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हर इलाहाबादी इसी सोच में है कि 'प्रयागराज' की आंधी आखिर क्या-क्या उड़ाएगी

    • हिमांशु सिंह
    • Updated: 16 अक्टूबर, 2018 10:34 PM
  • 16 अक्टूबर, 2018 10:34 PM
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इलाहाबाद के प्रयागराज बन जाने से एक आम शहरी के सामने कई प्रश्न खड़े हो गए हैं, वो इसी कश्‍मकश में है कि क्या केवल नाम बदल देने भर से शहर की परेशानियां दूर हो जाएंगी और विकास हो जाएगा.

अमा यार! इलाहाबाद अब इलाहाबाद नहीं है, प्रयागराज हो गया है.

इलाहाबादी बकैतों में अफवाह है कि अगले चरण में सरकार बकैती पर जुर्माना लगाने वाली है. कहते हैं, जिन्दगी बेकार होने वाली है बाबा. अब डकैत, डकैती नहीं करेगा, बकैत, बकैती नहीं करेगा तो दुनिया कैसे चलेगी? खैर, सरकार बहादुर का फरमान है, नकारा नहीं जा सकता.

हॉस्टल के लौंडे डरे हुए हैं कि 'बाबा बम कइसे चलेगा अब! चुनाव कइसे जीता जाएगा सब!' उनके मेस के खानसामे पूछ रहे हैं कि हॉस्टल में अब से बम बनाने का चंदा लगेगा या नहीं? छात्रनेता भयग्रस्त हैं कि अब कोचिंग सेंटरों में उनकी दलाली चलेगी या नहीं. वकील लोग भी सब डरे हुए हैं. समझ नहीं पा रहे हैं कि छात्र-जीवन में उनका कब्जा करा हुआ कमरा, जिसमें अब उनका भरा पूरा परिवार रहता है, 'प्रयागराज' की इस आंधी में बचेगा या नहीं!

प्रयाग जंक्‍शन से इलाहाबाद जंक्‍शन सिर्फ 5 किलोमीटर है, मगर अब सब प्रयागराज है.

यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चौकन्ने हो गये हैं, कहीं क्लास तो नहीं लेनी पड़ेगी अब से! कुल मिलाकर पूरी बनी-बनायी व्यवस्था हिल सी गई है. सभी चिंतित हैं. बस गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों के चेहरे पर उम्मीद है थोड़ी, कि शायद अब उन्हें लल्ला-चुंगी के 'मीटू' से निजात मिले.

बाकी संगम के पंडे हैं जिन्हें फर्क नहीं पड़ता इन सब से. 'अरे लोक-परलोक और भगवान का डर थोड़े ही खत्म हो जाएगा! इलाहाबाद रहे, चाहे प्रयागराज!' ससुर-खदेरी नदी, जिसे इलाहाबाद का विस्तार पाट चुका है, उम्मीद से है. 'प्रयागराज' में शायद मुक्ति हो उसकी भी.

शायद विश्वविद्यालय का वो दौर लौट आये जब यहां के छात्रावासों के पूरे फ्लोर भर के लड़के सिविल सेवाओं में एक साथ सेलेक्ट हो जाया करते थे. पर समय-समय की बात है सब. तब यहाँ के लड़कों के...

अमा यार! इलाहाबाद अब इलाहाबाद नहीं है, प्रयागराज हो गया है.

इलाहाबादी बकैतों में अफवाह है कि अगले चरण में सरकार बकैती पर जुर्माना लगाने वाली है. कहते हैं, जिन्दगी बेकार होने वाली है बाबा. अब डकैत, डकैती नहीं करेगा, बकैत, बकैती नहीं करेगा तो दुनिया कैसे चलेगी? खैर, सरकार बहादुर का फरमान है, नकारा नहीं जा सकता.

