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रिज़ोल्यूशन का स्टार्टअप

    • पीयूष पांडे
    • Updated: 28 दिसम्बर, 2016 01:29 PM
  • 28 दिसम्बर, 2016 01:29 PM
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सच्ची बात यही है कि रिजोल्यूशन लेना बहुत टेढ़ा काम है. इतना टेढ़ा कि यही तय करना मुश्किल हो रहा है कि रिजोल्यूशन क्या लें- निभाना तो बहुत दूर की बात है.

नया साल आते ही अपन एक अजीब सी कुंठा से ग्रस्त हो जाते हैं. वजह है प्रण यानी रिजोल्यूशन का अभाव. नए साल के मौके पर जिसे देखो, दो चार किलो रिजोल्यूशन उठाए घूम रहा होता है. और अपन सिर्फ इस चिंता को सिर पर लिए घूमते हैं कि क्या प्रण लिया जाए? रिज़ोल्यूशन निभाना खासा मुश्किल काम है, लेकिन रिज़ोल्यूशन तय करना उससे भी मुश्किल. देखिए ना, नव वर्ष को आने में एक-दो दिन बचे हैं और अपन अभी भी इसी उधेड़बुन में हैं कि नववर्ष की गर्माहट के बीच एक-आध रिज़ोल्यूशन तो ले ही लें.

 रिज़ोल्यूशन निभाना खासा मुश्किल काम है, लेकिन रिज़ोल्यूशन तय करना उससे भी मुश्किल

आजादी के आंदोलन के वक्त जिस तरह लोग बापू की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते थे, उसी तरह आजकल लोग अपनी खराब आदतों से छुटकारे लिए नववर्ष के रिज़ोल्यूशन की तरफ देखते हैं. गांधी जी काम कर गए लेकिन रिज़ोल्यूशन! देखिए, अब कोई भारी भरकम खाने का शौकीन मोटू रिज़ोल्यूशन ले कि वज़न घटाने के लिए वो नए साल में सिर्फ़ करेले-लौकी का जूस पीएगा. बेवफा महबूब की गली मानकर मिठाई की दुकान की तरफ तो कभी झांकेगा भी नहीं. लेकिन गरमागरम जलेबी प्लेट में महबूब सी सजकर सामने आ जाए तो बेचारा रिज़ोल्यूशन क्या उखाड़ लेगा?

लेकिन, नववर्ष पर रिज़ोल्यूशन यानी प्रण ही नहीं लिया तो नववर्ष की अनुभूति कैसे हो ? कैलेंडर पर तारीख तो रोज़ बदल जाती है, किस्मत नहीं. किस्मत बदलने के लिए प्रण लेना पड़ता है. वैसे, नए साल पर लिए जाने वाले रिज़ोल्यूशन तीन प्रकार के होते हैं. पहला, जो नए साल के पहले दिन की शाम तक डंके की चोट पर चलता है और रात होते होते 31 दिसंबर तक सस्पेंड कर दिया जाता है. दूसरा, साप्ताहिक प्रण. नाम से साफ...

नया साल आते ही अपन एक अजीब सी कुंठा से ग्रस्त हो जाते हैं. वजह है प्रण यानी रिजोल्यूशन का अभाव. नए साल के मौके पर जिसे देखो, दो चार किलो रिजोल्यूशन उठाए घूम रहा होता है. और अपन सिर्फ इस चिंता को सिर पर लिए घूमते हैं कि क्या प्रण लिया जाए? रिज़ोल्यूशन निभाना खासा मुश्किल काम है, लेकिन रिज़ोल्यूशन तय करना उससे भी मुश्किल. देखिए ना, नव वर्ष को आने में एक-दो दिन बचे हैं और अपन अभी भी इसी उधेड़बुन में हैं कि नववर्ष की गर्माहट के बीच एक-आध रिज़ोल्यूशन तो ले ही लें.

 रिज़ोल्यूशन निभाना खासा मुश्किल काम है, लेकिन रिज़ोल्यूशन तय करना उससे भी मुश्किल

आजादी के आंदोलन के वक्त जिस तरह लोग बापू की तरफ आशा भरी निगाहों से देखते थे, उसी तरह आजकल लोग अपनी खराब आदतों से छुटकारे लिए नववर्ष के रिज़ोल्यूशन की तरफ देखते हैं. गांधी जी काम कर गए लेकिन रिज़ोल्यूशन! देखिए, अब कोई भारी भरकम खाने का शौकीन मोटू रिज़ोल्यूशन ले कि वज़न घटाने के लिए वो नए साल में सिर्फ़ करेले-लौकी का जूस पीएगा. बेवफा महबूब की गली मानकर मिठाई की दुकान की तरफ तो कभी झांकेगा भी नहीं. लेकिन गरमागरम जलेबी प्लेट में महबूब सी सजकर सामने आ जाए तो बेचारा रिज़ोल्यूशन क्या उखाड़ लेगा?

