• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
इकोनॉमी

तमन्नाओं में उलझाया गया हूं, खिलौने दे कर बहलाया गया हूं

    • देवेन्द्रराज सुथार
    • Updated: 02 फरवरी, 2018 06:37 PM
  • 02 फरवरी, 2018 06:37 PM
offline
अंतिम पूर्ण बजट के जमीनी धरातल पर साकार होने की संभावनाएं कम नजर आ रही है. वैसे भी यह सच है कि सरकार के अंतिम वर्ष यानि चुनाव आने से पहले पेश किया बजट चुनावी घोषणा पत्र ही होता है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आख़िरी पूर्ण बजट पेश करने के बाद शाद अजीमाबादी की ये पंक्तियां याद आ रही हैं - तमन्नाओं में उलझाया गया हूं....खिलौने दे कर बहलाया गया हूं. वित्त मंत्री के बजट भाषण के दौरान सबसे ज्यादा तालियां उस समय बजी जब राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, राज्यपाल और सांसदों के वेतन की बढ़ोतरी का प्रस्ताव लाया गया, इसका सीधा-सा तात्पर्य है कि बजट इन्हीं लोगों के लिए था.

बजट 2018-19 में सबसे ज्यादा ध्यान गाँव, गरीब और किसानों पर दिया गया, वाजिब भी है. क्योंकि भारत की 62 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है. उनके विकास के लिए अधिक व्यय होना वाजिब है, लेकिन भारत की राष्ट्रीय आय में उनका योगदान मात्र 14 प्रतिशत है. यह कहाँ तक उचित है कि जो लोग (मध्यम वर्ग) भारत की राष्ट्रीय आय में सबसे ज्यादा योगदान देते है, अपने खून पसीने की कमाई सरकार को महसूल के रूप में देते है उनके कल्याण के लिए कोई बात नहीं की गयी. इनकम टैक्स में तो कोई राहत नहीं दी गयी बल्कि बल्कि 1 प्रतिशत सेस में और बढ़ोतरी की गयी.

वित्त मंत्री ने जिन 40,000 की छूट की बात कर रहे है उसमे 34,200 की छूट तो पहले ही थी मात्र 5800 रुपये की छूट देकर ऐसा जताने का प्रयास किया जा रहा है, जैसे कि बहुत बड़ा अहसान कर दिया है. वहीं वित्त मंत्री ने 70 लाख नौकरियों का आश्वासन दिया है, लेकिन कैसे ? किस क्षेत्र में ? इस बात को स्पष्ट नहीं किया और अपने चुनावी एजेंडे में जिन 5 करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात कही थी उसका क्या हुआ ? भारतीय श्रम मंत्रालय और रोजगार मंत्रालय के अनुसार विगत 3 सालों में मात्र 26 लाख लोगों को नौकरियां मिली हैं, तो बाकि की 4 करोड़ 74 लाख नौकरियां क्या आगामी 2 सालों में संभव है ?

आपको बता दे कि सन् 2010 में बराक ओबामा ने अमेरिका में एक योजना लागू की थी जिसे 'ओबामा केयर' कहा गया था. जिसमे उन्होंने देश के 15 प्रतिशत गरीब परिवारों को निःशुल्क इलाज प्रदान किया गया था. देखा जाएं तो अमेरिका एक विकसित देश है जहाँ के 95 प्रतिशत लोग इनकम टैक्स का भुगतान करते है,...

वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आख़िरी पूर्ण बजट पेश करने के बाद शाद अजीमाबादी की ये पंक्तियां याद आ रही हैं - तमन्नाओं में उलझाया गया हूं....खिलौने दे कर बहलाया गया हूं. वित्त मंत्री के बजट भाषण के दौरान सबसे ज्यादा तालियां उस समय बजी जब राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, राज्यपाल और सांसदों के वेतन की बढ़ोतरी का प्रस्ताव लाया गया, इसका सीधा-सा तात्पर्य है कि बजट इन्हीं लोगों के लिए था.

बजट 2018-19 में सबसे ज्यादा ध्यान गाँव, गरीब और किसानों पर दिया गया, वाजिब भी है. क्योंकि भारत की 62 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है. उनके विकास के लिए अधिक व्यय होना वाजिब है, लेकिन भारत की राष्ट्रीय आय में उनका योगदान मात्र 14 प्रतिशत है. यह कहाँ तक उचित है कि जो लोग (मध्यम वर्ग) भारत की राष्ट्रीय आय में सबसे ज्यादा योगदान देते है, अपने खून पसीने की कमाई सरकार को महसूल के रूप में देते है उनके कल्याण के लिए कोई बात नहीं की गयी. इनकम टैक्स में तो कोई राहत नहीं दी गयी बल्कि बल्कि 1 प्रतिशत सेस में और बढ़ोतरी की गयी.

वित्त मंत्री ने जिन 40,000 की छूट की बात कर रहे है उसमे 34,200 की छूट तो पहले ही थी मात्र 5800 रुपये की छूट देकर ऐसा जताने का प्रयास किया जा रहा है, जैसे कि बहुत बड़ा अहसान कर दिया है. वहीं वित्त मंत्री ने 70 लाख नौकरियों का आश्वासन दिया है, लेकिन कैसे ? किस क्षेत्र में ? इस बात को स्पष्ट नहीं किया और अपने चुनावी एजेंडे में जिन 5 करोड़ लोगों को रोजगार देने की बात कही थी उसका क्या हुआ ? भारतीय श्रम मंत्रालय और रोजगार मंत्रालय के अनुसार विगत 3 सालों में मात्र 26 लाख लोगों को नौकरियां मिली हैं, तो बाकि की 4 करोड़ 74 लाख नौकरियां क्या आगामी 2 सालों में संभव है ?

