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नश्तर : विकास जल्द ही आएगा, फिलहाल उसकी ट्रेन कोहरे और ठंड की वजह से लेट है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 06 जनवरी, 2018 05:54 PM
  • 06 जनवरी, 2018 05:54 PM
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केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पहला अनुमान जारी किया है. सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस के अनुसार ये देश के लिए बुरी खबर है ऐसा इसलिए क्योंकि इससे देश का विकास बुरी तरह प्रभावित हो सकता है.

इन दिनों जाड़ा बहुत है. कल तक जो बस, ट्रेन, प्लेन और मेट्रो पर लगी कुर्सियों में अकड़ के बैठते थे आज सिकुड़ कर बैठे नजर आ रहे हैं. सर्दी इतनी है कि गर्म रजाई को छोड़ना हाथ में सब्जी काटने वाला चाकू लेकर विश्व युद्ध की लड़ाई में जाने जैसा है. ठंडा पानी, ठंडे पानी की तो पूछिये मत. नहाते धोते बस ऐसा ही फील हो रहा है कि हिमालय पिघल के मेरे ही नल से बह रहा है. बात हड्डी तक गला देने वाली ठंड की है. ठंड में ट्रेन पर चर्चा उसपर भी ट्रेनों का का लेट होना या फिर सिग्नल न मिलने के चलते आउटर पर खड़े रहना एक बेहद आम सी बात है. मैं जब ट्रेन की कल्पना कर रहा हूं तो मुझे जाड़े के चलते लेट हुई उस ट्रेन की किसी स्लीपर बोगी में चढ़ा विकास दिख रहा है. विकास आना चाह रहा है मगर उसकी दर को कोहरा और ठंड उसकि राहों का रोड़ा बन बाधा उत्पन्न कर रहे हैं.

पहली तिमाही में जीडीपी में गिरावट दर्ज होना भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट साफ दर्शा रहा है

विकास आने वाला है अब चूंकि वो रास्ते में फंसा हैतो उससे जुड़ी एक खबर सुनकर खाली समय का सदुपयोग किया जाए. खबर है कि हम सबके मोदी जी वाली केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पहला अनुमान जारी किया है. सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस कि मानें तो, इस वित्त वर्ष में विकास दर में कमी देखने को मिलेगी. जहां हमारी विकास दर 6.5 फीसदी विकास दर के आसपास रहेगी वहीं बात अगर गुजरे साल की हो तो दिसंबर खत्म होते होते ये 7.1 फीसदी थी. गुजरे साल से एक साल पहले यानी 2015-16 में विकास दर 8 फीसदी के करीब थी. 2014-15 में इसे 7.5 प्रतिशत बताया गया था.

ज्ञात हो कि तीन तिमाही के आंकड़ों के साथ जीडीपी का दूसरा अनुमान 28 फरवरी को जारी किया जाएगा और सम्पूर्ण वर्ष के आंकड़े 2018 में पेश किए जाएंगे. इस बार की विकास डर क्यों धीमी गति...

इन दिनों जाड़ा बहुत है. कल तक जो बस, ट्रेन, प्लेन और मेट्रो पर लगी कुर्सियों में अकड़ के बैठते थे आज सिकुड़ कर बैठे नजर आ रहे हैं. सर्दी इतनी है कि गर्म रजाई को छोड़ना हाथ में सब्जी काटने वाला चाकू लेकर विश्व युद्ध की लड़ाई में जाने जैसा है. ठंडा पानी, ठंडे पानी की तो पूछिये मत. नहाते धोते बस ऐसा ही फील हो रहा है कि हिमालय पिघल के मेरे ही नल से बह रहा है. बात हड्डी तक गला देने वाली ठंड की है. ठंड में ट्रेन पर चर्चा उसपर भी ट्रेनों का का लेट होना या फिर सिग्नल न मिलने के चलते आउटर पर खड़े रहना एक बेहद आम सी बात है. मैं जब ट्रेन की कल्पना कर रहा हूं तो मुझे जाड़े के चलते लेट हुई उस ट्रेन की किसी स्लीपर बोगी में चढ़ा विकास दिख रहा है. विकास आना चाह रहा है मगर उसकी दर को कोहरा और ठंड उसकि राहों का रोड़ा बन बाधा उत्पन्न कर रहे हैं.

पहली तिमाही में जीडीपी में गिरावट दर्ज होना भारतीय अर्थव्यवस्था का संकट साफ दर्शा रहा है

विकास आने वाला है अब चूंकि वो रास्ते में फंसा हैतो उससे जुड़ी एक खबर सुनकर खाली समय का सदुपयोग किया जाए. खबर है कि हम सबके मोदी जी वाली केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2017-18 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का पहला अनुमान जारी किया है. सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस कि मानें तो, इस वित्त वर्ष में विकास दर में कमी देखने को मिलेगी. जहां हमारी विकास दर 6.5 फीसदी विकास दर के आसपास रहेगी वहीं बात अगर गुजरे साल की हो तो दिसंबर खत्म होते होते ये 7.1 फीसदी थी. गुजरे साल से एक साल पहले यानी 2015-16 में विकास दर 8 फीसदी के करीब थी. 2014-15 में इसे 7.5 प्रतिशत बताया गया था.

ज्ञात हो कि तीन तिमाही के आंकड़ों के साथ जीडीपी का दूसरा अनुमान 28 फरवरी को जारी किया जाएगा और सम्पूर्ण वर्ष के आंकड़े 2018 में पेश किए जाएंगे. इस बार की विकास डर क्यों धीमी गति से चल रही है उसके पीछे की वजह चौकाने वाली है. बताया जा रहा है कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन की वजह से जीडीपी की वृद्धि दर  2017-18 में 6.5 प्रतिशत रहेगी.

माना जा रहा है कि पीएम मोदी के कार्यकाल में ये अब तक ही सबसे कम विकास दर है. प्रधानमंत्री मोदी के अलोचक इसे आर्थिक मोर्चे पर देश के लिए बड़ा झटका मान रहे हैं और कह रहे हैं कि सरकार को इस दिशा में गंभीर होने की आवश्यकता है अन्यथा परिणाम गंभीर होंगे. खैर हमारी आपकी तरह गिरी हुई जीडीपी को लेकर सीएसओ भी चिंतित है और वो इसपर दिल बहलाने वाले तर्क देते नजर आ रहा है और कह रहा है कि साल खत्म होते होते स्थिति शायद ठीक हो जाए.

बहरहाल जो आशा सीएसओ को है वही आशा हम आम देशवासियों की भी है कि आने वाले वक़्त में स्थिति कुछ सुधरेगी. कह सकते हैं कि सीएसओ की तरह आम भारत वासी भी इसी आस में हैं कि कोहरे में फंसा विकास, कोहरा छंटने के बाद जल्दी से वापस आए और अपनी जीडीपी की बिगड़ी दर हो सही करे. वो क्या है न गिरी हुई जीडीपी से भारत को इंडिया से न्यू इंडिया वाले मार्ग पर चलने में भारी दुश्वारियों का सामना करना पड़ेगा.

अंत में हम बस ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि वाकई ये देश के लिए एक मुश्किल समय है. एक तो हमारा देश नौकरियों के भारी संकट से गुजर रहा है ऊपर से गिरी हुई जीडीपी इन सभी बातों को देखकर विकास की बातें और दावे, एक आम आदमी को खोखले नजर आ रहे हैं.  

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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