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मैथ्स, साइंस में कम नंबर लाने वाले हाईस्कूल स्टूडेंट्स की तरह डांट खा रहे हैं खट्टर

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 28 अगस्त, 2017 11:01 PM
  • 28 अगस्त, 2017 11:01 PM
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खट्टर साहब को देख के उन लड़कों को संतोष कर लेना चाहिए जो हाईस्कूल के दैरान मैथ्स और साइंस में कम नंबर लाने के चलते मम्मी, पापा के अलावा दुनिया भर से आज भी कोसे जा रहे हैं.

मैं जिस मुहल्ले में रहता हूं, वहां मेरी उम्र के कई लड़के हैं और हम सब दोस्त हैं. मुहल्ले में हमारा एक ग्रुप हुआ करता था जिसमें हम 7 दोस्त थे. मैं, मनोज, दीपक, असलम, सुरेश, आसिफ और पियूष. हमने सब काम एकसाथ किया, सारे एग्जाम भी साथ दिए. हम सारे दोस्तों में बस आसिफ ऐसा था जिसके हाई स्कूल में इंग्लिश में सबसे ज्यादा और मैथ्स, साइंस में सबसे कम नंबर आए. मम्मी पापा के अलावा चाय वाले गुड्डू से लेकर गोल गप्पे वाले शुक्ला जी और पान वाले चौरसिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा की आसिफ के इंग्लिश में सबसे ज्यादा नंबर हैं, उनकी सबसे बड़ी चिंता थी आसिफ का मैथ्स और साइंस में बिलो एवरेज मार्क्स लाना. बेचारा आसिफ आज भी मौके, बेमौके मम्मी-पापा के अलावा जमाने भर से कोसा जाता है.

खट्टर उस स्टूडेंट की तरह हैं जो कम नंबर लाने पर सबकी डांट खा रहा है

हाई स्कूल की परीक्षा और आसिफ को पड़ी जमाने भर की वो डांट गुजरे वक्त की बात हो चुकी है. आज भी जब मैं अकेले होता हूं तो उस दौर और उस पूरे प्रकरण को याद कर लेता हूं. खैर, बात अभी बीते दिन की है. मुझे आसिफ की तब बड़ी कस के याद आ गयी जब मैंने हरियाणा के मुख्यमंत्री का मुरझाया हुआ झुर्रीदार चेहरा देखा. लुटती पिटती कानून व्यवस्था, कुशासन और सुलगते हुए हरियाणा की स्थिति नियंत्रित करने में नाकाम, बेबस खट्टर के चेहरे में मुझे आसिफ का चेहरा दिखा.

खट्टर का चेहरा देखते हुए मुझे महसूस हुआ कि भले ही ये दौर दूसरा है और वो दौर दूसरा था. मगर आज भी ज्यादा कुछ नहीं बदला है. आज भी स्थिति लगभग समान है. फेलियर और लूजर न सिर्फ आज से बल्कि बहुत लम्बे समय से जमाने भर से आलोचना सह रहे हैं. कह सकते हैं जिनमें शर्म होती है वो सुधर जाते हैं और जो शर्म धो के पी चुके होते हैं वो ऐसे ही चेहरा उदास कर के खड़े हो जाते हैं.

जाट आंदोलन के...

मैं जिस मुहल्ले में रहता हूं, वहां मेरी उम्र के कई लड़के हैं और हम सब दोस्त हैं. मुहल्ले में हमारा एक ग्रुप हुआ करता था जिसमें हम 7 दोस्त थे. मैं, मनोज, दीपक, असलम, सुरेश, आसिफ और पियूष. हमने सब काम एकसाथ किया, सारे एग्जाम भी साथ दिए. हम सारे दोस्तों में बस आसिफ ऐसा था जिसके हाई स्कूल में इंग्लिश में सबसे ज्यादा और मैथ्स, साइंस में सबसे कम नंबर आए. मम्मी पापा के अलावा चाय वाले गुड्डू से लेकर गोल गप्पे वाले शुक्ला जी और पान वाले चौरसिया को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा की आसिफ के इंग्लिश में सबसे ज्यादा नंबर हैं, उनकी सबसे बड़ी चिंता थी आसिफ का मैथ्स और साइंस में बिलो एवरेज मार्क्स लाना. बेचारा आसिफ आज भी मौके, बेमौके मम्मी-पापा के अलावा जमाने भर से कोसा जाता है.

