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मोदी जी ! बजट बनाते हुए एक बार पड़ोसियों को देख लीजिए

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 24 जनवरी, 2017 08:38 PM
  • 24 जनवरी, 2017 08:38 PM
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बजट 2017 को चुनावी बजट बनाया जाना तय है. लेकिन, लोकलुभावन बजट बनाने के चक्‍कर में मोदी सरकार कहीं वे मुद्दे भूल न जाएं, जिनमें हमारे छोटे पड़ोसी हमसे कहीं आगे हैं.

इस साल का 1 फरवरी को पेश होने वाले यूनियन बजट का इंतजार कम से कम मुझे तो बड़ी बेसब्री से है. एक तरह से देखा जाए तो नोटबंदी के बाद आने वाला ये बजट सरकार के लिए काफी मुश्किल भरा होगा. जहां एक ओर 2016 की आखिरी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने क्या मोड़ लिया है इसकी जानकारी ठीक-ठीक किसी को नहीं है, वहीं दूसरी ओर इन तीन महीनों में जुर्म, प्रदूषण और रेल हादसों ने भी परेशान कर दिया है. अब बजट में मुश्किलें तो होंगी. इलेक्शन कमीशन ने भी ये फरमान जारी कर दिया है कि जिन राज्यों में इलेक्शन होना है उनमें से किसी भी राज्य के लिए बजट में कोई खास ऐलान नहीं किया जाएगा.

अब बजट 2017-18 तो ठीक है, लेकिन अगर हम भारत के पड़ोसियों की बात करें तो कुछ मामलों में भारत उनसे पीछे है. चीन अपनी जगह है, कुछ मामलों में तो भूटान भी भारत को टक्कर दे सकता है. इस बजट में अपने पड़ोसियों से भारत को ये सभी बातें सीखनी चाहिए.

1. चीन-

वैसे तो इंफ्रास्ट्रक्चर को भी लिया जा सकता है, लेकिन चीन और भारत के बीच में सबसे बड़ा अंतर है डिफेंस बजट का. चीन भारत से लगभग 5 गुना ज्यादा हर साल डिफेंस पर खर्च करता है. 2016 में चीन का बजट 147 बिलियन डॉलर था जो 2015 की तुलना में 6% ज्यादा था. इसके अलावा, इसी जगह भारत का डिफेंस बजट सिर्फ 52.2 बिलियन डॉलर था. यानी अपने आक्रामक पड़ोसी की तुलना में काफी कम. 2016 में जिस तरह से आतंकवाद से भारत की जंग हुई है उसे देखा जाए तो भारत को यकीनन अपने डिफेंस बजट को बढ़ाने की जरूरत है.

2. श्रीलंका-

वैसे तो श्रीलंका की जीडीपी और अर्थव्यवस्था भारत के मुकाबले काफी छोटी है, लेकिन ह्यूमन डेवलपमेंट रेट की बात करें तो श्रीलंका की रेटिंग 73 है और भारत की 135. नवजात शिशु मृत्यू दर श्रीलंका में 8.76 प्रति हजार शिशु है (2015 तक अनुमानित), जबकि...

इस साल का 1 फरवरी को पेश होने वाले यूनियन बजट का इंतजार कम से कम मुझे तो बड़ी बेसब्री से है. एक तरह से देखा जाए तो नोटबंदी के बाद आने वाला ये बजट सरकार के लिए काफी मुश्किल भरा होगा. जहां एक ओर 2016 की आखिरी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने क्या मोड़ लिया है इसकी जानकारी ठीक-ठीक किसी को नहीं है, वहीं दूसरी ओर इन तीन महीनों में जुर्म, प्रदूषण और रेल हादसों ने भी परेशान कर दिया है. अब बजट में मुश्किलें तो होंगी. इलेक्शन कमीशन ने भी ये फरमान जारी कर दिया है कि जिन राज्यों में इलेक्शन होना है उनमें से किसी भी राज्य के लिए बजट में कोई खास ऐलान नहीं किया जाएगा.

अब बजट 2017-18 तो ठीक है, लेकिन अगर हम भारत के पड़ोसियों की बात करें तो कुछ मामलों में भारत उनसे पीछे है. चीन अपनी जगह है, कुछ मामलों में तो भूटान भी भारत को टक्कर दे सकता है. इस बजट में अपने पड़ोसियों से भारत को ये सभी बातें सीखनी चाहिए.

1. चीन-

वैसे तो इंफ्रास्ट्रक्चर को भी लिया जा सकता है, लेकिन चीन और भारत के बीच में सबसे बड़ा अंतर है डिफेंस बजट का. चीन भारत से लगभग 5 गुना ज्यादा हर साल डिफेंस पर खर्च करता है. 2016 में चीन का बजट 147 बिलियन डॉलर था जो 2015 की तुलना में 6% ज्यादा था. इसके अलावा, इसी जगह भारत का डिफेंस बजट सिर्फ 52.2 बिलियन डॉलर था. यानी अपने आक्रामक पड़ोसी की तुलना में काफी कम. 2016 में जिस तरह से आतंकवाद से भारत की जंग हुई है उसे देखा जाए तो भारत को यकीनन अपने डिफेंस बजट को बढ़ाने की जरूरत है.

