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JNU के नए नियमों ने गंगा ढाबे पर बैठे तमाम कॉमरेड्स की हवा टाइट कर दी है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 02 मार्च, 2023 09:10 PM
  • 02 मार्च, 2023 09:03 PM
offline
छात्र प्रदर्शनों का केंद्र रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जमकर लगाम कसी है. नए नियमों के मुताबिक़ परिसर में धरना देने पर छात्रों पर 20,000 रुपये का जुर्माना और हिंसा करने पर 30,000 रुपये का जुर्माना लग सकता है. हिंसा के दोषी पाए गए स्टूडेंट्स का एडमिशन भी रद्द किया जा सकता है.

Damn! What Is Wrong With Them

ये भी कोई बात है.

ये नियम हमारे "लोकटांट्रिक" अधिकारों का हनन है.

मैं तो कह रहा हूं - इस फरमान के जरिये लोकटंत्र की हतिया की जा रही है.

कहां हैं गृहमंत्री शाह? कोई जाकर बताओ पीएम मोदी को!

... भरी भीड़  होने के बावजूद अजीब सी वीरानी छाई थी गंगा ढाबे पर. पढ़ने लिखने वाले छात्र घुटनों पर किताब रख, एक हाथ में चाय का गिलास पकड़े दूसरे हाथ से ब्रेड रोल चबा रहे थे. लेकिन कॉमरेड कल्लन को इससे कोई मतलब नहीं था. व्यवस्था के और उससे भी ज्यादा यूनिवर्सिटी द्वारा बनाए गए नए नियमों का गुस्सा, गांजे से लाल हुई उसकी आंखों को और लाल कर रहा था. उम्र के पैंतालीस बसंत देख चुका कॉमरेड कल्लन साथियों को आज पहली बार परेशान दिखा. और दिखता भी क्यों न! बात भी हो ऐसी है. क्रांति के नाम पर अब न तो वो कैम्पस में प्रदर्शन कर पाएगा न ही किसी किस्म की तोड़ फोड़. अब जो उसने ऐसा कुछ किया, तो उसका सीधा असर उसके उस बुजुर्ग बाप पर होगा, जो बुढ़ापे में आज भी उसे लिखाई पढ़ाई के नाम पर गांव से उसे पैसे भेज रहा है.

नए नियमों के बाद जेएनयू में तमाम कॉमरेड्स बेचैन दिखाई पड़ रहे हैं

कॉमरेड कल्लन की तरह कॉमरेड चमेली का भी बीपी बढ़ा हुआ है. आज न तो उसका बड़ी बिंदी लगाने का मन था. न ही उसे खादी के कुर्ते पर बड़े झुमके पहनने थे. यूनिवर्सिटी के नए नियमों के आगे उसके वामपंथी विचार दम तोड़ रहे थे.वो इतनी बेबस और इतनी लाचार थी कि चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी.

दरअसल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JN) में अब प्रदर्शन करने वालों को छोड़ा...

Damn! What Is Wrong With Them

ये भी कोई बात है.

ये नियम हमारे "लोकटांट्रिक" अधिकारों का हनन है.

मैं तो कह रहा हूं - इस फरमान के जरिये लोकटंत्र की हतिया की जा रही है.

कहां हैं गृहमंत्री शाह? कोई जाकर बताओ पीएम मोदी को!

... भरी भीड़  होने के बावजूद अजीब सी वीरानी छाई थी गंगा ढाबे पर. पढ़ने लिखने वाले छात्र घुटनों पर किताब रख, एक हाथ में चाय का गिलास पकड़े दूसरे हाथ से ब्रेड रोल चबा रहे थे. लेकिन कॉमरेड कल्लन को इससे कोई मतलब नहीं था. व्यवस्था के और उससे भी ज्यादा यूनिवर्सिटी द्वारा बनाए गए नए नियमों का गुस्सा, गांजे से लाल हुई उसकी आंखों को और लाल कर रहा था. उम्र के पैंतालीस बसंत देख चुका कॉमरेड कल्लन साथियों को आज पहली बार परेशान दिखा. और दिखता भी क्यों न! बात भी हो ऐसी है. क्रांति के नाम पर अब न तो वो कैम्पस में प्रदर्शन कर पाएगा न ही किसी किस्म की तोड़ फोड़. अब जो उसने ऐसा कुछ किया, तो उसका सीधा असर उसके उस बुजुर्ग बाप पर होगा, जो बुढ़ापे में आज भी उसे लिखाई पढ़ाई के नाम पर गांव से उसे पैसे भेज रहा है.

नए नियमों के बाद जेएनयू में तमाम कॉमरेड्स बेचैन दिखाई पड़ रहे हैं

कॉमरेड कल्लन की तरह कॉमरेड चमेली का भी बीपी बढ़ा हुआ है. आज न तो उसका बड़ी बिंदी लगाने का मन था. न ही उसे खादी के कुर्ते पर बड़े झुमके पहनने थे. यूनिवर्सिटी के नए नियमों के आगे उसके वामपंथी विचार दम तोड़ रहे थे.वो इतनी बेबस और इतनी लाचार थी कि चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही थी.

