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बाबरी विध्वंस केस का फैसला सुना, लेकिन भरोसा ना हो रहा!

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 30 सितम्बर, 2020 07:15 PM
  • 30 सितम्बर, 2020 07:15 PM
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बाबरी विध्वंस मामले (Babri Masjid Demolition Case) में 28 साल बाद कोर्ट ने राम जन्मभूमि आंदोलन (Ram Janmabhoomi Movement) के सूत्रधार लाल कृष्ण आडवाणी (LK Advani) को बड़ी राहत देते हुए बाइज्जत बरी कर दिया है. खबर जब इतनी बड़ी हो तो स्वयं उनका खुश होना स्वाभाविक था.

हमारी मति ही मारी गई होगी जो आज हमें लगा कि चलो, लंच गटकते हुए समाचार देख लिए जाएं. टीवी खोला ही था कि हार्ट फेल होते-होते बचा. सच्ची, अपन का दिल तो एकदम धक्क ही हो गया. हैं! आंखें कंचे की तरह गोल हो बाहर लुढ़कने लगीं. ओ मोरे भगवन! ये हम क्या देख रहे हैं? कहीं किसी दुष्ट ने टाइम मशीन में बिठा हमको त्रेता युग में तो नहीं पहुंचा दिया. बात ही कुछ ऐसी थी भाईसाब. पता है, हमने क्या देखा? टीवी पर आडवाणी जी! और वो भी हंसते हुए ! मारे चिंता के अपना तो बुरा हाल! कहीं किसी भक्त की नज़र तो न लग गई इनको! वो तो जान में जान तब आई, जब उन्होंने अपनी ही मूल वाणी से कहा कि 'बहुत दिनों बाद कोई अच्छा समाचार मिला है.' अब ख़ैर इसमें तो कोई शक़ ही नहीं कि अच्छे दिन की सबसे ज्यादा जरूरत तो उनको थी ही. ख़बर सुनकर हमारा भोला मन तो टोटली भावुक हो उठा. रामराज्य की पहली टंकार मन को प्रसन्नचित्त कर गई. न्यूज़-व्यूज तो छोड़िए जी, अपन को तो ये बात टॉप क्लास लगी कि आडवाणी जी का मलाल दूर हुआ. ईश्वर उन्हें शतायु करे.

बाबरी विध्वंस मामले में बरी किये जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी

अब न्यूज़ तो भिया का बताएं! हमने अपने पर्सनल कानों से सुना कि अरे, वो जो विवादित ढांचे पर बंदर की तरह चढ़े थे न, वो सब के सब नालायक़ अराजक तत्व थे. नहीं, हम तो उनको अराजक तत्व भी कायको मानें? अगर अराजक तत्वों ने गिराया होता, तब तो इसकी निंदा होनी चैये थी, वो भी एकदम कड़ी वाली. हुई थी क्या? नहीं न? बल्कि देश में तो प्रसन्नता की लहर ऐसी दौड़ी, ऐसी दौड़ी कि सब लपक- लपक कर क्रेडिट लेने को मरे जा रहे थे. फिर काहे को अराजक बोल हमको इत्ता उदास कर दिया?

हम तो कहते हैं कि वो कर्मवीर तो डस्टिंग करने गए थे. बस नेक जोर से झाड़ दिया. ये भी हो सकता है कि डस्टिंग ठीक से नहीं हुई थी तो...

हमारी मति ही मारी गई होगी जो आज हमें लगा कि चलो, लंच गटकते हुए समाचार देख लिए जाएं. टीवी खोला ही था कि हार्ट फेल होते-होते बचा. सच्ची, अपन का दिल तो एकदम धक्क ही हो गया. हैं! आंखें कंचे की तरह गोल हो बाहर लुढ़कने लगीं. ओ मोरे भगवन! ये हम क्या देख रहे हैं? कहीं किसी दुष्ट ने टाइम मशीन में बिठा हमको त्रेता युग में तो नहीं पहुंचा दिया. बात ही कुछ ऐसी थी भाईसाब. पता है, हमने क्या देखा? टीवी पर आडवाणी जी! और वो भी हंसते हुए ! मारे चिंता के अपना तो बुरा हाल! कहीं किसी भक्त की नज़र तो न लग गई इनको! वो तो जान में जान तब आई, जब उन्होंने अपनी ही मूल वाणी से कहा कि 'बहुत दिनों बाद कोई अच्छा समाचार मिला है.' अब ख़ैर इसमें तो कोई शक़ ही नहीं कि अच्छे दिन की सबसे ज्यादा जरूरत तो उनको थी ही. ख़बर सुनकर हमारा भोला मन तो टोटली भावुक हो उठा. रामराज्य की पहली टंकार मन को प्रसन्नचित्त कर गई. न्यूज़-व्यूज तो छोड़िए जी, अपन को तो ये बात टॉप क्लास लगी कि आडवाणी जी का मलाल दूर हुआ. ईश्वर उन्हें शतायु करे.

