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खेती की कहानी: रबी-खरीफ से मिया खलीफा तक...

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 07 फरवरी, 2021 10:24 PM
  • 07 फरवरी, 2021 10:24 PM
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कितनी अजीब बात है कि किसान आंदोलन के इस दौर में खरीफ़ और रबी की फसलों से मिया ख़लीफ़ा और कॉर्न से लेकर पोर्न तक भारत में कृषि और उसके स्वरूप वाक़ई बहुत बदल गए हैं जिसे देखना अपने आप में खासा दिलचस्प है.

बात पुरानी है और उस दौर से जुड़ी है जब भारत के अलावा दुनिया के तमाम मुल्कों में फेसबुक नया नया आया था. उस समय ऑरकुट का जलवा था. एक दूसरे की स्क्रैप बुक में लिखने वाले लोग समझ ही नहीं पा रहे थे इस अतरंगी चीज का करना क्या है. टेंशन फेसबुक को भी थी.. यूजर इंगेजमेंट बना रहे इसलिए फेसबुक एक गेम लेकर आया नाम था 'Farmville.' बड़ा सही गेम था फार्मविले. इसमें जमीन जोतनी होती. स्टोर से बीज खरीदना होता. बो देना होता और फिर जिस फसल का जैसा टाइम हो उसे व्यक्ति निर्धारित समय पर आकर काट ले. गेम का कॉन्सेप्ट बस इतना ही था. शुरू शुरू में गेम बोरिंग लगता मगर एक समय बाद जब इसकी लत लग जाती तो इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल उस दौर में इस गेम की लोकप्रियता का आलम ये था कि लोग अपनी फसल काटने साइबर कैफ़े तक जाते और अपनी लौकी, टिंडे, करेले, मूली, टमाटर, आलू, पुदीना, गन्ना जो भी उन्होंने बोया होता उसे अपनी जेबें ढीली कर काटते. लेकिन मबात फिर वही है खेती किसानी farmville पर फ़सल बोना और उसे काटना नहीं है. खेती किसानी बड़ी दूसरी टाइप की चीज है. मेहनत तो है ही इसमें साथ ही इसके लिए डेडिकेशन भी बहुत ज़रूरी है.

मिया के किसानों को समर्थन के बाद कृषि की तमाम बातें एक तरफ मिया खलीफा एक तरफ

खेती किसानी प्रयोग मांगती है. मसलन कोई किसान यदि बरसों से गन्ना बो रहा है और एक समय बाद फसल उतनी नहीं निकल रही जितने की उम्मीद उसने की थी तो किसान के लिए ये ज़रूरी है कि वो पूरी फसल को हटा दे दोबारा से खेत की गुड़ाई करवाए और सारा काम नए सिरे से करे. उसके बाद जो फसल निकलेगी कहने ही क्या. बात ग्लोबल लेवल पर हो तो अपने देश की छोड़िए विदेश के कई किसान ऐसे हैं जिनका मानना है कि ट्रेडिशनल फार्मिंग हर बार किसानों को फायदा पहुंचाए ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं. अगर किसानों को अपना कल्याण करना है...

बात पुरानी है और उस दौर से जुड़ी है जब भारत के अलावा दुनिया के तमाम मुल्कों में फेसबुक नया नया आया था. उस समय ऑरकुट का जलवा था. एक दूसरे की स्क्रैप बुक में लिखने वाले लोग समझ ही नहीं पा रहे थे इस अतरंगी चीज का करना क्या है. टेंशन फेसबुक को भी थी.. यूजर इंगेजमेंट बना रहे इसलिए फेसबुक एक गेम लेकर आया नाम था 'Farmville.' बड़ा सही गेम था फार्मविले. इसमें जमीन जोतनी होती. स्टोर से बीज खरीदना होता. बो देना होता और फिर जिस फसल का जैसा टाइम हो उसे व्यक्ति निर्धारित समय पर आकर काट ले. गेम का कॉन्सेप्ट बस इतना ही था. शुरू शुरू में गेम बोरिंग लगता मगर एक समय बाद जब इसकी लत लग जाती तो इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल उस दौर में इस गेम की लोकप्रियता का आलम ये था कि लोग अपनी फसल काटने साइबर कैफ़े तक जाते और अपनी लौकी, टिंडे, करेले, मूली, टमाटर, आलू, पुदीना, गन्ना जो भी उन्होंने बोया होता उसे अपनी जेबें ढीली कर काटते. लेकिन मबात फिर वही है खेती किसानी farmville पर फ़सल बोना और उसे काटना नहीं है. खेती किसानी बड़ी दूसरी टाइप की चीज है. मेहनत तो है ही इसमें साथ ही इसके लिए डेडिकेशन भी बहुत ज़रूरी है.

