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ट्विटर-फेसबुक के ब्लू टिक जैसे ही गाड़ी पर लाल-बत्ती चाहिए, सब्सक्रिप्शन पर ही सही!

    • निधिकान्त पाण्डेय
    • Updated: 22 फरवरी, 2023 08:02 PM
  • 21 फरवरी, 2023 07:17 PM
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जब सोशल मीडिया की दुनिया में ब्लू टिक वाला रसूख पैसे देकर (सब्सक्रिप्शन से) हांसिल कर लिया जा रहा है तो ऐसा ही कुछ रियल वर्ल्‍ड में क्‍यों नहीं हो सकता? सरकार को पूरा हक है कि वो सब्सक्रिप्शन के आधार पर लाल-बत्ती बांट दे.

टिक, टिक, टिक..

ना ना.. ना तो ये घोड़ा चल रहा है न घड़ी..

वो क्या है ना कि बचपन से हम लोगों को टिक की आदत लग जाती है. जब टीचर करे सवाल और हम दें जवाब तो हमको चाहिए टिक यानी सही का निशान..

बढ़ते-बढ़ते ये आदत पहुँच गई हमारे सोशल मीडिया एकाउंट्स तक. इसकी पहली लत लगाई Twitter ने. कुछ लोगों की ये ग़लतफ़हमी थी कि जिनके ज्यादा फ़ॉलोअर्स होते थे उनको मिलता था ब्लू टिक लेकिन होता दरअसल ये था कि जिसकी रसूख होती थी, सॉलिड चलती थी उसको ब्लू टिक दिया जाता था. मतलब या तो आप नामी-गिरामी हस्ती हों, या किसी बड़े ऑर्गेनाईज़ेशन में काम करते हों तो आपको Twitter पे apply करना होता था और फिर सब चेक करने के बाद मिलता था ब्लू टिक.

इसके बाद, आप बड़े नेताओं और अभिनेताओं को छोड़ दें तो जब कोई ब्लू टिक वाला कोई Tweet या Re-tweet करता तो उसको सीरियसली लिया जाता. मतलब वो VIP समझा जाता. उसकी बात पढ़ी-सुनी जाती और वायरल भी बनाई जाती.

अभी क्या है, अपुन तो है एक individual. अपनी बात कौन सुनेगा? लेकिन क्या है ना कि सरकार की बात तो सभी सुन सकते हैं, सरकार बोले तो government. उधर भी क्या है ना कि पहले VIP कल्चर ज़्यादा था. वो आपको याद होगा ना.. ब्लू टिक जैसी ब्लू लाइट, रेड लाइट. ब्लू लाइट तो इमरजेंसी सर्विस बोले तो सेवा से जुड़ी है जैसे एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और पुलिस वगैरह.

लेकिन क्या है ना कि 2017 में सरकार ने VIP कल्चर को काफी कम कर दिया, कंट्रोल कर दिया. कई लोगों और संस्थानों से VIP वाली लाल बत्ती हटा ली गई है.

आप सोच रहे होंगे कि मैं ब्लू टिक से बात करते-करते लाल बत्ती पे क्यूँ आ गया. अभी क्या है ना कि Twitter को जब से Elon Musk ने टेकओवर किया है तब से हंगामे चालू हैं. अलग-अलग रंग के टिक तो कर ही दिए, साथ में, टिक के लिए पैसे चार्ज करना शुरू कर दिया...

टिक, टिक, टिक..

ना ना.. ना तो ये घोड़ा चल रहा है न घड़ी..

वो क्या है ना कि बचपन से हम लोगों को टिक की आदत लग जाती है. जब टीचर करे सवाल और हम दें जवाब तो हमको चाहिए टिक यानी सही का निशान..

बढ़ते-बढ़ते ये आदत पहुँच गई हमारे सोशल मीडिया एकाउंट्स तक. इसकी पहली लत लगाई Twitter ने. कुछ लोगों की ये ग़लतफ़हमी थी कि जिनके ज्यादा फ़ॉलोअर्स होते थे उनको मिलता था ब्लू टिक लेकिन होता दरअसल ये था कि जिसकी रसूख होती थी, सॉलिड चलती थी उसको ब्लू टिक दिया जाता था. मतलब या तो आप नामी-गिरामी हस्ती हों, या किसी बड़े ऑर्गेनाईज़ेशन में काम करते हों तो आपको Twitter पे apply करना होता था और फिर सब चेक करने के बाद मिलता था ब्लू टिक.

इसके बाद, आप बड़े नेताओं और अभिनेताओं को छोड़ दें तो जब कोई ब्लू टिक वाला कोई Tweet या Re-tweet करता तो उसको सीरियसली लिया जाता. मतलब वो VIP समझा जाता. उसकी बात पढ़ी-सुनी जाती और वायरल भी बनाई जाती.

