भारत में जो शब्द लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है शायद वह है 'मुफ्त'. अब देखिए ना - एक पर एक फ्री, 50% डिस्काउंट, फ्री डेटा, फ्री खाना, फ्री कूपन जैसी चीजें अक्सर दिख जाती हैं. जियो के लॉन्च होते ही पूरा हिंदुस्तान फ्री डेटा पाने के लिए लाइन में लग गया. अब अगर कहा जाए कि सरकार भारत की जनता को फ्री पैसे देगी तो आपका क्या रिएक्शन होगा?
स्कीम में मिलेगा बिना काम किए पैसा |
चर्चा जोरों पर है कि बड़े फैसले लेकर जनता को चौंकाने वाली मोदी सरकार अब 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' स्कीम पर विचार कर रही है. आसान भाषा में इसे समझाऊं तो ये एक ऐसी स्कीम होगी जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को एक निश्चित राशि हर महीने दी जाएगी. चाहें वो कोई काम करें या ना करें. खबरों की मानें तो ये रकम परिवार की महिला को दी जाएगी और ये कितनी होगी इसके बारे में अभी कोई घोषणा नहीं हुई है.
इस योजना पर काफी अरसे से काम चल रहा है था. ब्रिटिश अर्थशास्त्री गाय स्टैंडिंग दुनिया में एक न्यूनतम आय दिए जाने को लेकर 1986 से अथियान चला रहे हैं. उन्होंने इसका एक खाका भारत सरकार को भी सौंपा था. वे इस योजना से जुड़े तीन पायलट प्रोजेक्ट से भी जुड़े रहे. यह प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश में दो जगह और पश्चिमी दिल्ली में चलाया गया. इन तीन पायलट प्रोजेक्ट से जुड़े 8 गांवों में 18 महीने तक महिला, पुरुषों और बच्चों को एक न्यूनतम इनकम मुहैया कराई गई. पता चला है कि इससे यहां के जीवन स्तर में आश्चर्यजनक सुधार आया. खासतौर पर बच्चों के खानपान, सेहत, सफाई और स्कूलों में उपस्थिति को लेकर.खबर है कि इस योजना का विश्लेषण आगामी आर्थिक सर्वेक्षण का हिस्सा होगा. जिसे भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने तैयार किया है.
भारत में जो शब्द लोगों को सबसे ज्यादा आकर्षित करता है शायद वह है 'मुफ्त'. अब देखिए ना - एक पर एक फ्री, 50% डिस्काउंट, फ्री डेटा, फ्री खाना, फ्री कूपन जैसी चीजें अक्सर दिख जाती हैं. जियो के लॉन्च होते ही पूरा हिंदुस्तान फ्री डेटा पाने के लिए लाइन में लग गया. अब अगर कहा जाए कि सरकार भारत की जनता को फ्री पैसे देगी तो आपका क्या रिएक्शन होगा?
स्कीम में मिलेगा बिना काम किए पैसा |
चर्चा जोरों पर है कि बड़े फैसले लेकर जनता को चौंकाने वाली मोदी सरकार अब 'यूनिवर्सल बेसिक इनकम' स्कीम पर विचार कर रही है. आसान भाषा में इसे समझाऊं तो ये एक ऐसी स्कीम होगी जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को एक निश्चित राशि हर महीने दी जाएगी. चाहें वो कोई काम करें या ना करें. खबरों की मानें तो ये रकम परिवार की महिला को दी जाएगी और ये कितनी होगी इसके बारे में अभी कोई घोषणा नहीं हुई है.
