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शादियों में शगुन का लिफाफा डिजिटल हुआ है और यकीनन ये एक क्रांतिकारी कदम है!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 26 अप्रिल, 2022 10:15 PM
  • 26 अप्रिल, 2022 10:15 PM
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बिहार के गोपालगंज में शगुन का लिफाफा डिजिटल हुआ है. यानी शादी/मुंडन/बर्थ डे में आइये, खाइये, पीजिये, मोबाइल से स्कैन कीजिये और चले जाइये. यक़ीनन शगुन के लिफाफों में फूफा, मौसा की मोनोपॉली को ख़त्म करने की दिशा में ये ट्रेडिशन एक क्रांतिकारी कदम है.

समय बदल रहा है और साथ ही बदल रही हैं हमारी जरूरतें भी. देश के प्रधानमंत्री के बार बार मिन्नतें करने के बाद आखिरकार दौर डिजिटल इंडिया वाला आ ही गया है. अब कोई जेब में नोटों की गड्डी रखकर नहीं चलता. न ही अब पूर्व की तरह किसी का बटुआ ही भारी होता है. हर हाथ मोबाइल है और तकनीक तो है ही इसलिए स्कैन करिये हो गया पेमेंट और चलते बनिए. ज़िन्दगी सुगम है. यूं भी कौन नहीं चाहता कि उसकी जिंदगी आसानी से गुजरे. भले ही हम आप न चाहें लेकिन बिहार के गोपालगंज का एक परिवार तो यही चाहता है. कैसे? सवाल समझने के लिए हमें इस परिवार द्वारा की गयी उस शादी को देखना होगा जहां शगुन या ये कहें कि न्योते के लिए डिजिटल पेमेंट पर बल दिया गया है. तो अब जबकि शगुन का लिफाफा डिजिटल हुआ है. शादी/मुंडन/बर्थ डे में आइये, खाइये, पीजिये, मोबाइल से स्कैन कीजिये और चले जाइये. बाकी जिस तरह का ये ट्रेडिशन है, ये शगुन के लिफाफों में फूफा मौसा की मोनोपॉली को ख़त्म करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है.

बिहार के गोपालगंज में जो डिजिटल पेमेंट के नाम पर हुआ है उससे लोगों को चर्चा करने का मौका मिल गया है

बात गोपालगंज में हुई शादी की हुई है तो सबसे पहले ये जान लीजिये कि इस शादी का वीडियो इंटरनेट पर जंगल की आग की तरह फैल रहा है. दिलचस्प ये कि चाहे वो वर पक्ष के लोग रहे हों या लड़की वाले. दोनों ही परिवारों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैशलेस मुहिम से प्रेरित होकर ही शगुन फोन-पे से ले रहे हैं. (वैसे प्रधानमंत्री ने इसके अलावा भी तमाम बातें कहीं थीं जिन्हें इन्होने शायद ही सुना हो या फिर सुना हो तो उसे अमली जामा पहनाया हो)

बताते चलें कि शादी में परिवार ने गूगल-पे और फोन-पे के क्यूआर कोड का पोस्टर लगाया है और एक नयी प्रथा की शुरुआत की है. लोग भी कहां...

समय बदल रहा है और साथ ही बदल रही हैं हमारी जरूरतें भी. देश के प्रधानमंत्री के बार बार मिन्नतें करने के बाद आखिरकार दौर डिजिटल इंडिया वाला आ ही गया है. अब कोई जेब में नोटों की गड्डी रखकर नहीं चलता. न ही अब पूर्व की तरह किसी का बटुआ ही भारी होता है. हर हाथ मोबाइल है और तकनीक तो है ही इसलिए स्कैन करिये हो गया पेमेंट और चलते बनिए. ज़िन्दगी सुगम है. यूं भी कौन नहीं चाहता कि उसकी जिंदगी आसानी से गुजरे. भले ही हम आप न चाहें लेकिन बिहार के गोपालगंज का एक परिवार तो यही चाहता है. कैसे? सवाल समझने के लिए हमें इस परिवार द्वारा की गयी उस शादी को देखना होगा जहां शगुन या ये कहें कि न्योते के लिए डिजिटल पेमेंट पर बल दिया गया है. तो अब जबकि शगुन का लिफाफा डिजिटल हुआ है. शादी/मुंडन/बर्थ डे में आइये, खाइये, पीजिये, मोबाइल से स्कैन कीजिये और चले जाइये. बाकी जिस तरह का ये ट्रेडिशन है, ये शगुन के लिफाफों में फूफा मौसा की मोनोपॉली को ख़त्म करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है.

