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Mask story: सीट बेल्ट और हेलमेट की क़शमक़श के बाद 'मास्क' ने बढ़ाई भारतीयों की टेंशन

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 22 सितम्बर, 2020 08:13 PM
  • 22 सितम्बर, 2020 08:13 PM
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अब तक भारतीय (Indians) सीट बेल्ट (Seat Belt) और हेलमेट (Helmet) की क़शमक़श से निकल भी नहीं पाए हैं कि 'मास्क महोदय' (Mask) ने दस्तक दे दी. आपको क्या लगता है कि हम भारतीय इसका तोड़ न निकाल पाएंगे? हज़ूर, तो फिर अभी आपने हमें और हमारे टशन को जाना ही कितना है? डोंट अंडर एस्टीमेट द पॉवर ऑफ़ इंडियन ब्रेन.

आपको ऐसे लोगों के दर्शन का सौभाग्य अवश्य प्राप्त हुआ होगा जो दुपहिया वाहन (Two Wheelers Ride) चलाते समय हेलमेट (Helmet) को कहीं-न-कहीं अटका लेते हैं. जी, ये सिर के स्थान पर उन सारी जगहों पर दिखाई देगा जहां इसका होना न होना एक बराबर है. कभी यह हाथ में कंगन की तरह लटका मिलेगा, कभी बैग वाले हुक में झूल रहा होगा तो कभी पीछे वाली सीट पर बैठे इंसान के हाथ में नज़र आएगा. यदि सिग्नल (Traffic Signal) पर ट्रैफिक मैन नहीं हैं तब तो फ़िक़र नॉट और यदि है तो उसके दर्शन की उपलब्धि प्राप्त होने के ठीक तीन सेकंड पहले, पीछे बैठा दोस्त हंसते हुए वीर पुरुष को हेलमेट पहना देता है. यदि पहनने से चूक गए और हाथ में थामे हुए पकडे गए तो मातमी चेहरा बनाकर बोल देंगे, सर, वो थोड़ा वोमिट टाइप फ़ील हो रहा था. बस बिल्कुल अभी ही हटाया है.' वोमिट सुनते ही कर्तव्यनिष्ठ बंदा वैसे ही उछलकर तीन फुट दूर जा खड़ा होता है. यही स्थिति कार में सीट बेल्ट (Seat Belt) न पहनने वालों की है. सिग्नल आते ही 'मि./मिस इंडिया के पट्टे की तरह लगा लिया और क्रॉस करते ही मुक्ति की वादियों में सांस ली. इस चर्चा का सार यह है कि हम स्वयं की सुरक्षा से कहीं अधिक पकड़े जाने के भय से चिंतित हैं. बेइज़्ज़ती न हो जाए. खोपड़ी फट जाए भले पर फ़ाइन न लग जाए. जान-वान का क्या है? आनी-जानी है. अपन तो शेर का जिगरा रखते हैं.

बताइए भला! ये भी कोई बात हुई! अब तक हम सीट बेल्ट और हेलमेट की क़शमक़श से निकल भी नहीं पाए हैं कि 'मास्क महोदय' (Mask) ने दस्तक दे दी. आपको क्या लगता है कि हम भारतीय इसका तोड़ न निकाल पाएंगे? हज़ूर, तो फिर अभी आपने हमें और हमारे टशन को जाना ही कितना है? डोंट अंडर एस्टीमेट द पॉवर ऑफ़ इंडियन ब्रेन.

भारत का आदमी अभी सीट बेल्ट और हेलमेट से बच ही रहा था ऐसे में मास्क ने दस्तक देकर उसकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं...

आपको ऐसे लोगों के दर्शन का सौभाग्य अवश्य प्राप्त हुआ होगा जो दुपहिया वाहन (Two Wheelers Ride) चलाते समय हेलमेट (Helmet) को कहीं-न-कहीं अटका लेते हैं. जी, ये सिर के स्थान पर उन सारी जगहों पर दिखाई देगा जहां इसका होना न होना एक बराबर है. कभी यह हाथ में कंगन की तरह लटका मिलेगा, कभी बैग वाले हुक में झूल रहा होगा तो कभी पीछे वाली सीट पर बैठे इंसान के हाथ में नज़र आएगा. यदि सिग्नल (Traffic Signal) पर ट्रैफिक मैन नहीं हैं तब तो फ़िक़र नॉट और यदि है तो उसके दर्शन की उपलब्धि प्राप्त होने के ठीक तीन सेकंड पहले, पीछे बैठा दोस्त हंसते हुए वीर पुरुष को हेलमेट पहना देता है. यदि पहनने से चूक गए और हाथ में थामे हुए पकडे गए तो मातमी चेहरा बनाकर बोल देंगे, सर, वो थोड़ा वोमिट टाइप फ़ील हो रहा था. बस बिल्कुल अभी ही हटाया है.' वोमिट सुनते ही कर्तव्यनिष्ठ बंदा वैसे ही उछलकर तीन फुट दूर जा खड़ा होता है. यही स्थिति कार में सीट बेल्ट (Seat Belt) न पहनने वालों की है. सिग्नल आते ही 'मि./मिस इंडिया के पट्टे की तरह लगा लिया और क्रॉस करते ही मुक्ति की वादियों में सांस ली. इस चर्चा का सार यह है कि हम स्वयं की सुरक्षा से कहीं अधिक पकड़े जाने के भय से चिंतित हैं. बेइज़्ज़ती न हो जाए. खोपड़ी फट जाए भले पर फ़ाइन न लग जाए. जान-वान का क्या है? आनी-जानी है. अपन तो शेर का जिगरा रखते हैं.

