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केजरीवाल अगर आई फोन तो 'जिग्नेश भाई' भी आरोप की राजनीति के नैनो सिम हैं

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 09 जनवरी, 2018 06:01 PM
  • 09 जनवरी, 2018 06:01 PM
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गुजरात से ताजे ताजे विधायक बने जिग्नेश मेवाणी को देखकर अपने 'आप' के अरविंद केजरीवाल की याद आ जाती है और कहा जा सकता है कि जिग्नेश आरोप लगाने में, अरविंद केजरीवाल का अपडेटेड वर्जन हैं

बात बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. जनता को भारी-भारी कसमें देकर उनसे लम्बे-लम्बे वादे कर ये अभी ताजे-ताजे नेता हुए हैं. ये कितने ताजे हैं ये इनकी चुस्ती फुर्ती देखकर पता चलता है. इनको देखते हुए ये भी महसूस होता है कि फिलहाल राजनीति का कीड़ा इनकी पहुंच से दूर है. जिस दिन वो इनके पास पहुंचेगा और इनको अपनी गिरफ्त में लेगा ये भी 'परिपक्व' हो जाएंगे.

इन बातों को पूर्व में घटित गुजरात चुनाव के सन्दर्भ में रखकर देखिये, जवाब बगल वाली लाल बत्ती में सिग्नल हरा होने का इन्तेजार कर रहा है. यदि समय पर आ गया तो अच्छी बात है नहीं आया तो भी चलेगा. हम तो बैठे ही हैं जवाब देने के लिए. हां तो भइया आज "जेर-ए-मुद्दा" जिग्नेश मेवाणी हैं. हां वही जिग्नेश मेवाणी जिनके फैंस और कूलर उन्हें "जिग्नेश भाई" कहते हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जो राहुल गांधी से ज्यादा युवा हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से बड़े क्रांतिकारी हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ज्यादा कर्मठ हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जिन्हें समाज के एक बड़े वर्ग "दलितों" ने अपना नया रहनुमा मान लिया है और मौजूदा वक़्त में अपनी कमान इनके हाथ में दे दी है.

जिग्नेश मेवाणी कई मायनों में केजरीवाल से मिलते जुलते नजर आ रहे हैं

याद रहे कि जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात के वडगाम से, दलित सीट पर भाजपा के विजय चक्रवर्ती के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ उन्हें हराया था. जिग्नेश मेवाणी के लिए आज के सन्दर्भ में ये कहना गलत न होगा कि वो अपने आप में एक कम्प्लीट पैकेज हैं. एक ऐसा पैकेज जो जोश से लबरेज है और देश की जनता का भरपूर मनोरंजन करता नजर आ रहा है. जिग्नेश भाई का जोश देखिये और उस जोश को महसूस करिए तो मिलेगा कि इनको देखकर देश के किसी भी व्यक्ति को अरविंद केजरीवाल की याद आ...

बात बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. जनता को भारी-भारी कसमें देकर उनसे लम्बे-लम्बे वादे कर ये अभी ताजे-ताजे नेता हुए हैं. ये कितने ताजे हैं ये इनकी चुस्ती फुर्ती देखकर पता चलता है. इनको देखते हुए ये भी महसूस होता है कि फिलहाल राजनीति का कीड़ा इनकी पहुंच से दूर है. जिस दिन वो इनके पास पहुंचेगा और इनको अपनी गिरफ्त में लेगा ये भी 'परिपक्व' हो जाएंगे.

इन बातों को पूर्व में घटित गुजरात चुनाव के सन्दर्भ में रखकर देखिये, जवाब बगल वाली लाल बत्ती में सिग्नल हरा होने का इन्तेजार कर रहा है. यदि समय पर आ गया तो अच्छी बात है नहीं आया तो भी चलेगा. हम तो बैठे ही हैं जवाब देने के लिए. हां तो भइया आज "जेर-ए-मुद्दा" जिग्नेश मेवाणी हैं. हां वही जिग्नेश मेवाणी जिनके फैंस और कूलर उन्हें "जिग्नेश भाई" कहते हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जो राहुल गांधी से ज्यादा युवा हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से बड़े क्रांतिकारी हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से ज्यादा कर्मठ हैं. वो जिग्नेश मेवाणी जिन्हें समाज के एक बड़े वर्ग "दलितों" ने अपना नया रहनुमा मान लिया है और मौजूदा वक़्त में अपनी कमान इनके हाथ में दे दी है.

