• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

आ सकते हैं माल्‍या 'जी', बस अरेस्ट मत करना और पार्टी में खलल मत डालना

    • अभिषेक पाण्डेय
    • Updated: 16 मई, 2016 08:00 PM
  • 16 मई, 2016 08:00 PM
offline
बैंकों के नौ हजार करोड़ के कर्जदार विजय माल्या देश छोड़कर जाने के लगभग तीन महीने बाद स्वदेश लौटना चाहते हैं लेकिन इसके लिए हैं माल्या की दो शर्तें, जानिए क्या.

बैंकों का हजारों करोड़ का कर्ज डकारकर विदेश चले जाने वाले माल्या अब देश लौटने को तैयार हैं. उनका ये भी कहना है कि उन्‍होंने अपने सबसे बड़े कर्जदाता बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को सेटलमेंट का नया ऑफर दिया है. लेकिन माल्या ने इसके लिए दो शर्तें रखी हैं. हाल ही में हुई यूनाइटेड ब्रेवरीज लिमिटेड (यूबीएल) की बोर्ड मीटिंग के बाद उसमें शामिल डायरेक्टर्स ने इस बात की जानकारी दी है.

इन डायरेक्टर्स का कहना है कि माल्या लोन चुकाने के लिए देश वापस आना चाहते हैं लेकिन इसके लिए उनकी दो शर्तें हैं कि उन्हें सुरक्षा और स्वतंत्रता दी जाए. आइए जानें क्या हैं माल्या की दो शर्तों के मायने-

माल्या ने घर वापसी के लिए रखीं दो शर्तें:

शुक्रवार को मुंबई में यूबीएल की बोर्ड मीटिंग हई, जिसमें कंपनी के चेरयमैन विजय माल्या ने लंदन से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया. इस बैठक में ही माल्या ने बोर्ड के डायरेक्टर्स को ये भरोसा दिलाया कि वह बहुत जल्द बैंकों के लोन चुका देंगे. माल्या ने इन डायरेक्टर्स से कहा कि वह भारत लौटना चाहते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी सुरक्षा और आजादी का भरोसा चाहिए.

माल्या देश के बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपये के कर्जदार हैं, जोकि उन्होंने नहीं चुकाया है. बैंकों ने ये लोन माल्या को अब बंद हो चुकी उनकी एयरलाइंस किंगफिशर के लिए दिया था. इतना ही नहीं उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रवतर्नन निदेशालय (ईडी) भी पूछताछ करना चाहता है. कंपनी की स्वतंत्र डायरेक्टर किरण मजूमदार शॉ ने कहा कि हमने माल्या से सभी मुद्दों पर बात की. उन्होंने कहा है कि वह बैंकों का लोन जल्द से जल्द चुका देंगे. वह भारत वापस लौटना चाहते हैं और सभी सवालों का जवाब देना चाहते हैं लेकिन इसके लिए उन्हों दो बातों का भरोसा चाहिए, सुरक्षा और आजादी.

बैंकों का हजारों करोड़ का कर्ज डकारकर विदेश चले जाने वाले माल्या अब देश लौटने को तैयार हैं. उनका ये भी कहना है कि उन्‍होंने अपने सबसे बड़े कर्जदाता बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को सेटलमेंट का नया ऑफर दिया है. लेकिन माल्या ने इसके लिए दो शर्तें रखी हैं. हाल ही में हुई यूनाइटेड ब्रेवरीज लिमिटेड (यूबीएल) की बोर्ड मीटिंग के बाद उसमें शामिल डायरेक्टर्स ने इस बात की जानकारी दी है.

इन डायरेक्टर्स का कहना है कि माल्या लोन चुकाने के लिए देश वापस आना चाहते हैं लेकिन इसके लिए उनकी दो शर्तें हैं कि उन्हें सुरक्षा और स्वतंत्रता दी जाए. आइए जानें क्या हैं माल्या की दो शर्तों के मायने-

माल्या ने घर वापसी के लिए रखीं दो शर्तें:

शुक्रवार को मुंबई में यूबीएल की बोर्ड मीटिंग हई, जिसमें कंपनी के चेरयमैन विजय माल्या ने लंदन से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हिस्सा लिया. इस बैठक में ही माल्या ने बोर्ड के डायरेक्टर्स को ये भरोसा दिलाया कि वह बहुत जल्द बैंकों के लोन चुका देंगे. माल्या ने इन डायरेक्टर्स से कहा कि वह भारत लौटना चाहते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी सुरक्षा और आजादी का भरोसा चाहिए.

माल्या देश के बैंकों के 9 हजार करोड़ रुपये के कर्जदार हैं, जोकि उन्होंने नहीं चुकाया है. बैंकों ने ये लोन माल्या को अब बंद हो चुकी उनकी एयरलाइंस किंगफिशर के लिए दिया था. इतना ही नहीं उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रवतर्नन निदेशालय (ईडी) भी पूछताछ करना चाहता है. कंपनी की स्वतंत्र डायरेक्टर किरण मजूमदार शॉ ने कहा कि हमने माल्या से सभी मुद्दों पर बात की. उन्होंने कहा है कि वह बैंकों का लोन जल्द से जल्द चुका देंगे. वह भारत वापस लौटना चाहते हैं और सभी सवालों का जवाब देना चाहते हैं लेकिन इसके लिए उन्हों दो बातों का भरोसा चाहिए, सुरक्षा और आजादी.

