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Rakesh Tikait खुद को आगे बढ़ा रहे हैं या किसान आंदोलन को?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 05 फरवरी, 2021 12:29 PM
  • 05 फरवरी, 2021 12:29 PM
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राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) जिस तेजी के साथ के साथ जाटों के नेता के तौर पर उभर रहे हैं, लगता है वो किसान आंदोलन के सहारे अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हों - और ये योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से ज्यादा अजीत सिंह (Ajit Singh) के लिए चिंता की बात है.

कोई दो राय नहीं कि राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) तीन दशक से ज्यादा समय से किसान आंदोलन से जुड़े हुए हैं, लेकिन हमेशा ही वो एक कमजोर छात्र की तरह पीछे की बेंच से आगे आने के लिए संघर्ष करते देखे गये. ये तो टीवी कैमरे सिसकियों के साथ उनकी आंखों से निकले आंसुओं ने अचानक ही किसान आंदोलन का टॉपर बना दिया है.

पहले वो सिर्फ पश्चिम यूपी के अपने इलाके के किसानों के नेता रहे, लेकिन धीरे धीरे वो जाटों के नेता के तौर पर राष्ट्रीय फलक पर उभर रहे हैं. अब तो लगने लगा है जैसे किसान आंदोलन के सहारे वो अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हों - और राकेश टिकैत ये रणनीति नुकसान तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को भी पहुंचाएगी, लेकिन उससे कहीं ज्यादा चिंता वाली बात आरएलडी नेता अजीत सिंह (Ajit Singh) के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात है.

राकेश टिकैत ने पाला कब बदला?

26 जनवरी से पहले भी राकेश टिकैत को राजनीतिक दलों नेताओं से कोई परहेज नहीं था, लेकिन उसके पीछे बड़ी बाधा वो पॉलिटिकल लाइन रही जिसका पक्षधर राकेश टिकैत को माना जाता रहा है - और विपक्षी दलों के नेताओं के राकेश टिकैत से भी दूरी बना कर चलने की खास वजह वही रही.

अगर ऐसा नहीं होता तो राहुल गांधी के पंजाब में किसान यात्रा से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा उनको पश्चिम यूपी के दौरे पर ले गयी होतीं - और राहुल गांधी पंजाब की जगह पश्चिम यूपी की सड़कों पर ट्रैक्टर चलाते नजर आते.

अगर राहुल गांधी ट्रैक्टर नहीं चलाते तो प्रियंका गांधी वाड्रा खुद ही ट्रैक्टर पर वैसे ही नजर आतीं जैसे हाथरस के रास्ते में राहुल गांधी के साथ कांग्रेस महासचिव को ड्राइविंग सीट पर देखा गया था. उसी ट्रैक्टर पर पीछे यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार...

कोई दो राय नहीं कि राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) तीन दशक से ज्यादा समय से किसान आंदोलन से जुड़े हुए हैं, लेकिन हमेशा ही वो एक कमजोर छात्र की तरह पीछे की बेंच से आगे आने के लिए संघर्ष करते देखे गये. ये तो टीवी कैमरे सिसकियों के साथ उनकी आंखों से निकले आंसुओं ने अचानक ही किसान आंदोलन का टॉपर बना दिया है.

पहले वो सिर्फ पश्चिम यूपी के अपने इलाके के किसानों के नेता रहे, लेकिन धीरे धीरे वो जाटों के नेता के तौर पर राष्ट्रीय फलक पर उभर रहे हैं. अब तो लगने लगा है जैसे किसान आंदोलन के सहारे वो अपनी राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हों - और राकेश टिकैत ये रणनीति नुकसान तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को भी पहुंचाएगी, लेकिन उससे कहीं ज्यादा चिंता वाली बात आरएलडी नेता अजीत सिंह (Ajit Singh) के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात है.

राकेश टिकैत ने पाला कब बदला?

26 जनवरी से पहले भी राकेश टिकैत को राजनीतिक दलों नेताओं से कोई परहेज नहीं था, लेकिन उसके पीछे बड़ी बाधा वो पॉलिटिकल लाइन रही जिसका पक्षधर राकेश टिकैत को माना जाता रहा है - और विपक्षी दलों के नेताओं के राकेश टिकैत से भी दूरी बना कर चलने की खास वजह वही रही.

अगर ऐसा नहीं होता तो राहुल गांधी के पंजाब में किसान यात्रा से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा उनको पश्चिम यूपी के दौरे पर ले गयी होतीं - और राहुल गांधी पंजाब की जगह पश्चिम यूपी की सड़कों पर ट्रैक्टर चलाते नजर आते.