जिग्नेश मेवाणी कई मायनों में केजरीवाल से मिलते जुलते नजर आ रहे हैं

याद रहे कि जिग्नेश मेवाणी ने गुजरात के वडगाम से, दलित सीट पर भाजपा के विजय चक्रवर्ती के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ उन्हें हराया था. जिग्नेश मेवाणी के लिए आज के सन्दर्भ में ये कहना गलत न होगा कि वो अपने आप में एक कम्प्लीट पैकेज हैं. एक ऐसा पैकेज जो जोश से लबरेज है और देश की जनता का भरपूर मनोरंजन करता नजर आ रहा है. जिग्नेश भाई का जोश देखिये और उस जोश को महसूस करिए तो मिलेगा कि इनको देखकर देश के किसी भी व्यक्ति को अरविंद केजरीवाल की याद आ जाएगी. खुद जिग्नेश भाई के समर्थक, जिग्नेश भाई को केजरीवाल का अपडेटेड वर्जन बता रहे हैं.

खैर, शुरुआत में केजरीवाल भी जिग्नेश भाई की तरह तेज तर्रार थे, यहां वहां आते जाते थे, इधर-उधर बयान देते थे. फिर राम जाने क्या हुआ कि अरविंद केजरीवाल खामोश हो गए. कहा जा सकता है कि आम आदमियों के इस लीडर ने आज अपनी ही पार्टी के आम आदमियों से छत्तीस का आंकड़ा कर लिया है और पार्टी के सभी आम आदमी, आम आदमियों के इस लीडर के खिलाफ हो गए हैं और बगावत का बिगुल बजा लिया है.

बहरहाल, बात जिग्नेश भाई पर हो रही थी. जिग्नेश भाई कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र में थे और फ़िलहाल दिल्ली में हैं. दिल्ली बड़ी बेरहम है ये किसी हाकिम की न हुई इसने जिग्नेश भाई के साथ भी वही किया जो इसने पूर्व में कई शासकों के साथ किया है. दिल्ली ने ताजे-ताजे विधायक बने जिग्नेश भाई की हुंकार रैली की हवा निकाल दी है. मीडिया में बताया गया कि दिल्ली पुलिस ने रैली के मद्देनजर टेंट, कुर्सियां, चटाई, कार्पेट सब हटा दिए थे.

मेवाणी बीते कई दिनों से मोदी सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं

जिग्नेश भाई का जोश मुझे ये भी सोचने पर मजबूर कर रहा है कि अगर पूर्व में देश की सियासत में तहलका मचाने वाले अरविंद केजरीवाल को आई फोन कहा जाए तो जिग्नेश भाई भी किसी नैनो सिम से कम नहीं हैं. याद रहे फोन चाहे एंड्राइड हो या फिर आई फोन बिन सिम के केवल उससे गाने सुने और फोटो खींचे जा सकते हैं. और हां जिग्नेश भाई को हम नैनो सिम सिर्फ इसलिए कह रहे हैं क्योंकि गुजरात के अन्य शूरवीरों हार्दिक और अल्पेश के मुकाबले जितना राजनीतिक ज्ञान और समाज से गठजोड़ की सूझबूझ जिग्नेश के पास है, अगर उतनी या उसकी आधी भी हार्दिक और अल्पेश के पास होती तो गुजरात के चुनावी समीकरण कुछ अलग होते.

यदि आपको इस बात को समझना है तो आपको अपने आप को ज्यादा कष्ट देने  ज्यादा इस बात को जिग्नेश के पहले महाराष्ट्र और अब दिल्ली आने के सन्दर्भ में रखकर देखिये मिलेगा कि यही बात भविष्य में इन्हें एक कुशल राजनीतिक बनाएगी और फायदा पहुंचाएगी. गौरतलब है कि जिग्नेश भाई न सिर्फ गुजरात बल्कि सम्पूर्ण देश के दलितों को "इंसाफ" दिलाने को बेक़रार हैं और इसी के मद्देनजर जब उन्होंने बीते दिनों महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा को देखा तो वो बेक़रार हो गए और महाराष्ट्र चले आये. फिल्हाल दिल्ली में डेरा डाले जिग्नेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी नीतियों और संघ के खिलाफ हैं और मानते हैं कि ये सभी मिलकर इस देश की कौमी एकता को खंड खंड कर रहे हैं और देश तोड़ने का काम कर रहे हैं.

अब जिग्नेश अपने प्लान में कितना कामयाब होंगे ये आने वाला जालिम वक़्त बताएगा मगर इनको देख कर एक बात साफ है कि जिग्नेश रुपी इस नैनो सिम से निकलने वाले रेडिएशन से केजरीवाल, मोदी और राहुल जैसे वरिष्ठ नेताओं का स्वास्थ्य खराब होगा जिससे उन्हें भविष्य में भारी दिक्कतों का सामना करना होगा.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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