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Yogi Adityanath जैसे गौ-सेवक के यात्रा मार्ग से पशुधन को दूर करना साजिश तो नहीं?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 29 जनवरी, 2020 01:44 PM
  • 29 जनवरी, 2020 01:44 PM
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मिर्ज़ापुर (MIrzapur) में जिस तरफ पीडब्लूडी के अधिशासी अभियंता (executive engineer) ने सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की मिर्ज़ापुर यात्रा के सिलसिले में अपने इंजीनियरों को आदेश दिया है वो कहीं न कहीं योगी आदित्यनाथ और पशुधनों के रिश्ते को प्रभावित करता नजर आ रहा है.

इस खबर के बाद कि यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) गंगा यात्रा (Ganga Yatra) के सिलसिले में मिर्ज़ापुर (Mirzapur) आ रहे हैं.  बनारस और जौनपुर से लेकर राबर्ट्सगंज और सोनभद्र तक इस खेत से उस खेत घूमने वाले उनमें तांडव मचाने वाले 'पशुधन' (Stray Cattle) (जिन्हें साधारण भाषा में आवारा जानवर कहा जाता है) के बीच ख़ुशी की लहर थी. सांडों को, गायों को, बैलों को, बछियों को यकीन नहीं हो रहा था कि वो घड़ी आ गई जिसका उन्हें इंतजार था. भोले भाले 'पशुधन' अपने विराट मुख्यमंत्री (P CM Yogi Adityanath) से मिलना चाहते थे. उन्हें जी भरकर बस देखते रहना चाहते थे. वो उनसे बात कर अपनी समस्याएं सुनाना चाहते थे. जैसे समाज में अच्छे और बुरे टाइप के लोग होते हैं वैसा ही मामला यहां भी था. कुछ पशुधनों के बीच योगी को काला झंडा और तख्ती दिखाने की प्लानिंग थी. एक तख्ती हमारे हाथ भी लगी. लिखा था कि 'आज़ादी...'आज़ादी सुनकर देश का आदमी भावुक हो जाता है. भावनाओं में बह जाता है. तो जान लें कि गाय, बैल, सांड अपनी अपनी तख्ती में हाईवे को बस ट्रकों और खेतों को चौकीदारों से आज़ादी दिलाने की डिमांड कर रहे थे. इन्होंने लिख कर जाहिर किया था कि कैसे इन्हें चरने में परेशानी होती है. ये टहल नहीं पाते. टहल भी लिया तो मौके-बेमौके पसर के लेट नहीं पाते. अपनी डिमांड लिए बनारस के पशुधन मिर्ज़ापुर पहुंचे भी नहीं थे कि जो तुगलकी फरमान लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधिशासी अभियंता कार्यालय (executive engineer office) की ओर से आया है वो बता रहा है कि इनका और योगी आदित्यनाथ का संगम तो होगा ही नहीं. ये कायनात चाहती ही नहीं कि ये पशुधन मिलें और बताएं कि महाराज इतनी सुविधाओं के बाद अब भी दुखों का अम्बार है. अब भी अच्छे दिन हैं जिन्हें दरवाजे पर रोक कर रखा गया है और वो आ नहीं रहे हैं.

