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व्यंग: अच्छा तो इसलिए मेट्रो में पकड़े गए 90% पॉकेटमार, महिलाएं हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 11 जून, 2017 02:22 PM
  • 11 जून, 2017 02:22 PM
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सीआईएसएफ ने दिल्ली मेट्रो में धड़ल्ले से हो रही पॉकेटमारी के सन्दर्भ में अपना डाटा प्रस्तुत किया है जो होश उड़ाने वाला है. इसके अनुसार मेट्रो स्टेशनों पर पकड़े गए जेबकतरों में 90 प्रतिशत पॉकेटमार महिलाएं थीं.

बड़ा मुश्किल दौर है साहब, इस जमाने में महंगाई अपने चरम पर है. दूध वाले से लेकर सब्जी वाले और प्रेस वाले तक सबने अपने रेट बढ़ा दिए हैं. जो रोटी कभी दो रुपए की मिलती थी आज उसकी कीमत 6 रुपए है. जो पेंट शर्ट कभी 6 रुपए में प्रेस हो जाती थी वो अब 20 रुपए में होती है. अब इस बात को अपने बटुए की नजर से देखें आपको मिलेगा कि इस देश में सब बढ़ रहा है, मगर एक बेचारी सैलरी है जो जस की तस अपनी जगह पर रुकी हुई है.

ये कब आती है, कब जाती है न तो इसका पता न तो लेने वाले को है और न ही देने वाले को. कम सैलरी और बढ़ती महंगाई ने आम से लेके खास तक सबका जीना मुहाल कर रखा है. आज की तारीख में एक आम आदमी जितना कमा रहा है उससे ज्यादा खर्च कर रहा है.

आज के इन मुश्किल हालात में शादी शुदा तो फिर भी थोड़ा बहुत मैनेज करते हुए सेविंग कर लेते हैं मगर कुंवारे उनका क्या? विश्वास करिए इस देश में कुंवारों की स्थिति सबसे बदतर है. कहा जा सकता है कि भारत के अधिकांश कुंवारे उधारी संग बदहाली की ज़िन्दगी जी रहे हैं.

दिल्ली मेट्रो में, 90 प्रतिशत कथित पॉकेटमार महिलाएं

आप अपने मुहल्ले की किसी भी दुकान पर चले जाइए और दुकानदार की डायरी चेक करिए. मिलेगा कि यदि मई के पिछले महीने दुकान से 150 लोगों ने उधार लेकर अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढाया है तो उनमें शादी शुदाओं के मुकाबले कुंवारों की तादाद कहीं ज्यादा होगी.

बात जब कुंवारों की हो और ऐसे में हम उनके शौक पर बात न करें तो बात एक हद तक अधूरी रह जाती है. कह सकते हैं हममें से अधिकांश लोगों की आमदनी चवन्नी भर होती हो और शौक हमारे पूरे रुपए भर के होते हैं. जाहिर सी बात है चव्वनी भर की आमदनी में रुपए भर के शौक पूरे करना कोई आसन बात नहीं है. व्यक्ति या तो कम आमदनी के चलते हालात से समझौता करते हुए अपने शौक मार लेता है या फिर वो...

बड़ा मुश्किल दौर है साहब, इस जमाने में महंगाई अपने चरम पर है. दूध वाले से लेकर सब्जी वाले और प्रेस वाले तक सबने अपने रेट बढ़ा दिए हैं. जो रोटी कभी दो रुपए की मिलती थी आज उसकी कीमत 6 रुपए है. जो पेंट शर्ट कभी 6 रुपए में प्रेस हो जाती थी वो अब 20 रुपए में होती है. अब इस बात को अपने बटुए की नजर से देखें आपको मिलेगा कि इस देश में सब बढ़ रहा है, मगर एक बेचारी सैलरी है जो जस की तस अपनी जगह पर रुकी हुई है.