विजय माल्या पर देश का बैंकों का 9 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है

माल्या के मिला हेनेकन का साथः

माल्या के लिए सबसे राहत की बात ये है कि यूनाइटेज ब्रेवरीज लिमिटेड में 42.5 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली हेनेकन का उन्हें समर्थन प्राप्त है. कंपनी का कहना है कि वह आधारहीन आरोपों पर ध्यान न देकर माल्या का समर्थन करेगी. पहले इस तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं कि हेनेकन यूनाइटेड ब्रेवरीज का नियंत्रण अपने हाथों में लेकर माल्या को चेयरमैन पद से हटा देगी.

लेकिन अब कंपनी ने इसके उलट माल्या का समर्थन करने का फैसला किया है. हेनेकन ने 2008 में यूबीएल में 37.5 फीसदी की हिस्सेदारी ली थी जिसे बढ़ाकर कंपनी इसे 42.5 फीसदी कर चुकी है. हेनेकन का समर्थन मिलना निश्चित तौर पर माल्या का मनोबल बढ़ाने वाला है.

डिफाल्टर माल्या की दो शर्तें के मायने क्या हैं?

जिस सुरक्षा और स्वतंत्रता की गारंटी माल्‍या ने मांगी है, उसका सीधा मतलब यह है-

सुरक्षा: कि उन्‍हें देश लौटने पर सुब्रत रॉय सहारा की तरह गिरफ्तार न किया जाए. उनकी शान के खिलाफ ऐसा कुछ न हो, जिससे कि किंग ऑफ गुड टाइम की छवि को दाग लगे. हो सकता है कि वे मांग करें कि देश की किसी विशेष सुरक्षा बल के कमांडो उनकी सुरक्षा में तैनात किए जाएं.

स्वतंत्रता: उन्‍हें सुविधा दी जाए कि वे अपनी मर्जी और सुविधा से जितना चाहें रुपया लौटाएं. कोई समय सीमा न थोपी जाए.जब वे रुपया न लौटाएं, उनके पार्टी करने पर कोई रोक न हो. बल्कि जरूरत पड़ने पर उन्‍हें इसके लिए बैंक लोन भी मुहैया कराया जाए. चूंकि, उनकी माली हालत खराब है, इसलिए इस लोन पर सब्‍सीडी भी मिले.

अब सवाल ये कि क्या ये शर्तेें मान लेनी चाहिए?

माल्‍या की बात मान लेनी चाहिए- विशेष परिस्थितियों में सरकार ऐसा निर्णय करती रही है, जो प्रचलित न्‍याय व्‍यवस्‍था से अलग होता है. ऐसा अबू सलेम के मामले में हो चुका है. सलेम को पुर्तगाल से भारत लाने के लिए भारत सरकार ने हलफनामा दिया था कि उसे मृत्‍युदंड नहीं दिया जाएगा. माल्‍या पर आर्थिक अपराध करने का आरोप है. उनसे न सिर्फ नौ हजार करोड़ रुपए की वसूली की जाना है, बल्कि यह पड़ताल भी करनी है कि उन्‍होंने रुपए को कैसे ठिकाने लगाया. इस काम में किस किस ने उनकी मदद की. खस्‍ताहाल होने के बावजूद उन्‍होंने किसकी मदद से करोड़ों रुपए बैंकों से जुटाए. एक पूरे गठजोड़ का पर्दाफाश हो सकता है, जिसमें माल्‍या, बैंक अधिकारी और नेता शामिल हैं. लेकिन क्या मोदी सरकार ऐसे पर्दाफाश की इच्‍छाशक्ति रखती है?

माल्‍या की बात कतई नहीं मानना चाहिए- माल्‍या की यह पेशकश सीधे सीधे मामले को लंबा खींचने की कोशिश है. साथ ही वे दुनिया में खासकर ब्रिटेन सरकार को यह बताना चाहते हैं कि वे तो मामला सेटल करना चाहते हैं, भारत सरकार ही है जो अडि़यल रुख अपनाए हुए है. इसके बजाए सरकार को ताकत के साथ इंटरपोल के जरिए स्पष्‍ट करना चाहिए कि माल्‍या न सिर्फ डिफाल्‍टर हैं, बल्कि उन पर मनी लॉड्रिंग का भी आरोप है. सरकार माल्‍या जैसे शातिर लोगों के साथ निपटने में भेदभाव नहीं कर सकती. यदि वह माल्‍या की शर्त मानती भी है तो दो वर्षों से जेल में जिंदगी गुजार रहे सहारा समूह के चीफ सुब्रत रॉय को एक दिन और हिरासत में रखने का आधार खो देगी. आखिर हैं तो दोनों डिफाल्टर. एक के ऊपर बैंकों का कर्ज है को दूसरे के ऊपर निवेशकों का.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