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क्या ईएमआई वाले इश्क के लिए वैलेंटाइन-लोन देंगे बैंक?

    • मोहम्मद नदीम सिद्दीकी
    • Updated: 14 फरवरी, 2020 06:43 PM
  • 14 फरवरी, 2020 06:43 PM
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पहले के विपरीत अब जैसा वैलेंटाइन डे (Valentine Day) का स्वरूप है ये पूरी तरह से बाजार (Market) की भेंट चढ़ गया है. बाजार भी वैलेंटाइन के गिफ्ट्स (Valentine Day Gifts) से पटा पड़ा है जिसका असर ग्राहक की जेब पर पड़ता है और जिसकी ईएमआई फिर वो साल के 11 महीने चुकाता है.

इश्क़ (Love) करने के लिए दरअसल कभी वक़्त की मोहताजगी नहीं होती. लेकिन पूंजीवाद ने इश्क़ को क़ायदे से बाज़ारू बना दिया है. अब जहां बाज़ार (Market) है तो ज़ाहिर सी बात है कि ग्राहक तो दौड़ कर आएगा ही. पिछले कुछ सालों में इश्क़ को इतना महिमामंडित कर के दिखा दिया गया है कि फ़रवरी का महीना (Valentines Day) आते-आते इश्क़ की एक बेहतरीन मंडी सी सज जाती है. इश्क़ के इस मौसम पर बाज़ार इस कदर हावी हो जाता है कि हर आशिक पगला जाता है. हर कोई अपने इश्क़ में प्यार पाना चाहता है लेकिन बढ़ती महंगाई में कर्ज़दार बन कर रह जाता है. मुझे लगता है वो दिन दूर नहीं जब इस इश्क़ के हफ़्ते के लिए भी लोन मिलना शुरू हो जाएगा और बाकी का साल आशिक़ बेचारे अपने सनम की जुल्फों में कम और ईएमआई भरने में ज़्यादा बिजी दिखेंगे. बिजी रहना कोई बुरी बात नहीं है और इश्क़ में बिजी रहना तो बिलकुल भी बुरा नहीं है. लेकिन प्यार का जो बाज़ार सज गया है वो टू मच है.

अब वैलेंटाइन डे पूरी तरह बजा की भेंट चढ़ गया है जिसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है

इस पाक़ आई मीन टू से कि, जज़्बाती महीने के एक हफ़्ते में लोग इतना एड़ियां घिसते हैं कि छाले भी कह देते हैं अबे साले...मतलब माफ़ करना गलती से मैं इधर-उधर निकल जाता हूं. मेरा वो मतलब नहीं था. छाले ही लाले दी जान से ऐसे कर्म करवा देते हैं कि बाकी के 11 महीनों के लाले पड़ जाते हैं. अब सारा किस्सा दिन से शुरू हो कर दिन पर ही खत्म होता है. इन दिनों को साद खैरियत से निकाल ले जाने वाले अपने आप ही जीवन में मार्क सेफ हो जाते हैं.

साल भर इश्क़ में पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही गाने वाले इस एक हफ़्ते में इज़हार ए इश्क़ की सभी प्लेलिस्ट का बाजा फाड़ देते हैं. इश्क़ के नगमे और तराने ऐसी-ऐसी जगहों से रिसते हैं कि भैया पूछो मत.

पहला दिन गुलाब...