इस खबर के बाद कि यूपी के मुखिया योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) गंगा यात्रा (Ganga Yatra) के सिलसिले में मिर्ज़ापुर (Mirzapur) आ रहे हैं.  बनारस और जौनपुर से लेकर राबर्ट्सगंज और सोनभद्र तक इस खेत से उस खेत घूमने वाले उनमें तांडव मचाने वाले 'पशुधन' (Stray Cattle) (जिन्हें साधारण भाषा में आवारा जानवर कहा जाता है) के बीच ख़ुशी की लहर थी. सांडों को, गायों को, बैलों को, बछियों को यकीन नहीं हो रहा था कि वो घड़ी आ गई जिसका उन्हें इंतजार था. भोले भाले 'पशुधन' अपने विराट मुख्यमंत्री (P CM Yogi Adityanath) से मिलना चाहते थे. उन्हें जी भरकर बस देखते रहना चाहते थे. वो उनसे बात कर अपनी समस्याएं सुनाना चाहते थे. जैसे समाज में अच्छे और बुरे टाइप के लोग होते हैं वैसा ही मामला यहां भी था. कुछ पशुधनों के बीच योगी को काला झंडा और तख्ती दिखाने की प्लानिंग थी. एक तख्ती हमारे हाथ भी लगी. लिखा था कि 'आज़ादी...'आज़ादी सुनकर देश का आदमी भावुक हो जाता है. भावनाओं में बह जाता है. तो जान लें कि गाय, बैल, सांड अपनी अपनी तख्ती में हाईवे को बस ट्रकों और खेतों को चौकीदारों से आज़ादी दिलाने की डिमांड कर रहे थे. इन्होंने लिख कर जाहिर किया था कि कैसे इन्हें चरने में परेशानी होती है. ये टहल नहीं पाते. टहल भी लिया तो मौके-बेमौके पसर के लेट नहीं पाते. अपनी डिमांड लिए बनारस के पशुधन मिर्ज़ापुर पहुंचे भी नहीं थे कि जो तुगलकी फरमान लोक निर्माण विभाग (PWD) के अधिशासी अभियंता कार्यालय (executive engineer office) की ओर से आया है वो बता रहा है कि इनका और योगी आदित्यनाथ का संगम तो होगा ही नहीं. ये कायनात चाहती ही नहीं कि ये पशुधन मिलें और बताएं कि महाराज इतनी सुविधाओं के बाद अब भी दुखों का अम्बार है. अब भी अच्छे दिन हैं जिन्हें दरवाजे पर रोक कर रखा गया है और वो आ नहीं रहे हैं.

मिर्ज़ापुर में जो लोकनिर्माण विभाग ने किया है वो योगी आदित्यनाथ और आवारा पशुओं के बीच दूरी बढ़ाता नजर आ रहा है

मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि जिस उत्तर प्रदेश में पशुधनों का बोलबोला है. जिस सूबे में केवल गाय बैलों और सांडों जैसे जानवरों के लिए रामराज है. जहां उनके लिए कई लुभावनी योजनाओं की घोषणा होती हो. वहां लोक निर्माण विभाग का वो आदेश, जिसमें 9 इंजीनियरों को ये ड्यूटी दी गई है कि वो हाथ में 8 -10 रस्सियां पकड़ कर खड़े रहे और जैसे ही उन्हें कोई पशुधन दिखे फ़ौरन ही वो उसे दबोच लें. तमाम सवाल खड़े करता है. कहीं ऐसा तो नहीं कि लोक निर्माण विभाग नहीं चाहता कि योगी आदित्यनाथ इन जानवरों को इधर उधर निकलते देखें और उन्हें गुस्सा आए? इतने बड़े डिपार्टमेंट का ऐसी ओछी हरकत करना व्यक्तिगत रूप से मुझे विचलित करता है.

वो योगी आदित्यनाथ जो इन पशुधनों से बेपनाह मुहब्बत करते हैं. यूपी के ये जानवर जो योगी से उतनी ही शिद्दत से प्यार करते हैं. ज़ुल्म का परिचय देते हुए दोनों को एक दूसरे से इस तरह दूर करना... मेरा अंतर्मन कह रहा है कि ये सब ऐसे ही नहीं हुआ है. कोई तो बड़ी साजिश है जो इसके लिए की गई है. खुद कल्पना किये कि ये ज़ालिम ज़माना एक माशूक को अपने महबूब से नहीं मिलने दे रहा है. ये गुनाह ए अजीम है. बहुत बड़ा गुनाह है. दो गुना है. तीन गुना है.

लोकनिर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता का वो फरमान जो बन गया है चर्चा की वजह

मुद्दा उत्तर प्रदेश के सन्दर्भ में है. पशुधन उत्तर प्रदेश के हैं. मुख्यमंत्री भी उत्तर प्रदेश के हैं. तो फिर आखिर क्यों लोकनिर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता को ऐसा सख्त फैसला लेना पड़ा? आखिर क्यों उनके हाथ एक बार भी इस आदेश को पारित करते हुए नहीं कांपे.