दरअसल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JN) में अब प्रदर्शन करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा. यूनिवर्सिटी प्रशासन उनपर भारी जुर्माना लगाएगा. यूनिवर्सिटी प्रशासन के नए नियमों के मुताबिक़, परिसर में धरना देने पर छात्रों पर 20,000 रुपये का जुर्माना और हिंसा करने पर 30,000 रुपये का जुर्माना लग सकता है. वहीं ऐसे स्टूडेंट्स जो हिंसा के दोषी पाए गए उनका एडमिशन भी रद्द किया जा सकता है.

यूनिवर्सिटी ने 10 पन्नों का एक सर्कुलर जारी किया है. नाम रखा गया है 'अनुशासन और उचित आचरण के नियम'. बताया जा रहा है कि सर्कुलर 3 फरवरी से प्रभावी हो गया है. इसमें विरोध प्रदर्शन और जालसाज़ी जैसे 17 अलग-अलग 'अपराधों' के लिए सज़ा तय की गई है.

चूंकि इसमें अनुशासन का उल्लंघन करने पर जांच प्रक्रिया का भी ज़िक्र है. कॉमरेड चमेली के तेवर देखने वाले हैं.

पुष्पा जो अभी फर्स्ट ईयर में है और 'कौम' की कॉमरेड बनने के लिए कॉमरेड कल्लन, कॉमरेड चमेली जैसे वरिष्ठों के सानिध्य में इंटर्नशिप कर रही थी. कॉमरेड चमेली से कहने लगी, साथी अब क्या होगा?

पुष्पा आगे कोई और सवाल करती भन्न से कॉमरेड चमेली बोल पड़ी - ... इस जोर जबर की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है!

जैसे ही क्रांति से लबरेज ये नारा ख़त्म हुआ पुष्पा की आवाज फिजाओं में गूंजी -

... साथी दीदी! 'संघर्ष?'

कॉमरेड चमेली को याद आया 'संघर्ष' तो लुटिया डुबा देगा. उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. यूनिवर्सिटी के नियम याद आये और उसने अपनी जीभ को दांत से काटकर बेशर्मी वाला मुंह बनाया.

बगल में बैठा कॉमरेड कल्लन अब भी हैरान परेशान है. मुदा धीर गंभीर है. बाल जो बरसों से कंघा न करने के कारण आपस में उलझ गए थे उनमें पसीना है. वो जींस जो बरसों से धुली नहीं है उसपर बॉल पेन से चिड़िया नुमा आकृति बनाते हुए उसने कॉमरेड चमेली की तरफ देखा. निगाह उठा के देखा. टकटकी बांध कर देखा और पीएम मोदी को कोसते गए कहा कि - सब जानता है मैं. ये सब कुछ पीएम मोदी की चाल है. वो हम स्टूडेंट्स की आवाज दबाना चाहते हैं.

वहीं उसने ये भी कहा कि ये सरकार चाहती ही नहीं कि कोई बच्चा लिखाई पढ़ाई करे और उसका इस्तेमाल कर गलत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करे.

चूंकि यूनिवर्सिटी ने जुआ, यौन शोषण, छेड़खानी, रैगिंग, छात्रावास के कमरों पर अनधिकृत कब्जे, अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल और जालसाज़ी जैसे मामलों की सज़ा तय की है. चेली चपाटियों संग बरमूडा पहनकर पेरियार हॉस्टल की सीढ़ी पर बैठकर चाय संग बीड़ी पीने वाले कॉमरेड गफूर की हालत और बदतर है. बेचारा परेशान है कि आखिर अब खर्चा पानी कहां से आएगा? यूनिवर्सिटी ने तो नियम बनाकर उसके अरमानों पर पेट्रोल छिड़क कर आग लगा दी.

कॉमरेड गफूर साथी कॉमरेड से कहता पाया गया कि ऐसे में तो एंटायर पॉलिटिकल साइंस में पीएचडी होने से रही. बेहतर यही है कि अब गांव जाकर खेती किसानी की जाए. यूं भी हम तो जमीन है जुड़े हैं. क्यों हैं न साथी ?

ब्रह्मपुत्र, गंगा, गोदावरी, झेलम, कावेरी क्या लेफ्ट विंग के और क्या राइट विंग वाले छात्र सभी परेशान हैं. यूनिवर्सिटी के नए नियमों के आगे भूख प्यास सबकी रुकी है. नए नियमों ने दुश्मनों को दोस्त बना दिया है. जेरे बहस मुद्दा यही है कि आखिर अब ऐसा क्या किया जाए जिससे दुनिया को दिखे कि हम छात्र हैं.

बाकी नर्मदा हॉस्टल के वाशरूम में एबीवीपी का एक छात्र, आइसा के एक छात्र नेता से नए नियमों को लेकर जो कुछ भी कह रहा था उसने तमाम छात्रों की आंखें नम कर दी हैं. एबीवीपी वाले स्टूडेंट ने आइसा वाले स्टूडेंट्स से कहा कि मोदी जी हमारी जिंदगी मांग लेते हम ख़ुशी ख़ुशी दे देते. इन्होने तो इस नियम के जरिये हमारा गुमान ही छीन लिया.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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