• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
ह्यूमर

सब्जी-भाजी की कीमतें संभाल लीजिये सरकार, महंगा पेट्रोल-डीजल तो सह ही रहे हैं!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 14 अप्रिल, 2022 07:35 PM
  • 14 अप्रिल, 2022 07:35 PM
offline
जिस तरह लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल, तुरई, नींबू जैसी बे-मोल चीजों ने आम आदमी की थाली से मुंह मोड़ा है. हालात चिंताजनक हैं. सरकार को चाहिए कि वो आम आदमी के जीवन से जुड़ी इस परेशानी का संज्ञान लें और हो सके तो इसके लिए खुद पीएम मोदी आगे आएं.

'मीर' के घर की हालत देख

मेरे घर का हाल न पूछ

जिस ने बचाया ख़ंजर से

किस की थी वो ढाल न पूछ

कैसे दें बच्चों को 'अज़ीज़'

सब्ज़ी रोटी दाल न पूछ.

शेर अज़ीज़ अंसारी का है और आम आदमी की उस मज़बूरी को बयां करता है, जहां उसके पास खाने के लाले हैं. क्यों? जवाब है महंगाई/बढ़ी हुई कीमतें विशेषकर नार्मल सब्जियों की. पेट्रोल-डीजल महंगा हो रहा है, तो समझा दिया जा रहा है कि यूक्रेन-रूस की सिर-फुटव्वल का नतीजा है. लेकिन लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल, तुरई, नींबू को क्या हो गया है? इनके दाम भी क्या क्रूड ऑयल की तरह अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तय हो रहे हैं? हालात चिंताजनक हैं. 

विषय बहुत सीधा है और यहां लाग लपेट का तो कांसेप्ट ही नहीं है. एक ऐसे समय में जब पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, बिजली के बिल ने देश के मध्यम वर्गीय व्यक्ति की कमर तोड़ दी हो उसे खाने के नाम पर लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल, तुरई, नींबू, धनिया, मिर्च, टमाटर, गोभी इन्हीं सब चीजों का सहारा था. लेकिन जैसी परिस्थितियां आज बनी हैं. ये चीजें भी उसकी थाली से गोल हो गयी हैं.

ये सब्‍जी की दुकान नहीं है, गरीबों के लिए मर्सिडीज कार का शोरूम है.

दिलचस्प तर्क तो दिए जा रहे हैं मगर राजनेताओं से लेकर ब्यूरोक्रेसी और तक इस गंभीर समस्या पर शायद ही किसी की नजर गयी हो. हां कभी कभी भारतीय मीडिया इन ख़बरों को ज़रूर बताता है लेकिन वो पाकिस्तान, नेपाल या बांग्लादेश के संदर्भ में ही होती हैं.

तो हम भारतीयों को क्या ही मतलब कि किसी पाकिस्तानी को टमाटर क्या भाव मिल रहा है? या फिर...

'मीर' के घर की हालत देख

मेरे घर का हाल न पूछ

जिस ने बचाया ख़ंजर से

किस की थी वो ढाल न पूछ

कैसे दें बच्चों को 'अज़ीज़'

सब्ज़ी रोटी दाल न पूछ.

शेर अज़ीज़ अंसारी का है और आम आदमी की उस मज़बूरी को बयां करता है, जहां उसके पास खाने के लाले हैं. क्यों? जवाब है महंगाई/बढ़ी हुई कीमतें विशेषकर नार्मल सब्जियों की. पेट्रोल-डीजल महंगा हो रहा है, तो समझा दिया जा रहा है कि यूक्रेन-रूस की सिर-फुटव्वल का नतीजा है. लेकिन लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल, तुरई, नींबू को क्या हो गया है? इनके दाम भी क्या क्रूड ऑयल की तरह अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तय हो रहे हैं? हालात चिंताजनक हैं. 

विषय बहुत सीधा है और यहां लाग लपेट का तो कांसेप्ट ही नहीं है. एक ऐसे समय में जब पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, बिजली के बिल ने देश के मध्यम वर्गीय व्यक्ति की कमर तोड़ दी हो उसे खाने के नाम पर लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल, तुरई, नींबू, धनिया, मिर्च, टमाटर, गोभी इन्हीं सब चीजों का सहारा था. लेकिन जैसी परिस्थितियां आज बनी हैं. ये चीजें भी उसकी थाली से गोल हो गयी हैं.

ये सब्‍जी की दुकान नहीं है, गरीबों के लिए मर्सिडीज कार का शोरूम है.

