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पेट्रोल 'अड़ाई रुपया' कम हुआ है, दादाजी के टाइम पर इतने पैसों में आदमी अम्बानी था

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 06 अक्टूबर, 2018 04:13 PM
  • 06 अक्टूबर, 2018 04:13 PM
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पेट्रोल में ढाई रुपए की छूट के बाद मुझे पिता जी का बचपन और दादा जी की जवानी याद आ गई.वो लोग बताते हैं कि तब बहुत बड़ा अमाउंट था ढाई रुपए.

पेट्रोल पर ढाई रुपए की छूट के बाद क्या दफ्तर. क्या चौक-चौराहा समाज दो खेमों में बंट गया है. आस पास दो तरह के लोग दिख रहे हैं. एक वो जो खुश हैं. दूसरे वो जो अब भी नाराज हैं और मुंह फुलाए बैठे हैं. जो खुश हैं, वो सरकार का समर्थन कर रहे हैं. जो नाराज हैं उन्हें हमेशा की तरह सरकार की आलोचना सूझ रही है. जिस तरह पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं, फिर कुछ पैसों या एक दो रुपयों में कम हो रहे हैं. कभी कभी यही लगता है कि शायर ये शायद पेट्रोल को देखकर ही कहा हो "हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता...

सरकार का तर्क है कि उसने पेट्रोल की कीमतों पर ढाई रुपए की छूट देकर बड़ी कटौती की है

ढाई रुपए और जो कोई बुजुर्ग कहे तो अड़ाई रुपया. आज भले ही इससे हरी धनिया के 4-5 डंठल या 50 ग्राम हरी मिर्च नहीं खरीदे जा सकते. मगर एक जमाना था, जब अगर किसी के पास ढाई रुपया होता तो उसका सीना गर्व से 56 इंच फूला रहता था. आस पास के लोग रास्ते में पलकें बिछाए बैठे रहते. सलाम नमस्ते करते. जिसके पास ढाई रुपए होता, हर समय उसकी मूंछों पर ताव रहता. कुल मिलाकर ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि एक समय वो भी था जब किसी के पास अगर ढाई रुपया होता तो वो मुहल्ले का अंबानी और खानदान का अडानी होता. दूर के रिश्तेदार भी उससे सम्बन्ध जोड़ते. मिलने वालों का घर में तांता लगा रहता.

ये सब इतिहास है और इतनी बातों के बावजूद हमें ये नहीं भूलना चहिये कि वो दौर दूसरा था ये दौर दूसरा है. अब ढाई रुपए में ज्यादा कुछ, बल्कि कुछ भी नहीं आता. अब ढाई रुपया सिर्फ ढाई रुपया है जो सरकार ने पेट्रोल पर कम किया है और जिसके चलते उसकी आलोचना से क्या मेन स्ट्रीम मीडिया क्या सोशल मीडिया सब कुछ पटा पड़ा है.

बहरहाल, पेट्रोल में ढाई रुपए की छूट मिलने की खबर के बाद मुझे पिता जी का बचपन और दादा जी की जवानी याद आ गई....

पेट्रोल पर ढाई रुपए की छूट के बाद क्या दफ्तर. क्या चौक-चौराहा समाज दो खेमों में बंट गया है. आस पास दो तरह के लोग दिख रहे हैं. एक वो जो खुश हैं. दूसरे वो जो अब भी नाराज हैं और मुंह फुलाए बैठे हैं. जो खुश हैं, वो सरकार का समर्थन कर रहे हैं. जो नाराज हैं उन्हें हमेशा की तरह सरकार की आलोचना सूझ रही है. जिस तरह पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं, फिर कुछ पैसों या एक दो रुपयों में कम हो रहे हैं. कभी कभी यही लगता है कि शायर ये शायद पेट्रोल को देखकर ही कहा हो "हर किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता...