इश्क़ (Love) करने के लिए दरअसल कभी वक़्त की मोहताजगी नहीं होती. लेकिन पूंजीवाद ने इश्क़ को क़ायदे से बाज़ारू बना दिया है. अब जहां बाज़ार (Market) है तो ज़ाहिर सी बात है कि ग्राहक तो दौड़ कर आएगा ही. पिछले कुछ सालों में इश्क़ को इतना महिमामंडित कर के दिखा दिया गया है कि फ़रवरी का महीना (Valentines Day) आते-आते इश्क़ की एक बेहतरीन मंडी सी सज जाती है. इश्क़ के इस मौसम पर बाज़ार इस कदर हावी हो जाता है कि हर आशिक पगला जाता है. हर कोई अपने इश्क़ में प्यार पाना चाहता है लेकिन बढ़ती महंगाई में कर्ज़दार बन कर रह जाता है. मुझे लगता है वो दिन दूर नहीं जब इस इश्क़ के हफ़्ते के लिए भी लोन मिलना शुरू हो जाएगा और बाकी का साल आशिक़ बेचारे अपने सनम की जुल्फों में कम और ईएमआई भरने में ज़्यादा बिजी दिखेंगे. बिजी रहना कोई बुरी बात नहीं है और इश्क़ में बिजी रहना तो बिलकुल भी बुरा नहीं है. लेकिन प्यार का जो बाज़ार सज गया है वो टू मच है.

अब वैलेंटाइन डे पूरी तरह बजा की भेंट चढ़ गया है जिसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है

इस पाक़ आई मीन टू से कि, जज़्बाती महीने के एक हफ़्ते में लोग इतना एड़ियां घिसते हैं कि छाले भी कह देते हैं अबे साले...मतलब माफ़ करना गलती से मैं इधर-उधर निकल जाता हूं. मेरा वो मतलब नहीं था. छाले ही लाले दी जान से ऐसे कर्म करवा देते हैं कि बाकी के 11 महीनों के लाले पड़ जाते हैं. अब सारा किस्सा दिन से शुरू हो कर दिन पर ही खत्म होता है. इन दिनों को साद खैरियत से निकाल ले जाने वाले अपने आप ही जीवन में मार्क सेफ हो जाते हैं.

साल भर इश्क़ में पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले झूठा ही सही गाने वाले इस एक हफ़्ते में इज़हार ए इश्क़ की सभी प्लेलिस्ट का बाजा फाड़ देते हैं. इश्क़ के नगमे और तराने ऐसी-ऐसी जगहों से रिसते हैं कि भैया पूछो मत.

पहला दिन गुलाब का दिन है और इसमें भी लोग अपने बगीचे सजाने के चक्कर में अच्छे खासे बगीचे रौंद देते हैं. क्योंकि अमूमन इस दिन गुलाब के रेट आसमान को छू जाते हैं. अब आशिक़ करे भी तो क्या ही करे भैया उसे तो महबूबा के लिए गुलाब लाना ही लाना है. अब इस के लिए सूली भी चढ़ना पड़े तो कउनो दिक्कत नहीं है. वैसे भी प्यार के चक्कर में अगर माली से मार नहीं खाए तो कैसन प्यार बा? तो गुलाब पाने के लिए इतना रिस्क तो लेना ही पड़ता है ना भाई और हां अगर आप मज़बूत जेब वाले हैं, तो फ़िर आप गुलाब क़ीमत अदा कर के तो ले ही सकते हैं.

इसके बाद आता है प्रोपोज़ डे यानि कि इज़हार का दिन. अब मोहल्ले वाले इज़हार चच्चा को ढूंढने जा रहे हो तो तनिक रुक जाओ. क्योंकि यह दूसरा वाला इज़हार है. इस दिन सब अपने दिल की बात अपने दिलबर से कह देते हैं. बात कही है तो थोड़ी दूर तक तो ज़रूर ही जाएगी, वो बात अलग है कि आज के दौर में लोग प्रपोज़ में भी पर्पस निकालने लगे हैं.

अब कसमें-वादे खाने के दौर में लोग एक दूसरे का सिर खाने लग जाते हैं जिसकी जितनी भी कड़ी निंदा की जाए वो कम है. हां कुछ लगे या ना लगे लेकिन कुछ ना कुछ चूना ज़रूर लग जाता है खर्च के नाम पर.