दिलचस्प तर्क तो दिए जा रहे हैं मगर राजनेताओं से लेकर ब्यूरोक्रेसी और तक इस गंभीर समस्या पर शायद ही किसी की नजर गयी हो. हां कभी कभी भारतीय मीडिया इन ख़बरों को ज़रूर बताता है लेकिन वो पाकिस्तान, नेपाल या बांग्लादेश के संदर्भ में ही होती हैं.

तो हम भारतीयों को क्या ही मतलब कि किसी पाकिस्तानी को टमाटर क्या भाव मिल रहा है? या फिर बांग्लादेश में आलू का रेट क्या है? हम बात भारत की करेंगे और यहां क्यों सब्जियां महंगी हैं सवाल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसपर करेंगे.

कोई लीग से हटकर जवाब दे या इस मुद्दे पर कच्चे तर्क दे. तो हम इतना ज़रूर कहेंगे कि लौकी, भिंडी, टिंडे, कद्दू, परवल , तुरई, नींबू, धनिया, मिर्च, टमाटर और गोभी जैसी चीजें यहीं देश में खेतों में किसी नदी या पोखर के किनारे होती हैं. और दिलचस्प ये कि ये बैरेल में और विदेश से इम्पोर्ट करके नहीं आती हैं. तो फिर ये ऊंची कीमत क्यों? आखिर क्यों नहीं देश की मोदी सरकार या सरकार से जुड़ा कोई मंत्री इस समस्या पर गंभीर हो रहा?

अब जबकि सब्जियों की कीमत पर बात निकली है तो तर्क कोल्ड स्टोरेज का भी आएगा. शायद जिक्र उनका भी हो, जो सब्जियों को स्टॉक करके रख लेते हैं फिर उन्हें मुंह मांगी कीमतों पर बेचते हैं. ऐसा कैसे हो सकता है कि देश की सरकार को ऐसे लोगों की कोई जानकारी ही नहीं है?

माना भले ही रूस और यूक्रेन के बीच जंग चल रही हो, जिसका सीधा असर पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतों पर पड़ रहा हो. कोरोना एक बार फिर अपने पैर पसार रहा हो लेकिन इसका असर उस भिंडी पर कैसे जिसकी कीमत 120 रुपए किलो है और जो मेरठ के किसी खेत में पैदा की जा रही है. नींबू आज कहीं 500 तो कहीं कहीं 700 रुपए किलो है तो इसके लिए पुतिन को तो जिम्मेदार आखिर नहीं ही ठहराया जा सकता है.

स्पष्ट है कि ये हमारा 'आंतरिक मामला' है. और हां जब मामला आंतरिक हो तो जैसा इतिहास देश का रहा है इसका निपटारा करना सिर्फ और सिर्फ सरकार के कार्य क्षेत्र में है.  गौरतलब है कि देश का आम आदमी मज़बूरी का नाम देकर शायद और चीजों के प्रति मुंह मोड़ ले. लेकिन जब बात दो वक़्त के खाने और उस खाने में मिलने वाली सब्जी की आएगी तो शायद ही कोई अपना मुंह बंद रख पाए.

सरकार को समझना होगा कि सब्जियों की कीमत निर्धारित करना और इस लाइन से बिचौलियों को भगाना यूएन या किसी अंतर्राष्ट्रीय फोरम में ले जाने वाला मुद्दा नहीं है. ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि सरकार यदि चुस्ती दिखाए तो ये एक ऐसा मुद्दा है जिसका निपटारा कुछ ही देर में किया जा सकता है. और देश के आम आदमी को राहत दी जा सकती है. सरकार के चाह लेने भर की देर है सरकार चाह ले तो जल्द ही थाली में नींबू टमाटर का सलाद भी होगा और भिंडी, टिंडे, परवल और गोभी की सब्जी भी. दिक्कत बस ये है कि सरकार चाह नहीं रही है और जनता में भी एक ठीक ठाक वर्ग को इसकी कोई परवाह नहीं है.

ये भी पढ़ें -

रिश्तेदारों के ड्रामे, शादी के काम, 4 दिन के इवेंट में शादी कर रहे आलिया-रणबीर क्या समझेंगे?

60 फीट लंबे और 500 टन वजनी लोहे का पुल चुराने वालों की क्रिएटिविटी को नमन!

क्या आपका घिसा हुआ साबुन भी नहाते समय छिटक कर गिर जाता है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    टमाटर को गायब कर छुट्टी पर भेज देना बर्गर किंग का ग्राहकों को धोखा है!
  • offline
    फेसबुक और PubG से न घर बसा और न ज़िंदगी गुलज़ार हुई, दोष हमारा है
  • offline
    टमाटर को हमेशा हल्के में लिया, अब जो है सामने वो बेवफाओं से उसका इंतकाम है!
  • offline
    अंबानी ने दोस्त को 1500 करोड़ का घर दे दिया, अपने साथी पहनने को शर्ट तक नहीं देते
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