मिया के किसानों को समर्थन के बाद कृषि की तमाम बातें एक तरफ मिया खलीफा एक तरफ

खेती किसानी प्रयोग मांगती है. मसलन कोई किसान यदि बरसों से गन्ना बो रहा है और एक समय बाद फसल उतनी नहीं निकल रही जितने की उम्मीद उसने की थी तो किसान के लिए ये ज़रूरी है कि वो पूरी फसल को हटा दे दोबारा से खेत की गुड़ाई करवाए और सारा काम नए सिरे से करे. उसके बाद जो फसल निकलेगी कहने ही क्या. बात ग्लोबल लेवल पर हो तो अपने देश की छोड़िए विदेश के कई किसान ऐसे हैं जिनका मानना है कि ट्रेडिशनल फार्मिंग हर बार किसानों को फायदा पहुंचाए ये बिल्कुल भी जरूरी नहीं. अगर किसानों को अपना कल्याण करना है तो उन्हें रिस्क लेना ही होगा.

बात रिस्क की हुई है तो रिस्क के अपने टंटे हैं भाग्य मेहरबान हुआ तो ठीक वरना आपके आस खुद कई किसान ऐसे होंगे जिनकी लंका तब भी लगी जब हम इस बात को बखूबी जानते हैं कि अपना भारत एक कृषि प्रधान देश है. प्रधान से याद आया. देश के किसानों को प्रधान बोले तो प्रधानमंत्री मतलब जो नरेंद्र मोदी हैं. हमारे उनसे बड़ी दिक्कत है.

ध्यान रहे कि अभी हाल में ही सरकार ने सदन में तीन नए कृषि कानूनों को स्वीकृति दी है. बस बात इतनी है . विपक्ष और पंजाब हरियाणा के किसान जिन्होंने किसान नेता राकेश टिकैत की छत्रछाया में अपने को कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से प्रेरित होकर100 टका टंच 'नेशनल फार्मर' कह दिया है, सरकार के विरोध में हैं.

'मांगों' के नामपर दिल्ली में किसान क्या तांडव मचाए हुए हैं? देश और देश की जनता ने देख लिया है. किसानों को यूं इस तरह लोकतंत्र और संविधान की धज्जियां उड़ाते देख देश के तमाम लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपने को दो पालों में बांट दिया है. एक इस पाले है तो दूसरा उस पाले.अच्छा क्योंकि जिक्र खेती किसानी का हुआ है तो बात आगे बढ़ाने से पहले ज़रूरी है कि बता दें भारत में दो तरह की फसलें होती हैं एक रबी वाली दूसरी खरीफ की. अभी जो मौसम है वो रबी वाला है.

इस मौसम में सरसों, गन्ना, मटर, मूली, गोभी, धनिया गेहूं जैसी चीजें विशेष 'केयर' मांगती हैं इसलिए किसानों के लिए बहुत जरूरी होता है कि वो अपनी फसल का विशेष ख्याल रखें. अब विडंबना देखिये जिस देश में किसानों के लिए अपनी फसल देखने का और उसकी केयर करने वाला सबसे क्रूशियल टाइम हो वो देख भी तो क्या रहे हैं पोर्न एक्टर मिया खलीफा को.

गौरतलब है कि इस किसान आंदोलन के बाद तमाम लोग हैं जो प्रदर्शनकारी किसानों के समर्थन में आए हैं और पोर्न एक्टर मिया ख़लीफ़ा उन्हीं में से एक हैं. मिया किसानों की साइड लेकरलगातार ट्वीट पर ट्वीट किए जा रही हैं जिससे प्रदर्शन करते किसानों की बांछें खिली हुई हैं. बात बीते दिनों आए मिया के ट्वीट की हो तो मियां ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि, 'मानवाधिकार उल्लंघनों पर ये चल क्या रहा है? उन्होंने नई दिल्ली के आसपास के इलाकों में इंटरनेट काट दिया है?!'

मिया ने किसानों का मनोबल किस हद तक बढ़ाया है इसे उनके उस ट्वीट से समझ सकते हैं जिसमें उन्होंने भारतीय एक्टर्स को निशाने पर लिया था और लिखा था कि पेड एक्टर्स...मुझे उम्मीद है कि पुरस्कारों के मौसम में उनकी अनदेखी कतई नहीं की जाएगी. मैं किसानों के साथ हूं...#FarmersProtest'

किसान खुश हैं. मिया के रूप में डूबते हुए किसानों को तिनके वाला सहारा मिला है. कितने कमाल की बात है न कि खरीफ से खलीफा और कॉर्न से पोर्न... जिस तरह भारतीय कृषि में एक नए विमर्श और संवाद को जगह मिली है वो हैरत में डालने वाला है. मिया की बदौलत भारतीय कृषि यहां तक आ जाएगी शायद ही कभी किसी ने सोचा हो.

ख़ैर जो होना था हो चुका. यूं भी होनी को कौन टाल सकता है. क्यों कि अब जबकि ब्लंडर हो चुका है तो हम भी बस एक शेर के जरिये अपनी बात को विराम देंगे. शेर 'अख़्तर नज़्मी' का है जिसमें देश के असली किसानों के लिए शायर ने बहुत पहले कहा था कि

लौटा गेहूं बेचकर अपने गांव किसान,

बिटिया गुड़िया सी लगी, पत्नी लगी जवान.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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