सरकार का तर्क है कि उसने पेट्रोल की कीमतों पर ढाई रुपए की छूट देकर बड़ी कटौती की है

ढाई रुपए और जो कोई बुजुर्ग कहे तो अड़ाई रुपया. आज भले ही इससे हरी धनिया के 4-5 डंठल या 50 ग्राम हरी मिर्च नहीं खरीदे जा सकते. मगर एक जमाना था, जब अगर किसी के पास ढाई रुपया होता तो उसका सीना गर्व से 56 इंच फूला रहता था. आस पास के लोग रास्ते में पलकें बिछाए बैठे रहते. सलाम नमस्ते करते. जिसके पास ढाई रुपए होता, हर समय उसकी मूंछों पर ताव रहता. कुल मिलाकर ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि एक समय वो भी था जब किसी के पास अगर ढाई रुपया होता तो वो मुहल्ले का अंबानी और खानदान का अडानी होता. दूर के रिश्तेदार भी उससे सम्बन्ध जोड़ते. मिलने वालों का घर में तांता लगा रहता.

ये सब इतिहास है और इतनी बातों के बावजूद हमें ये नहीं भूलना चहिये कि वो दौर दूसरा था ये दौर दूसरा है. अब ढाई रुपए में ज्यादा कुछ, बल्कि कुछ भी नहीं आता. अब ढाई रुपया सिर्फ ढाई रुपया है जो सरकार ने पेट्रोल पर कम किया है और जिसके चलते उसकी आलोचना से क्या मेन स्ट्रीम मीडिया क्या सोशल मीडिया सब कुछ पटा पड़ा है.

बहरहाल, पेट्रोल में ढाई रुपए की छूट मिलने की खबर के बाद मुझे पिता जी का बचपन और दादा जी की जवानी याद आ गई. दादा की डायरी में आज भी ऐसे किस्सों की भरमार है जिनपर अगर यकीन किया जाए तो पता चलता है कि उनके जमाने में ढाई रुपया कितना बड़ा अमाउंट था. दादा की डायरी के किस्सों में अनुभव की मोटी परत है. वो झूठे हरगिज़ नहीं हो सकते. यदि आज उन किस्सों पर यकीन किया जाए तो कहना गलत नहीं है कि तब ढाई रुपए की हैसियत इतनी थी कि इसके बल पर व्यक्ति कई बीगाह जमीन अपने नाम करा लेता था.

बुजुर्गों से बात करने पर मालूम होता है कि किसी समय ढाई रुपए एक बहुत बड़ा अमाउंट था

शायद आप इन बातों पर यकीन न कर रहे हों. पुराने समय की कल्पना कीजिये. घर के किसी बुजुर्ग को पकड़िये, उनसे बात कीजिये. उनसे ढाई रुपए से जुड़े किस्से सुनिए स्थिति शीशे की तरह साफ हो जाएगी. जब आप उनसे बात कर रहे होंगे तो आपको मिलेगा कि उनके समय में ढाई रुपए में वो सबकुछ होता था जिसकी कल्पना यदि आज के परिपेक्ष में की जाए तो आदमी हैरत में आ जाएगा और दांतों तले अंगुली दबा लेगा.

तब वाकई ढाई रुपए बहुत बड़ा अमाउंट हुआ करता था. बताने वाले बताते हैं तब इतने पैसों में पूरे घर का खर्च आसानी के साथ हंसते-मुस्कुराते हुए चल जाता था. बच्चों की फीस और यहां तक की उन्हें पॉकेट मनी तक के लिए कुछ न कुछ दे दिया जाता था. तब ढाई रुपए एक ऐसा अमाउंट था जिससे रिश्तेदारी, मेहमानदारी चाय-नाश्ता बिस्किट-दालमोठ, शादी ब्याह बारात सब कुछ निपटा दिया जाता था. इतना सब करने के बाद भी व्यक्ति के पास सेविंग के नाम पर ठीक ठाक पैसे बच जाते थे जिसे वो अपने बुरे वक़्त के लिए बचाकर रख देता था.

खैर, जैसा कि हम ऊपर इस बात को बता चुके हैं कल का अड़ाई रुपया अब सिर्फ ढाई रुपए है. वो जिससे न धनिया के डंठल आएंगे न हरी मिर्च तो अब जब इसे सरकार ने कम कर ही दिया है तो इसे संभाल के रखिये निश्चित तौर पर ये टॉफ़ी च्युइंगगम खरीदने के काम आएगा और जो पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ने से आपका मुंह खट्टा हुआ है उस स्वाद को परिवर्तित करते हुए ये आपको ताजगी देगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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