से काफी कमी आई है और जो लोग टूटी फूटी अंग्रेजी बोल भी पाते हैं उन गरीबों को जल्द ही ट्रैफिक पुलिस वाले पकड़ लेते हैं.

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संत श्री विजय माल्यम जी के अनन्य भक्त हैं. हर बार नए साल के मौके पर भक्त उनके नए साल के कैलेंडर का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. जिसमें वो महिलाओं के चित्रों के ज़रिए जनवरी से जुलाई तक के मौसम का विस्तार से चित्रण करते थे लेकिन ज़्यादातर भक्तों की दिलचस्पी गर्मियों के महीनों में होती थी. इस दौरान जब हवा के झोंके के साथ कैलंडर के पन्ने उड़ते थे तब बड़ा ही मोहक दृश्य उत्पन्न होता था. जिसे संत श्री विजय माल्यम जी की भाषा में हॉट कहा जाता है. लेकिन इसकी अनुभूति करना सबके बस की बात नहीं है. हालाँकि, उनके विदेश में ही विश्राम करने की वजह से इस बार भक्तों को नए साल के कैलंडर से वंचित होना पड़ेगा, जिसका दुख इस लेखक को भी है.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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