लेकिन, नववर्ष पर रिज़ोल्यूशन यानी प्रण ही नहीं लिया तो नववर्ष की अनुभूति कैसे हो ? कैलेंडर पर तारीख तो रोज़ बदल जाती है, किस्मत नहीं. किस्मत बदलने के लिए प्रण लेना पड़ता है. वैसे, नए साल पर लिए जाने वाले रिज़ोल्यूशन तीन प्रकार के होते हैं. पहला, जो नए साल के पहले दिन की शाम तक डंके की चोट पर चलता है और रात होते होते 31 दिसंबर तक सस्पेंड कर दिया जाता है. दूसरा, साप्ताहिक प्रण. नाम से साफ है कि ये रिजोल्यूशन हफ्ते भर चलता है, लेकिन इस संडे से उस संडे तक आते आते शहीद हो जाता है. तीसरा, मासिक रिजोल्यूशन. इसके झांसे में परिवार वाले भी आने लगते हैं. बंदा जो रोज दारु पीये, फिर एक महीने तक न पीए तो परिवार वालों को भी भरोसा होने लगता है. फिर एक दिन बंदा झूम शराबी झूम शराबी गाते हुए घर पहुंचता है तो बर्तन भी टूटते हैं और भरोसा भी. एक वार्षिक प्रण भी होता है. रिज़ोल्यूशन एक्सपर्ट बताते हैं कि आजकल के बंदों में इस प्रण को निभाने की औकात नहीं रही. और जो लोग निभा सकते हैं, वो नए साल का इंतज़ार नहीं करते.

 

रिज़ोल्यूशन के विषय में इतनी महत्वपूर्ण जानकारी देने के चक्कर में अपन मुख्य विषय से भटक गए. नव वर्ष शुरु होने को है और एक भी रिज़ोल्यूशन झोली में नहीं है. हालांकि, कई रिजोल्यूशन पर विचार जारी है. मसलन-

1- आजादी के नारे लगाऊं. लेकिन किससे आजादी मांगू कि टीवी पर छा जाऊं-ये समझ नहीं आ रहा. कन्हैया पहले ही इत्ती चीजों से आजादी मांग चुका है कि आज़ादी भी कंफ्यूज हो जाए.

2- छिछोरेबाजी करुं और बिग बॉस के घर पहुंच जाऊं. लेकिन-इस रिजोल्यूशन में दिक्कत यह है कि इन दिनों हर फील्ड के अपने-अपने छिछोरेबाज हैं. और मुझ जैसे भले और बिना एक्सपीरियंस वाले आदमी के लिए छिछोरेबाजी करना टेड़ा काम है क्योंकि कानून बहुत सख्त हो लिए हैं. पता चला कि छिछोरेबाजी के क्षेत्र में कदम रखते ही जेल यात्रा हो जाए.

3- कभी लगता है कि वो ही पुराना रिजोल्यूशन फिर ले लूं, जो बीते पांच साल से हर साल ले रहा हूं. यानी इस साल नहीं पीऊंगा. फिर दिमाग कहता है- “बच्चू,मुफ्त में मिलती है तभी तू पीता है. पिलाने का काम तूने कभी किया नहीं. और तेरी कंजूसी के बारे में जब से दोस्तों को पता चला है, उन्होंने तुझे पिलाना बंद कर दिया है.“ यानी इस प्रण को लेने का कोई ठोस आधार नहीं है.    

4- फिर मैंने सोचा कि चलो इस साल कोई अच्छा प्रण लेते हैं- जैसे इस साल कुछ बच्चों को फ्री में पढ़ाऊंगा. फिर लगा-जब सरकार सालों से इत्ता पैसा खर्च सारे बच्चों को स्कूल नहीं ला पाई तो अपन क्यों इस झंझट में फँसें.

5- नोटबंदी के बाद हालात खराब रहते तो एक योजना थी कि एटीएम टू एमटीएम घुमाने वाली ट्रैवल एजेंसी खोलूं. इस ट्रैवल एजेंसी को खोलने का ही रिजोल्यूशन ले लेता. लेकिन अब कुछ एटीएम से पैसे निकलने लगे हैं तो यह रिजोल्यूशन भी नहीं ले सकता.

सच्ची बात यही है कि रिजोल्यूशन लेना बहुत टेड़ा काम है. इतना टेड़ा कि यही तय करना मुश्किल हो रहा है कि रिजोल्यूशन क्या लें-निभाना तो बहुत दूर की बात है. मुझे लगता है कि जो परेशानी मेरी है-वो परेशानी कइयों की होगी. नए साल के वक्त लाखों लोग इसी परेशानी से पीड़ित होंगे कि क्या रिजोल्यूशन लें. ऐसे में अब मुझे एक आइडिया आ रहा है. रिजोल्यूशन का नहीं. रिजोल्यूशन लेने वालों की समस्या सुलटाने का.

नए साल में एक स्टार्टअप शुरु करता हूं. स्टार्टअप-रिज़ोल्यूशन न ले सकने वाले लोगों को रिजोल्यूशन का आइडिया बताने का !!!!!

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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