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व्हीलचेयर को उसका खोया हुआ सम्मान मुख्तार अंसारी और ममता बनर्जी ने ही दिलाया है

    • देवेश त्रिपाठी
    • Updated: 09 अप्रिल, 2021 01:54 PM
  • 09 अप्रिल, 2021 01:54 PM
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राजनीति अपनी जगह है, लेकिन व्हीलचेयर का नाम लेते ही जो चेहरा सबसे पहले सामने आता है, वो है दुनिया के सबसे बड़े भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग का. दुनिया का एक बेहतरीन दिमाग मोटर न्यूरॉन नाम की एक बीमारी की वजह से उन्हें मजबूरी में व्हीलचेयर पर आना पड़ा.

तिनका कबहुं न निन्दिये, जो पांवन तर होय,

कबहुं उड़ी आंखिन परे, तो पीर घनेरी होय.

संत कबीर दास का ये दोहा इन दिनों व्हीलचेयर पर बिल्कुल सटीक बैठता दिख रहा है. व्हीलचेयर पर आमतौर पर गंभीर रूप से बीमार लोग ही बैठते हैं. यही वजह है कि लोगों ने व्हीलचेयर को कभी वो स्थान नहीं दिया, जिस पर वो आज काबिज हो गई है. वैसे, भगवान न करे कि कभी कोई व्हीलचेयर पर आए. लेकिन, अब वो जमाने लद गए हैं, जब लोग व्हील चेयर को हेय दृष्टि से देखा करते थे. दुनिया की महंगी से महंगी गाड़ियों को भारत में अब व्हीलचेयर से टक्कर मिल रही है. अगर अति उत्साह में ये कह दिया जाए कि व्हीलचेयर आज के टाइम में न्यू स्टाइल स्टेटमेंट बन गई है, तो शायद गलत नहीं होगा.

भारत में व्हीलचेयर अब जीवन बचाने से लेकर चुनावी हार बचाने तक के काम में आ रही है. व्हीलचेयर इतनी मशहूर क्यों हुई है, ये भाजपा नेता और मध्य प्रदेश सरकार के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बता दिया है. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि आजकल देश में दो व्हीलचेयर बड़ी चर्चा में है. एक हार के डर से व्हीलचेयर पर हैं, तो दूसरे मार के डर से व्हीलचेयर पर है. आपकी राजनीति में थोड़ी सी भी रुचि होगी, तो आपको बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि ये बात किन व्हीलचेयर्स के लिए की जा रही थी. वैसे, व्हीलचेयर को उसका खोया हुआ सम्मान दिलाने में मुख्तार अंसारी और ममता बनर्जी की बड़ी भूमिका है.

व्हीलचेयर पर यूं ही बैठने से सहानुभूति नहीं मिल जाती है. इसके लिए घनघोर और कठिन तप करना पड़ता है. अब दिन के 24 घंटों में से एक बड़ा हिस्सा केवल व्हीलचेयर पर गुजारना किसी तप से कम तो है नहीं. आप खुद सोचिए, एक हट्टा-कट्टा शख्स जबरदस्ती की बेहोशी की हालत में व्हीलचेयर पर बैठे हुए सारे काम निपटाए, यह किसी तप से कम नहीं है. मुख्तार अंसारी ने व्हीलचेयर पर बैठकर जो तप किया है, ये...

तिनका कबहुं न निन्दिये, जो पांवन तर होय,

कबहुं उड़ी आंखिन परे, तो पीर घनेरी होय.

संत कबीर दास का ये दोहा इन दिनों व्हीलचेयर पर बिल्कुल सटीक बैठता दिख रहा है. व्हीलचेयर पर आमतौर पर गंभीर रूप से बीमार लोग ही बैठते हैं. यही वजह है कि लोगों ने व्हीलचेयर को कभी वो स्थान नहीं दिया, जिस पर वो आज काबिज हो गई है. वैसे, भगवान न करे कि कभी कोई व्हीलचेयर पर आए. लेकिन, अब वो जमाने लद गए हैं, जब लोग व्हील चेयर को हेय दृष्टि से देखा करते थे. दुनिया की महंगी से महंगी गाड़ियों को भारत में अब व्हीलचेयर से टक्कर मिल रही है. अगर अति उत्साह में ये कह दिया जाए कि व्हीलचेयर आज के टाइम में न्यू स्टाइल स्टेटमेंट बन गई है, तो शायद गलत नहीं होगा.

भारत में व्हीलचेयर अब जीवन बचाने से लेकर चुनावी हार बचाने तक के काम में आ रही है. व्हीलचेयर इतनी मशहूर क्यों हुई है, ये भाजपा नेता और मध्य प्रदेश सरकार के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बता दिया है. नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि आजकल देश में दो व्हीलचेयर बड़ी चर्चा में है. एक हार के डर से व्हीलचेयर पर हैं, तो दूसरे मार के डर से व्हीलचेयर पर है. आपकी राजनीति में थोड़ी सी भी रुचि होगी, तो आपको बताने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि ये बात किन व्हीलचेयर्स के लिए की जा रही थी. वैसे, व्हीलचेयर को उसका खोया हुआ सम्मान दिलाने में मुख्तार अंसारी और ममता बनर्जी की बड़ी भूमिका है.