अभी क्या है, अपुन तो है एक individual. अपनी बात कौन सुनेगा? लेकिन क्या है ना कि सरकार की बात तो सभी सुन सकते हैं, सरकार बोले तो government. उधर भी क्या है ना कि पहले VIP कल्चर ज़्यादा था. वो आपको याद होगा ना.. ब्लू टिक जैसी ब्लू लाइट, रेड लाइट. ब्लू लाइट तो इमरजेंसी सर्विस बोले तो सेवा से जुड़ी है जैसे एम्बुलेंस, फायर ब्रिगेड और पुलिस वगैरह.

लेकिन क्या है ना कि 2017 में सरकार ने VIP कल्चर को काफी कम कर दिया, कंट्रोल कर दिया. कई लोगों और संस्थानों से VIP वाली लाल बत्ती हटा ली गई है.

आप सोच रहे होंगे कि मैं ब्लू टिक से बात करते-करते लाल बत्ती पे क्यूँ आ गया. अभी क्या है ना कि Twitter को जब से Elon Musk ने टेकओवर किया है तब से हंगामे चालू हैं. अलग-अलग रंग के टिक तो कर ही दिए, साथ में, टिक के लिए पैसे चार्ज करना शुरू कर दिया है. और तो और, अब तो Mark Zuckerberg ने Facebook और Instagram के लिए भी ब्लू टिक पाने वालों से पैसा वसूलने को कहा है.

अब प्राइवेट प्लेयर्स ऐसा कर रहे हैं तो सरकार भी तो कुछ सीख सकती है. सोचिये, पैसे देकर आपको अपनी गाड़ी पे लाल बत्ती लगाने को मिल जाए. फिर तो घर से गाड़ी निकालते हुए जब आप गर्व से लाल बत्ती गाड़ी पर रखेंगे, आपकी शान बढ़ जाएगी. चियाऊँ-चियाऊँ की आवाज़ करते हुए आप जिधर से गुजरेंगे, लोगों की नज़र आपकी तरफ दौड़ जाएगी. अभी अपना रसूख दिखाने के लिए गाडियों के शीशों पर जाट, यादव, राजपूत, ब्राह्मण लिखवाकर शान दिखाना पड़ रही है, जरा सोचिए एक लाल-बत्ती देकर इस जातिवाद से मुक्ति पाई जा सकती है.

कभी आप पुलिस थाने गए हैं? वहाँ आपको अपनी गाड़ी अंदर ले जाने का अधिकार नहीं होता लेकिन अगर.. अगर लाल बत्ती लगी है तो आप बेधड़क अपनी गाड़ी को पुलिस थाने के कैंपस में ले जाएं या कचहरी में, सलाम ठोकते अर्दली आपको सेवा में हाजिर रहेंगे.

इतना ही नहीं, सोचिए, फैसिलिटी ये भी हो कि आप किसी भी दफ्तर में किसी काम के लिए जाते हुए लाल बत्ती को हाथ में भी लेकर जा सकते हो तो.. नहीं वो, लाइट चार्जिंग के लिए आपको एक्स्ट्रा खर्चा करना पड़ेगा, लेकिन फायदे सोचो. पहली बात तो ये कि आपको देखते ही लोग अलर्ट हो जाएंगे. हाथ में लाल बत्ती देखकर आपका जलवा भी लाइट मारेगा और आपका काम जो भी हो, आसानी से हो जाएगा. होगी न फिर तो ऐश ही ऐश!!!

मैं तो कहता हूँ कि इतना ही क्यूँ, कभी कोई फॉर्म भरना हो तो उसमें भी कॉलम होना चाहिए कि आपके पास लाल बत्ती है या नहीं. उससे फॉर्म की छंटनी और काम निकलवाने का काम ज्यादा आसान हो जाएगा.

बोले तो, जैसे ब्लू टिक लेकर सोशल मीडिया पर आप शान बघार सकते हैं वैसा ही कुछ लाल बत्ती के साथ भी तो हो सकता है. सरकार ऐसी व्यवस्था कर दे तो सच्ची में वो रियल वाला फील और थ्रिल आ जाएगा. भई! जब पैसे ही देने हैं तो सोशल मीडिया ही क्यों रियल वर्ल्ड में भी दिए जाएं और मज़े लिए जाएं. क्या कहते हो सरकार?

और हाँ सरकार! मतलब आप सब आई-चौक पढ़ने वाले, आपका क्या विचार है, लिख डालिए कि आपको ये आईडिया कैसा लगा.


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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