ये कब आती है, कब जाती है न तो इसका पता न तो लेने वाले को है और न ही देने वाले को. कम सैलरी और बढ़ती महंगाई ने आम से लेके खास तक सबका जीना मुहाल कर रखा है. आज की तारीख में एक आम आदमी जितना कमा रहा है उससे ज्यादा खर्च कर रहा है.

आज के इन मुश्किल हालात में शादी शुदा तो फिर भी थोड़ा बहुत मैनेज करते हुए सेविंग कर लेते हैं मगर कुंवारे उनका क्या? विश्वास करिए इस देश में कुंवारों की स्थिति सबसे बदतर है. कहा जा सकता है कि भारत के अधिकांश कुंवारे उधारी संग बदहाली की ज़िन्दगी जी रहे हैं.

दिल्ली मेट्रो में, 90 प्रतिशत कथित पॉकेटमार महिलाएं

आप अपने मुहल्ले की किसी भी दुकान पर चले जाइए और दुकानदार की डायरी चेक करिए. मिलेगा कि यदि मई के पिछले महीने दुकान से 150 लोगों ने उधार लेकर अपनी जिंदगी की गाड़ी को आगे बढाया है तो उनमें शादी शुदाओं के मुकाबले कुंवारों की तादाद कहीं ज्यादा होगी.

बात जब कुंवारों की हो और ऐसे में हम उनके शौक पर बात न करें तो बात एक हद तक अधूरी रह जाती है. कह सकते हैं हममें से अधिकांश लोगों की आमदनी चवन्नी भर होती हो और शौक हमारे पूरे रुपए भर के होते हैं. जाहिर सी बात है चव्वनी भर की आमदनी में रुपए भर के शौक पूरे करना कोई आसन बात नहीं है. व्यक्ति या तो कम आमदनी के चलते हालात से समझौता करते हुए अपने शौक मार लेता है या फिर वो कोई ऐसा रास्ता अपनाता है जिससे कम समय में उसे अधिक पैसा मिल जाए. इस बात को पुनः पढ़िए आपको मिलेगा कि यही वजह जुर्म के रास्ते की पहली सीढ़ी है.

सीआईएसएफ का ये डाटा होश उड़ाने वाला है बहरहाल, बात आगे बढ़ाने से पहले हम आपको एक खबर से अवगत कराना चाहेंगे. खबर है कि  केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) ने दिल्ली मेट्रो में धड़ल्ले से हो रही पॉकेटमारी के सन्दर्भ में अपना डाटा प्रस्तुत किया है. ये डाटा होश उड़ाने वाला है. डाटा के अनुसार इस वर्ष अलग-अलग मेट्रो स्टेशनों पर 521 कथित जेबकतरों को पकड़ा गया है जिसमें 90 प्रतिशत कथित पॉकेटमार महिलाएं थीं.

उपरोक्त पंक्ति को ध्यान से पढ़िए आप आसानी से समझ जाएंगे कि पॉकेटमारी की घटनाओं में महिलाओं की संलिप्तता भी महंगाई की देन है. शायद आपको ये बात समझ न आए तो आपको बता दें कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के सामान अधिक महंगे हैं. चाहे डीजल और स्पाइकर की फेडेड और फटी जींस हो या फिर बैग्गिट का स्टाइलिश बैग और शहनाज हुसैन के काले, भूरे नीले मस्कारे सबकी कीमत आसमान छू रही हैं.

ब्रांड स्ट्रीट की लिपस्टिक से लेकर लोरिआल के फेस पैक और यूसीबी के गॉगल तक आज कॉस्मेटिक और फैशन अपेरल इतने महंगे हैं कि इस फैशन और कम सैलरी के दौर में एक आम महिला के लिए उनको खरीदना एक मुश्किल काम है तो जाहिर है कुछ महिलाएं अपने छोटे - छोटे शौक पूरे करने के लिए इन बड़े - बड़े कामों पर अपना हाथ आजमा रही हैं जिसकी कठोर कदम उठाते हुए कड़े शब्दों में निंदा होनी चाहिए.

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