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और फिर Scroll करते-करते खेल खत्म हो ही गया

    • सिद्धार्थ अरोड़ा सहर
    • Updated: 27 अप्रिल, 2023 01:30 PM
  • 27 अप्रिल, 2023 01:30 PM
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बच्चे वही फॉलो करते हैं जो वो आपको करता देखते हैं. अपने बुज़ुर्गों से कुछ सीखिए, बच्चे सीधे से न माने तो उनकी बाह मरोड़ दीजिए, शुरु में कुछ दिन उन्हें दिक्कत होगी लेकिन फिर वो लाइन पर आ जाएंगे. इन सब टॉर्चर से पहले, खुद पर स्ट्रिक्ट होइए, खुद को एडिक्शन से बचाइए.

अक्सर एक चुटकुला सुनने को मिलता है कि फेल हो जाए या हड्डी टूट जाए, मां की नज़र में हर दुश्वारी का एक ही कारण है कि बेटा मरा फोन चलाता रहता है. मोबाइल फोन जैसी चीज़ को यूज़ करना समझ आता है, ये चलाना कबसे शुरु हुआ? आज अभिषेक उपमन्यु की एक वीडियो पर नज़र गई जिसमें वो बता रहा था कि वो बिना मोबाइल लिए शौचालय जाने की सोच भी नहीं सकता. अगर किसी दिन प्रेशर भी आ रहा हो तो वो पहले मोबाइल चार्ज करता है, फिर पॉटी जाता है.

आज जिसे देखो वही हाथ में मोबाइल लिए उसे ब्राउज किये पड़ा है

क्या ये वाकई जोक है?

हम अचानक मोबाइल से इतने एडिक्ट कब और क्यों हुए कि हम एक पल भी मोबाइल के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर पा रहे? एक समय था जब फेसबुक समेत सारे सोशल और डिजिटल मीडिया की वेबसाइट का एक निर्धारित पेज होता था, वो पेज आप पूरा पढ़ लो तो अधिक कंटेन्ट के लिए पेज के अंत में दूसरे पेज का नंबर लिखा होता था, आपको वो दबाना होता था, तब अगला पेज लोड होता था.

फिर डिजिटल वर्ल्ड में टच मोबाइल आने की वजह से, एक क्रांतिकारी कोड बना, जिसने पेज चेंज को ऑटोमेटेड कर, स्क्रॉलिंग का आविष्कार कर दिया. अब आप अपने मोबाइल पर अंगूठा ऊपर-नीचे कर, घुमा सकते थे. अब ये वेबपेज पहिये की तरह चलने लग गया था. यहीं से मोबाइल ‘चलना’ शुरु हुआ.

इसके दुष्परिणाम कुछ इस प्रकार हुए कि –

अंगूठा घुमाते-घुमाते कब अगला स्टेशन आ गया, पता न चला.

कब सब्ज़ी जल गई होश न रहा.

सामने वाला क्या बोल गया पता न चला.

कब बांध का पानी खुल गया और जान चली गई, होश न रहा.

पर, इस स्क्रॉलिंग टेक्निक ने फेसबुक समेत हर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का वॉचटाइम ऐसे बढ़ाया जैसे चूहों की संख्या. सोशल मीडिया एक ऐसा लूप...

अक्सर एक चुटकुला सुनने को मिलता है कि फेल हो जाए या हड्डी टूट जाए, मां की नज़र में हर दुश्वारी का एक ही कारण है कि बेटा मरा फोन चलाता रहता है. मोबाइल फोन जैसी चीज़ को यूज़ करना समझ आता है, ये चलाना कबसे शुरु हुआ? आज अभिषेक उपमन्यु की एक वीडियो पर नज़र गई जिसमें वो बता रहा था कि वो बिना मोबाइल लिए शौचालय जाने की सोच भी नहीं सकता. अगर किसी दिन प्रेशर भी आ रहा हो तो वो पहले मोबाइल चार्ज करता है, फिर पॉटी जाता है.

आज जिसे देखो वही हाथ में मोबाइल लिए उसे ब्राउज किये पड़ा है

क्या ये वाकई जोक है?

हम अचानक मोबाइल से इतने एडिक्ट कब और क्यों हुए कि हम एक पल भी मोबाइल के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर पा रहे? एक समय था जब फेसबुक समेत सारे सोशल और डिजिटल मीडिया की वेबसाइट का एक निर्धारित पेज होता था, वो पेज आप पूरा पढ़ लो तो अधिक कंटेन्ट के लिए पेज के अंत में दूसरे पेज का नंबर लिखा होता था, आपको वो दबाना होता था, तब अगला पेज लोड होता था.