बिहार के गोपालगंज में जो डिजिटल पेमेंट के नाम पर हुआ है उससे लोगों को चर्चा करने का मौका मिल गया है

बात गोपालगंज में हुई शादी की हुई है तो सबसे पहले ये जान लीजिये कि इस शादी का वीडियो इंटरनेट पर जंगल की आग की तरह फैल रहा है. दिलचस्प ये कि चाहे वो वर पक्ष के लोग रहे हों या लड़की वाले. दोनों ही परिवारों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैशलेस मुहिम से प्रेरित होकर ही शगुन फोन-पे से ले रहे हैं. (वैसे प्रधानमंत्री ने इसके अलावा भी तमाम बातें कहीं थीं जिन्हें इन्होने शायद ही सुना हो या फिर सुना हो तो उसे अमली जामा पहनाया हो)

बताते चलें कि शादी में परिवार ने गूगल-पे और फोन-पे के क्यूआर कोड का पोस्टर लगाया है और एक नयी प्रथा की शुरुआत की है. लोग भी कहां कम. सुविधा मिली और चूंकि ऑप्शन भी अच्छा था इसलिए इसका जमकर इस्तेमाल किया. इस क्यूआर कोड वाले मैटर पर लड़की वालों ने भी अपनी तरह के अनोखे तर्क दिए हैं.

लड़की वालों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया और कैशलेस की बात से वो लोग इतना इंस्पायर हुए कि उन्होंने गिफ्ट का पैसा फोन-पे से लेने का फैसला किया.लड़की वालों के अनुसार इससे हिसाब में भी गड़बड़ी नहीं होती है और जल्दी पेमेंट भी हो जाता है.

अब जैसा कि लाजमी था इस तरह की पहल के बाद समाज दो वर्गों में बंट गया है. एक वर्ग मुहिम के साथ है और इसे समय की जरूरत बता रहा है तो वहीं दूसरा वर्ग वो है जो इसके विरोध में है और जिसका यही मानना है कि इसका समाज पर बुरा असर पड़ेगा और कहीं न कहीं ऐसी चीजें दहेज़ जैसी कुप्रथा के लिए उत्प्रेरक का काम करेंगी.

आदमी आलोचना के लिहाज से कुछ भी कहने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है. लेकिन देखा जाए तो वाक़ई ये अच्छी पहल है. क्यों? इस बात को एक उदाहरण से समझिये. हम में से तमाम लोग होंगे जिन्हें इस लिफाफे ने खूब परेशान किया होगा. अक्सर होता है कि आदमी शादी के वेन्यू पर पहुंचता है फिर उसे याद आता है कि वो तो लिफाफा लाया ही नहीं. फिर वो उसे खरीदने के लिए यहां यहां इधर उधर भगा दौड़ी करता है. यकीन मानिये ऐसी जब स्थिति बनती है तो जो खीज होती है उसकी कल्पना शब्दों में नहीं की जा सकती.

बाकी शुरुआत में ही जिक्र शगुन के लिफाफों में फूफा मौसा की मोनोपॉली का हुआ है तो जैसा इस बिरादरी का स्वाभाव है, जिस जिस ने भी अपने घर की शादी में शगुन का डिपार्टमेंट फूफा और मौसा बिरादरी के हवाले किया होगा जनता होगा कि कैसे ये लोग गेस्ट के लिफाफे खोल खोल के चेक करते हैं और बाद में इसी चीज को मुद्दा बनाते हैं. बुरा हो या भला हो ये तो बाद की बात है लेकिन अब जबकि ये कल्चर शुरू हो गया है तो शादी में शगुन के डिपार्टमेंट से मौसा और फुफाओं की मोनोपॉली ख़त्म होगी और घर परिवार में भी शांति बानी रहेगी. 

चूंकि अब तो चाय वाले, कूड़े वाले, पान वाले और यहां तक की रिक्शे वाले ने भी डिजिटल पेमेंट लेना शुरू कर दिया है तो यदि ये सब शादियों में देखने सुनने को मिल रहा है तो आलोचना को दरकिनार कर ऐसी पहल का स्वागत होना चाहिए. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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