अगर राहुल गांधी ट्रैक्टर नहीं चलाते तो प्रियंका गांधी वाड्रा खुद ही ट्रैक्टर पर वैसे ही नजर आतीं जैसे हाथरस के रास्ते में राहुल गांधी के साथ कांग्रेस महासचिव को ड्राइविंग सीट पर देखा गया था. उसी ट्रैक्टर पर पीछे यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी नजर आ रहे होते.

ऐसा इसलिए नहीं कि किसान आंदोलन की कमान पंजाब के किसानों से छिटक कर अचानक राकेश टिकैत के हाथ में जा पहुंची है, बल्कि, इसलिए क्योंकि राकेश टिकैत को बीजेपी का कट्टर समर्थक माना जाता रहा. राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत ने तो मुजफ्फरनगर की महापंचायत में कहा भी कि अजीत सिंह का साथ छोड़ कर किसानों ने गलती कर दी. ठीक उसके बाद जोड़े कि बीजेपी को आने वाले चुनावों में सबक सिखाना है.

राकेश टिकैत ने मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष को अपना कंधा मुहैया कराया है - और ये किसान आंदोलन के नाम पर किसी और राजनीति की राह है

असल में ऐसा 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद ही हो गया था. चौधरी चरण सिंह के जमाने से ही अजीत सिंह को जाटों के सपोर्ट की आदत लग चुकी थी. जाटों को लेकर उनकी भी करीब करीब वैसी ही धारणा रही जैसी अमेठी को लेकर राहुल गांधी की 2019 के आम चुनाव के नतीजे आने से पहले तक रही. 2013 में जब मुजफ्फरनगर में दंगे हुए तो यूपी में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार रही और जाटों को लगा कि अजीत सिंह ने मुश्किल दिनों में खुल कर साथ नहीं दिया - और उनको सबक सिखाने के मकसद से वे बीजेपी के साथ हो लिये.

अब जरा उस वाकये को समझने की कोशिश करते हैं जब राकेश टिकैत ने अचानक पैंतरा बदल दिया और मंच पर चढ़ कर पुलिस और प्रशासनिक

अधिकारियों की हां में हां मिलाने से इंकार कर दिया था. तब जो खबर आयी थी, उसके मुताबिक, आरोप रहा कि बीजेपी विधायक नंदकिशोर गुर्जर अपने सौ से ज्यादा समर्थकों के साथ पहुंचे थे और किसान आंदोलन खत्म कराने की कोशिश कर रहे थे. ये आरोप भी राकेश टिकैत और उनके ही लोगों की तरफ से लगाया गया था.

राकेश टिकैत ने गाजीपुर बॉर्डर पर जमा किसानों से कहा था कि एक साजिश के तहत पुलिस उनको गिरफ्तार कर लेगी और उसके बाद वहां मौजूद किसानों की पिटायी होने लगेगी. ऐसी आशंका भी राकेश टिकैत ने बीजेपी विधायक की मौजूदगी के मद्देनजर जतायी थी. मीडिया रिपोर्ट से पता चला था कि जब राकेश टिकैत पलट गये तो अधिकारियों ने लखनऊ में बैठे आला अधिकारियों को जानकारी दी और फिर वो जानकारी सूबे में बीजेपी के नेतृत्व तक पहुंची.

लखनऊ से हिदायत मिलने के बाद ही बीजेपी विधायक मौके से खिसक लिये. हालांकि, जब भी मीडिया ने बीजेपी विधायक नंदलाल गुर्जर से सवाल किया, वो तो वहां जाने की बात से ही इंकार कर किये.

अब राकेश टिकैत ने लोनी से बीजेपी विधायक नंदलाल गुर्जर को लेकर नयी बात बतायी है. राकेश टिकैत का कहना है कि 26 जनवरी से पहले नंदलाल गूर्जर उनकी मदद कर रहे थे, लेकिन बाद में अचानक वो खिलाफ हो गये. राकेश टिकैत का कहना है कि विधायक की तरफ से आंदोलन में कंबल और जरूरत की दूसरी चीजें मुहैया करायी गयी थीं.

ये तो ऐसा लग रहा है जैसे 26 जनवरी के बाद ही राकेश टिकैत के राजनीतिक स्टैंड में बदलाव महसूस किया गया हो - और उसके बाद से ही सब कुछ बदला बदला नजर आने लगा है.

ये तो तभी का वाकया लगता है जब राकेश टिकैत के विपक्षी खेमे के नेताओं से संपर्क बढ़ा है और बीजेपी विधायक को भनक लगते ही वो मौके पर धमक गये. बीजेपी विधायक की मौजूदगी का राकेश टिकैत ने ऐसा फायदा उठाया कि पूरे किसान आंदोलन पर कब्जा बढ़ाते जा रहे हैं.