2. श्रीलंका-

वैसे तो श्रीलंका की जीडीपी और अर्थव्यवस्था भारत के मुकाबले काफी छोटी है, लेकिन ह्यूमन डेवलपमेंट रेट की बात करें तो श्रीलंका की रेटिंग 73 है और भारत की 135. नवजात शिशु मृत्यू दर श्रीलंका में 8.76 प्रति हजार शिशु है (2015 तक अनुमानित), जबकि यही दर भारत में 40.19 प्रति 1000 शिशु है. भारत को इस मामले में श्रीलंका से आगे बढ़ने के लिए बजट में मेटरनिटी सर्विसेज पर भी ध्यान देना होगा. बजट में स्वास्‍थ्‍य सेवाओं पर ध्यान देना होगा. बजट 2017 में इसे बेहतर बनाना होगा. इसके अलावा, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स को बढ़ाने की बात करें तो शिक्षा और गरीबी जैसे ममालों में इस बजट में ज्यादा खर्च करना होगा.

3. नेपाल-

जहां तक नेपाल की बात है तो नेपाली बजट भारत की तुलना में 5% ही है. 2016 में नेपाली बजट था 890 बिलियन नेपाली रुपए (भारत में लगभग 1 अरब रुपए) और यहीं भारत का बजट था 19,78,060 करोड़ रुपए (19 अरब रुपए) था. श्रीलंका हमेशा से अपने बजट में टूरिजम पर ज्यादा ध्यान देता है. बजट का लगभग 0.75% हिस्सा टूरिजम पर जाता है. जबकि भारत बजट का 0.075% हिस्‍सा ही टूरिजम पर खर्च करता है. (पिछले यूनियन बजट में 70% बढ़ोत्‍तरी के साथ टूरिजम मिनिस्ट्री को 1500 करोड़ रुपए मिले थे.)

4. भूटान-

भूटान की बात करें तो इस देश से सिर्फ पर्यावरण के मामले में भारत पीछे है, लेकिन वो इतना पीछे है कि भूटान का मुकाबला कर पाना मुश्किल है. भूटान में बिलकुल भी ग्रीन हाउस गैस नहीं पैदा होती हैं. भूटान का बजट 13.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 94 करोड़ रुपए) था और उसमें से लगभग 8 करोड़ रुपए यानी कि 8.5% सिर्फ पर्यावरण पर खर्च होता है. एक भारतीय रुपए 1 भूटानी ग्लट्रम (Bhutanese ngultrum) के बराबर है.

अब यहीं अगर भारत को देखें तो कुल बजट में से नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) को 5036 करोड़ रुपए दिए गए थे. ये आंकड़ा 2015 के बजट में 262 करोड़ रुपए था. 2016 के बजट में क्लाइमेट चेंज के लिए भारत ने खर्च में दो साल के लिए 3.5 बिलियन रुपए (52.8 मिलियन डॉलर) रखे थे. यानी एक साल का 179.8 करोड़ के आस-पास. इसका मतलब पर्यावरण सुधार में बजट का 0.1 प्रतिशत. अब बताइए दिल्ली की हवा तो जहरीली होगी ही ना.

5. बांग्‍लादेश-

बांग्‍लादेश भी पर्यावरण के मामले में ही सिर्फ हमसे आगे है. बांग्‍लादेश लगभग 1 बिलियन डॉलर हर साल पर्यावरण पर खर्च करता है. यानी उसके सालाना बजट का 6 से 7 प्रतिशत. हालांकि, इसे बांग्‍लादेश की मजबूरी कहा जा सकता है क्योंकि देश प्राकृतिक आपदाओं से खतरे में है. दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक बांग्‍लादेश फिर भी पर्यावरण पर खर्च तो करता ही है ना. अब ये सोचा जाए कि भारत इसकी तुलना में कितना करता है तो वो आपको पहले बताया ही जा चुका है.

ऐसा नहीं है कि बाकी पड़ोसी देशों की तुलना में भारत कहीं पिछड़ा हुआ देश है. कई मामलों में भारत का बजट बेहतर और ज्यादा असरदार साबित होता है, लेकिन असल में गरीबी, स्वास्थ, डिफेंस और प्रदूषण जैसे मुद्दे 2016 में भारत को काफी परेशान कर चुके हैं. जहां एक ओर दिल्ली में स्मॉग ने जीना दूभर कर दिया था तो दूसरी ओर आतंकवादी हमले, ट्रेन हादसे और आए दिन पकड़े जाने वाले आतंकवादियों ने 2016 में भारत को काफी पीछे कर दिया. तो यकीनन भारतीय बजट में इनपर ध्यान देना चाहिए.

स्रोत-

भूटान बजट

नेपाल बजट

चीन डिफेंस बजट

श्रीलंका इंडेक्स-- ह्यूमन डेवलपमेंट- मॉर्टेलिटी रेट

- बंगलादेश बजट

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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