फिर डिजिटल वर्ल्ड में टच मोबाइल आने की वजह से, एक क्रांतिकारी कोड बना, जिसने पेज चेंज को ऑटोमेटेड कर, स्क्रॉलिंग का आविष्कार कर दिया. अब आप अपने मोबाइल पर अंगूठा ऊपर-नीचे कर, घुमा सकते थे. अब ये वेबपेज पहिये की तरह चलने लग गया था. यहीं से मोबाइल ‘चलना’ शुरु हुआ.

इसके दुष्परिणाम कुछ इस प्रकार हुए कि –

अंगूठा घुमाते-घुमाते कब अगला स्टेशन आ गया, पता न चला.

कब सब्ज़ी जल गई होश न रहा.

सामने वाला क्या बोल गया पता न चला.

कब बांध का पानी खुल गया और जान चली गई, होश न रहा.

पर, इस स्क्रॉलिंग टेक्निक ने फेसबुक समेत हर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का वॉचटाइम ऐसे बढ़ाया जैसे चूहों की संख्या. सोशल मीडिया एक ऐसा लूप बन गया जिसमें चूहे की तरह आदमी दौड़ने लगा है. हालांकि मम्मियों को यही लगता कि उनका बच्चा मोबाइल चला रहा है, पर साला यहां तो मोबाइल बच्चे को चला रहा है... वो भी मनचाही स्पीड में.

हमारी आपकी आंखें फोड़कर, ये सोशल(?) कॉम्पनीज़ बिलियन डॉलर्ज़ छाप रही हैं. गौर करें तो स्क्रॉलिंग एक सम्मोहन बना रही है कि फिर आप चाहें अच्छा कंटेन्ट पढ़ रहे हों या घटिया रील देख रहे हों, आपका अंगूठा हर दस से बीससेकंड्स में ऑटो स्क्रॉल करता ही रहता है.

अब इससे बचा कैसे जाए?

(सिर्फ उनके लिए जो बचना चाहते हैं)

1- हार्श साउन्ड हमेशा सम्मोहन तोड़ने में काम आता है. अचानक किसी के चिल्लाकर बुलाने, या किसी इम्पॉर्टन्ट कॉल के आ जाने के बाद मोबाइल छूट जाता है. हाईली एडिक्टेड लोग सोशल मीडिया ओपन करने से पहले 25-30 मिनट्स का अलार्म लगाएं और जब अलार्म बजे, तो उसे डिस्मिस करने की बजाए स्नूज़ करें, ताकि हर 10 मिनट पर अलार्म आपके डंडा करता रहे. ये अलार्म फेसबुक पर भी लग सकता है.

2- WIFI और 5G नेट का प्रयोग सिर्फ बहुत ज़रूरी होने पर ही करें. सुपर नेट स्पीड आपको सिवाए एन्गैज करने के कुछ नहीं करती. फालतू वीडियो बफर होने लगे तो सम्मोहन जल्दी टूट जाता है.

3- खुद को एक टारगेट दें, दिन भर में डाउनलोडिंग  के अलावा 1GB से ज़्यादा नेट नहीं यूज़ करना है. बच्चों पर ये नियम हिटलर बनकर चलाएं.

4- कुछ प्लेसेस जैसे, किचन, वाशरूम, डाइनिंग टेबल पर मोबाइल रीस्ट्रिक्शन लगाएं. मोबाइल दूर रखकर गाने बजायें. वाशरूम में मोबाइल बिल्कुल बैन करें, इससे दस मिनट के काम पर 30 मिनट खर्च होने से बचाएं.

5- किताबें पढ़ने की आदत डालें, रोज़ 5 पेज से शुरु करें, बच्चों को धमकी देकर पढ़ने पर मजबूर करें. (कौन सी किताबें? सजेशन ले सकते हैं)

यकीन मानिए कि बच्चे वही फॉलो करते हैं जो वो आपको करता देखते हैं. अपने बुज़ुर्गों से कुछ सीखिए, बच्चे सीधे से न माने तो उनकी बाह मरोड़ दीजिए, शुरु में कुछ दिन उनके पॉटी जाते ही कॉल कर दीजिए, अगर फोन बाथरूम की शोभा बढ़ा रहा हो तो उस रोज़ एक टाइम का खाना कट, अब जा पॉटी, अगले दिन से लाइन पर आ जाएंगे. इन सब टॉर्चर से पहले, खुद पर स्ट्रिक्ट होइए, खुद को एडिक्शन से बचाइए. वर्ना किसी दिन आप भी ऐसी न्यूज़ का हिस्सा बनेंगे जिसमें लिखा होगा कि 'मोबाइल चलाते हुए रोड क्रॉस करते शख्स की हुई मौके पर ही मौत, सामने से आता ट्रक देख ले रहा था आखिरी सेल्फ़ी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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