व्हीलचेयर पर यूं ही बैठने से सहानुभूति नहीं मिल जाती है. इसके लिए घनघोर और कठिन तप करना पड़ता है. अब दिन के 24 घंटों में से एक बड़ा हिस्सा केवल व्हीलचेयर पर गुजारना किसी तप से कम तो है नहीं. आप खुद सोचिए, एक हट्टा-कट्टा शख्स जबरदस्ती की बेहोशी की हालत में व्हीलचेयर पर बैठे हुए सारे काम निपटाए, यह किसी तप से कम नहीं है. मुख्तार अंसारी ने व्हीलचेयर पर बैठकर जो तप किया है, ये उसी का नतीजा है कि उनकी गाड़ी नहीं पलटी. वरना लोगों ने तो पूरा माहौल बना दिया था. मुख्तार की गाड़ी न पलट जाए, इसके लिए उनकी पत्नी सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई थीं. अगर मुख्तार अंसारी को सहूलियत दी जाती, तो वह उत्तर प्रदेश की पुलिस की गाड़ी की जगह अपनी व्हीलचेयर से ही पंजाब की रोपड़ जेल से बांदा पहुंच जाता. ये तो अच्छा हुआ कि व्हीलचेयर से सहानुभूति मिल गई और उनकी यात्रा सफल रही. बांदा जेल पहुंचने पर मुख्तार व्हीलचेयर से उतर कर जेल के अंदर गया था, तो नरोत्तम मिश्रा की डर वाली बात पर मुहर तो लग ही जाती है.

व्हीलचेयर को उसका खोया हुआ सम्मान दिलाने का श्रेय पूरी तरह से मुख्तार अंसारी और ममता बनर्जी को जाता है.

मुहर से याद आया कि अब चुनाव बैलट पेपर से तो होते नही हैं. ईवीएम के सामने उसकी क्रेडिबिलिटी का अलग रोना है. वैसे, पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों ने कुछ दिनों पहले एक ऐसेचमत्कारिक प्लास्टर की खोज की थी. जिससे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पैर की चोट एक दिन में ही ठीक हो गई. लेकिन, इस चोट ने उन्हें व्हीलचेयर पर बैठने को मजबूर कर दिया. ममता बनर्जी ने भी आरोप लगाया कि वह भाजपा की वजह से व्हीलचेयर पर आई हैं. उनकी बात सौ फीसदी सही थी. पिछले विधानसभा चुनाव में 3 सीटें जीतने वाली भाजपा इस चुनाव में मुख्य प्रतिद्वंदी बन जाए, व्हीलचेयर पर आना मजबूरी बन जाता है. चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी भी उनके ही कंधों पर थी, तो व्हीलचेयर ही आखिरी रास्ता बचता है. ममता बनर्जी करीब एक महीने से व्हीलचेयर पर हैं, लेकिन अभी तक उससे उठी नहीं हैं. बताया जा रहा है कि 29 अप्रैल को 8वें चरण के मतदान के बाद का व्हीलचेयर से उठने का शुभ मुहूर्त निकाला गया है. उससे पहले उठने पर चुनावी नुकसान हो सकता है. हार के डर वाली बात पर यहां भी 'इति सिद्धम्' वाला फॉमूला लग ही गया है.

खैर, राजनीति अपनी जगह है, लेकिन व्हीलचेयर का नाम लेते ही जो चेहरा सबसे पहले सामने आता है, वो है दुनिया के सबसे बड़े भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग का. दुनिया का एक बेहतरीन दिमाग मोटर न्यूरॉन नाम की एक बीमारी की वजह से उन्हें मजबूरी में व्हीलचेयर पर आना पड़ा. इस बीमारी के कारण उनके दिमाग को छोड़कर शरीर के सभी हिस्सों ने काम करना बंद कर दिया था. बावजूद इसके उन्होंने भौतिक विज्ञान की कई चौंकाने वाली थ्योरीज दीं. स्टीफन हॉकिंग की व्हीलचेयर बहुत कमाल की थी. उनकी व्हीलचेयर को इस तरह से डिजाइन किया गया था कि वह उनके लिए बोलने-लिखने से लेकर एक कार की तरह भी काम करती थी. स्टीफन हॉकिंग अपनी मजबूरी की वजह से व्हीलचेयर पर आए थे. लेकिन, भारत में व्हीलचेयर का रुतबा इन दिनों बढ़ गया है. कहना गलत नहीं होगा कि व्हीलचेयर को उसका खोया हुआ सम्मान दिलाने का श्रेय पूरी तरह से मुख्तार अंसारी और ममता बनर्जी को जाता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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