अब तो कोई शक-शुबहे वाली बात रही नहीं कि राकेश टिकैत ने विपक्ष को राजनीति करने के लिए अपना कंधा उपलब्ध करा दिया है - और बीजेपी के खिलाफ पूरा मौका मुहैया करा रहे हैं कि एक एक करके विपक्षी खेमे का हर नेता राकेश टिकैत के पास हाजिरी लगाने लगा है.

राकेश टिकैत की राजनीतिक तैयारी क्या है?

किसान आंदोलन में राकेश टिकैत के आंसुओं के जान डाल देने के बाद से ही जगह जगह किसानों की महापंचायत होने लगी है. हरियाणा के जींद में हुई ऐसी ही एक पंचायत में पहुंच राकेश टिकैत ने काफी बड़ी बड़ी बातें की.

ऐसा लगता है जैसे राकेश टिकैत किसान महापंचायत को चुनावी रैलियों की तरह लेने लगे हैं, तभी तो मंच के टूट जाने तक की परवाह न कर केंद्र सरकार को धमकाते हुए से कहते हैं, अगर कानूनों के वापस नहीं लिया गया तो उसके लिए सत्ता में बने रहना मुश्किल हो जाएगा.

देखा जाये तो आरएलडी नेता अजीत सिंह भी मौके की ताक में ही बैठे हुए थे. लगातार चुनावी हार ने उनको भी अंदर तक झकझोर कर रख दिया है. जैसे ही राकेश टिकैत के कैमरे पर आंसू निकल आने की खबर उन तक पहुंची, अजीत सिंह के लोगों ने फोन लगाया और राकेश टिकैत को हर कदम पर सपोर्ट का भरोसा दिलाया. अगले ही दिन अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी गाजीपुर बॉर्डर राकेश टिकैत से मिलने पहुंच चुके थे - और उसके बाद बड़े भाई नरेश टिकैत के पास मुजफ्फरनगर महापंचायत में. नरेश टिकैत ने भूल सुधार के बहाने अजीत सिंह को भी बदले में सपोर्ट का सरेआम भरोसा दिलाया.

अब सवाल ये है कि क्या नरेश टिकैत के दिलाये भरोसे को राकेश टिकैत भी कायम रखेंगे या भरोसा तोड़ देंगे?

ये तो जगजाहिर है कि नरेश टिकैत और राकेश टिकैत में कभी पटरी नहीं बैठी. महेंद्र सिंह टिकैत का बड़ा बेटा होने के नाते पहले से ही तय था कि गद्दी तो उनको ही मिलेगी. हुआ भी वही, पहले बलियान खाप की गद्दी पर महेंद्र सिंह टिकैत हुआ करते थे, अब उस नरेश टिकैत बैठे हैं. राकेश टिकैत को पिता के किसान आंदोलन के कारण ही दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़नी पड़ी, लेकिन भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत बने और राकेश टिकैत परंपराओं के निर्वहन में प्रवक्ता बन कर रह गये. मतलब, फैसले अध्यक्ष ले और जो बोले प्रवक्ता उसे जहां भी जरूरत हो पढ़ कर बांचता फिरे. भला ये कब तक चलने वाला है?

आखिर राकेश टिकैत के मन में भी तो महत्वाकांक्षा होगी ही. कभी न कभी जागनी थी - और उपजाऊ जमीन देख कर अब उग आयी है. राकेश टिकैत अब मौके का पूरा फायदा उठा रहे हैं. वो अब महज किसान यूनियन के प्रवक्ता या किसानों के नेता नहीं बने रहना चाहते. वो जाटों और गुर्जरों के नेता बन कर मुख्यधारा की राजनीति में आना चाहते हैं. ये बात अलग है कि दो बार चुनाव लड़े लेकिन फेल रहे, लेकिन हमेशा वक्त एक जैसा ही रहे, ऐसा होता तो नहीं. अब जबसे राकेश टिकैते के दिन पलटे हैं - वो अपने मिशन में लग गये हैं.

आज तक के सीधी बात कार्यक्रम में जब राकेश टिकैत से पूछा गया कि वो किसान हैं - या नेता हैं?

ये सुनते ही राकेश टिकैत संभल जाते हैं, 'गन्ने उगाता हूं. ट्रैक्टर चलाने का शौक है... नेता तो चमचमाते घरों में रहते हैं. मखमली में सोते हैं. बुवाई के दिनों में पूरे-पूरे दिन ट्रैक्टर चलाता हूं - आगे चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है.'

लेकिन सरकार को चेतावनी देने से बाज भी नहीं आते, 'अभी तो किसानों ने सिर्फ कानून वापसी की बात कही है... अगर किसान गद्दी वापसी की बात पर आ गये तो उनका क्या होगा? सरकार को भलिभांति सोच लेना चाहिये.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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