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महंगाई तो बहाना है, मजा आता है नेपाल जाकर पेट्रोल भरवाने में!

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 19 फरवरी, 2021 02:05 PM
  • 19 फरवरी, 2021 02:03 PM
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महंगाई से आम आदमी हलकान होकर त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है. लेकिन, इन आम आदमियों के बीच राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले लोग बड़े अजीब हैं. किसी को इस महंगाई में देश का विकास नजर आ रहा है. कोई कह रहा है कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. मतलब कि ऐसे लोग हमारे ही बीच में हैं और हम उन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं.

आज सुबह अखबार पढ़ ही रहा था कि एक खबर पर जाकर नजर टिक गई. इस खबर पर नजर-ए-इनायत होने की दो वजहें दी थीं. पहली ये कि लोग 'पेट्रोल' भरवाने नेपाल जा रहे हैं. दूसरी ये कि इससे 'पैसा' भी कमा रहे हैं. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब राज्यसभा सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मोदी सरकार को महंगाई के मामले पर निशाने पर लिया था. सीता (नेपाल), रावण (श्रीलंका) और राम (भारत) के देशों में पेट्रोल की अलग-अलग कीमतों पर स्वामी ने मोदी सरकार पर तंज कसा था. सरकार पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन, लोगों ने इसे गंभीरता से लेते हुए 'आपदा में अवसर' खोज निकाला. नेपाल के सीमावर्ती इलाकों के लोग पड़ोसी देश में जाकर पेट्रोल ले रहे हैं. भारत में पेट्रोल की कीमत ने 'शतक' बना दिया है और अभी भी स्ट्राइकर एंड पर ही खड़ा हुआ है. वैसे तो, 'आपदा में अवसर' का ये खेल पुराना है. इसे तस्करी की संज्ञा दी जाती है, लेकिन देश में बढ़ रही महंगाई को देखते हुए यह ठीक ही लगता है.

कोरोनाकाल में आम आदमी का जीना दूभर हो गया था. अब तो ये और मुश्किल होता जा रहा है. उद्योग-धंधे चौपट हैं, लोग अभी भी बेरोजगार हो रहे हैं, उस पर 'कोढ़ में खाज' महंगाई ने रही-सही कसर निकाल ली है. आम आदमी को महंगाई के इस हमले से बचने का कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा है. वहीं, अखबार वाले नेपाल से पेट्रोल लाने की खबरें छापकर लोगों का खून और जला रहे हैं. 100 का पेट्रोल 22 रुपये सस्ते में नेपाल से लाकर पैसा कमाने वाले लोगों से जलन होना स्वाभाविक है. बीते 10 महीने में पेट्रोल-डीजल के दामों में करीब 20 रुपये लीटर तक बढ़ोत्तरी हुई है. रसोई गैस के दाम भी लगभग 200 रुपये तक बढ़ गए हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो, लग रहा है कि जल्द ही राष्ट्रपति के पास 'इच्छामृत्यु' वाली एप्लीकेशन भेजनी पड़ेगी. क्योंकि, लोगों के पास जहर खाने के लिए भी पैसे बच नहीं रहे हैं.

आज सुबह अखबार पढ़ ही रहा था कि एक खबर पर जाकर नजर टिक गई. इस खबर पर नजर-ए-इनायत होने की दो वजहें दी थीं. पहली ये कि लोग 'पेट्रोल' भरवाने नेपाल जा रहे हैं. दूसरी ये कि इससे 'पैसा' भी कमा रहे हैं. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब राज्यसभा सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मोदी सरकार को महंगाई के मामले पर निशाने पर लिया था. सीता (नेपाल), रावण (श्रीलंका) और राम (भारत) के देशों में पेट्रोल की अलग-अलग कीमतों पर स्वामी ने मोदी सरकार पर तंज कसा था. सरकार पर इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ा था. लेकिन, लोगों ने इसे गंभीरता से लेते हुए 'आपदा में अवसर' खोज निकाला. नेपाल के सीमावर्ती इलाकों के लोग पड़ोसी देश में जाकर पेट्रोल ले रहे हैं. भारत में पेट्रोल की कीमत ने 'शतक' बना दिया है और अभी भी स्ट्राइकर एंड पर ही खड़ा हुआ है. वैसे तो, 'आपदा में अवसर' का ये खेल पुराना है. इसे तस्करी की संज्ञा दी जाती है, लेकिन देश में बढ़ रही महंगाई को देखते हुए यह ठीक ही लगता है.

