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टैक्स आतंकवाद और टैक्स चोरी दोनों खत्म होनी चाहिए

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 09 फरवरी, 2016 09:48 AM
  • 09 फरवरी, 2016 09:48 AM
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वित्त मंत्री अरुण जेटली वादा कर रहे हैं कि देश से टैक्स आतंकवाद को खत्म करेंगे. रघुराम राजन चेता रहे हैं कि कुछ मल्टीनैशनल कंपनियां हमेशा टैक्स का रोना रोती है और टैक्स चोरी के सभी हथकंड़े अपनाती हैं. ऐसे में ज्यादा कारगर नीति क्या होनी चाहिए?

मल्टीनेशनल कंपनियों की बड़ी शिकायत है कि भारत में उनसे जमकर टैक्स वसूला जाता है. जब से पिछली यूपीए सरकार ने 2012 में इन्कम टैक्स नियम में संशोधन कर पूर्वप्रभाव से टैक्स (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) थोपने का अधिकार ले लिया, इन मल्टीनेशनल कंपनियों ने इसे ‘टैक्स आतंकवाद’ की संज्ञा दे दी. नए नियमों का हवाला दे इन्कम टैक्स विभाग ने इन पर हजारों-करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का नोटिस जारी कर दिया. वोडाफोन, कैर्न एनर्जी जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों ने सरकार को कोर्ट में खींच लिया. मनमोहन सरकार कोर्ट में आर-पार की लड़ाई के मूड में थी लेकिन दिल्ली में सत्ता बदल गई. चुनावों में ही बीजेपी ने साफ कर दिया था कि ‘आतंकवाद’ किसी भी शक्ल में हो उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा.

अब केन्द्र में बैठी मोदी सरकार के लगभग 2 साल पूरे होने जा रहे हैं. इस दौरान केन्द्र सरकार ने मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट इंडिया और न जाने कैसे-कैसे इंडिया की परिकल्पनाओं को देश के सामने रख दिया है. लेकिन तथाकथित ‘टैक्स आतंकवाद’ का टेरर बीते दो साल तक कुछ यूं छाया रहा कि मल्टीनेशनल कंपनियों समेत विदेशी संस्थागत निवेशक किसी बड़ी चुनौती के लिए भारत में नहीं घुसे. लिहाजा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को साफ-साफ समझ आने लगा कि उनके लिए परेशानी का ये ठीकरा मनमोहन सरकार फोड़ कर गई है. वित्त मंत्री को दो साल में यह समझ आ चुका है कि रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से देश को नुकसान होता है. उनका मानना है कि ऐसा कोई टैक्स लगाने से क्या फायदा कि सरकार उसे वसूल ही न पाए. वहीं ऐसे टैक्स के महज प्रावधान से न तो कोई नई मल्टीनेशनल कंपनी बड़ा निवेश लेकर आकर आती है और जो पहले लेकर कर आ चुके हैं वो पलायन करना शुरू कर देती हैं.

इसके उलट देश के वित्तीय ढ़ाचे पर बैठी रिजर्व बैंक का अपना ही मानना है. रिजर्व बैंक के तेज-तर्रार गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि मल्टीनैशनल कंपनियां हमेशा अधिक टैक्स वसूले जाने का आरोप लगाती हैं....

मल्टीनेशनल कंपनियों की बड़ी शिकायत है कि भारत में उनसे जमकर टैक्स वसूला जाता है. जब से पिछली यूपीए सरकार ने 2012 में इन्कम टैक्स नियम में संशोधन कर पूर्वप्रभाव से टैक्स (रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स) थोपने का अधिकार ले लिया, इन मल्टीनेशनल कंपनियों ने इसे ‘टैक्स आतंकवाद’ की संज्ञा दे दी. नए नियमों का हवाला दे इन्कम टैक्स विभाग ने इन पर हजारों-करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का नोटिस जारी कर दिया. वोडाफोन, कैर्न एनर्जी जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों ने सरकार को कोर्ट में खींच लिया. मनमोहन सरकार कोर्ट में आर-पार की लड़ाई के मूड में थी लेकिन दिल्ली में सत्ता बदल गई. चुनावों में ही बीजेपी ने साफ कर दिया था कि ‘आतंकवाद’ किसी भी शक्ल में हो उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा.

