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Delhi elections: पढ़े-लिखों की पार्टी कही जा रही AAP में सबसे बड़ी गिरावट!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 28 जनवरी, 2020 06:26 PM
  • 28 जनवरी, 2020 06:26 PM
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2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों (Delhi Assembly Election 2020) में जिस तरह आप (Aam Aadmi Party) के प्रत्याशी शिक्षा (MLA Education qualification) और लिखाई पढ़ाई में पीछे हुए हैं उन्होंने अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के उन दावों की पोल खोल दी है जिनमें उन्होंने अपनी पार्टी को सभ्य और शिक्षित पार्टी बताया था.

अन्ना आंदोलन (Anna Movement) के बाद अस्तित्व में आई 'आम आदमी पार्टी' (Aam Aadmi Party) को 26 नवंबर 2012 को इस देश की राजनीति में लांच किया गया. आज 8 सालों बाद जब हम पार्टी के मौजूदा स्वरुप की तुलना पार्टी के शुरूआती दौर से करते हैं, तो हमें कई अहम चीजें नदारद नजर आ रही हैं. आज आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) भी वैसी ही है जैसी सपा, बसपा. भाजपा (BJP) या कोई अन्य दल. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के अलावा न तो पार्टी में कोई X फैक्टर मौजूद है. न ही अब हम इस पार्टी से जुड़ते, वैसे लोग देख रहे हैं जिनकी राजनीति इस पार्टी के उदय से जुड़ी है. जिक्र आम आदमी पार्टी का चल रहा है तो हमारे लिए शिक्षा (Education) पर बात करनी भी बहुत ज़रूरी हो जाती है. जिस समय पार्टी ने देश की राजनीति में दस्तक दी, तमाम पढ़ें लिखे लोग केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के साथ आए. आईआईटी, आईआईएम, मेडिकल, सीए, वकील, शिक्षण और समाज सेवा से जुड़े लोग सभी को केजरीवाल का अंदाज पसंद आया और इन्होंने पार्टी की मेम्बरशिप ली. मगर अब जबकि 8 साल हो गए हैं असलियत खुल कर हमारे सामने आ गई है. दिल्ली में चुनाव (Delhi Assembly Elections) होने हैं और 2015 के मुकाबले 2020 में 'आप' में गिरावट अपने सबसे ख़राब स्तर पर पहुंच गई है. शिक्षित लोगों के मामले में पार्टी का रवैया अन्य दलों की तरह हो गया है.

2015 में 70 विधानसभा सीटों पर उतारे गए 48 आप प्रत्याशी स्नातक (Graduate) या उससे ज्यादा पढ़े लिखे थे. लेकिन अब जब 2020 के उम्मीदवारों को देखें तो मिलता है कि ये संख्या गिरकर 39 पर पहुंच गई है. बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2015) में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के 31 प्रत्याशी ऐसे थे जो स्नातक (Graduation) थे और 17 लोगों के पास परास्नातक (Post Graduation) की डिग्री थी. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के 20 प्रत्याशी ग्रेजुएट और 19 प्रत्याशी पोस्ट ग्रेजुएट हैं.

अन्ना आंदोलन (Anna Movement) के बाद अस्तित्व में आई 'आम आदमी पार्टी' (Aam Aadmi Party) को 26 नवंबर 2012 को इस देश की राजनीति में लांच किया गया. आज 8 सालों बाद जब हम पार्टी के मौजूदा स्वरुप की तुलना पार्टी के शुरूआती दौर से करते हैं, तो हमें कई अहम चीजें नदारद नजर आ रही हैं. आज आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) भी वैसी ही है जैसी सपा, बसपा. भाजपा (BJP) या कोई अन्य दल. अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के अलावा न तो पार्टी में कोई X फैक्टर मौजूद है. न ही अब हम इस पार्टी से जुड़ते, वैसे लोग देख रहे हैं जिनकी राजनीति इस पार्टी के उदय से जुड़ी है. जिक्र आम आदमी पार्टी का चल रहा है तो हमारे लिए शिक्षा (Education) पर बात करनी भी बहुत ज़रूरी हो जाती है. जिस समय पार्टी ने देश की राजनीति में दस्तक दी, तमाम पढ़ें लिखे लोग केजरीवाल (Arvind Kejriwal) के साथ आए. आईआईटी, आईआईएम, मेडिकल, सीए, वकील, शिक्षण और समाज सेवा से जुड़े लोग सभी को केजरीवाल का अंदाज पसंद आया और इन्होंने पार्टी की मेम्बरशिप ली. मगर अब जबकि 8 साल हो गए हैं असलियत खुल कर हमारे सामने आ गई है. दिल्ली में चुनाव (Delhi Assembly Elections) होने हैं और 2015 के मुकाबले 2020 में 'आप' में गिरावट अपने सबसे ख़राब स्तर पर पहुंच गई है. शिक्षित लोगों के मामले में पार्टी का रवैया अन्य दलों की तरह हो गया है.