इस योजना पर काफी अरसे से काम चल रहा है था. ब्रिटिश अर्थशास्त्री गाय स्टैंडिंग दुनिया में एक न्यूनतम आय दिए जाने को लेकर 1986 से अथियान चला रहे हैं. उन्होंने इसका एक खाका भारत सरकार को भी सौंपा था. वे इस योजना से जुड़े तीन पायलट प्रोजेक्ट से भी जुड़े रहे. यह प्रोजेक्ट मध्यप्रदेश में दो जगह और पश्चिमी दिल्ली में चलाया गया. इन तीन पायलट प्रोजेक्ट से जुड़े 8 गांवों में 18 महीने तक महिला, पुरुषों और बच्चों को एक न्यूनतम इनकम मुहैया कराई गई. पता चला है कि इससे यहां के जीवन स्तर में आश्चर्यजनक सुधार आया. खासतौर पर बच्चों के खानपान, सेहत, सफाई और स्कूलों में उपस्थिति को लेकर.खबर है कि इस योजना का विश्लेषण आगामी आर्थिक सर्वेक्षण का हिस्सा होगा. जिसे भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने तैयार किया है.
कितना बढ़ेगा खर्च..
आंकड़ों की मानें तो भारत में रहने वाले गरीब परिवारों की संख्या 5.3 करोड़ है और अगर हर परिवार को 1000 रुपए महीने भी दिए जाते हैं तो भी 53 हजार करोड़ का खर्च हर महीने बढ़ेगा और ये संख्या सालाना 6,36,000 करोड़ (6 लाख 36 हजार करोड़) पहुंच जाएगी.
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चुनावी बिगुल का हल्ला..
हो सकता है कि ये चुनावी स्कीम हो जो नोटबंदी से हुई निराशा को दूर कर दे. हालांकि, ये लागू भी होगी या नहीं और अगर होगी तो चुनाव पर ये यकीनन असर डालेगी. ये समाजवादी पार्टी की महिला पेंशन योजना का काट भी हो सकती है जिसमें 500 रुपए प्रति माह महिलाओं को पेंशन दी जाती है.
अभी से आलोचना शुरू हो गई है-
- मुफ्तखोरी बढ़ेगी, जहां लोग फ्री डेटा के लिए इतना बवाल मचा सकते हैं वहां आखिर फ्री के पैसे क्या करेंगे.
- यकीनन लोगों को अगर बिना काम किए कोई पैसा देगा तो काम ना करने वालों की संख्या बढ़ जाएगी.
- भारत जैसे देश में जहां फ्री का माल हर कोई अपना समझता है वहां इस योजना का दुरुपयोग किस हद तक हो सकता है ये सोचने वाली बात है.
मोदी ने उड़ाया था मनरेगा पर कांग्रेस का मजाक |
मोदी जी कांग्रेस का मजाक उड़ाते हैं और कहते हैं कि आजादी के 60 साल के बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के काम में लगाना पड़ा (मनरेगा). तो ऐसे में मोदी जी खुद क्या करने जा रहे हैं? कम से कम मनरेगा में 0.40 लाख करोड़ रुपया सालाना काम के बदले दिए जा रहे हैं. अब अगर लोगों को और मुफ्तखोरी की आजत डाली जाए तो क्या ये सही होगा?
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इसे फिनलैंड जैसे देश ने तो अपना लिया है, लेकिन स्विटज़रलैंड जैसे देश ने इसके लिए मना कर दिया. विकसित देशों में ये स्कीम जरूरी हो सकती है जहां स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग एक जैसा रखना हो, लेकिन भारत जैसा देश जहां अर्थव्यवस्था पर अधिक बोझ नहीं डाला जा सकता और अगर डाला जाएगा तो जीडीपी से लेकर बजट तक हर चीज पर असर पड़ेगा वहां ये व्यवस्था लागू करना सही नहीं है. विकसित देशों में इसे सोशल सिक्योरिटी के तौर पर देखा जा सकता है जहां जनसंख्या कम होती है, लोग पहले से ही कमा रहे होते हैं और किसी वजह से अगर कोई पीछे रह जाता है तो उसके लिए ऐसी योजनाएं होती हैं. ऐसी योजनाएं लागू करने के बाद ट्रैक भी की जाती हैं. अब अगर भारत जैसी जनसंख्या के साथ इस स्कीम को देखा जाए तो इसके लिए जरूरी प्रावधान जैसे सेहत, बच्चों का विकास, शिक्षा, भोजन आदि के सपोर्ट को कम करना होगा. कुल मिलाकर फिलहाल भारत इस जैसी किसी योजना के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है.
मोदी ने उड़ाया कांग्रेस का मजाक..
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