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बस डर है कि 'विमल' के दाने-दाने जैसी 'केसरी' न हो जाए अपने कानपुर की मेट्रो!

    • सिद्धार्थ अरोड़ा सहर
    • Updated: 09 जनवरी, 2022 04:58 PM
  • 09 जनवरी, 2022 04:45 PM
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कानपुर में मेट्रो आने के बाद लोगों की एक बड़ी आबादी है जो दूर-दूर से घूमने और सेल्फी लेने के लिए मेट्रो के अंदर आ रही है और माहौल किसी जलसे जैसा है. अब जबकि लोग आ ही रहे हैं तो कानपुर वालों से बस इतनी गुज़ारिश है कि इसे विमल केसरी के रंग में न रंगे तो अच्छा है.

कानपुर में जबसे मेट्रो आई है, चढ़ने वालों का मेला लगा है. लोग गाड़ी पार्किंग में लगाकर पूरा राउंड मार फिर वहीँ उतरकर फोटो स्टेटस लगा रहे हैं, जश्न मना रहे है. अभी एक मित्र ने बताया कि जब लखनऊ में मेट्रो आई थी तब भी यही हाल हुआ था. दिल्ली का तो मुझे याद ही है, 2003 में हम ख़ुद शाहदरा से तीस हज़ारी मेट्रो देखने के लिए मेट्रो में जाया करते थे. इस बात पर भगवंत भाई हँसी ठिठोली कर रहे थे तो याद आया.

लॉस वेगास में कुछ साल पहले बीच सड़क पर हाथी निकल आया. सुबह का टाइम था, लोग दफ्तर पहुँचने के लिए भाग रहे थे कि लाइट ग्रीन हुई और हाथी आ गया. अब पता नहीं हाथी सिग्नल देखकर आगे बढ़ा था या उसकी नियत लोगों को कल्पाने की थी, पर तेज़ रफ़्तार यूनाइटेड स्टेट्स की मशहूर सड़क को एक हाथी ने रोक दिया.

मेट्रो आने के बाद जैसा नजारा कानपुर का है बड़ी संख्या में लोग घूमने आ रहे हैं

गाड़ी वाले तुरंत एक्शन में आ गये. अगले 15 मिनट में किसी ने ट्रैफिक पुलिस को क्प्लेन की, कोई 2 घंटे के अन्दर अन्दर मेयर के पास शिकायत लेकर पहुँच गया. एक जनाब ने हाथी पर केस फ़ाइल करने की ठान ली.

मेरे जैसे एक आम भारतीय को, जो लॉस वेगास में जॉब करता था; जब यह पता चला तो उसने उस चौराहे का रुख किया जहाँ बाकायदा हाथ में प्लेकार्ड लिए प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी. उस युवक ने पूछा कि हाथी आख़िर कितनी देर तक ट्रैफिक रोके खड़ा रहा?

पता चला जी 3 मिनट तक!

वहीं हमारे कोइम्बटोर में किसी सड़क पर हाथी आ जाए तो जो घर में बैठे हैं वो तक सड़क पर उतर आते हैं. ट्रैफिक गया तेल लेने, हम तो हाथ जोड़ उन्हें गणपति बप्पा मान प्रणाम करते हैं. हठी पर बैठे महावत के साथ सेल्फी लेते हैं, फिर जब 1  घंटे के रौले रप्पे के बाद हाथी वापस जंगल की ओर चला जाता है और कुछ बच्चे...

कानपुर में जबसे मेट्रो आई है, चढ़ने वालों का मेला लगा है. लोग गाड़ी पार्किंग में लगाकर पूरा राउंड मार फिर वहीँ उतरकर फोटो स्टेटस लगा रहे हैं, जश्न मना रहे है. अभी एक मित्र ने बताया कि जब लखनऊ में मेट्रो आई थी तब भी यही हाल हुआ था. दिल्ली का तो मुझे याद ही है, 2003 में हम ख़ुद शाहदरा से तीस हज़ारी मेट्रो देखने के लिए मेट्रो में जाया करते थे. इस बात पर भगवंत भाई हँसी ठिठोली कर रहे थे तो याद आया.

लॉस वेगास में कुछ साल पहले बीच सड़क पर हाथी निकल आया. सुबह का टाइम था, लोग दफ्तर पहुँचने के लिए भाग रहे थे कि लाइट ग्रीन हुई और हाथी आ गया. अब पता नहीं हाथी सिग्नल देखकर आगे बढ़ा था या उसकी नियत लोगों को कल्पाने की थी, पर तेज़ रफ़्तार यूनाइटेड स्टेट्स की मशहूर सड़क को एक हाथी ने रोक दिया.

मेट्रो आने के बाद जैसा नजारा कानपुर का है बड़ी संख्या में लोग घूमने आ रहे हैं

गाड़ी वाले तुरंत एक्शन में आ गये. अगले 15 मिनट में किसी ने ट्रैफिक पुलिस को क्प्लेन की, कोई 2 घंटे के अन्दर अन्दर मेयर के पास शिकायत लेकर पहुँच गया. एक जनाब ने हाथी पर केस फ़ाइल करने की ठान ली.

मेरे जैसे एक आम भारतीय को, जो लॉस वेगास में जॉब करता था; जब यह पता चला तो उसने उस चौराहे का रुख किया जहाँ बाकायदा हाथ में प्लेकार्ड लिए प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी. उस युवक ने पूछा कि हाथी आख़िर कितनी देर तक ट्रैफिक रोके खड़ा रहा?

पता चला जी 3 मिनट तक!

वहीं हमारे कोइम्बटोर में किसी सड़क पर हाथी आ जाए तो जो घर में बैठे हैं वो तक सड़क पर उतर आते हैं. ट्रैफिक गया तेल लेने, हम तो हाथ जोड़ उन्हें गणपति बप्पा मान प्रणाम करते हैं. हठी पर बैठे महावत के साथ सेल्फी लेते हैं, फिर जब 1  घंटे के रौले रप्पे के बाद हाथी वापस जंगल की ओर चला जाता है और कुछ बच्चे उसके दर्शन नहीं कर पाते तो उन्हें यह कहकर बहलाते हैं कि बेटा रो नहीं, अभी अगले चौराहे पर फिर आ जायेगा!

कानपुर मेट्रो भी उसी जलसे का नया रंग है, बस कानपुर वालों से गुज़ारिश है कि इसे विमल केसरी के रंग में न रंगे. जश्नप्रिय देश है मेरा!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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