बाबरी विध्वंस मामले में बरी किये जाने के बाद लाल कृष्ण आडवाणी

अब न्यूज़ तो भिया का बताएं! हमने अपने पर्सनल कानों से सुना कि अरे, वो जो विवादित ढांचे पर बंदर की तरह चढ़े थे न, वो सब के सब नालायक़ अराजक तत्व थे. नहीं, हम तो उनको अराजक तत्व भी कायको मानें? अगर अराजक तत्वों ने गिराया होता, तब तो इसकी निंदा होनी चैये थी, वो भी एकदम कड़ी वाली. हुई थी क्या? नहीं न? बल्कि देश में तो प्रसन्नता की लहर ऐसी दौड़ी, ऐसी दौड़ी कि सब लपक- लपक कर क्रेडिट लेने को मरे जा रहे थे. फिर काहे को अराजक बोल हमको इत्ता उदास कर दिया?

हम तो कहते हैं कि वो कर्मवीर तो डस्टिंग करने गए थे. बस नेक जोर से झाड़ दिया. ये भी हो सकता है कि डस्टिंग ठीक से नहीं हुई थी तो विवादित ढांचा किसी बच्चे की तरह ठुनक गया और जमीन पर ख़ुद ही लेट हाथ-पैर फेंकने लगा. आप फ़ालतू लोग अट्ठाईस सालों से उन शेष मासूमों को संदेह की निग़ाहों से देख रहे थे, जिन्होंने एक्चुअली में इसे बचाने की कोशिश की थी. मतलब ईमान का तो ज़माना ही न रहा!

अच्छा, एक आंटी जी पर हमें थोड़ा गुस्सा भी आया. मैडम कह रही थीं कि 'ये हनुमान जी ने गिराया.' मतलब क्यूटपन की पराकाष्ठा है ये तो! अदालत ने आपको अभी-अभी बरी किया है और आप समस्त मानव प्रजाति को दरक़िनार कर डायरेक्ट पवनपुत्र पे ही आरोप मढ़ने लगीं. क़सम से, उनकी बात सुन हमारी कोमल भावनाएं ऐसी आहत हुई हैं कि अब चार पांच दिन तलक़ भीषण दरद रहेगा हमको. पर देखो, फिर भी हमने उन्हें माफ़ कर दिया.

अब हम भी कोई अदालत से कम महान थोड़े न हैं. वैसे भी हम पिद्दी लोग बड़े लोगन से पंगा कायको लें जी? पहले से ही आजकल कर्तव्यनिष्ठ जनता देशद्रोही का ठप्पा लगाने को तैयार बैठी है. ये तो इसलिए बताया क्योंकि प्रेमचंद जी ने एक बार समझाया था, 'क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?'

सच तो ये है कि आज समाचारों के दृश्य देख अपनी तो आंखें लबालब भर आईं. इधर मंद-मंद मुस्काते देशभक्तों ने, 'न्याय की जीत हुई' का इनबिल्ट मंत्र पढ़ा. उधर सभी ने एक सुर में इसे ऐतिहासिक फैसला बताते हुए परस्पर पीठ थपथपाई. हो सकता है आंख भी मिचकाई हो, पर जो हमने देखा ही नहीं, वो क्यों कहें? हम ख़ुद उस समय रूमाल से अश्रुधार रोकने में बिजी थे.

और हां, 'अयोध्या की तो झांकी है, मथुरा काशी बाक़ी है' दोहे का पाठ करने वाले मेरी कोटिशः बधाई संग अग्रिम शुभकामनाएं भी स्वीकार कर लें. आप लोग तनिक भी घबराना मत. वैसे आप तो कुछ करोगे ही नहीं! करने वाली तो भीड़ होगी, अराजक तत्व होंगे. भीड़ के ख़िलाफ़ सबूत कौन लाएगा? खीखीखी. चलो, चलो जरा पुराने किस्से तो दोहराओ. सब याद आ जाएगा. पूर्व नियोजित तो कुछ होता ही नहीं है! सब एवीं हो जाता है. बोले तो अचानक!

तो बच्चों, हमें स्वयं को देशभक्त मानकर यूं ही आगे बढ़ना है और इस तरह प्यारी दुनिया भी गोल-गोल चलती रहेगी. आज इस पावन घड़ी में अच्छे दिनों की प्रथम झलक पाकर देश धन्य हुआ. बस, एक ही प्रार्थना है कि अब ये सिलसिला जारी रहे. फ़िलहाल तो भाईसाब आप प्री-दीवाली लड्डू खिलाओ हमको! रसमलाई से भी मैनेज कर लेंगे.

आज इस ख़ुशी के मारे हम अपना weight loss program ही ड्रॉप कर दिए हैं. न, न सॉरी उसे तो कुछ अराजक तत्वों ने ड्रॉप करवा दिया है. हमरा कोनऊ दोस नाहीं! हम तो 'नो वन किल्ड जेसिका' पर विश्वास करने वाले समाज को ही बिलोंग करते हैं जी. तिहाई सौं, जजसाब. पिलीज़ हमका मिश्टेक हेतु छमा देहि! सियावर रामचंद्र की जै! पवनसुत हनुमान की जै!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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