जो लैटर उन्होंने लिखा है उसपर अगर गौर हो तो बड़ी ही संगदिली से उन्होंने 9 इंजीनियरों को आदेश दिया है कि, यदि आवारा पशु सड़क पर आएं तो उनको बांध कर रखे, ताकि मुख्यमंत्री के आवागमन में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो'. अपने इस लैटर में अधिशासी अभियंता ने डीएम, चीफ इंजीनियर जैसे लोगों को भी टैग किया है और ऐसा करते हुए उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा कि पशुधन को 'आवारा जानवर' कहना न सिर्फ जानवरों की भावना आहत कर सकता है बल्कि इन्हें भी अज्ञातवास में भेज सकता है.

एक ऐसे सूबे में जहां 2017 के फ़ौरन बाद सही मायनों में जानवरों को उनका हक़ मिला हो. वहां ये नाइंसाफी दिल दुखाने वाली है. जानवर अगर आ भी जाते तो अपने प्यारे मुख्यमंत्री से ही मिलते. इससे किसी को क्या तकलीफ होती? मिर्ज़ापुर के लोकनिर्माण विभाग को इस बात को समझना चाहिए था कि जिस मुख्यमंत्री ने इन जानवरों के साथ इतना किया अगर वोआकर सीएम योगी आदित्यनाथ से प्यार के दो मीठे बोल बोल लेते तो किसी का क्या जाता?

गौरतलब है कि सूबे के मुख्यमंत्री खुद 'आवारा जानवरों' के लिए बहुत टची हैं. चाहे बजट हो या फिर इनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य मुख्यमंत्री ने कभी इनके लिए कोई समझौता नहीं किया. और सदैव इन्हें प्राथमिकता दी. प्रदेश में बच्चे मर जाएं, कोई बात नहीं. स्कूल के बच्चों को मिड डे मील के नाम पर नमक रोटी खिलाया जाए कोई बात नहीं. महिलाओं की अस्मत से खिलवाड़ हो जाए. हत्या, लूट हो जाए कोई बात नहीं मगर इनपर कोई आंच आए तो मुख्यमंत्री पूरे तंत्र की ईंट से ईंट बजा देंगे. आखिर ये बात क्यों मिर्जापुर के अधिशासी अभियंता को समझ में नहीं आई.

मिर्ज़ापुर के अधिशासी अभियंता को इंजीनियर्स ने कुछ इस अंदाज में दिया है जवाब

बहरहाल, मिर्जापुर में जो होने वाला है उसपर जो तर्क डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ का आया है वो अपने आप में खासा दिलचस्प है. डिप्लोमा वाले इनके महत्त्व को समझते हैं और साथ ही वो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके टेरर को तो बखूबी समझते हैं. इस वाले संघ ने साफ़ कह दिया है कि भइया हमें इस काम की प्रैक्टिस नहीं है तो हमें प्लीज इससे दूर रखो.

9 इंजीनियरों को आदेश मिलने के बाद चिट्ठी पतरी इन्होंने भी लिखी है. पत्र लिखने वाले ये इंजीनियर उस बात को जानते हैं कि नीम हकीम ख़तरा ए जान. कल्पना करिए की ये लोग 'आवारा जानवरों' को पकड़ने के लिए फंदा कास रहे हों और ग्रिप ढीली पड़ जाए. विचार करिए इस समस्या पर. यह कोई हलकी या सतही बात नहीं है. जान जाने का खतरा है गाय या सांड की सिर्फ एक सींघ इंजीनियर महोदय को बीमार बहुत बीमार करने के लिए काफी है.

खैर बात घूम फिर कर वहीं आ गई है जहां से इसकी शुरुआत हुई थी. योगी जानवरों से प्रेम करते हैं. जानवर योगी से. अब जब दो प्यार करने वाले मिलने वाले थे तो जिस तरह तैय्यब अली बन मिर्ज़ापुर के लोकनिर्माण विभाग ने प्यार पर पहरे लगाए हैं वो इसलिए भी विचलित करता है क्योंकि ये दो लोगों के बीच की बात थी. दो लोगों में निपट जाती. ज्यादा से ज्यादा क्या होता थोड़ी देर रूठना मनाना ही होता. योगी जी कर लेते. वो इसलिए भी करते क्योंकि 'पधुधन' जिन्हें आवारा जानवर कहा जा रहा है उन्हें योगी आदित्यनाथ ने हमेशा प्राथमिकता दी है. कोई माने न माने योगी आदित्यनाथ उन्हें इंसानों से ज्यादा प्यार करते हैं.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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