खट्टर उस स्टूडेंट की तरह हैं जो कम नंबर लाने पर सबकी डांट खा रहा है

हाई स्कूल की परीक्षा और आसिफ को पड़ी जमाने भर की वो डांट गुजरे वक्त की बात हो चुकी है. आज भी जब मैं अकेले होता हूं तो उस दौर और उस पूरे प्रकरण को याद कर लेता हूं. खैर, बात अभी बीते दिन की है. मुझे आसिफ की तब बड़ी कस के याद आ गयी जब मैंने हरियाणा के मुख्यमंत्री का मुरझाया हुआ झुर्रीदार चेहरा देखा. लुटती पिटती कानून व्यवस्था, कुशासन और सुलगते हुए हरियाणा की स्थिति नियंत्रित करने में नाकाम, बेबस खट्टर के चेहरे में मुझे आसिफ का चेहरा दिखा.

खट्टर का चेहरा देखते हुए मुझे महसूस हुआ कि भले ही ये दौर दूसरा है और वो दौर दूसरा था. मगर आज भी ज्यादा कुछ नहीं बदला है. आज भी स्थिति लगभग समान है. फेलियर और लूजर न सिर्फ आज से बल्कि बहुत लम्बे समय से जमाने भर से आलोचना सह रहे हैं. कह सकते हैं जिनमें शर्म होती है वो सुधर जाते हैं और जो शर्म धो के पी चुके होते हैं वो ऐसे ही चेहरा उदास कर के खड़े हो जाते हैं.

जाट आंदोलन के दौरान अपने पूर्व के अनुभव, इंटेलिजेंस की रिपोर्ट, पंजाब के डीजीपी (कानून व्यवस्था) की चिट्ठी इतनी सब चीजों के बावजूद जिस तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर नाकाम हुए हैं उनपर लाजमी है कि उन्हें जमाने भर की डांट पड़े. कोर्ट, पार्टी, प्रधानमंत्री और दीगर संगठनों द्वारा आज मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को ठीक वैसे ही कोसा जा रहा है जैसा कभी मेरे दोस्त आसिफ को मैथ्स और साइंस में कम नंबरों के लिए कोसा गया था.

भले ही खट्टर लाख सफाई दें मगर उनसे एक बड़ी गलती हुई है

आज जो स्थिति है उसपर मैं निश्चित होकर कह सकता हूं कि खट्टर और मेरे दोस्त आसिफ में कई समानताएं हैं और दोनों बिल्कुल एक जैसे हैं. ये एक जैसे ही लापरवाह, बेफिक्र और ओवर कॉंफिडेंट हैं. दोनों ही, अगर करना चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे मगर हकीकत ये थी कि एक को क्रिकेट और कॉलेज में नेतागिरी के चलते वक्त नहीं मिला दूसरे का सारा फोकस गाय के लिए एम्बुलेंस और बेतुके बयान देने से फुरसत न मिली.

बहरहाल, हरियाणा में जो हुआ उसको देखकर यही कहा जा सकता है कि ये इस राज्य की बदकिस्मती ही है कि अब तक वहां एक ऐसा मुख्यमंत्री बैठा है जिसे आम लोगों की कोई परवाह नहीं है. एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसने अपने झूठे अहम के चलते सम्पूर्ण राज्य की कानून व्यवस्था का मखौल उड़ा के रख दिया है. वो मुख्यमंत्री जो तब सोने का नाटक कर रहा था जब उसके राज्य में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख बाबा गुरमीत राम रहीम के समर्थकों द्वारा रेलवे स्टेशनों समेत अन्य सरकारी और गैर सरकारी प्रॉपर्टी को आग के हवाले किया जा रहा था, पत्रकारों को बेरहमी से मारा और उनकी ओबी वैन को तोड़ा जा रहा था.

आज जिस तरह कोर्ट और पार्टी के अलावा दुनिया भर के लोगों द्वारा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को नसीहत दी जा रही है उसके बाद ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि न ये पढाई लिखाई में किसी बिलो स्टूडेंट की तरह हैं ऐसा इसलिए क्योंकि इनके रिपोर्ट कार्ड ने ये बात साफ कर दी है कि इन्होंने वो तो कर लिया जो इन्हें नहीं करना चाहिए था मगर ये वो न कर पाए जिसके लिए  मुहल्ले पड़ोस के अलावा प्रदेश भर के लोगों ने इनसे उम्मीद की थी. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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