आपको बता दे कि सन् 2010 में बराक ओबामा ने अमेरिका में एक योजना लागू की थी जिसे 'ओबामा केयर' कहा गया था. जिसमे उन्होंने देश के 15 प्रतिशत गरीब परिवारों को निःशुल्क इलाज प्रदान किया गया था. देखा जाएं तो अमेरिका एक विकसित देश है जहाँ के 95 प्रतिशत लोग इनकम टैक्स का भुगतान करते है, तो वहाँ वित्त की कोई समस्या नहीं थी किन्तु भारत में मात्र 1.5 प्रतिशत लोग इनकम टैक्स का भुगतान करते है. यहाँ सबसे ज्यादा समस्या वित्त की है क्योकि हम लोग अपने कुल खर्चे का 19 प्रतिशत तो उधार से काम चलाते हैं ऐसे में इतनी बड़ी राशी कहाँ से आएगी ? इस बात का वित्त मंत्री ने कोई उल्लेख नहीं किया. उन्होंने 10 करोड़ परिवारों यानि की 50 करोड़ लोगों को 'आयुष्मान भारत' योजना का लाभ दिलाने की बात कही है. यदि इस योजना से 1 प्रतिशत लोग भी लाभ लेते है तो यह राशी 50,000 करोड़ रुपये होती है तो फिर 100 प्रतिशत के लिए कितनी राशी की आवश्यकता होगी इस बात का आप अनुमान लगा लीजिए ! इतनी बड़ी राशी कहाँ से आएगी ?

फिर से मध्यम वर्ग का शोषण होगा, या फिर से विनिवेश के माध्यम से भारतीय सम्पत्तियों को बेचा जायेगा. बचत हमेशा मध्यम वर्ग करता है और उनकी बचत पर भी 10 प्रतिशत की दर से टैक्स लगा दिया है. इस से उनकी बचत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. 2022 तक कृषकों की आय को दुगुना करने का गणित यह है कि कृषि लागत या समर्थन मूल्य की गणना या अनुमान कृषि लागत एवं मूल्य आयोग करता है और उनकी गणना में बहुत विसंगति है. इस बात को भारत सरकार द्वारा गठित चंद्रा समिति ने माना है, उनकी गणना यदि सटीक होती तो भारत में हर साल लाखों किसान आत्महत्या नहीं करते. जब भारत सरकार 70 सालों से आज तक कृषि लागत का सही अनुमान नहीं लगा सके तो मोदी सरकार एक साल में कृषि लागत का सही अनुमान पता नहीं किस जादू की छड़ी से लगाएगी.

साथ ही, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना जिसका वित्त मंत्री ने बजट भाषण में बार-बार जिक्र किया है. इस योजना की सच्चाई यह है कि जितने भी उज्ज्वला योजना में गैस सिलेंडर वितरित हुए है उनमे से मात्र 19 प्रतिशत सिलेंडर ही रिफिल हुए है (29 जनवरी को जारी आर्थिक समीक्षा के अनुसार) बाकी सब धूल फांक रहे है. सीधा-सा मतलब यह है कि सरकार उस आदमी को चने मुफ्त में दे रही है जिसके पास चबाने के लिए दांत ही नहीं है. वहीं अंतिम पूर्ण बजट में देश भर में नए 24 मेडिकल कॉलेज खोलने की बात कही गई है. लेकिन डॉक्टर कहाँ से आएंगे इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है. इधर वित्त मंत्री जेटली ने स्कूल से ब्लैक बोर्ड हटाकर डिजिटल बोर्ड लगाने की भी बात की है. लेकिन क्या डिजिटल बोर्ड लगाने से शिक्षा में गुणवत्ता आ जाएगी ? क्या शिक्षा का स्तर बढ़ जायेगा ? मेरा जवाब है नहीं. क्योकि भारत सरकार शिक्षा पर मात्र अपने बजट का 3 प्रतिशत के लगभग खर्च करती है जो की अपर्याप्त है इसी कारण भारत में शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ पा रहा है.

वित्त मंत्री जेटली ने ग्रामीण एरिया में वाई-फ़ाई का विस्तार करने की योजना का बजट में प्रावधान किया है. लेकिन इससे ज्यादा जरुरी उनके लिए पीने के पानी एवं 24 घंटे विद्युत की व्यवस्था करना है. सरकार अपनी योजना को पूरा करने के लिए वित्त की व्यवस्था करती है और अधिकतर वित्त के लिए विनिवेश पर निर्भर रहती है लेकिन विनिवेश के ऊपर ज्यादा निर्भरता हमेशा ही अच्छी नहीं होती. हर साल विनिवेश के मध्यम से सरकार भारतीय सम्पत्ति को ज्यादा से ज्यादा बेचने का प्रयास कर रही है. इसलिए इस साल के अंतिम पूर्ण बजट के जमीनी धरातल पर साकार होने की संभावनाएं कम नजर आ रही है. वैसे भी यह सच है कि सरकार के अंतिम वर्ष यानि चुनाव आने से पहले पेश किया बजट चुनावी घोषणा पत्र ही होता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    Union Budget 2024: बजट में रक्षा क्षेत्र के साथ हुआ न्याय
  • offline
    Online Gaming Industry: सब धान बाईस पसेरी समझकर 28% GST लगा दिया!
  • offline
    कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
  • offline
    राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे से पहले ही अडानी ने लगाई छलांग; 1 दिन में मस्क से दोगुना कमाया
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