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मोदी की रामायण और लंकाकाण्ड

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 11 नवम्बर, 2017 11:19 AM
  • 11 नवम्बर, 2017 11:19 AM
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नोटबंदी इस देश के इतिहास में एक ऐतिहासिक फैसला था. एक ऐसा फैसला जिससे पूर्व में नुकसान तो हुआ मगर जिससे भविष्य में फायदा दिखने के संकेत मिल रहे हैं और निश्चित तौर पर ये फायदे देश के विकास में सहायक होंगे.

आज दशहरा है, और दशहरे को लेकर यही मान्यता है कि, इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था. अहंकारी रावण का वध कर भगवान श्री राम ने दुनिया को बताया था कि बुराई लाख कितनी भी घनी हो, बुराई के बादल छटते है और धीरे ही सही मगर अच्छाई हमारे सामने आती है. इस सम्पूर्ण बात को हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था सत्ता धारी पार्टी भाजपा और देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सन्दर्भ में रख कर समझिये.

जिस पल आप इन सभी चीजों के विषय में सोच रहे होंगे तो कई बातें खुद-ब-खुद साफ हो जाएंगी और आपको मिलेगा कि तब भाजपा तक ने ये माना था कि 1947 के बाद से और 2016 के नवम्बर तक, भारतीय अर्थव्यवस्था ने ऐसे तमाम दंश झेले हैं जिससे उसकी कमर टूट चुकी है.

भाजपा का मानना है कि नोट बंदी और काले धन पर प्रधानमंत्री ने जो फैसला लिया वो अपने में एक ऐतिहासिक फैसला था

साथ ही तब पार्टी और पार्टी के शीर्ष नेताओं का ये भी मानना था कि विदेशों के अलावा देश के अन्दर बड़ी मात्रा में जमा काला धन देश की जनता, प्रधानमंत्री और भारतीय अर्थव्यवस्था सभी के लिए परेशानी का कारण बना हुआ था. ज्ञात हो कि पार्टी कई जगहों पर ये स्वीकार कर चुकी है कि 1947 से लेकर नयी सरकार का शासन आने के पहले तक, इस देश ने और इस देश की राजनीति ने कई ऐसे पल और कई ऐसे फैसले देखे जिसने उसे लगातार गर्त में डालने का काम किया. भ्रष्टाचार और काले धन ने न सिर्फ पार्टी बल्कि प्रधानमंत्री तक की नींद उड़ा दी थी. जिससे वो लगातार ये प्रयास कर रहे थे कि कैसे वो इस बीमारी का इलाज करें, अतः सरकार द्वारा नोटबंदी का फैसला लिया गया.

इसे इलाज कहा जाए या प्रयोग, मगर पार्टी का मानना है कि प्रधानमंत्री ने 8 नवम्बर 2016 को जो फैसला लिया वो देश के इतिहास में किसी भी राजनेता द्वारा लिया गया एक ऐतिहासिक फैसला था. कहा जा...

आज दशहरा है, और दशहरे को लेकर यही मान्यता है कि, इस दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था. अहंकारी रावण का वध कर भगवान श्री राम ने दुनिया को बताया था कि बुराई लाख कितनी भी घनी हो, बुराई के बादल छटते है और धीरे ही सही मगर अच्छाई हमारे सामने आती है. इस सम्पूर्ण बात को हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था सत्ता धारी पार्टी भाजपा और देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सन्दर्भ में रख कर समझिये.

जिस पल आप इन सभी चीजों के विषय में सोच रहे होंगे तो कई बातें खुद-ब-खुद साफ हो जाएंगी और आपको मिलेगा कि तब भाजपा तक ने ये माना था कि 1947 के बाद से और 2016 के नवम्बर तक, भारतीय अर्थव्यवस्था ने ऐसे तमाम दंश झेले हैं जिससे उसकी कमर टूट चुकी है.

भाजपा का मानना है कि नोट बंदी और काले धन पर प्रधानमंत्री ने जो फैसला लिया वो अपने में एक ऐतिहासिक फैसला था

साथ ही तब पार्टी और पार्टी के शीर्ष नेताओं का ये भी मानना था कि विदेशों के अलावा देश के अन्दर बड़ी मात्रा में जमा काला धन देश की जनता, प्रधानमंत्री और भारतीय अर्थव्यवस्था सभी के लिए परेशानी का कारण बना हुआ था. ज्ञात हो कि पार्टी कई जगहों पर ये स्वीकार कर चुकी है कि 1947 से लेकर नयी सरकार का शासन आने के पहले तक, इस देश ने और इस देश की राजनीति ने कई ऐसे पल और कई ऐसे फैसले देखे जिसने उसे लगातार गर्त में डालने का काम किया. भ्रष्टाचार और काले धन ने न सिर्फ पार्टी बल्कि प्रधानमंत्री तक की नींद उड़ा दी थी. जिससे वो लगातार ये प्रयास कर रहे थे कि कैसे वो इस बीमारी का इलाज करें, अतः सरकार द्वारा नोटबंदी का फैसला लिया गया.