अब केन्द्र में बैठी मोदी सरकार के लगभग 2 साल पूरे होने जा रहे हैं. इस दौरान केन्द्र सरकार ने मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट इंडिया और न जाने कैसे-कैसे इंडिया की परिकल्पनाओं को देश के सामने रख दिया है. लेकिन तथाकथित ‘टैक्स आतंकवाद’ का टेरर बीते दो साल तक कुछ यूं छाया रहा कि मल्टीनेशनल कंपनियों समेत विदेशी संस्थागत निवेशक किसी बड़ी चुनौती के लिए भारत में नहीं घुसे. लिहाजा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को साफ-साफ समझ आने लगा कि उनके लिए परेशानी का ये ठीकरा मनमोहन सरकार फोड़ कर गई है. वित्त मंत्री को दो साल में यह समझ आ चुका है कि रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से देश को नुकसान होता है. उनका मानना है कि ऐसा कोई टैक्स लगाने से क्या फायदा कि सरकार उसे वसूल ही न पाए. वहीं ऐसे टैक्स के महज प्रावधान से न तो कोई नई मल्टीनेशनल कंपनी बड़ा निवेश लेकर आकर आती है और जो पहले लेकर कर आ चुके हैं वो पलायन करना शुरू कर देती हैं.

इसके उलट देश के वित्तीय ढ़ाचे पर बैठी रिजर्व बैंक का अपना ही मानना है. रिजर्व बैंक के तेज-तर्रार गवर्नर रघुराम राजन का कहना है कि मल्टीनैशनल कंपनियां हमेशा अधिक टैक्स वसूले जाने का आरोप लगाती हैं. लेकिन यही कंपनियां दुनियाभर में टैक्स बचाने और टैक्स चोरी करने के नए-नए हथकंडों को जायज ठहराती हैं. उदाहरण के लिए राजन कहते हैं कि दुनियाभर की ज्यादातर मल्टीनैशनल कंपनियां अमेरिका के पास स्थित केमन आईलैंड का जिस तरह इस्तेमाल करती हैं उससे तो यह लगता है कि सभी कंपनियों का मैन्यूफैक्चरिंग फार्मूला (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) इस कुछ किलोमीटर वर्ग फुट में सिमटे द्वीप पर जन्म लेता है.

राजन की दलील है कि दुनियाभर की सरकारें और केन्द्रीय बैंक इस जुगत में रहती हैं कि प्राइवेट उद्यम को बढ़ावा दिया जाए. ऐसा इसलिए कि उन करोड़ों लोगों को प्रति वर्ष नौकरी मिल सके जो पढ़ाई पूरी कर जॉब मार्केट की कतार में खड़े हो रहे हैं. राजन के मुताबिक, हमें हर साल करोड़ों नौकरी पैदा करने की जरूरत है क्योंकि समावेश का यह सबसे बढ़ियां तरीका है. इसके लिए देश के राजनीतिक तंत्र और नियामकों पर लगातार दबाव बढ़ा रहा है. यही एक लोकतांत्रिक व्यवस्था से अपेक्षा रहती है कि वह समग्र विकास के रास्ते को आसान करे और नया कारोबार शुरू करने की प्रक्रिया को सरल करे.

जब कुछ मल्टीनेशनल कंपनियां लोकतांत्रिक ढांचे में सरकार के प्रमुख उद्देश्य को विफल करने का बीड़ा उठा लें तो जरूरी हो जाता है कि इससे निपटने के लिए कोई नया रास्ता इजात किया जाए. बीते दिनों गूगल, एप्पल जैसी कंपनियों की केमन आइलैंड के जरिए अमिरका में टैक्स चोरी को लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठाए गए हैं. वहीं यूरोप के कई देशों, चीन और जापान में इस आशय कठोर कदम उठाए जा रहे हैं. ऐसे में यदि मोदी सरकार की कवायद है कि वह ‘टैक्स आतंकवाद’ को खत्म करने के लिए कदम उठाएगी जिससे विदेशी निवेश आ सके, तो उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह विदेशी निवेश लेकर आने वाली मल्टीनैशनल कंपनियां टैक्स बचाने और टैक्स चोरी के हथकंडे को भी छोड़ने के लिए तैयार हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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