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बाबा के समर्थक का थप्‍पड़ सिर्फ एक आईजी ही नहीं, हम सब को लगा है

    • धीरेंद्र राय
    • Updated: 26 अगस्त, 2017 08:17 PM
  • 26 अगस्त, 2017 08:17 PM
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हम ऐसे समाज का हिस्सा हैं जो अपनी जरुरतों के लिए भिखारी और अपंग बन जाता है लेकिन किसी ढोंगी के लिए खून-खराबा तक करने को तैयार रहता है.

यह मान लीजिए कि हम मूर्खों के देश में रहते हैं. एक बाबा गुरमीत राम रहीम कुछ समाजसेवा के नाम पर तरह-तरह के स्‍वांग रचता है. और उसकी आड़ में फरेब का एक साम्राज्‍य खड़ा कर लेता है. जिसमें धर्मांध जनता का ऐसा सैलाब शामिल है, जो उसके कहने पर मरने-मारने को उतारू हो. नेता उसी जनता का वोट पाने के लिए बाबा के सामने जीभ लपलपा रहे हों. पुलिस अफसर उसकी सुरक्षा करते रहे हों. तो क्‍यों न मन बढ़े ऐसे गिरोह का ?

पुलिस : गुरमीत राम रहीम के 6 सुरक्षाकर्मियों और दो समर्थकों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ है. कारण है कि उन्‍होंने कोर्ट परिसर में आईजी को थप्‍पड़ मारा था. सवाल यह है कि जब मामूली आदमी अदने से हवलदार से आंखें नहीं मिला पाता, तो इन सुरक्षाकर्मियों के पास इतना साहस कहां से आया. उन्‍हें यह साहस एक अरसे से पुलिस की चाटुकारिता देखते-देखते आया. वे बड़े-बड़े अफसरों को बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए घुटनों के बल बैठे देखते रहे हैं. जो बड़े अफसर थे वो प्राइवेट में मिलते थे और छोटे खाकीधारी तो कहीं भी शाष्‍टांग हो जाते थे. बाबा के प्रभाव तले दबे इन्‍हीं पुलिसवालों को पंचकुला जाते हुए हाथ बांधे देखा था.

इन्हें जनता की रक्षा के लिए नहीं बाबा के पैर धोने के लिए भर्ती किया जाता है !

नेता : बाबा या उनके समर्थकों के पास खट्टर को भी थप्‍पड़ जड़ने का अधिकार था. वे बाबा का सान्निध्‍य पाते रहे. उनसे वोट उगाहते रहे. खट्टर ही क्‍यों, 2014 तक कांग्रेस भी बाबा के पैरों में बिछी रही. बदले में उन्‍हें जेड प्‍लस सिक्‍योरिटी का गिफ्ट देती रही. यह सब बाबा पर रेप और हत्‍या का आरोप लगने के बाद हुआ. अब अगर बाबा पर मुसीबत आई है, तो उसी बाबा के समर्थक उन नेताओं को 'अहसानफरामोश'...

यह मान लीजिए कि हम मूर्खों के देश में रहते हैं. एक बाबा गुरमीत राम रहीम कुछ समाजसेवा के नाम पर तरह-तरह के स्‍वांग रचता है. और उसकी आड़ में फरेब का एक साम्राज्‍य खड़ा कर लेता है. जिसमें धर्मांध जनता का ऐसा सैलाब शामिल है, जो उसके कहने पर मरने-मारने को उतारू हो. नेता उसी जनता का वोट पाने के लिए बाबा के सामने जीभ लपलपा रहे हों. पुलिस अफसर उसकी सुरक्षा करते रहे हों. तो क्‍यों न मन बढ़े ऐसे गिरोह का ?

पुलिस : गुरमीत राम रहीम के 6 सुरक्षाकर्मियों और दो समर्थकों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ है. कारण है कि उन्‍होंने कोर्ट परिसर में आईजी को थप्‍पड़ मारा था. सवाल यह है कि जब मामूली आदमी अदने से हवलदार से आंखें नहीं मिला पाता, तो इन सुरक्षाकर्मियों के पास इतना साहस कहां से आया. उन्‍हें यह साहस एक अरसे से पुलिस की चाटुकारिता देखते-देखते आया. वे बड़े-बड़े अफसरों को बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए घुटनों के बल बैठे देखते रहे हैं. जो बड़े अफसर थे वो प्राइवेट में मिलते थे और छोटे खाकीधारी तो कहीं भी शाष्‍टांग हो जाते थे. बाबा के प्रभाव तले दबे इन्‍हीं पुलिसवालों को पंचकुला जाते हुए हाथ बांधे देखा था.