इसे इलाज कहा जाए या प्रयोग, मगर पार्टी का मानना है कि प्रधानमंत्री ने 8 नवम्बर 2016 को जो फैसला लिया वो देश के इतिहास में किसी भी राजनेता द्वारा लिया गया एक ऐतिहासिक फैसला था. कहा जा सकता है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम बन, काले धन रूपी रावण पर नोट बंदी के बाण से वार किया और उसका संहार करने का प्रयास किया.

ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री के इस फैसले से देश में काले धन पर लगाम लगी और ये समस्या समाप्त हुई है मगर हां इसमें कमी अवश्य दर्ज की गयी. ध्यान रहे कि इस बात को देश का विपक्ष तक मानता है कि प्रधानमंत्री द्वारा लिए गए नोट बंदी से भ्रष्टाचार, घूसखोरी और काले धन पर कड़ा प्रहार हुआ है. पीएम मोदी के इस फैसले पर अर्थशास्त्रियो के बीच भी अपने अलग-अलग तर्क हैं. कोई इसे अर्थ व्यवस्था जैसे मुद्दे पर प्रधानमंत्री की एक बड़ी चूक के तौर पर देख रहा है तो कहीं कोई इसे पीएम का ऐसा प्रयोग मान रहा है जिसके सकारात्मक परिणाम एक देशवासी को भविष्य में देखने को मिले.

नोटबंदी पर सरकार का तर्क था कि इससे काले धन पर लगाम लगेगी

खैर बात जब पीएम मोदी, अर्थव्यवस्था, नोटबंदी पर हो और ऐसे में हम जी डी पी पर चर्चा न करें तो बात एक हद तक अधूरी रह जाती है. वर्तमान में सरकार गिरी हुई जीडीपी के लिए तमाम तरह की आलोचना झेल रही है. ऐसे में वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी एचएसबीसी की रिपोर्ट का आना और उसमें पीएम की तारीफ निश्चित तौर पर सत्ता पक्ष को राहत देगी.

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप एचएसबीसी की इस रिपोर्ट के अनुसार भारत अगले 10 सालों के भीतर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. फर्म का मानना है कि भले ही हाल में किए गए इकोनॉमिकल रिफॉर्म ने इकॉनमी को कायदे से प्रभावित किया हो, लेकिन मध्य अवधि तक देश की अर्थव्यवस्था बेहतर स्थिति में आ सकती है.

एचएसबीसी ने अपनी रिपोर्ट में एक बड़ी ही हैरत में डालने वाली बात का जिक्र किया है. इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ रिफॉर्म्स ने भारत की अर्थव्यवस्था पर बेहद बुरा असर डाला है. जिसकी वजह से जीडीपी के आंकड़ों में असर पड़ा है और उसमें अंतर नजर आया है. रिपोर्ट में इस बात पर बड़ी ही प्रमुखता से बल दिया गया है कि ग्रोथ ट्रेंड के मद्देनजर ये बात स्पष्ट है कि अगले 10 सालों के भीतर भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन का उभरेगा.

नोटबंदी के बाद विपक्ष से ऐसी बातें सामने आईं कि इससे देश दशकों पीछे चला गया है

एचएसबीसी का मत है कि पिछले रिफॉर्म्स की वजह से कुछ समय तक इकोनाॅमी की स्थिति थोड़ी चिंताजनक जरूर रहेगी. फर्म ने सुझाव दिया है कि मध्य अवधि के दौरान भारत को इसकी छुपी क्षमता के प्रदर्शन का मौका दिया जाना चाहिए. ये बात शायद आपको आश्चर्य में डाल दे कि भले ही भारत की जीडीपी फिलहाल वैश्विक जीडीपी के मुकाबले महज 3 फीसदी हो, लेकिन भारत का ग्रोथ ट्रेंड बेहतर स्थिति में है. रिपोर्ट के अनुसार यदि ये ट्रेंड इसी तरह बना रहा तो भारत अगलेदस वर्षों के अंतराल में में जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ देगा.

गौरतलब है कि रिपोर्ट में इस बात पर भी अनुमान जताया गया है कि वित्त वर्ष 2020 के बाद भारत विकास की रफ्तार पकड़ेगा. आपको बताते चलें कि एचएसबीसी ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2017-18 के बीच भारत की विकास दर 6.5 फीसदी रह सकती है. वहीं, 2019-20 के बीच यह 7 फीसदी तक पहुंचेगी. वित्त वर्ष 2019-20 तक ये लघु अवधि की परेशानियां खत्म हो जाएंगी और इकॉनमी रफ्तार पकड़ेगी.

उपरोक्त बातों से एक बात तो साफ है कि यदि विपक्ष या फिर आम देश वासी को ये महसूस हो रहा है कि 11 नवम्बर 2016 को हुई नोट बंदी के बाद देश दशकों पीछे चला गया है और हमारी सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है तो ये उसकी सबसे बड़ी भूल है. अंत में बस इतना ही की सरकार प्रयास कर रही है. एक नागरिक के तहत हम भी सरकार की आलोचना से बेहतर सरकार के और उसकी पॉलिसियों के साथ मिल कर राष्ट्र को आगे ले जाने की दिशा में काम करें. ऐसा न हो कि, इधर हम आलोचना करते रहें. उधर सिर्फ हमारी आलोचना के कारण हमारा देश दशकों पीछे हो जाए जिसके चलते उसे उभरने में वक़्त लगे. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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