आज बाजार वैलेंटाइन के तोहफों से पटा पड़ा है

फिर होता है चॉकलेट डे का चोंचला. अब जो आशिक़ कभी 20 रूपए से ज़्यादा की चॉकलेट का नाम तक ना जानता हो वो चॉकलेट की दुनिया में गोता लगाने को मजबूर हो जाता है. जैसे-तैसे किसी तरह इस दिन को भी आशिकों का पुरसा दे कर निपटाता है और नई चॉकलेट का नाम जान कर अपना और समाज दोनों का ज्ञान बढ़ाता है. यह देश हित में बहुत ज़रूरी है.

इसके बाद आगमन होता है भालू दिवस का अर्थात टेडी डे का. अब चूंकि भालू तो ला नहीं सकते लिहाज़ा टेडी बियर तो लाया ही जा सकता. वैसे भी असली भालू लाने का सोचोगे तो ज़ाहिर सी बात है पर्यावरण वाले जीना मुहाल कर देंगे और आशिकों को बल भर कूटेंगे. वैसे मंदी और जीएसटी के दौर में सड़क किनारे मिलने वाले भालुओं ने आशिकों का दर्द थोडा कम कर दिया है. रस्ते का माल सस्ते में मिलने लगा तो लोग आर्चीज़ और हॉलमार्क को दूर से ही सलाम करते हैं.

इतने दिनों के बाद इश्क के हफ्ते में फिर दिन आता है प्रॉमिस डे का. प्रॉमिस मंजन समझने की इसे भूल ना करें. इस दिन सिर्फ़ वादे होते हैं क्योंकि साल के 11 महीने फ़िर वादाखिलाफी ही होती है. हर आशिक इस सब्र में अपनी कब्र खुदवा लेता है. इस दिन जो झौव्वा भर-भर के जो वादे होते हैं ना उनका इस्तेमाल इश्क़ के दौर में सबूतों की तरह किया जाता है और हम तो बचपन से सुनते आ रहे हैं कि कानून सबूत मांगता है. तो लो भैया हो गया सबूत का जुगाड़.

हग डे यानी कि आलिंगन में लेने का दिन. मुझे लगता है हर प्रेमी अपनी प्रेयसी को आलिंगन में भरने को बहुत आतुर रहता है खैर हो भी क्यों ना प्रेम रस में आलिंगन ही तो अंतिम सत्य है और हर इंसान इस सत्य से द्वारा मोक्ष की प्राप्ति करना चाहता है. हालांकि इस कार्यवाही में बहुत खर्चा ना हों लेकिन हां  दिमाग बहुत खर्चा करना पड़ता है. एक ठो हग की खातिर हम सब को थोक के हिसाब से पापड़ बेलने पड़ते हैं.

खैर इसके बाद आता है किस डे अब इसका प्रयोजन क्या है यह कोई नहीं जानता. हां वो बात अलग है कि नाम सुन के लोग नाक-भौं ज़रूर सिकोड़ने लगते हैं.  इसमें ज़रूर कोई देश हित छुपा है जो हग डे के फ़ौरन बाद इसका आगाज़ हो जाता है. आशिक़ इतना जोश में होते हैं कि लोन ले कर भी इश्क़ में इतना बौराए रहते हैं कि बस पूछो ना. सब कुछ एक किस के लिए मतलब जान दी भी तो बस एक अनजान के लिए.

और अंत में आता है वैलेंटाइन देवता का दिन. मतलब यह विजय दिवस की तरह उल्लास के साथ मनाया जाता है. सब इस पर कुर्बान भले ही इसके लिए खुद को गिरवी रखना पड़े. वैसे भी हफ्ते भर में जो बैंड बजता है उसका ईएमआई 11 महीनों के लिए बंध  ही जाता है. अब इश्क़ में लोन लिया है तो चुकाना पड़ेगा ही. अब देश से नीरव और माल्या भाग सकते हैं , तुम नहीं . देश हित में तो चुकाना ही पड़ेगा इश्क़ का ईएमआई.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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