इन्हें जनता की रक्षा के लिए नहीं बाबा के पैर धोने के लिए भर्ती किया जाता है !

नेता : बाबा या उनके समर्थकों के पास खट्टर को भी थप्‍पड़ जड़ने का अधिकार था. वे बाबा का सान्निध्‍य पाते रहे. उनसे वोट उगाहते रहे. खट्टर ही क्‍यों, 2014 तक कांग्रेस भी बाबा के पैरों में बिछी रही. बदले में उन्‍हें जेड प्‍लस सिक्‍योरिटी का गिफ्ट देती रही. यह सब बाबा पर रेप और हत्‍या का आरोप लगने के बाद हुआ. अब अगर बाबा पर मुसीबत आई है, तो उसी बाबा के समर्थक उन नेताओं को 'अहसानफरामोश' क्‍यों न मानें ? बाबा यदि अपराधी है और उसका साथ देने वाले समर्थक 'देशद्रोह' के आरोपी. तो उस बाबा की मदद से वोट पाते रहे नेता क्‍या हैं ?

केंद्र के कर्ताधर्ता ! बाबा के एक ओर हैं विदेश राज्‍यमंत्री वीके सिंह और दूसरी तरफ सांसद और दिल्‍ली भाजपा प्रमुख मनोज तिवारी.

ये इतने भोले सीएम हैं खट्टर, कि धारा 144 का मतलब नहीं समझते क्योंकि बाबा के साथ भीड़ है.

जनता : बाबा तो पहले भी वीआईपी सुविधाओं का मजा ले रहा था. जेल में अब भी आराम से है, और संभवत: आगे भी आराम से ही रहेगा. लेकिन हरियाणा डीजीपी ने पुष्टि की है कि शुक्रवार की हिंसा में मारे गए सभी 30 लोग बाबा के समर्थक ही हैं. तो क्‍या यह मान लें कि बाबा राम रहीम इन हत्‍याओं के विरोध में अब नेताओं और पुलिस से नाता तोड़ लेगा. जी नहीं. न तो बाबा ऐसा करेगा और न ही नेता. बाबा अपने समर्थकों को वोटबैंक की तरह राजनीतिक पार्टियों की रोटी सेंकने के लिए भेजता रहेगा और बदले में नेता बाबा की सुविधाओं का ख्‍याल रखेंगे. इस बात का उदाहरण इस बात से ही समझा जा सकता है न तो कांग्रेस और न ही बीजेपी, बाबा के खिलाफ कोई कुछ नहीं कह रहा है. सब सिर्फ खट्टर सरकार को कोस रहे हैं. क्‍योंकि, यह सबको पता है कि बाबा या उसके समर्थकों का कोपभाजन बनना चुनाव में भारी पड़ सकता है.

बाबा के लिए जान लुटाने को तैयार थे

...और जान लुटा दी.

मीडिया : बाबा समर्थकों का मीडिया के प्रति गुस्‍सा भी समझा जाना चाहिए. वे गुरमीत राम रहीम की फिल्‍मों का प्रमोशन हर चैनल और अखबार में देखते आए थे. उन्‍होंने किसी चैनल को नहीं देखा, जिसने रेप और हत्‍या का आरोपी होने के कारण बाबा का बॉयकॉट किया हो. बल्कि गाहे-बगाहे गुरमीत राम रहीम के सफाई अभियान और बाकी सेवा कार्यों का बड़प्‍पन ही अखबारों में पाया.

सच दिखाने का दावा करने वाले भी पीछे नहीं हैं

तो, सबक यही है कि अगले बाबा को सपोर्ट करने और उसके कदमों में बिछने से पहले समझ लीजिएगा कि कहीं वो फिरकी तो नहीं ले रहा है.

ये भी पढ़ें-

एक बलात्कारी 'बाबा' के बचाव में खड़े होने वाले आखिर कितने साक्षी महाराज हैं?

खट्टर सरकार से कुछ सवाल

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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