कोरोनाकाल में आम आदमी का जीना दूभर हो गया था. अब तो ये और मुश्किल होता जा रहा है. उद्योग-धंधे चौपट हैं, लोग अभी भी बेरोजगार हो रहे हैं, उस पर 'कोढ़ में खाज' महंगाई ने रही-सही कसर निकाल ली है. आम आदमी को महंगाई के इस हमले से बचने का कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा है. वहीं, अखबार वाले नेपाल से पेट्रोल लाने की खबरें छापकर लोगों का खून और जला रहे हैं. 100 का पेट्रोल 22 रुपये सस्ते में नेपाल से लाकर पैसा कमाने वाले लोगों से जलन होना स्वाभाविक है. बीते 10 महीने में पेट्रोल-डीजल के दामों में करीब 20 रुपये लीटर तक बढ़ोत्तरी हुई है. रसोई गैस के दाम भी लगभग 200 रुपये तक बढ़ गए हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो, लग रहा है कि जल्द ही राष्ट्रपति के पास 'इच्छामृत्यु' वाली एप्लीकेशन भेजनी पड़ेगी. क्योंकि, लोगों के पास जहर खाने के लिए भी पैसे बच नहीं रहे हैं.

'बेचारी' मोदी सरकार एक ही समय पर कोरोना, चीन, महंगाई और भी न जाने किन-किन चीजों से जंग लड़ रही है.

'बेचारी' मोदी सरकार एक ही समय पर कोरोना, चीन, महंगाई और भी न जाने किन-किन चीजों से जंग लड़ रही है. महंगाई को लेकर मोदी सरकार बहुत ज्यादा चिंतित है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी है कि अगर पहले की सरकारों ने ऊर्जा आयात की निर्भरता पर ध्यान दिया होता, तो मध्यम वर्ग को यह बोझ नहीं उठाना पड़ता. अब आप ही बताइए कि आपके देश का प्रधानमंत्री इससे ज्यादा और क्या कह दे. 2014 से उनकी सरकार देश में है और वह उसे भी कटघरे में समान रूप से खड़ा कर रहे हैं, ये क्या कम है. मतलब, मोदी सरकार का हाल कुछ ऐसा ही कि देश में कुछ भी हो जाए, उसके पीछे पहले की सरकारों या फिर चाचा नेहरू की जिम्मेदारी ही सामने आ जाती है. ये तो अच्छा हुआ कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का वो बयान लोगों को आज भी याद है, जिसमें उन्होंने कहा था- 'Poverty is just a state of mind अर्थात् गरीबी एक मानसिक अवस्था है.' इस महावाक्य से लोग आज भी प्रेरणा लेते हैं, वरना कब के निपट गए होते.

महंगाई से आम आदमी हलकान होकर त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहा है. लेकिन, इन आम आदमियों के बीच राजनीतिक प्रतिबद्धता वाले लोग बड़े अजीब हैं. किसी को इस महंगाई में देश का विकास नजर आ रहा है. कोई कह रहा है कि सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. मतलब कि ऐसे लोग हमारे ही बीच में हैं और हम उन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं. अंधसमर्थकों की फौज कह रही है कि चीन पीछे हट रहा है. कोरोना के टीके भारत में बन रहे हैं. भारत ने पाकिस्तान की हालत खराब कर रखी है आदि-आदि. अब इन सबमें महंगाई का क्या रोल है, इसे खोजने की जिम्मेदारी आपके ऊपर है. ज्यादा महंगाई का रोना रोओ, तो एंटी नेशनल बनाए जाने का खतरा भी मंडरा रहा होता है. वहीं, अंधविरोधियों की अपनी ही समस्या बड़ी विकट है. इनका फंडा ही क्लियर नहीं है कि आम आदमी को आखिर क्या चाहिए. पहले सीएए, फिर किसान आंदोलन, फिर दिशा रवि और अब आखिर में जाकर महंगाई को लेकर प्रदर्शन करने की सोची है. कुल मिलाकर सरकार हो या विपक्ष आम आदमी आज भी उसके लिए आखिरी पायदान पर ही है.

कोरोनाकाल में शुरू हुई अमीरों की चांदी अब भी जारी है. मुकेश अंबानी से लेकर बिरला तक सभी के बैंक अकाउंट में धनराशि के अंत में कई जीरो बढ़ गए. मध्यम वर्ग बेचारा सेवन डिजिट की तनख्वाह तक पहुंचने के लिए हाड़-तोड़ मेहनत करता है और फिर अचानक से कोरोना आ जाता है. सारे अरमान धरे के धरे रह जाते हैं. इंक्रीमेंट, अप्रेजल और प्रमोशन कोरोनाकाल में कुछ न हुआ. अब महंगाई गले की फांस बनी है. गरीब आदमी जैसे पहले गुजारा कर रहा था, अभी भी कर ही रहा है. उसके बारे में तो खैर कोई सोचता भी नहीं है. गरीब का तो सरकार ने ही जीरो बैलेंस पर खाता खुलवाया था, जो इससे आगे कभी बढ़ा ही नहीं. सरकार ने कोरोनाकाल में गरीबों को मुफ्त में गेंहू-चावल देकर अपने दायित्व की इतिश्री कर ली. महंगाई पर सरकार मुंह घुमाए खड़ी है और पिछली सरकारों को कोस रही है. गरीब अपनी किस्मत को कोस रहा है. इस मामले में नेपाल की सीमा पर रहने वाले ज्यादा सुखी हैं. सस्ते पेट्रोल से गाड़ी चला रहे हैं और उससे पैसे भी कमा रहे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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