बताइए भला! ये भी कोई बात हुई! अब तक हम सीट बेल्ट और हेलमेट की क़शमक़श से निकल भी नहीं पाए हैं कि 'मास्क महोदय' (Mask) ने दस्तक दे दी. आपको क्या लगता है कि हम भारतीय इसका तोड़ न निकाल पाएंगे? हज़ूर, तो फिर अभी आपने हमें और हमारे टशन को जाना ही कितना है? डोंट अंडर एस्टीमेट द पॉवर ऑफ़ इंडियन ब्रेन.

भारत का आदमी अभी सीट बेल्ट और हेलमेट से बच ही रहा था ऐसे में मास्क ने दस्तक देकर उसकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं

हम सब ट्रैफिक मैन की कर्तव्यपरायणता को ध्यान में रखते हुए मास्क सदा ही अपने साथ रखते हैं. जो सूखे मुंह अर्थात बेमास्क बाज़ार जाते हैं वे जाहिल, निकम्मे लोग, पांच सौ और हज़ार की क़द्र करना नहीं जानते. ईश्वर इन्हें भी देख रहा है. यद्यपि मनुष्यों में इनकी मान्यता रद्द कर दी गई है.

खैर. अभी तो हमारा पूरा फोकस उन रचनात्मक (Creative) महानुभावों पर है जिनके दिमाग़ की तेज़तर्रार कोशिकाओं से बिल गेट्स से लेकर अपने जुक्कू भैया भी अत्यधिक घबराहट महसूस करते हैं. तो ज़नाब, हाल ही की एक महत्वपूर्ण शोध के अनुसार हमारी संस्कृति की विविधता की तरह मास्क को धारण करने के तरीक़े भी विविध प्रकार के होते हैं. प्रांतीयता और भेदभाव की निकृष्ट भावना से ऊपर उठकर सर्वसम्मति से इन पांच मास्क पहनावों की मान्यता मन ही मन इनके धारकों द्वारा स्वीकृत कर ली गई है.

नासिकास्क

इसे अर्धास्क अथवा नास्क भी कह सकते हैं क्योंकि यह केवल नासिका द्वार की रक्षा करता है. इसे पहनने वालों की यह धारणा है कि Covid वायरस केवल नासिका के दायें-बाएं छिद्रों से ही प्रवेश करता है. अपने संकोची स्वभाव के कारण यह मुँह खुला देखकर हतप्रभ हो लौट जाता है.

दोलनास्क

कुछ स्थानों पर इसे ही दोलन मास्क कहा जाता है. प्रायः यह कान पर लटका हुआ पाया जाता है तथा वायु के तेज प्रवाह में किसी पेंडुलम की तरह झूलने लगता है. आप इसे सहजता से पहचान सकते हैं. अंचलों में इसे ईयर रिंग/ झुमका मास्क तथा कानास्क भी कहते हैं.

मुखास्क

इसमें केवल मुंह को ढकते हुए ही मास्क (मुआस्क) पहना जाता है. इसके समर्थन में अपहरणकर्ताओं से जुड़ी कई दलीलें दी जाती हैं कि वे भी मुंह दबोचकर ही पकड़ना उचित समझते हैं अतः कोरोना वायरस भी इसी मार्ग से हम पर आक्रमण करता है. जी, यह नासिकास्क का विपरीत नियम है.

ठुड्डास्क

यह तब पहना जाता है जब प्राणवायु ऑक्सीजन को नासिका से ग्रहण कर दूषित कार्बनडाईऑक्साइड को मुख के माध्यम से वातावरण में विसर्जित किया जाता है. चूँकि यह एक निरंतर प्रक्रिया है अतएव विवश होकर मनुष्य को मास्क अपनी ठुड्डी/दाढ़ी/ हनु पर रख इस महामारी से स्वयं को सुरक्षित करना पड़ता है. इसी कारण इसे स्नेहवश हनुमास्क भी पुकारा गया है.

हेयरबैंडास्क

यह पहनावा स्त्रियों में अधिक प्रचलित है. मान्यता है चूंकि उन्हें बाल्यकाल से ही हेयर बैंड पहनने की आदत रही है अतः म्यूटेशन के कारण उनमें यह गुण स्वतः ही विकसित हो गया है. जब उन्हें यह लगने लगता है कि विषाणु (Virus) बस दो सेंटीमीटर दूर है तब वे स्थिति को भांपते हुए तुरंत ही इसे नीचे खिसका लेती है. उनकी इस प्रत्युत्पन्नमति की विश्वभर में सराहना हुई है. बुद्धि के योगदान को नज़रंदाज़ न करते हुए कुछ वैज्ञानिक इसे कपोलमास्क कहना उचित समझते हैं.

इनके अलावा एक पॉकेटास्क भी होता है जिसमें मास्क जेब में ही रखा तिरस्कृत अनुभव करता है. बिना प्रयोग किये मशीन में अनवरत धुलाई के कारण इसे महास्वच्छास्क भी मानते हैं. लेकिन इसके अनुचित एवं अनुपयोगी व्यवहार के कारण इसे मुख्य श्रेणियों में सम्मिलित नहीं किया जा सका है. इसके अतिरिक्त भी कोई और प्रकार की खोज हुई हो तो कृपया जनता का ज्ञानवर्धन कीजिए. चलिए, हम तो बस जनसेवा में लीन हैं. आप अपना-अपना समझ लीजिए. नारायण-नारायण.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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