हॉस्टल के लौंडे डरे हुए हैं कि 'बाबा बम कइसे चलेगा अब! चुनाव कइसे जीता जाएगा सब!' उनके मेस के खानसामे पूछ रहे हैं कि हॉस्टल में अब से बम बनाने का चंदा लगेगा या नहीं? छात्रनेता भयग्रस्त हैं कि अब कोचिंग सेंटरों में उनकी दलाली चलेगी या नहीं. वकील लोग भी सब डरे हुए हैं. समझ नहीं पा रहे हैं कि छात्र-जीवन में उनका कब्जा करा हुआ कमरा, जिसमें अब उनका भरा पूरा परिवार रहता है, 'प्रयागराज' की इस आंधी में बचेगा या नहीं!

प्रयाग जंक्‍शन से इलाहाबाद जंक्‍शन सिर्फ 5 किलोमीटर है, मगर अब सब प्रयागराज है.

यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चौकन्ने हो गये हैं, कहीं क्लास तो नहीं लेनी पड़ेगी अब से! कुल मिलाकर पूरी बनी-बनायी व्यवस्था हिल सी गई है. सभी चिंतित हैं. बस गर्ल्स हॉस्टल की लड़कियों के चेहरे पर उम्मीद है थोड़ी, कि शायद अब उन्हें लल्ला-चुंगी के 'मीटू' से निजात मिले.

बाकी संगम के पंडे हैं जिन्हें फर्क नहीं पड़ता इन सब से. 'अरे लोक-परलोक और भगवान का डर थोड़े ही खत्म हो जाएगा! इलाहाबाद रहे, चाहे प्रयागराज!' ससुर-खदेरी नदी, जिसे इलाहाबाद का विस्तार पाट चुका है, उम्मीद से है. 'प्रयागराज' में शायद मुक्ति हो उसकी भी.

शायद विश्वविद्यालय का वो दौर लौट आये जब यहां के छात्रावासों के पूरे फ्लोर भर के लड़के सिविल सेवाओं में एक साथ सेलेक्ट हो जाया करते थे. पर समय-समय की बात है सब. तब यहाँ के लड़कों के भाई सलेक्ट हुआ करते थे, फिर वही सेलेक्ट हुए लोग चाचा-ताऊ की पीढ़ी के हो गये. सिलेक्शन का दौर यूं थमा कि अब तो 'मेरे बाबा IAS हैं, यहीं पढ़े थे.' कहने वाले भी मिल जायेंगे.

खैर, अब जनता पूछ रही है कि नाम क्यों बदला? नाम में क्या रखा है? अब इन जाहिलों को कौन बताए कि नाम में ही तो सब कुछ रखा है दोस्त! विलियम शेक्सपिअर कोई मूर्ख थोड़े ही थे कि "नाम में क्या रखा है?" लिखने के बाद नीचे अपना नाम लिख गये कि बाबू मैंने लिखा है ये.

अगर अब भी न समझ पा रहे हो कि नाम क्यों बदल डाला, तो इसे टोटका ही समझ लो. और अगर नाम बदलने वाला टोटका भी नहीं समझ पा रहे तो थोड़ा सा सन्खिया या सल्फास खा लो तुम लोग. अरे ऐसे ही थोड़े अक्षय कुमार की किस्मत चमक गई और आज के भारत कुमार हो चले हैं. राजीव भाटिया के बस का थोड़े ही था ये सब. न भरोसा हो तो सम्पूरन सिंह कालिया से लिखवाकर देख लीजिये कोई गजल, अशआर! रो न दिये तो कहना.भाई साहब गजल लिखना तो गुलज़ार जैसों का काम है, और वही लिख सकते हैं बस.

कुल मिलाकर बड़ा ही गज़ब काम किया है सरकार बहादुर ने. सारे मठाधीश अपने आगामी भविष्य को लेकर चिन्तित हैं. सभी चिन्तित हैं कि कहीं ये शहर सचमुच की अंगडाई न ले ले.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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