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कम उम्र की लड़की किसे अच्छी नहीं लगती! अनूप जलोटा को भी लग गई होगी

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 18 सितम्बर, 2018 04:16 PM
  • 18 सितम्बर, 2018 04:16 PM
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अनूप जलोटा को लेकर चाहे लोग कितनी भी आलोचना कर लें मगर हमारे समाज का सच यही है कि लोग कम उम्र की लड़कियों को पसंद करते हैं और उनसे ही शादी या रिलेशनशिप स्थापित करना चाहते हैं.

देने वाला जब देने पर आता है तो छप्पर फाड़ के देता है. बात को गहराई में जाकर समझने के लिए हमें अनूप जलोटा का रुख करना चाहिए. बात बहुत समय पहले की है अनूप जलोटा ने मैया से कहा था कि 'मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो.' चूंकि कहने वाले कोई और नहीं बल्कि अनूप जलोटा थे तो उनके कहे पर जनता ने आंखें मूंद कर विश्वास कर लिया. मगर अब जब उन्हें जसलीन के रूप में अपनी मीरा मिली और उससे उनकी लगन लगी तो देश की जनता नाक भौं सिकोड़ती नजर आई.

प्रेम प्रकरण सामने आने के बाद अनूप जलोटा को लेकर तमाम तरह की बातें शुरू हो गई हैं

पूरे देश के पेट में मरोड़ है. बड़े बुद्धिजीवियों के द्वारा मोरालिटी की बातें हो रही हैं. मध्यम लेवल के लोग ज्ञान बघार रहे हैं. शब्दों की चाशनी में डालकर उसे हम जैसे छोटे लोगों के सामने परोसा जा रहा है.

ज्ञान बघारने वाले ज्ञानियों को देखकर मुझे बचपन में सुनी लोमड़ी और अंगूर वाली कहानी याद आ गई. कहानी में लोमड़ी थी और पके हुए अंगूर थे. लोमड़ी को अंगूर खाना था. वो तोड़ने का प्रयास कर रही थी मगर अंगूर उसकी पहुंच से बहुत दूर थे. प्रयास करते करते लोमड़ी भी उकता गई और आखिरकार उसने ये कहकर अपना इरादा बदल दिया कि 'अंगूर खट्टे' हैं. अनूप जलोटा और जसलीन मथारू के मामले में भी ज्ञान देने वाली लोमड़ी के सामने अंगूर खट्टे हैं.

देने वाला जब देने पर आता है तो छप्पर फाड़ के देता है. बात को गहराई में जाकर समझने के लिए हमें अनूप जलोटा का रुख करना चाहिए. बात बहुत समय पहले की है अनूप जलोटा ने मैया से कहा था कि 'मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो.' चूंकि कहने वाले कोई और नहीं बल्कि अनूप जलोटा थे तो उनके कहे पर जनता ने आंखें मूंद कर विश्वास कर लिया. मगर अब जब उन्हें जसलीन के रूप में अपनी मीरा मिली और उससे उनकी लगन लगी तो देश की जनता नाक भौं सिकोड़ती नजर आई.

प्रेम प्रकरण सामने आने के बाद अनूप जलोटा को लेकर तमाम तरह की बातें शुरू हो गई हैं

पूरे देश के पेट में मरोड़ है. बड़े बुद्धिजीवियों के द्वारा मोरालिटी की बातें हो रही हैं. मध्यम लेवल के लोग ज्ञान बघार रहे हैं. शब्दों की चाशनी में डालकर उसे हम जैसे छोटे लोगों के सामने परोसा जा रहा है.

ज्ञान बघारने वाले ज्ञानियों को देखकर मुझे बचपन में सुनी लोमड़ी और अंगूर वाली कहानी याद आ गई. कहानी में लोमड़ी थी और पके हुए अंगूर थे. लोमड़ी को अंगूर खाना था. वो तोड़ने का प्रयास कर रही थी मगर अंगूर उसकी पहुंच से बहुत दूर थे. प्रयास करते करते लोमड़ी भी उकता गई और आखिरकार उसने ये कहकर अपना इरादा बदल दिया कि 'अंगूर खट्टे' हैं. अनूप जलोटा और जसलीन मथारू के मामले में भी ज्ञान देने वाली लोमड़ी के सामने अंगूर खट्टे हैं.

बात चाहे जैसी भी हो. नैतिकता की कितनी भी दुहाई दे दी जाए. कम उम्र की लड़कियां किसे नहीं पसंद. अनूप जलोटा भी इंसान हैं. उनमें भी वही गुण हैं जो हममें और आपमें हैं. क्या गलत किया है उन्होंने? शहर भर में माइक दौड़ा दीजिये. भेज दीजिये न्यूज़ चैनल्स की ओबी वैन. हो जाए मुकाबला. लोगों से इस प्रकरण पर सवाल पूछे जाएं कि आखिर उनसे क्या चूक हुई? गारंटी है जिन जिन के पास माइक जाएगा वो अपनी बगलें झाकेंगे.

बात साफ है. अनूप जलोटा पर अंगुली उठाना हमारी नाकामयाबी दर्शाता है. दरअसल बात ये है कि हम सब के भीतर एक चोर है जो केवल और केवल मौकापरस्त है. उठा के देखिये अखबार. सर्च करिए मेट्रीमोनियल वेबसाइट. ऐसे कई मामले हैं जिसने पुरुष विधुर है. उसे शादी करनी है. वो वेल सेटल्ड है मगर शर्त क्या है ? शर्त बस इतनी है कि उसकी होने वाली बीवी कम उम्र की होनी चाहिए. शायद ये सुनने में अटपटा लगे मगर आज हमारे समाज में ऐसे तमाम पुरुष हैं जो अपना पौरुष शांत करने के लिए कम उम्र की बीवियों की डिमांड रखते हैं.

भले ही खुद के बाल झड़ गए हों. मुंह पोपला लो. दांत टूटे हों. झुर्री पड़ा चेहरा हो. कमर झुकी हो. जीवन दवाओं के सहारे हो मगर कंवारी लड़की की कल्पना मात्र ही इनके अन्दर एक नए जोश का संचार कर देती है. सच ये है कि अनूप जलोटा ने हम सभी को आईना दिखाया है और उस आईने में हम सभी नंगे हैं. इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प ये है कि अपने अंतर्मन में हम जिस चीज की कल्पना कर रहे थे अनूप जलोटा ने न सिर्फ उसे अमली जामा पहनाया बल्कि अच्छी पैकेजिंग के साथ हमारे सामने पेश कर दिया.

अनूप जलोटा मामले को लेकर चाहे कितना भी ज्ञान दे दिया जाए. कितना ही ज्ञान ले लिया जाए मगर उन्होंने वही किया जो उन्हें सही लगा.बाक़ी बात बस इतनी है कि जब तन के तम्बूरे में दो सांसो की तार बोले तो उससे किसी भी हाल में लोगों को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. अनूप जलोटा के भाग्य में ये प्रेम लिखा था उन्होंने प्रयास किया उन्हें मिला. जिसे ये रिश्ता अच्छा लगे अच्छी बात है नहीं तो अनूप जलोटा बहुत पहले ही अपने एक भजन में कह चुके हैं - हरी हरी हरी हरी सुमिरन करौ... हरी चरणान वृन्द उर धरौ.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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