2015 में 70 विधानसभा सीटों पर उतारे गए 48 आप प्रत्याशी स्नातक (Graduate) या उससे ज्यादा पढ़े लिखे थे. लेकिन अब जब 2020 के उम्मीदवारों को देखें तो मिलता है कि ये संख्या गिरकर 39 पर पहुंच गई है. बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election 2015) में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के 31 प्रत्याशी ऐसे थे जो स्नातक (Graduation) थे और 17 लोगों के पास परास्नातक (Post Graduation) की डिग्री थी. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के 20 प्रत्याशी ग्रेजुएट और 19 प्रत्याशी पोस्ट ग्रेजुएट हैं.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के अंतर्गत आप प्रत्याशियों की शिक्षा ने बता दिया है कि उनका भी हाल अन्य दलों जैसा है

चर्चा का विषय 2020 के दिल्ली विधान सभा चुनावों में उम्मीदवारों की पढ़ाई लिखाई है. तो बता दें कि ऐसा ही कुछ मिलता जुलता हाल भाजपा और कांग्रेस का भी है. भाजपा में भी ऐसी ही गिरावट देखने को मिली है. पिछले विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा के 47 प्रत्याशी ऐसे थे जिनके पास स्नातक या उससे ऊपर की डिग्रियां थीं तो वहीं इस बार ये नंबर 39 है. गत चुनाव में भाजपा के 28 प्रत्याशियों के पास स्नातक की, 14 के पास परास्नातक की और 5 के पास पीएचडी  की डिग्री थी. इस बात 27 लोगों के पास स्नातक और 12 प्रत्याशियों के पास मास्टर की डिग्री है.

दिल्ली विधानसभा चुनाव के अंतर्गत पढ़ाई लिखाई के मामले में कांग्रेस की स्थिति सबसे अच्छी है.कांग्रेस दिल्ली में लीड लेती हुई नजर आ रही है. कांग्रेस के पास स्नातक और परास्नातक प्रत्याशियों के अलावा पीएचडी होल्डर्स की भी अच्छी तादाद है.

इस पूरे विमर्श में मुद्दा आम आदमी पार्टी और पार्टी में भी शिक्षा का गिरता स्तर है. अगर आज आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी पढ़ाई लिखाई के मामले में पीछे हो रहे हैं तो इसे हर उस इंसान को एक गंभीर विषय मानना चाहिए जो एक अलग तरह की राजनीति या ये कहें कि परिवर्तन की राजनीति की बात करता है. या फिर उसका पक्षधर है. इस चुनाव में अगर आप की तरफ से 12 प्रत्याशी हमारे सामने ऐसे आए हैं, जिन्होंने हाई स्कूल भी नहीं किया है तो अरविंद केजरीवाल से सवाल होने स्वाभाविक हैं.

हम दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री से जानना चाहेंगे कि कहां गयीं वो बातें जिनके जरिये उन्होंने देश को बताया था कि वो एक भिन्न और अच्छी राजनीति के लिए सामने आए हैं. गौरतलब है कि ये तमाम जानकारियां उस हलफनामे में जाहिर की गयीं हैं. जो चुनावों से पूर्व अपने नामांकन के दौरान, प्रत्याशियों ने चुनाव आयोग को दिया है. एफिडेविट में शिक्षा के अलावा तमाम रोचक जानकारियां भी सामने आई हैं.

बात दिल्ली चुनावों की चल रही है तो रुपए पैसों का जिक्र कर लेना भी जरूरी है. दिलचस्प बात ये है कि वो प्रत्याशी जिनकी संपत्तियां सबसे अधिक हैं वो किसी और दल के नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी के हैं और मजेदार बात ये भी है कि वो ज्यादा पढ़ें लिखे नहीं हैं.

बात सीधी और सपाट है. दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने और अपने दल को औरों से अलग बताने के हजार दावे कई अलग-अलग मंचों से चुके हैं. लेकिन सच्चाई यही है कि वर्तमान में उनका भी हाल औरों जैसा ही है. अगर ऐसा न होता तो आज जरूर वो लोग उनके साथ रहते जो किसी ज़माने में इनसे प्रभावित होकर पार्टी से जुड़े थे.

जिक्र अगर मौजूदा वक़्त का हो तो आज तमाम बड़े चेहरे पार्टी से नदारद हैं. वर्तमान में पार्टी उन लोगों को संरक्षण दे रही है जिनका उद्देश्य रसूख और पैसे के दम पर चुनाव लड़ना और गुजरे इतिहास को दोहराना है.

बहरहाल सिर्फ आठ सालों में जिस तरह आम आदमी पार्टी का ये रूप हमारे सामने आया है. जिस तरह पढ़े लिखे लोग पार्टी से दूर हो रहे हैं. साफ़ पता चल रहा है कि देश की जनता के साथ छल हुआ है. अब जबकि पार्टी का ये रूप हम देख ही चुके हैं तो हमें और हमसे भी ज्यादा खुद अरविंद केजरीवाल को इस बात को स्वीकार कर लेना चाहिए कि आम आदमी पार्टी  एक साधारण सी पार्टी है जिसका उद्देश्य किसी भी तरह का कोई परिवर्तन लाना नहीं सिर्फ राजनीति करनाऔर उसके दम पर सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई खाना है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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